तीलीराम / सुधा भार्गव

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नाटा की मम्मी पड़ोस में गई थी। वहाँ कीर्तन था। उसका नाम तो नटवर था पर अपने भाई बहनों में वह सबसे छोटा था। छोटा होने के कारण उसे सब नाटू—नाटू कहकर चिढ़ाते। शुरू- शुरू में तो वह रोने लगता था पर फिर उसे इस नाम की आदत पड़ गई।

उस दिन वह अकेला था। ठंडी हवा चलने से साँय –साँय की आवाज होने लगी। खिड़कियाँ खटपट –खटपट कर भयानक शोर करने लगीं। नाटू सहम गया। उसने खिड़कियाँ जैसे –तैसे बंद कीं। लिहाफ ओढ़ आँखें मींच बिस्तर पर गड्ड –सड्ड सा लेट गया। तभी दरवाजे पर हल्की सी थाप हुई –माँ तो हो नहीं सकती फिर यह कौन? वह डर गया और कसकर लिहाफ को अपने चारों तरफ लपेट लिया। अब तो थाप पर थाप पड़ने लगी। वह हिम्मत करके उठा। हाथ में बाबा की छ्ड़ी ले ली कि कोई बदमाश होगा तो इससे उसकी खबर लेगा।

उसने दरवाजा खोला,कोई नहीं दीखा। अंदर मुड़कर देखा कहीं कोई उसके पैरों के बीच से झुककर अंदर तो नहीं चला गया। सारे घर में एक चक्कर लगा लिया फिर दरवाजे पर खड़ा होकर चिल्लाया –कौन है? सामने आओ। आयेगा कैसे मुझ बहादुर के सामने। हा –हा --भाग गया बाबा की छड़ी देखकर।

जब कोई भी नहीं आया तो वह दौड़कर बिस्तर पर चढ़ कर फिर लिहाफ में दुबक गया। उसे लगा उसकी कमर से कुछ चिपक रहा है। उसने लिहाफ झटके से दूर फेंक दिया और देखा –माचिस की तीली के बराबर एक लड़का उसकी सफेद चादर पर लेटा है। मोती सी आँखें चमकाता हिलडुल रहा है। नाटू की आँखें अचरज से चौड़ गईं। वह उसे छू –छूकर कहने लगा –ये इसके हाथ हैं,ये पैर हैं। यह छोटा सा मुंह है। अरे –रे –यह तो खड़ा भी हो गया।

-सुनो तुम मेरे बिस्तर पर क्यों लेट गए? मेरे कमर के नीचे दब जाते तो क्या होता !तुम्हारा नाम क्या है?

-मेरा नाम तीलीराम है। गुड़ सी मीठी आवाज आई।

-ठहरो,मैं तुम्हारे लेटने का अभी इंतजाम करता हूँ।

वह बहन की गुड़िया का पलंग उठा लाया और बोला –लो,अब तुम इस पर उठक –बैठक करो या सो जाओ। अब कोई खतरा नहीं। मैं आज बहुत खुश हूँ।

-मुझे देखकर खुश –क्यों?

-मुझे सब नाटू –नाटू कहते हैं। पर तुम तो मुझसे बहुत छोटे हो। ऐसे में तुम्हारे सामने तो मैं लंबू हुआ।

-हाँ लंबू,तुम ठीक कहते हो।

-वाह तीली राम !आज का दिन कितना अच्छा है !इससे पहले मुझे किसी ने लंबू नहीं कहा। चलो इसी खुशी में घूमने चलते हैं।

नटवर ने तीलीराम को अपनी हथेली पर रखा और घर से बाहर कदम रखा। तीलीराम को देखकर हवा की हंसी फूट पड़ी और बोली –जरूर इसके बुरे दिन आ गए हैं। अभी इसको उड़ाती हूँ।

हवा तेजी से बहने लगी। नटवर ने देखा –तीलीराम हनुमान की तरह ऊंचा उड़ता जा रहा है।

वह उसके पीछे –पीछे भागा –हवा रुक जाओ ---धीरे –धीरे बहो। तीलीराम को चोट लग जाएगी। यदि इसे कुछ हो गया तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा।

अचानक हवा रुक गई। तीलीराम लुढ़कता –पुड़कता नीचे की ओर गिरने लगा और रुई के ढेर पर जा पड़ा। उसे चोट तो नहीं आई लेकिन चारों तरफ रुई चिपट गई। वह सफेद गेंद की तरह गोलू लगने लगा। रुई उसे बहुत मुलायम लगी। वह उसके ढेर पर कूद –कूदकर नाचने लगा। नटवर ने उसे फट से अपनी जेब में रख लिया कि कहीं वह फिर मुसीबत में न पड़ जाए।

घर पहुँचकर वह उसकी रुई हटाने लगा।

-ठहरो नाटू !अभी रुई नहीं हटाओ। यह लिहाफ का काम कर रही है मुझे इससे ठड़ नहीं लग रही है।

-क्या कहा नाटू ---क्या मैं तुम्हें नाटा दिखाई दे रहा हूँ। जाओ तुमसे नहीं बोलता। नटवर ने गुब्बारे की तरह मुंह फुला लिया

-ओह लंबू !मुझे माफ कर दो। तीली राम अपने कान पकड़ते बोला।

दूसरे ही क्षण नटवर अपने विचित्र मित्र को देख हँस पड़ा और अपने उसे रुई से ढक दिया।