ताल से ताल मिले, सु से जन्मे सुर / जयप्रकाश चौकसे

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ताल से ताल मिले, सु से जन्मे सुर
प्रकाशन तिथि : 02 दिसम्बर 2021


हाल ही में संपन्न हुए 43वें काहिरा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में संगीतकार ए आर रहमान को संगीत की सेवा के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया। जिसका प्रमाण पत्र रहमान ने मीडिया में जगजाहिर किया है। इसके पूर्व रहमान को ऑस्कर और ग्रैमी पुरस्कार दिए जा चुके हैं। डैनी बॉयल की फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ में उनके पार्श्व संगीत और दो गीतों को भी सराहा गया था। डैनी ने स्वयं ही यह बात स्वीकार की है कि फिल्म निर्माण के समय रहमान ने अनेक सुझाव दिए और फिल्म के क्लाइमैक्स की रचना में भी उनका सहयोग रहा। कुछ समय पूर्व ही कृष्णा त्रिलोक ने ‘नोट्स ऑफ ड्रीम’ नामक किताब लिखी है, जिसे रहमान की आधिकारिक यात्रा माना गया है।

रहमान के पिता आर.के शेखर ने अपना कॅरिअर संगीतकार इलैयाराजा के वादक के रूप में प्रारंभ किया। आर.के शेखर की मृत्यु संदिग्ध हालत में हुई। आर.के शेखर की मृत्यु के समय उनके पुत्र की आयु मात्र 9 वर्ष थी और उसकी तीन छोटी बहनें भी थीं। आर.के शेखर की विधवा ने दिन-रात परिश्रम किया और अपने बच्चों का पालन पोषण किया। 9 वर्ष की आयु में ही आर.के शेखर के पुत्र रहमान ने संगीत रचना प्रारंभ की थी और उन्हें ‘मद्रास का मोजार्ट’ कहा जाता था। बच्चों के खेलने की उम्र में आर.के शेखर का पुत्र हारमोनियम बजाने में महारत हासिल कर चुका था। आर.के शेखर ने 24 फिल्मों का संगीत रचा था। रहमान ने रिकॉर्डिंग का ज्ञान रहमान अपने पिता आर.के शेखर से विरासत में पाया है। कमला मथाई ने अपनी किताब में आर.के शेखर के संघर्ष का विवरण दिया है। उस किताब में यह भी लिखा है कि भारी बरसात के समय आर.के शेखर के घर में पानी भर जाता था। तब परिवार के सभी सदस्य हारमोनियम, तबला इत्यादि की रक्षा करते थे।

फिल्मकार मणिरत्नम ने उन्हें ‘रोजा’ में संगीत रचने का अवसर दिया। ‘रोजा’ में ध्वनियों के नए प्रयोग ने लोगों को बहुत प्रभावित किया। कुछ वर्ष पूर्व विश्व के सात अजूबों में सर्वश्रेष्ठ के लिए मतदान किया गया। इस अवसर पर रहमान ने ताजमहल के प्रति अपना आदर अभिव्यक्त करने के लिए एक गीत रचा था। निर्देशक भरत बाला, रहमान के बचपन के साथी हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में भी एक गीत की आवश्यकता थी। भरत बाला के आग्रह पर रहमान ने ‘वंदे मातरम’ गीत की रचना की। रहमान हमेशा अपने चेन्नई स्थित संगीत कक्ष में ही गीत रिकॉर्ड करते हैं। रहमान ने सुभाष घई के अनुरोध पर फिल्म ‘ताल’ के लिए संगीत रचा। फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय हुए। रहमान अपने रचित संगीत से प्राप्त रॉयल्टी को अपने मेहनताने के रूप में स्वीकार करते हैं। इस रकम के एकमात्र हकदार होने का कारनामा वे पहले ही कर लेते हैं। दरअसल यह कोई लोभ-लालच का प्रकरण नहीं है। यह एक सृजनधर्मी का अपने अधिकार के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। रहमान ने कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया। संगीत अधिकार से उन्हें अपनी लगाई पूंजी की वसूली होती है। उनकी ‘मौन रागम’ एक चर्चित फिल्म रही।

रहमान प्राय: चेन्नई में रहते हैं। मुंबई की पवई लेक के निकट भी उन्होंने एक घर बनाया है। स्पष्ट है कि वे प्रकृति के आंगन में रहना पसंद करते हैं। उनकी पत्नी सायरा भी कभी उनके काम में दखल नहीं देती। रहमान के संगीत कक्ष में जाने की इजाजत किसी को नहीं है। सायरा घर के काम करते समय कभी-कभी कुछ गीत गाती हैं। रहमान ने अपनी पत्नी को गाते हुए सुना है। उन्होंने कुछ गानों की रचना सायरा के गुनगुनाने से प्रेरित होकर भी की है। उन दोनों का जीवन युगल गीत की तरह बीत रहा है। ज्ञातव्य है कि रहमान अपने संगीत कक्ष में एक बड़ी मोमबत्ती जलाते हैं और जब तक मोमबत्ती जलती रहती है वह काम करते रहते हैं। कभी-कभी किसी नादान हवा के झोंके से मोमबत्ती कुछ समय बाद बुझ जाती है तो रहमान काम करना बंद कर देते हैं। क्या वे प्रकाश के संगीत को सुन पाते हैं?