थानेदार से इंटरव्यू / प्रमोद यादव

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‘ सबसे पहले बताएं कि आप थानेदार कैसे बने ? ‘

‘ जैसे सब बनते हैं...ले-देकर..’ थानेदार ने जवाब दिया.

‘ मेरा मतलब यह नहीं था...मैं जानना चाहूँगा कि पुलिस में भर्ती होने का मन कैसे बना ? क्या परिवार में पहले भी कोई पुलिसवाला था ? ‘

‘ नहीं जी, हम सब सुखी थे...कोई न था...वो तो मेरी किस्मत कुछ खराब थी कि चोरों की वजह से पुलिस बना ‘

‘ वो कैसे ? ‘

‘ मैंने तो कभी सोचा तक न था कि पुलिस महकमे में कदम रखूँगा लेकिन दो-तीन हादसे ऐसे हुए कि पुलिस में भर्ती होने का मन बना लिया. ‘

‘ क्या हादसा हुआ था ? ‘

‘ घर से एक बार बकरी चोरी हो गई..बाप ने मेरी पिटाई कर दी कि तेरे होते यह कैसे हुआ. मैं जैसे मैं न हुआ बकरी का “ बाडीगाड “ हो गया..उन्हें शक था कि कही मैने तो नहीं बेच दी...चोरी किसी और ने की पर इल्जाम मुझ पर लगा....खैर, बात आई-गई हो गई..धीरे- धीरे वो किस्सा मैं भूल गया और घरवाले भी भूल गये. ‘

‘ आपने कहा कि चोरों की वजह से पुलिस बने ‘

‘ हाँ...ठीक ही कहा..उस घटना के बाद एक घटना और घटी...स्कूल से मेरी सायकल चोरी चली गई...इस बार भी पिटाई हुई पर बेचने का इल्जाम नहीं लगा...पिताजी ने चोरी की रपट लिखा दी पर बरसों तक नहीं मिली...मैंने महकमा ज्वाइन किया तब सायकल मिली. ‘

‘ वेरी गुड...आपकी सायकल काफी मजबूत रही होगी जो अब तक चल रही थी...कैसे मिली सायकल ? ‘

‘ इसकी एक कहानी है... थानेदार बनते ही मैंने शहर भर के तमाम पेशेवर चोरों की एक मीटिंग काल की...और कहा कि दस साल पहले स्कूल से मेरी एक हीरो सायकल चोरी हुई थी..बस इतना भर कहना था कि सारे चोर फुर्र हो गये...दूसरे दिन सुबह देखा कि थाने में लाइन से इक्कीस हीरो सायकल खड़ी थी..मैंने ईमानदारी से उसमे से एक उठा ली जिसकी शक्ल मेरे बिछुडे सायकल से मिलती-जुलती थी...बाकी सायकल स्टाफ में बाँट दी.’

‘ सर जी, आप तो कहते हैं कि चोरों के कारण इस विभाग में आये...इनसे ही आपको प्रेरणा मिली पुलिस बनने की. ‘

‘ हाँ..प्रेरणास्रोत तो वही चोर थे जो दो बार गच्चा देकर बकरी और सायकल ले गये और मार मुझे खानी पड़ी थी...तभी मैंने प्रण किया कि एक दिन पुलिस बनूँगा...चोरों को पकडूँगा ताकि मेरी तरह कोई और बालक बेवजह अपने बाप की पिटाई का शिकार न हो पर..... पर....’

‘ पर क्या सर ? ‘

‘ पर यार..पुलिस ज्वाइन करते ही मेरे ज्ञान-चक्षू खुल गये...जल्द ही जान गया कि चोर अपनी जगह है और पुलिस अपनी जगह...एक ही ट्रेक पर दोनों दौडेंगे तो चोर ही हमेशा आगे होगा और सिपाही पीछे.. पकड़ने वाला तो सर्वदा पीछे ही होता है.....कभी किसी चोर को पकड़ भी लिया तो सामान पकड़ नहीं पाते...कभी सामान पकड़ लेते हैं तो खिसियानी बिल्ली की तरह चोर ढूंढते हैं ‘

मैंने टोका – ‘ आपने सायकल बरामद कर ली तो खोई बकरी भी बटोर लिये होंगे..’

‘ आपने कैसे जाना ?...इसकी भी एक कहानी है...बकरी की मे-मे हमेशा कानो में गूंजती रहती थी, ठीक उसी तरह जिस तरह जंजीर पिक्चर में हमेशा अमिताभ बच्चन के दिमाग में घोडा दौड़ता था...एक बार एक क़त्ल के सिलसिले एक गांव गया तो जिस घर में क़त्ल हुआ था वहाँ आठ-दस बकरियाँ चरती-फुदकती दिखी..मैंने सबको गिरफ्तार कर लिया और गांववालों को छोड़ दिया...मेरी दरियादिली से वे बहुत खुश हुए..और मैं बकरी पाकर गद-गद हुआ...’

‘ चोरों के कारण आप पुलिस बने तो निश्चित ही इनके प्रति काफी श्रद्धा होगी. ‘

‘ हाँ भाई...ठीक कहते हो... इन पर कोई कार्रवाई करने का मन नहीं करता...लेकिन केवल बेसिक-डी.ए. से तो घर चलने से रहा...ये ना हो तो भूखे ही मर जाएँ..’

‘ शहर में गुंडागर्दी, उठाईगिरी, सट्टेबाजी, छेड़खानी, शराबखोरी, लूट, पाकिटमारी, क़त्ल आदि का ग्राफ कैसा है ?’

‘पुलिस के होते (गुंडई के चलते ) किसी की मजाल है जो यह काम करे ? काफी अमन-चैन है शहर में.. साल में एकाध-दो क़त्ल हो जाता है...अपराधी हम पहले से तय कर रखते हैं...पकड़ते हैं और कोर्ट को सौंप देते हैं..अब कोर्ट का काम है कि फैसला करे कि खून उसी ने किया है या किसी और ने..हमारा काम केवल पकड़ना है..चाहे बुधारू को पकडे या समारू को..’

‘ शहर के तमाम चोर-उच्चक्कों, गुंडे-मवालियों को कोई सन्देश देना चाहेंगे ? ‘

‘ हाँ...यही कहना चाहूँगा कि हर काम सावधानी और शालीनता से करें...और अच्छे समय पर करे..जनता के साथ प्यार और नम्रता से पेश आये. .वैसे पुलिस महकमे को इसकी ज्यादा दरकार है..’

‘ पुलिस और जनता के बीच मधुर सम्बन्ध बनाने कि बात हमेशा चलती है पर लाख कोशिशों के बाद भी बनते नहीं...इस पर आप क्या कहेंगे ? ‘

‘ जनता-जनार्दन से अच्छे सम्बन्ध बनेंगे तो इनसे बिगड जायेंगे...इनसे बिगाड़ करके हमें भीख थोडे ही माँगना है...वैसे जनता समझदार है...जानती है कि पुलिस की ना दोस्ती अच्छी है ना ही दुश्मनी...’

‘ ठीक है थानेदारजी..इंटरव्यू के लिये धन्यवाद..’

‘ चलते-चलते हम भी एक बात कहें.’ थानेदार बड़ी शालीनता से गुर्राया.

‘ हाँ-हाँ...कहिये...क्या बात है ? ‘ मैंने कहा.

‘ हमें भी कभी सेवा का अवसर दें...आपकी कोई चीज कभी खोई हो तो बताएँ..खड़े-खड़े बरामद करवा देंगे...इस फील्ड मे हमारी मास्टरी है..’

एक पल के लिये सोचा कि कह दूँ – बीस साल पहले मेरी प्रेमिका खो गई, वो दिला दे लेकिन इक्कीस तोपों की सलामी जैसे इक्कीस हीरो सायकल की याद आई तो डर गया. सचमुच कहीं थानेदार बीस-इक्कीस प्रेमिका खड़ी कर दे तो...?

मैं मुस्कराकर ‘ थैंक ‘ ही बोल पाया.