तोरोॅ सुनीता / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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बाबू जी,

हों बाबू जी ही लिखी रहलोॅ छियौं। पहिलोॅ दाफी यै सम्बोधन के आत्मीयता केॅ महसूस करी रहलोॅ छियै। कतना अपनापन छै यै एक शब्द में। वैसें ई बात नै छै कि हम्में पहिलोॅ दाफी बाबू जी कही रहलोॅ छियै। ढेरे बार, बिहानी जागै सें रात सूतै ताँय सौ पुरी जैतेॅ होतै।

तखनी-तबॅे हम्में छोटोॅ, एकदम नन्ही बच्ची छेलियै। तोरा तेॅ यादे होत्हौं कि हम्में तोरे ठियां रहै लेॅ आपनोॅ भाय आरो बहिन संगें केना लड़ी पड़ै छेलियै अक्सर। हेना कहोॅ तेॅ रोजे साँझै, रात गहराबै सें पहिलें, खास करी केॅ जाड़ा के दिनोॅ में जबेॅ तोंय दुआरी पर नरम-नरम भिंजलोॅ रूइया नांखी नरूआ बिछाय केॅ सूतै छेल्हौं, जै पर डालै छेल्हौ तोसक आराॅे गद्दा आरोॅ तेकरा पर रेजाय, तखनी हम्में वै रजाय में जग्घोॅ नै पैला पर जबेॅ कानेॅ लागियै तबेॅ तोंय की रॅं हाँसी केॅ हमरा आपनोॅ गोदी में बिठाय लै छेल्हौ। हमरोॅ लोर पोछतें कहै छेल्हौ-'सन्नो रानी हमरोॅ सबसें प्यारी बेटी छेकी। ई हमरे ठियाॅं सुतती।' ई कहतें तोंय हमरा मृगछौना नाँखी आपनोॅ छाती सें लगाय लै छेल्हौं, थपथपाय दै छेन्हौ। हम्में देर ताॅंय सुबकतंे रही जइयै।

बाबू जी, तहूुं सोचभौ कि आय हम्में की सोची बैठलोॅ छियै। सुनसान, एकांत रात छै। अगहन के दुधिया चाँद आकाश में खिलखिलाय रहलोॅ छै। मंगलवार के ई रात! रात के अभी बारह तेॅ ज़रूरे बजी रहलोॅ होतै। सौंसे गाँव सुतलोॅ छै। सिर्फ़ कोरयासी के कालीथान में मंगलवार होय के कारणें कीर्तन होय रहलोॅ छै। नै चाही केॅ भी ढोलक के थाप, हरमोनियम के मिठास भरलोॅ सुर आराॅे माँगन के गीत सुनाय पड़ी रहलोॅ छै, वहेॅ चिर परिचित गीत-'हमरा केवल भरोसा एक बजरंग बली के'

बाबू की बतैय्यौं, हमरा तेॅ केकर्हौ पर भरोसोॅ नै होय रहलोॅ छै। देवता-पिŸार कोय्योॅ सहाय नै। उदासी आरो निराशा सें भरलोॅ ई जिनगी। सचमुचे में ई गाँमोॅ अपना आप में अजीब छै। विचित्रता सें भरलोॅ। केकराॅे घरोॅ के दुक्खोॅ आकि मातम सें केकर्हौ मतलब नै। रोग हुवेॅ आकि भय। भगवानोॅ के ई कीर्Ÿान सें केकर्हौ कोय मतलब नै। ई बिना कोय बाधा के चलत्हैं रहैं छै।

आरो हम्में तोरा ई राती में बैठी केॅ चिट्ठी लिखी रहलोॅ छियौं। नै जानै छियै कि कैन्हें लिखी रहलोॅ छियै। की होय छै ई लिखला सें? मतरकि लिखना तेॅ छेवे करै। याद करोॅ तोहीं तेॅ कहलेॅ छेल्हौ बाबू जी, जबेॅ विपŸिा में कोय नै रहेॅ, तबेॅ हमरा याद करियोॅ। एतना पर चिट्ठी लिखै के कारण तेॅ साफ होय्ये नी जाय छै। आखिर ई हमरोॅ कोय लक्ष्य के सिद्धिये लेली तेॅ छेकै।

ई दाफी जबेॅ हम्में ससुराल लेली आबेॅ लागलोॅ छेलियै तेॅ हम्में माय सें कहनें छेलियै कि हमरा वहाँ नै जाना छै। ससुराल-ससुराल होय के रŸिायो भर शर्Ÿा पूरा नै करै छै। हमरोॅ जिनगी रेगिस्तान में उगलोॅ नागफनी फूले नाँखी तेॅ छेकै। तोरा केना कहियौं बाबू जी, बरबसे कानवोॅ आबै छै, माय के ही जवाब याद करी केॅ। जे निश्चते तोरा सें विचार-विमर्श करला के बादे हेनोॅ जवाब देलेॅ होतै। हम्में कटलोॅ गाछी रं बिछौना पर गिरी पड़लोॅ छेलां। कै घण्टा तांय कानतें रहलोॅ छेलां। बेटी पराया होय छै, जहाँ जोॅन खूँटा सें बाँधी दहौ। कोय्यो माय ओकरा नै राखेॅ पारेॅ, व्याह के बादे सें ऊ सिर्फ़ ससुराल के चीज होय छै।

सच कहै छियौं बाबू जी, माय के ऊ बेधड़क जवाबोॅ सें हम्में जिनगी में पहिले है रं सें आहत होलोॅ छेलियै आरो वै रात में जे फैसला लेनें छेलियै, ओकर्है आय पूरा करै लेॅ जाय रहलोॅ छियै। हम्में ...यानि तोरोॅ सुनीता... सच्चे में सौंसे बेटी जात वस्तु मात्र ही तेॅ होय छै। खाली वस्तु। बाजारोॅ में खरीदै-बिकै वाला सामान भर। दुख सें भरलोॅ रोज-रोज के आपनोॅ ई जिनगी सें जŸोॅ दुख हमरा नै छै ओकरा सें कहीं बेसी ई बात के छै कि कहतें-कहतें माय हमरा वस्तु तांय कही देलेॅ छेलै। यहेॅ एक शब्दें तेज हवा में उड़ै वाला पŸाा नाँखी हमरा झकझोरी केॅ राखी देनें छेलै। हम्में तेॅ वहेॅ दिन मरी गेलोॅ छेलियै। खाली कहै के जीŸाोॅ छी। सोचै छियै हेनोॅ जील्हैं सें की! रोज-रोज मरला सें तेॅ कहीं अच्छा छै, एक्के दिन मरी जैवोॅ। हमरोॅ

एकलौता सहारा तोरे भरोसोॅ छेलै, वहोॅ नै रहलै। ई एतना बड़ोॅ जिनगी तोरोॅ दिलासा बिना केना काटबै।

हमरोॅ सबसें ज़्यादा पूज्य बाबू, मरै सें पहिलें हम्में एतन्हैं टा खाली पूछै छियौं कि तोहें हमरा जनम कैन्हें देल्हौ? की तोहें जनम दै वाला के कर्Ÿाव्य केॅ पूर्णता दियेॅ पारल्हौ! की व्याहे सें बेटी के जिम्मेदारी सें मुक्ति मिली जाय छै! हमरा मालूम छै कि तोरोॅ पास एकरोॅ कोय उŸार नै छौं। भरसक तहूँ भी यहेॅ सोची लौ कि किस्मतोॅ में यहेॅ होवोॅ लिखलोॅ छेलै। कारण कि तोहें तकदीरे पर भरोसोॅ करै वाला छेकौ। तोहें यहू सोचेॅ पारोॅ कि एक्के नै, ढेर सिनी सुनीता मरतें रहै छै। वही सुनीता में एक हमरियोॅ सुनीता छेली। कोय कुछ सोची केॅ दुखित हुवेॅ आकि नै हुवेॅ मतरकि सवाल के कटघरा में खाड़ोॅ होय सें कोय अपना केॅ नै बचावेॅ सकेॅ।

बाबू जी, तोहें हमरोॅ निश्चल आँखी के भाषा पढ़ै में एकदम असमर्थ रहल्हौ आकि पढ़ियो-समझियो केॅ किनारा करी लेल्हौ। हम्में नै कहै लेॅ चाहभौं कि तोहें ई रं कैन्हें करल्हौ। तोहें तेॅ हेनोॅ नै छेल्हौ। कौन ऐन्होॅ परिस्थिति छेलै जेकरोॅ कारण तोरा अपनी सबसें प्यारी बेटी सुनीता केॅ मौत के मुँह में झोकै लेॅ पड़ी गेल्हौं। ... याद होत्हौं, तोरा सें हम्में कहलेॅ छेलियौं कि नारी केॅ समाज में आपनोॅ सार्थकता सिद्ध करै के अवसर मिलना चाहियोॅ। हम्में तेॅ क्लासोॅ में अच्छे करी रहलोॅ छेलियै। तोरा यादे होत्हौं कि तोहें हमरोॅ वाक्शक्ति आरो साहित्य-प्रेम देखी केॅ कहलेॅ रहौ कि हमरी बेटी कवयित्री बनती। एक सिद्ध साहित्य-साधिका। माय के सामन्हौं तोहें ई बातोॅ केॅ कै दाफी दोहरैनें छेल्हौ। फेरू है कि भेलै कि अठारहाॅे सालोॅ के नै होलियै कि हमरोॅ बिहा करि देल्हौ। एक हेनोॅ खूंटा सें बाँधी देल्हौ कि हम्में आपनोॅ किंछा जलतें-मरतें ही देखेॅ पार्हौं। हमरोॅ ई पीड़ा, विकलता, छटपटाहट केॅ समझै वाला कोय नै छै। एक ठो दादा जी छै, हमरोॅ ददिया ससुर जें आपनोॅ बूढ़ोॅ आंखी सें घुरतें रहै छै।

बाबू जी, तोरोॅ सुनीता अभी सोलहाॅे श्रंगार करी केॅ बैठली छौं। घरोॅ में हम्में एकदम्में असकल्ली छी। दादा जी ऊपरवाला आपनोॅ कोठरी में सूती रहलोॅ होतै आराॅे जेकरोॅ साथें हमरोॅ सात फेरा पड़लोॅ छेलै, हुनी कीर्तन गायवाला के पीछू गीत गैतै, गाँजा पीबी केॅ वही कालीथानोॅ के कोय कोना में सूती गेलोॅ होतै। हमरोॅ ई सुन्दर-स्वस्थ शरीर, जेकरा देखी तोहें कहै छेल्हौ-कोय रूपवती हूवेॅ तेॅ हमरी बेटी सुनीता रॅं, एक्के दाफी कोय्योॅ देखत्हैं पसंद करी लेतै। आय हम्में आपनोॅ वहेॅ खुबसुरती आराॅे स्वास्थ्य के आगिन में झुलसी रहलोॅ छी। कोय भयानक रोग, जें जान लै लियै, ओकरे लेॅ तीन सालोॅ सें हम्में भगवानोॅ सें प्रार्थना करतें थक्की गेलोॅ छी। हे देव, हेनोॅ होय जैतियै।

तोहें कहै छेल्होॅ-बेटी धनवान घर में जाय रहली छै-तोहें ठीक कहै छेल्हौ। यहाँ धन के कमी एकदम नै छै। सब्भे सुविधा छै। चारोॅ तरफें पोखरा पाटन, पक्का के आलीशान मकान, जेवर गहना सें भरलोॅ छै तोरोॅ सुनीता, मतरकि सब्भे बेरथ। ... बस नै छै तेॅ "हुनकोॅ" प्यार। पति के वीतरागीपना, हुनकोॅ आँखी में झाँकैवाला खालीपन हमरा सालतें रहै छै। आबेॅ तेॅ तंग आबी गेलोॅ छी। हमरा अपनापन सें घिन हुवे लागलोॅ छै। तबेॅ हमरा अपना आप पर कŸोॅ गौरव छेलै। कŸोॅ बड़ोॅ-बड़ोॅ कल्पना भी रहै हमरोॅ मनोॅ में। हम्में ई स्वीकार करै छियै कि तोरोॅ ई सुनीता आबेॅ हारी रहलोॅ छै। एकरा सें तोरा कलंकाॅे लागेॅ पारेॅ। हमरा लैकेॅ सवाल उठतै, ढेर सिनी सवाल। आराॅे ऊ सिनी सवालोॅ के बौछार सें तोरा सब के सीना दग्ध होय जैतहौं। हमरा सब्भैं कोसतै, आखिर ऊ कैन्हें हारी गेल्है ज़िन्दगी सेंु? ...मतर की करवै, लाचार छियंै ज़िन्दगी सें। बहुत सहलियै, आबेॅ सहै के हिम्मत नै छै।

तोहें कतना सरल, आरो सीधा छौ हमरोॅ बाबू जी! डोली पर बैठी केॅ आवै वक्ती तोरोॅ कानवोॅ आरो फेनू तीन सालोॅ बाद यै दाफी विदाय वक्ती रूलाय में कतन्हैं के अन्तर छेल्है! हम्में कुछ नै बोलेॅ पारलोॅ छेलियै। ... वै दिना माय के कानवोॅ, हम्में तेॅ कभियोॅ नै भूलेॅ पारौं। मरला के बादाॅे माय के ऊ दुख हमरोॅ साथें रहतै। माय के लोरोॅ के दाम के चुकावेॅ पारतै। हमरोॅ आरो तोरोॅ बीच माय के झुलतें प्यार भुलतें नै भूलै छियै। ... पत्नी आरो माय के जिम्मेदारी निभाबै में टुटतें जैती माय के मुंहोॅ के आकृति। ... ... तखनी माय की रॅं कानी रहलोॅ छेलै। अय्यो तांय वहेॅ रं हमरोॅ मनोॅ में माय कानी रहलोॅ छै। हाय, अभागिन औरत! पति आरो सन्तानोॅ के बीच में कसतें जायवाली रस्सी नांखी औरत की रं आपना केॅ सन्तुलित राखै में टुटतें रहै छै। असमंजस के बीच पलतें औरत आगिने पर तेॅ चलै छै, आगिने ही पीयेै छै आरो आगिने में जलै छै।

...कांही जोरोॅ-जोरोॅ सें नै कानें लागिहौं, कांही करेजोॅ मूँह सें बाहर नै आवी जाय, यही लेली दाँतोॅ तरोॅ में नीचलका ठोर दबाय लेलेॅ छियै। रूलाय सें खांसी नै आबी जाय, लाचार होय केॅ आपनोॅ बाँया हाथ मुँहोॅ पर राखी लेनें छियै कि कहीं दादा जी जागी नै जाय। हमरा मरै में बाधा पड़ी जैतोॅ। हेना में खाली आँखे बरसी रहलोॅ छै। वहेॅ आँख, जेकरोॅ कोना में कभियोॅ कविता के आकाश झलकै छेल्है। आय वहेॅ आँख कतना निस्तेज बनी गेलोॅ छै।

एतना बड़ोॅ कोठरी में हम्में छी आरो हमरोॅ छाया छै। आपनोॅ आवाज के जवाबोॅ में हमरा अपनंे जवाब खाली मिलै छै। आरो फेनू डर बनी जाय छै दादा के, जागी नै जा ... कतना स्नेह हमरा पर राखै छै दादा जीं। रिटायर जज छेकै। न्याय-अन्याय सब समझै छै। मानवोॅ बड़ी करै छै हमरा। बेटियो सें बढ़ी केॅ। हमरा छोड़ी केॅ हुनकोॅ सहारोॅ के छै। छेलै तेॅ बहूŸो आदमी मतरकि नौकरी मिलत्हैं सब एकेक करी केॅ शहर बसी गेलै। जों ऐवो करै छै तेॅ बस होली में आरो सब्भैं सबटा झोरी-झमारी केॅ लै जाय छै। ...हों भोरे एक ठो नौड़ी आबै छै। बर्Ÿान-वासन करी केॅ चल्ली जाय छै। आरो घरोॅ में फेनू वहेॅ भाँय-भाँय।

फेनू तेॅ हम्में आरो ई घोॅर बची जाय छै। झगड़तें रहै छियै बस अपना आपसें ही। दुनोॅ एक दूसरा रोॅ सूनापन के ठिठोलिये करतें रही जाय छियै।

कहां तक कहियौं बाबू जी, घरोॅ के हेनोॅ ढेर सिनी सवालोॅ सें हम्में कांपी उठै छियै। हमरा ऊ सवालोॅ के केन्हौं केॅ कोय उŸार नै मिलै छै। फेनू सोचेॅ लागै छियै, की छेकियै हम्में? हमरोॅ की ज़रूरत छै? की तोरहै सिनी ई सब सवालोॅ के जवाब दियेॅ पारभौ? ... हुवेॅ पारेॅ कि तोहें कहौ-है सब सवाल के जवाब हमरोॅ 'हूनिये' दीयेॅ पारॅ। मतुर कहाँ खोजियै हुनका? कहाँ मिलतै हुनी? हुनी तेॅ घरोॅ में कभी रहवे नै करै छै। यै गाँवोॅ सें लैकेॅ वै शहरोॅ तक बिना कारने दौड़ते रहै छै। कभी काका तेॅ कभी मामा, तेॅ कभी दादा कन। गाँव आवै छै तेॅ दोस्ताॅे कन पड़लोॅ रहै छै। कोय काम नै। कोय सरोकार नै दुनियाँ-जहानोॅ सें। एŸोॅ सुख-सम्पत रहला के बादाॅे नौकरी लेॅ बिहो फतिहा। लागै छै नौकरिये हुनकोॅ माय-बाबू आरो बहू छेकै।

कभी-कभी इच्छा होय छै कि हुनका सें निबटी लियै, मर्यादा में बंधलोॅ यहेॅ गोड़ें कालीथान चली केॅ आपनोॅ पति केॅ घोॅर लै आनियै पकड़लें-पकड़लें आरो हुनक्है सें पूछियै कि हम्में की छेकियै? हम्में कैन्हें छियै? ई घरोॅ में हमरोॅ की ज़रूरत छै? ... मतुर फेनू सोचै छियै, है काम नारी के नै हुवेॅ पारेॅ। औरत के एक सीमा होय छै नी। सीमा के भीतर्है ओकरोॅ शोभा होय छै नी। यही सोची गोड़ रोकी लै छियै। ई औरतोॅ विधाता के कैन्होॅ लाचार कीर्ति छेकै। मरदाना के घमंड भरलोॅ अधिकार में रहियाॅे केॅ ऊ आनन्दित होतें रहै छै।

...शायद बहुते कहि गेलिहौं। आदमी विवश होय छै तेॅ जायज-नजायज कुछुवोॅ मति नै राखेॅ पारै छै। तोरोॅ सुनीता वहेॅ हाल में छौं। बहुते दुखी। ओकरा मरन्है चाहियोॅ। ... तोरा ई चिट्ठी हमरे कोठरी में राखलोॅ मिलत्हौं। तबेॅ ताँय बिना उदेश्य के ई ज़िन्दगी सें बहुते दूर चल्लोॅ गेलोॅ होब्हौं। ... औरत तेॅ वस्तु भर होय छै नी। एक जैतै। दुसरी चल्लोॅ ऐतै।

नै चाहतौं ई चिट्ठी लिखी गेलोॅ छियै। मतुर हेकरा सें तोरा दुखित आकि रूलैवोॅ लक्ष्य नै छेकै। आपनोॅ दुख कहै के अधिकार,

एतना टा तेॅ बेटी के बनवे नी करै छै। ...तोरा आपनोॅ बचपन्हैं सें बड़ी तंग करतें ऐलोॅ छियौं। आबेॅ नै करब्हौं। ... तबेॅ तोरोॅ सुनीता, हों हम्में कŸोॅ तंग करै छेलियौं। गोदी में बैठी उछली केॅ तंग करै छेलियौं ...

खेलै लेॅ दूर-दूर ताँय भागी जाय छेलियै, आरो तेॅ आरो तोरा बूलैला पर नै आबै छेलियै। ... ज़रूरी कागज-पŸार हिन्नें-हुन्नें करी दै छेलियौं। तोरोॅ गुस्सा-तनाव के कुछुवे फिकर नै करतें।

रात वहेॅ रं आपना में डुबलोॅ होलोॅ छेलै। वहेॅ चाँदनी आरो शीतल हवा सें भिंगलोॅ रात। ... कि तभिये तेज हवा के एक झोंका खटाक् सें भिड़कलोॅ किबाड़ी के भीतर आबी गेलाॅे छेलै। चिट्ठी के पन्ना-पन्ना धरती पर हिन्नें-हुन्नें छिरियाय गेलोॅ रहै। सुनीतां चिट्ठी के बिखरलोॅ पन्ना केॅ देखलकै, मतरकि ऊ सबकेॅ समेटै के कोय कोशिश नै करलकै, बस देखतें रहलै। ... तेज हवा के वहेॅ झोंका। हवा साथें सुनीता के दिमागाॅे उड़ेॅ लागलोॅ छेलै कि थोड़ाॅे देरी बाद ऊ एक मजबूत दुस्साहस भरलोॅ निर्णय के साथ उठलै आरो रात के वै गहरैलोॅ सन्नाटा में घरोॅ सें बाहर निकली गेलौ।

आहट पाबी केॅ दादाजी जागी गेलोॅ छेलै। हुनी आपनोॅ कोठरी के खिड़की सें बाहर झांकी केॅ गोड़ोॅ के आवाज पहचानै के कोशिश करलकै। हुनका लागलै कि कोय्यो जनानी के छाया हुनकोॅ घरोॅ सें निकली, तेजी में कालीथान दिश बढ़लोॅ जाय रहलोॅ छै। पहचानतें देर नै लागलै।

दादाजी के ठोरोॅ पर एक ठो हल्का मुस्कान तैरी गेलै। हुनी बुदबुदैलै-"ई तेॅ बेटी सुनीता छेकै"। हुनका लागलै, बरसोॅ सें पड़लोॅ हुनकोॅ मनोॅ पर के बोझ हठाते हटी गेलोॅ छै।