थोड़ा सा फर्क / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“दादाजी दादाजी ‘बनाना’ को हिंदी में क्या बोलते हैं?”

“बेटे ‘बनाना’ को हिंदी में केला कहते हैं| ”

“और दादाजी वो जो राउंड, राउंड, ऱेड, रेड एप्पिल होता है न उसको हिंदी में क्या बोलते हैं?”

“बेटे उसको सेब बोलते हैं| ” मेरा नाती मुझसे सवाल पूँछ रहा था और मैं जबाब दे रहा था|

“आच्छा..आपको तो दादाजी सब पता है| दादाजी मैं कल एक बुक लेने शाप पर गया था शापकीपर को

बुक का प्राइज़ भी नहीं मालूम वो सिक्स्टी टू रुपीस नहीं जानता, पता नहीं वह बासठ बासठ कुछ बोल रहा था| वह तो एक अंकल आये तो उन्होंने बोला सिक्स्टी टू रुपीस देना है और मैंनें दे दिये|

मुझे चालीस साल पुराने दिन याद आ गये| मेरा बेटा पूछ रहा था” पापा केले को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?” और मैं उसे बता रहा था “बेटा केले को अंग्रेजी में ‘बनाना’ कहते हैं| ”

“और पापा सेब को अंग्रेजी में कया कहते हैं?”

“बेटे सेब को एप्पिल कहते हैं| ”

“अच्छा पापाजी तीस रुपये को अंग्रेजी में क्या कहेंगे?”

“बेटा थर्टी रुपीस कहेंगे| ”

मैं सोच रहा था बेटे से नाती तक के सफर में कितना, कैसा बदलाव आया है,सब कुछ वही…. पहले पैर धरती में और सिर ऊपर आसमान की तरफ होता था| और …..और अब सिर नीचे और पैर आसमान में, बहुत थोड़ा सा फर्क|