दावत / गोवर्धन यादव

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घूडन आज बहुत खुश था, आज उसके बेटे की शादी जो हो रही थी, उसने एक दिन पहले, संचार कालोनी जाकर सभी घरों में निमन्त्रण बांट आया था, और सभी से शादी में आने की कह भी आया था, वह यह भी कहना नहीं भुला था कि उसी शाम को उसने दावत का भी इन्तजाम किया है, शहर के नामी-गिरामी आचार्य भोजन पकाने के लिए लगाए गये हैं, अतः सभी को आने का आग्रह भी वह कर आया था और सभी ने उसे आश्वस्त किया था कि वे उसके बेटे की शादी में ज़रूर आएंगे,

साल भर पहले तक घूडन उसी कालोनी में सफ़ाई का काम किया करता था, जबसे उसके बेटे की सरकारी नौकरी लगी है, उसने सफ़ाई का काम बंद कर दिया था, बावजूद इसके वह प्रतिदिन कालोनी जा पहुँचता, लोगों से मिलता-जुलता, उनकी समस्या सुनता है और उसे तत्काल दूर करने का प्रयास करता है, उसके इस व्यवहार से कालोनी ले लोग उससे खुश रहते थे कभी कोई चाय पिला देता है तो कभी कॊई नाश्ता करवा देता, दीपावली-दशहारा पर उसका सभी को इंतज़ार रहता, इस् समय उसे ढेरॊं सारी बख्शिश भी मिल जाया करती थी, दूसरे शहर बारात ले जाने की अपेक्षा उसने लडकी पक्षवालों को यहीं बुलवा लिया था और अपनी ओर से उसने सारे प्रबंध भी करवा दिए थे ताकि उन्हें कोई परेशानी न उठानी पडे, शादी का शुभ मुहुर्त शाम का था, अतः सुबह होते ही वह कालोनी जा पहुँचा और सभी को याद दिला आया था, सभी ने वहाँ पहुँचने की हामी कर दी थी,

बारात लग चुकी थी, उसके बाद के सारे नेग-दस्तूर निपटाए जा रहे थे, लेकिन घूडन की नजरे गेट पर लगी हुई थी, वह बेसब्री से साहब लोगॊ के आने का इन्तजार कर रहा था, धीरे धीरे लोगों का आना शुरू हुआ, घूडन हाथ जोडकर उन सभी का अभिवादन करता और भोजन करने के लिए आग्रह करता, किसी ने कहा कि आज उसके पेट में दर्द है तो किसी ने ब्रत रखे जाने का बहाना बतलाकर भॊजन करने में अपनी असहमती जतलायी, घूडन रसोई-घर में जाकर ब्राह्मण को भोजन पकाते हुए देख आने की कहता, लेकिन आगुन्तकॊं के बहाने अपनी जगह पर क़ायम थे, लोग स्टेज पर जाकर वर-वधु को आशीर्वाद देते, जेब से निकाल कर बंद लिफ़ाफ़े देते और वापिस हो लेते, वह उनके जाने से पहले एक डिब्बा वह लोगों को देता जाता जिसमे शुद्द खोये की मिठाइयाँ रखी गई थी, लोग उसे धन्यवाद देते हुए लौट रहे थे, घूडण इस बात पर खुश हो रहा था कि लोगों ने उसकी भेंट स्वीकार तो की,

दूसरा दिन तो मेहमान नवाजी में कैसे बीत गया, पता ही नहीं चल पाया, अगले दिन सुबह जब वह कालोनी के निवासियो को धन्यवाद देने गया तो उसने कूडाघर में उन्हीं डिब्बॊं को पडा पाया, जो उसने एक दिन पहले लोगों के बीच बांटे थे, वहाँ घूडाघर में आवारा पशुओं तथा कुत्तॊं की भीड मची हुई थी जो मिठाइयों की दावत उडा रहे थे, घूडन से यह सब देखा नहीं गया और वह उलटे पैर वापिस लौट आया था, उस दिन के बाद से उसने उस कालोनी में जाना बंद कर दिया था