दर्द / रश्मि

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“रुक जा मेरी बच्ची, ऐसे मत भाग।” बेतहाशा दौड़ती सोना को उसकी माँ पीछे से रोक रही थी।

“नहीं माँ, मै नहीं रहूंगी उस घर में जिस घर में वह आदमी रहता है।” सोना सिसकती जा रही थी और खाली सड़क पर भागती जा रही थी।

“सोना वो तेरा बाप है। ऐसा क्या किया उसने जो तू उसके साथ नहीं रहना चाहती।”

अब तक बच्ची माँ के आलिंगन में आ चुकी थी। माँ और बेटी एक हो गए थे...

बेटी का दर्द माँ के दिल तक बिना कहे पहुँच रहा था। दोनों की आँखे लबालब भरीं थीं, जिनसे ढेर सारी वेदनाएं साझा हो रही थीं।

न जाने ये आँखें सारा दर्द कैसे बोल देती हैं...