दिल पे मत ले यार / के. के. अग्रवाल / राजी खुशी

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: राजी खुशी  » अंक: दिसम्बर 2011  

वेदों में कहा गया है: अपनी सोच का ध्यान रखें क्योंकि सोच ही शब्द का रूप लेती है। शब्दों का ध्यान रखें, क्योंकि शब्द ही आपका व्यवहार तय करते हैं। अपने व्यवहार पर गौर करें क्योंकि व्यवहार ही आदत में बदल जाता है। अपनी आदतों पर नजर रखें क्योंकि इससे आपका चरित्र बनता है। चरित्र का ध्यान रखें क्योंकि इससे भाग्य निर्धारित होता है।

उपनिषदों में भी कहा गया है कि जैसी भावना होती है, व्यक्ति वैसा ही होता है। इस बात को आधुनिक विज्ञान भी मान रहा है। अध्ययनों से इसकी पुष्टि होती है। हाल ही में एक अमेरिकी विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित लेख में कहा गया कि खुश रहने वाले व्यक्ति का हृदय भी स्वस्थ रहता है। अध्ययन में लगभग तीन हजार ब्रितानी वयस्कों को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं के दल का नेतृत्व किया यूनिवर्सिर्टी कॉलेज लंदन के डॉ. एंड्रयू स्टेप्टो ने। शोध के दौरान जिन लोगों ने खुद को प्रसन्न बताया उनमें कोरटिसोल (तनाव पैदा करने वाला एक हॉर्मोन) की मात्रा कम पाई गई।

यह बात महिलाओं के संबंध में भी लागू हुई। जिन महिलाओं ने खुद को प्रसन्न बताया था, उनके रक्त में नुकसान पहुंचाने वाले दो प्रकार के प्रोटीन -सीआरपी और इंटरल्यूकिन-6 का स्तर कम पाया गया।

यह तो हम सभी भलीभांति जानते हैं कि प्रसन्न रहने वालों का स्वास्थ्य भी बढिय़ा रहता है, उन लोगों की तुलना में जो तनाव में या लगातार प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हैं। प्रसन्न रहने वालों की जीवनशैली भी स्वास्थ्यवर्धक होती है। उनमें बुरी आदतें कम होती हैं। हालांकि नए अध्ययनों में पता चला है कि प्रसन्नता और दूसरी सकारात्मक भावनाओं का जुड़ाव शारीरिक प्रतिक्रिया से है। एक अध्ययन में 2873 स्वस्थ पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया। उनकी उम्र 50 से 74 के बीच थी। अध्ययन के दौरान उन्होंने अपनी- अपनी लार के छह-छह सैंपल जमा किए। इसका उद्देश्य कोरटिसोल के स्तर को जांचना था। सैंपल देने के बाद उन लोगों ने अपने मूड के बारे में भी बताया। यानी कि क्या वे प्रसन्न हैं? किसी प्रकार की उत्तेजना तो नहीं है? या फिर संतुष्ट हैं?

शोधकर्ताओं ने बाद में शोध में शामिल लोगों का सी-रिएक्टिव प्रोटीन और इंटरल्यूकिन- 6 की जांच की। इसमें पाया कि पुरुष या महिला, जिन्होंने खुद को प्रसन्न बताया था उनमें कोरटिसोल का स्तर औसत रूप में कम पाया गया। निष्कर्ष निकालने से पहले शोधकर्ताओं ने उम्र, वजन, धूम्रपान और आय जैसे कारकों का भी ख्याल रखा। पॉजिटिव मूड वाली महिलाओं में शोथ के चिन्हकों सी-रिएक्टिव प्रोटीन और इंटरल्यूकिन-6 का स्तर भी कम पाया गया।

इन उदाहरणों का तात्पर्य यह है कि हमें अच्छी जीवनशैली के लिए लोगों की मदद करनी चाहिए। उन चीजों को समझने में मदद करनी चाहिए जिससे वे जीवन से सही रूप में संतुष्ट हो सकें और वे अपना ज्यादा समय सकारात्मक चीजों पर दे सकें। वेदों में भी व्यक्ति और प्रसन्नता की चर्चा है। तनाव को कुछ और नहीं, बल्कि इसे पहले से पता स्थिति के प्रति मस्तिष्क और शरीर की प्रतिक्रिया बताया गया है। तनाव से हम तब तक ठीक तरह निबट नहीं सकते जब तक कि हम तनाव की बनी- बनाई गई व्याख्या को बदल नहीं देते।

ऐसा संभव है सकारात्मक विचारों से। शंकराचार्य हों या पतंजलि -सबों ने इसकी शिक्षा दी है। बुद्ध ने प्रासंगिकता के हिसाब से विचारों में परिवर्तन का मार्ग बताया था। प्रसन्न रहने से शरीर में ऐसे हार्मोन पैदा होते हैं, जो तनाव को कम करने में मदद करते हैं। यही वजह है कि अब तमाम अस्पतालों में तनाव रहित माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है ताकि हंसीखुशी के माहौल में मरीज जल्द और बेहतर तरीके से रोगमुक्त हो सकें।