दार्शनिक और मोची / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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जूते पहने एक दार्शनिक एक मोची के पास आया। बोला, "मेरे जूतों की मरम्मत कर दो।"

मोची बोला, "इस समय में किसी-और के जूते मरम्मत कर रहा हूँ। आपका नम्बर आने से पहले और-भी कई मरम्मत के लिए रखे हैं। आप अपने जूते यहाँ छोड़ जाइए और ये दूसरे वाले आज पहन जाइए। कल आकर अपने वाले ले जाना।"

ऐसी अभद्र बात सुनकर दार्शनिक भड़क उठा और बोला, "मैं किसी और के जूते नहीं पहना करता।"

मोची बोला, "तब ठीक है। क्या आप वाकई इतने सच्चे दार्शनिक हैं कि किसी अन्य के जूते पैरों में नहीं डाल सकते? इस गली के दूसरे सिरे पर एक और मोची बैठता है। वह दार्शनिकों की बात मेरे मुकाबले अच्छी तरह समझता है। आप उससे अपने जूते मरम्मत करा लीजिए।"