दया के सागर क्यों है खाली, मेरी गागर / जयप्रकाश चौकसे

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दया के सागर क्यों है खाली, मेरी गागर
प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2021


आज बसंत पंचमी का त्यौहार है। जाती हुई शीत ऋतु के कदमों के निशां नजर आते हैं और आने वाली ग्रीष्म ऋतु के पैरों की आहट सुनाई देती है। शशिकपूर और गिरीश कर्नाड की फिल्म ‘उत्सव’ के प्रारंभ में ही बसंत उत्सव मनाने का सीन है। सभी ओर नृत्य गीत जारी हैं। वात्सायन अपना ‘कामसूत्र’ रच रहे हैं। वात्सायन अपना ग्रंथ लिखने के पश्चात उज्जैन में बस गए थे।

ग्रीक रंगमंच के पूर्व ही भारत में शूद्रक ने ‘मृच्छकटिकम’ नाटक की रचना की है। गिरीश कर्नाड ने शूद्रक के उपरोक्त नाटक के साथ एक अन्य समकालीन नाटक को मिलाकर ‘उत्सव’ फिल्म लिखी थी। शशिकपूर द्वारा निर्मित ‘उत्सव’ में रेखा को पहले अनुबंधित किया गया था। कुछ कारणों से अमिताभ बच्चन इस फिल्म में अभिनय नहीं कर सके। इस फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल ने दिया और गीत बसंत देव ने लिखे। रेखा पर फिल्माया गया मधुर गीत इस तरह है, ‘नीलम के नभ छाई पुखराजी झांकी, मेरे तो नैनों में किरणों के पाखी, पाती की गोदी में सोई थी एक कली, कैसे सोई होगी कली, जैसे सोई मेरी लली’... नृत्य निर्देशक और रेखा ने संस्कृतनिष्ट गीत के हर शब्द को छवि में ढाला और ऐसा आभास होता था मानो हजार वर्ष से अजंता गुफा में बनी कोई आकृति आपके सामने जीवित हो गई है। नृत्य मुद्राओं से हवा में छवियां इस तरह गढ़ी जाती है। पृथ्वी के कैनवास पर आसमानी कूंची से महान नाचती हुई रचना की जाती है। इसी फिल्म में लता मंगेशकर और आशा भोसले द्वारा गाया एक अत्यंत मधुर गीत था, ‘मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को, बेला महका रे महका आधी रात को।’

इस गीत को गाने, पहले लता मंगेशकर आईं और उन्होंने अपनी पंक्तियां गाईं। दूसरे दिन आशा भोसले ने अपनी पंक्तियां गाईं। जादूगर प्यारे लाल ने ऐसी मिक्सिंग की मानो दोनों बहनों ने साथ में गीत गाया हो। यह संभव है कि इस गीत की रिकॉर्डिंग के समय दोनों बहनों के बीच कोई मनमुटाव हो। बहनों और भाइयों के बीच इस तरह की ग़लतफ़हमियां हो जाती हैं। भारत भूषण और निम्मी अभिनीत फिल्म ‘बसंत बहार’ बनाई गई जिसके सारे गीत रागों से प्रेरित थे। एक गीत पंडित भीमसेन जोशी और मन्ना डे ने गाया, ‘दुनिया न भाए मोहे अब तो बुला ले चरणों में चरणों में... एक अन्य रचना है, ‘बड़ी देर भई कब लोगे ख़बर मोरे राम बड़ी देर भई, कहते हैं तुम हो दया के सागर फिर क्यों ख़ाली मेरी गागर, झूमें झुके कभी न बरसे कैसे हो तुम घनश्याम’। एक अन्य गीत है, ‘जा जा रे जा.. बालमवा सौतन के संग रात बिताई काहे करत अब झूठी बतियां जा जा रे।’ इस तरह प्रेम और उसकी चुहलबाजी भी राग में रंगी गई है।

अन्य गीत है, ‘केतकी गुलाब जूही, चम्पक बन फूले, रितु बसंत अपनो कंत गोरी गरवा लगाए, झुलना में बैठ आज पी के संग झूले।’ इस तरह शृंगार रस से सराबोर है संगीत।

लता मंगेशकर और आशा भोसले ने एक साथ रिकॉर्ड किया, ‘कर गया रे मुझपे जादू, ये क्या किया रे, गजब किया रे, चोर को समझी मैं साधू, सांवरिया कर गया मुझपे जादू।’ एक अन्य गीत है, ‘सुर ना सजे क्या गाऊं मैं, सुर के बिना जीवन सूना।’ सच तो यह है कि आम आदमी मन ही मन गीत गुनगुनाता है। उसे सुर ताल का ज्ञान नहीं, वह रागों से अनजान है परंतु गायन श्वास में बसा है। कुछ लोग नहाते समय गाते हैं, इन्हें बाथरूम सिंगर कहते हैं। सुना है कि बसंत में राष्ट्रपति भवन परिसर में मुगल गार्डन के गेट आम आदमी के लिए खोल दिए जाते हैं। यह क्या कम है कि अवाम के लिए कोई द्वार कभी-कभी खोल दिया जाता है। आश्चर्य है कि अभी तक मुगल गार्डन का नाम, अशोक बाग नहीं किया गया है।