दर्द की सेज पर मृत्यु गीत / जयप्रकाश चौकसे

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दर्द की सेज पर मृत्यु गीत
प्रकाशन तिथि :28 मई 2016


फिल्मकार कुकूनर की नसीर एवं कल्कि कोचलिन अभिनीत फिल्म 'वेटिंग' उन परिजनों की व्यथा-कथा है, जिनके प्रियजन कोमा में मृत्यु का इंतजार कर रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान हार नहीं मानता परंतु इस तथ्य को भी स्वीकार करता है कि मरीज केवल टेक्निकल स्वरूप में जिंदा है। टर्मिनल रोगी को डॉक्टर मारता नहीं है परंतु यह इलाज मरीज के दर्द को ही लंबी अवधि तक खींचना है और इस प्रक्रिया में बहुत धन भी खर्च होता है। यह विज्ञान मृत्यु से युद्ध करने का है और कई बार पराजय मुंह बाये खड़ी होती है तब भी युद्ध जारी रखना होता है। 'तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर।' कभी-कभी अजूबे घटित होते हैं कि मौत के मुंह से मरीज लौट आता है गोयाकि मृत्यु से मरीज ने आंखें चार की परंतु वह गले नहीं लगी। महान लेखक हेमिंग्वे को युद्ध में अठारह गोलियां लगीं परंतु वे बच गए। एक बार उनका हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ परंतु वे वृक्ष की डालियों में बेहोश पाए गए।

डॉक्टर हिपोक्रेटिक शपथ लिए होते हैं। यह डॉक्टर के लिए टेन कमांडमेंट्स की तरह पवित्र हैं। डॉक्टर अपने निजी स्वार्थ या किसी लाभ के लिए मरीज को जानकर कभी नहीं मरने देता। वह जीवन का प्रहरी है और मृत्यु को दावत देने वाला व्यक्ति नहीं है। उसे धरती पर ईश्वर का कार्य करना है। डॉक्टर को प्राय: दुविधाओं की अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है।

दवा निर्माण क्षेत्र में अनगिनत लोग निरंतर जीवन बचाने वाली औषधि की खोज में लगे हैं। पृथ्वीराज कपूर की जिस रोग से मृत्यु हुई, उस रोग का रामबाण इलाज एक सप्ताह बाद ही खोज लिया गया था। साधना की आंख जिस रोग में गई, उसका इलाज भी कुछ दिन बात संभव हुआ। इन असीम संभावनाओं के रहते कोई चिकित्सक हार नहीं मानता। यह फिल्म लाइलाज रोग के रिश्तेदारों के दृश्य पर क्या गुजरती है, उसकी कहानी है। बीमार के प्रियजन अपनी मौत के पहले मौत की रिहर्सल देख लेते हैं। मरीज भी अपने बिस्तर के गिर्द इकट्‌ठे हुए परिजनों की आंखों में अपनी मौत देखता है।

यह चिंताजनक है कि भारत में आज भी लोग बीमारियों के खिलाफ बीमा नहीं कराते। इस क्षेत्र में जागरूकता आवश्यक है। पश्चिम के देशों में इस तरह का बीमा अनिवार्य है। वहां तो पर्यटक के लिए भी यह बीमा अनिवार्य है। इस फिल्म में नसीर अभिनीत पात्र की पत्नी और कोचलिन अभिनीत पात्र के पति मृत्यु से जूझ रहे हैं। उनके मन में उठते भावना के ज्वार को कुकूनर ने वैसा ही प्रस्तुत किया है जैसा मरीज के बिस्तर पर उसके रोग और इलाज का विवरण चार्ट होता है।

नसीर की पत्नी का डॉक्टर उसे स्पष्ट करता है कि अब कोई उम्मीद नहीं है, अत: लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाना होगा और कमोबेश यही हालत कोचलिन अभिनीत पात्र के पति की भी है। यह फिल्मकार का संयम है कि उसने दोनों की मित्रता का चित्रण किया है और समान दर्द की लहर पर सवार वे एक-दूसरे के निकट आते हैं परंतु यह प्यार नहीं है और रात साथ गुजारते समय भी हमबिस्तर नहीं होते। उनके बीच परस्पर सहानुभूति का रिश्ता है। उनके बीच आकर्षण के बावजूद तनाव है, क्योंकि वे अपने-अपने प्रियजन को पल-पल मौत के मुंह में जाता देख रहे हैं। भीष्म पितामह कई दिन तक तीरों की शय्या पर लेटे रहे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था परंतु वे मकर संक्रांति के पावन दिन ही प्राण त्यागना चाहते थे। श्रीकृष्ण के परामर्श पर युधिष्ठिर प्रति संध्या उनके सिरहाने खड़े होते और उनसे ज्ञान ग्रहण करते। मृत्यु से आंखें चार करने वाला व्यक्ति ही जीवन और मृत्यु के गहरे रहस्य को समझ पाता है। गीता के समकक्ष ही ज्ञान युधिष्ठिर को दिया गया था। गौरतलब है कि महान ज्ञान का समय युद्ध के पूर्व आता है और दूसरा भीष्म की मृत्यु के समय जब युद्ध अपने समापन पर है। महाभारत मेें प्रस्तुत ये दोनों घटनाएं महान हैं।

कल्पना कीजिए कि अम्बा तीरों की शय्या पर लेटे भीष्म से कहती हैं कि उनके जीवन की सारी उलझन भीष्म के कारण हुई तो क्या अगले जन्म में वे उसे वरेंगे? अगर भीष्म इस आवेदन पर मौन स्वीकृति भी दे दें तो उनके आजन्म कुंवारा रहने की शपथ टूट जाती है, फिर वह प्रतिज्ञा, भीष्म प्रतिज्ञा नहीं रहती। हमारे सारे आख्यानों से आप शपथ और आशीर्वाद को हटा दें तो कथा वहीं समाप्त हो जाती है। दरअसल, आशीर्ाद, शपथ और संयोग महज कथाओं को खींचकर उसे उद्‌देश्य और आदर्श से भर देने का प्रयास है परंतु उसके आदर्श गौण रह जाते हैं और कथा की रोचकता में सबकुछ बह जाता है।