थोड़ा-सा ज्यादा... / एक्वेरियम / ममता व्यास

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तुमने पूछा था उस दिन प्रेम समझती हो तुम? पता नहीं समझती हूँ या नहीं। दरअसल मैं प्रेम को समझना ही नहीं चाहती। सिर्फ़ प्रेम में होना चाहती हूँ। मुझे जैसा महसूस होता है क्या सारी दुनिया को भी वैसा ही महसूस होता है। या तुम भी मेरी तरह ही सोचते हो। ऐसे बेकार के सवालों को सोचकर अपना वक्त बर्बाद नहीं करती।

मुझे हमेशा से लगता है। मेरे भीतर प्रेम की नदी बहती है। मुझे देना अच्छा लगता है तुम मेरी इस उदारता को हमेशा ही मेरा स्वांग, पाखंड या आदर्शवाद कहते रहे।

लेकिन सच्ची बात तो ये है कि मुझे बांटने में खुशी मिलती है। बिना किसी अपेक्षा के, उम्मीद के मैं मिट सकती हूँ। खुद को दे सकती हूँ। मुझे गुरूर है इस प्रेम पर। मेरे पास कोई हिसाब-किताब नहीं है। न कोई पैमाना या मापनी कि तौल करूं या मोल। ये तो प्रेम लेने वाले अपने साथ पैमाने इत्यादि लिए आते हैं। कोई आधा लीटर, कोई दो लीटर, कोई ढाई सौ ग्राम का पात्र। जिसकी जितनी जैसी ज़रूरत होती वह उतना प्रेम मुझसे ले जाता है।

कभी-कभी कोई अपनी खपत से ज़्यादा भी मांग के ले जाता है। ऐसा तब होता है जब उनके मन के घरों में दुखों के, पीड़ाओं के मेहमान डेरा जमा लेते हैं। तब उन्हें प्रेम के सहारे की, आत्मीयता की खपत ज़्यादा होती है। तब वे मुझसे ज़्यादा प्रेम की मांग करते हैं।

उनके अवसाद, उनकी निराशा और उदासी को मैं दूर से उनकी चाल से ही भांप लेती हूँ और अपने मन की भीतर वाली कोठरी से थोड़ा ज़्यादा प्रेम उलीच लाती हूँ।

उनके लेने वाले पात्र (बर्तन) चाहे कितनी भी बड़े हों या छोटे। मैं हमेशा उसमे अपनी तरफ से थोड़ा ज़्यादा ही डालकर देती हूँ।

तुमने देखा होगा न, किसी ईमानदार ग्वाले को वह हमेशा नाप के बर्तन के ऊपर थोड़ा-सा ज़्यादा ही दूध डालकर मुस्काता है और लेने वाला भी बदले में उसे एक प्यारी मुस्कान दिए जाता है।

मुझे हमेशा ऐसा करना अच्छा लगता है। मेरे मन में एक संतुष्टि बनी रहती है और उस दिन नींद भी भरपूर आती है... और सुनो मजे की बात उस सारी रात मेरे भीतर फिर से प्रेम बनने लगता है नींद में ही। जैसे माँ के आंचल में दूध बनता है ठीक उसी प्रकार।

मैं जानती हूँ जिस दिन उदार होना भूल जाऊंगी। जिस पल 'थोड़ा-सा ज्यादा' देने से कतराने लगूंगी, उस दिन ही मेरी छातियाँ सूख जायेंगी। उनकी खूबसूरती खत्म हो जाएगी। मैं बदसूरत होकर मरना नहीं चाहती। देखना तुम मरते समय भी मेरे होंठों पर मुस्कान होगी, मुस्कान, 'थोड़ा ज्यादा' देने की।