दाम्पत्य / आलोक कुमार सातपुते

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दाम्पत्य-1

‘तुम्हारी बातें मुझे कटार सी लगती हैं। कितना अच्छा होता कि तुम मुझसे बातें ही न करतीं।’ पति ने अपनी पत्नी से गुस्से में कहा।

“ठीक है...ठीक है...मुझे भी तुमसे बातें करने का कोई शौक़ नहीं है।” तमतमाई पत्नी ने जवाब दिया।...और दोनों के बीच ख़ामोशी की एक दीवार खड़ी हो गयी।

थोड़ी देर बाद गुस्सा उतरने पर पति कोने पर रखी कुरसी पर बैठकर अख़बार पढ़ने का ढोंग करने लगा, साथ ही वह कनखियों से अपनी पत्नी की ओर देखता भी जाता। पत्नी के चेहरे पर कोई धनात्मक भाव न उभरते देख वह बेचैन हो उठ खड़ा हुआ, और वहीं कमरे में टहलने लगा। आखि़र में उससे रहा नहीं गया, और उसने खीझकर अपनी पत्नी से कहा-‘बहुत घमण्डी हो गई हो तुम। आखि़र तुमने मुझसे बातें करनी क्यों बंद कर दीं? चुप रहकर तो तुम मुझे ज़्यादा परेशान करती हो।’

दाम्पत्य-2

पत्नी - किचन के कामों में आप मेरी ज़रा भी मदद नहीं करते....अरे कुछ नहीं तो सब्जी तो काट ही सकते हैं।

अगले दिन-

अरे यह क्या ....? मैंने तुमसे कब कहा था सब्जी काटने को। भला बैंगन ऐसे काटे जाते हैं। आइन्दा किचन में मत घुसना। औरतों का काम औरतों को ही शोभा देता है।