दि परफेक्ट मर्डर / विजय कुमार सप्पत्ति

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रविवार शाम

योगेश ने अमर को फ़ोन किया। “मैं रात ९ बजे तक इंदौर पहुँच जाऊँगा. तुम एअरपोर्ट पर मिलने आ जाना. हम वही बात करेंगे”। अमर ने कहा “ठीक है बॉस।!”

रविवार रात

अहमदाबाद से आने वाली फ्लाईट ने इंदौर की धरती को छुआ और केबिन में एयर होस्टेस की आवाज विमान के भीतर गूंजी। "आप सभी का इंदौर के देवी अहिल्याबाई होलकर एअरपोर्ट पर स्वागत है"। योगेश ने अपना बैग लिया और विमान से बाहर निकला। मौसम थोडा सा ठंडा था.. इंदौर में बारिश का आगमन हो चूका था। योगेश अपने सामान को लेकर बाहर निकला. कुछ ही पलो में उसके सामने एक कार आकर रुकी। अमर ने उसे अन्दर से विश किया। योगेश कार में बैठ गया और अमर ने कार बाहर की ओर बढ़ा दी.. दोनों चुपचाप थे.. करीब १५ मिनट के बाद अमर ने सड़क के किनारे एक सुनसान जगह पर कार रोक दी।

अमर ने एक लिफाफा निकाला और चुपचाप योगेश के हाथो दे दिया । योगेश ने एक सिगरेट सुलगा ली और उस लिफ़ाफ़े को खोल कर देखा। उसमे कुछ फोटो थे। उसकी पत्नी आस्था के और डॉक्टर वीरेंद्र के। दोनों डॉक्टर वीरेंद्र के क्लिनिक के सामने खड़े थे। और भी फोटो में बस क्लिनिक शाट्स ही थे. एक दो शाट्स थे जो कि किसी बगीचे के किनारे के थे जहाँ दोनों खड़े थे। योगेश ने अमर से पुछा "इतना ही और कुछ नहीं ?".. अमर ने कहा। "इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता सर. आस्था मैडम डॉक्टर वीरेंद्र के क्लिनिक में जाने के बाद मैं फोटो नहीं खींच सकता हूँ। और हाँ पिछले दिनों जब आप यहाँ नहीं थे. मैडम करीब करीब रोज ही डॉक्टर वीरेंद्र से मिलती रही है। दोनों मिलकर एक दो बार किसी बिल्डिंग में भी गए है, जहाँ बहुत से ऑफिस और क्लिनिक है".

योगेश की आँखों में खून उतर आया। उसने कुछ कहा नहीं। अपना पर्श निकाला और अमर को कुछ रुपये दिए। अमर ने कहा "सर आगे क्या करना है"। योगेश ने कहा, " अब कुछ नहीं। जो मैंने जानना था वो मैंने जान लिया है। अब तुम्हारा काम ख़त्म। “लेकिन एक वादा करो कि तुम ये सब बाते किसी से नहीं कहोंगे." अमर ने मुस्कराकर कहा, "सर मैं प्राइवेट डिटेक्टीव हूँ।ये मेरा प्रोफेशन है, बस मैं भूल गया समझिये ".

योगेश ने कहा "आगे मृगनयनी के पास रोक देना। और आज से हम नहीं मिलेंगे." अमर ने सर हिलाकर कहा "ठीक है सर। इस लिफ़ाफ़े में फोटो के साथ डाटा कार्ड भी है जिसमे फोटो है "। योगेश ने कहा, " ठीक है, आज से हम दोनों अजनबी "

मृगनयनी शोरूम के पास गाडी रोक दी गयी और योगेश उसमे से अपना सामान लेकर उतरा. लिफाफा उसने अपने ब्रीफकेस में डाल दिया था.

योगेश ने एक और सिगरेट सुलगाई और गहरी सोच में डूब गया। थोड़ी देर में उसने एक ऑटो को रोका और कहा "साकेत नगर चलो"। ऑटो में बैठकर वो गहरी सोच में डूब गया.. कुछ देर में साकेत नगर पहुंचा, ऑटो वाले को पैसा दिया और अपने घर की ओर चल पड़ा।

रविवार देर रात

योगेश का घर साकेत नगर के एक अपार्टमेन्ट में पांचवी मंजिल पर था. उसने देखा कि लिफ्ट खराब है। वो पैदल ही ऊपर चल पड़ा। पैदल चलने से उसके भीतर की कोफ़्त और ज्यादा बढ़ गयी, घर के दरवाजे की घंटी जोर से बजाई। आस्था ने नींद भरी आँखों से दरवाजा खोला. और कहा। " आ गए तुम, चलो, फ्रेश हो जाओ, मैं खाना लगा देती हूँ”। , योगेश ने कहा, “मैं खाकर आया हूँ. तुम सो जाओ”। आस्था ने कहा, “इतने दिन बाद आये हो। थोडा खा लो.” योगेश ने थोड़े से तेज स्वर में कहा, “नहीं। बाद में देखता हूँ. तुम सो जाओ”। आस्था ने कहा. “आते ही गुस्सा करने लगे., वीरेंद्र को देखो, कितना शांत रहता है”। ये सुनकर योगेश भड़कने ही लगा था, लेकिन, फिर वो शांत हो गया.। उसने मुस्कराकर कहा। “तुम सो जाओ, मैं थोड़ी देर में आता हूँ.”

आस्था सोने चली गयी तो योगेश ने फ्रेश होकर घर में ही मौजूद मिनी बार से अपने ड्रिंक्स निकाले और बाहर बालकनी में बैठकर पीने और सोचने लगा। ये बालकनी उसके बेडरूम में ही थी। इस बालकनी से ठंडी हवा के साथ रौशनी भी आती थी। वो वह बैठकर पीता रहा और आस्था के बारे में सोचता रहा।

रविवार और अधिक देर रात

योगेश का दिमाग उसके काबू में नहीं था, उसने खूब पिया, उसके दिल में आग लगी हुई थी।जो कि उसे पागल कर रही थी। बार बार उसके मन में ही एक ही बात आ रही थी कि आस्था उसे धोखा दे रही है। आस्था और धोखा ये दोनों शब्द उसके माथे में हथोड़े की तरह बजने लगे।

नशा उसपर चढ़ने लगा। अचानक उसे कुछ आवाज सुनाई दी. देखा तो आस्था नींद में कुछ बडबडा रही थी। वो जाकर उसके पास लेट गया और सुनने लगा. सुना तो उसका खून उबल गया, आस्था वीरेंद्र का नाम लेकर कह रही थी।.. “वीरेंद्र, मुझे इतनी ख़ुशी हो रही है कि बता नहीं सकती। योगेश को कुछ भी नहीं पता चलने देना है”.. ये सुनकर योगेश का मन हुआ कि उसी वक़्त वो आस्था को अपने घर की पांचवी मंजिल से फेंक दे. बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको रोका और बाहर आकर सोफे पर बैठ गया और उन्माद में उसने और ड्रिंक्स निकाला और पागलो की तरह पिया और फिर इसी पागलपन में, इसी वहशत में, इसी जूनून में उसने एक फैसला किया। आस्था को मारने का !!!

और पता नहीं कब वो उसी सोफे पर सोचते - सोचते सो गया।

सोमवार सुबह

आस्था उसे उठा रही थी, “अरे ये क्या है तुम्हे क्या हो गया, तुम यहाँ क्यों सो गए। तुम्हारा माथा इतना गरम क्यों है”.. योगेश ने कहा “कुछ नहीं बस थोड़ी सी हरारत है। आज ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ”.. आस्था ने कहा, “हां आज छुट्टी ले लो”। योगेश ने कहा “तुम चली जाओ हॉस्पिटल”। आस्था ने कहा “ठीक है, नाश्ता बना हुआ है। खाना तुम अगर खाना चाहो तो फ्रिज में रखा हुआ हा, खा लेना। मैं चलती हूँ.”

आस्था गीता भवन हॉस्पिटल में काम करती थी। योगेश ने कहा, “साथ में नाश्ता कर लो; फिर चली जाना”.

योगेश और आस्था ने नाश्ता किया, आस्था पूछती रही कि कैसे काम हुआ क्या हुआ, योगेश का मन नहीं था इसलिए हूँ हाँ में जवाब देते रहा. आस्था ने कहा “क्या हुआ। तुम ठीक तो हो”, योगेश ने कहा “मैं थक गया हूँ। आज आराम करूँगा.”. आस्था ने कहा। “यदि जरुरत पड़े तो मुझे फ़ोन कर लेना। ”

आस्था चली गयी और योगेश उठकर घर का दरवाजा बंद किया और अपने ऑफिस में फ़ोन करके कह दिया कि उसकी तबियत ठीक नहीं है। वो आज नहीं आ पायेंगा। और फिर से सो गया.

सोमवार दोपहर

मोबाइल की बजती घंटी ने योगेश को उठाया। आस्था फ़ोन पर थी। पूछ रही थी, कि अब तबियत कैसी है। योगेश ने कहा। ”अब ठीक है और खाना खाकर थोडा देर और सोऊंगा.”

योगेश उठकर फ्रेश हुआ और अपने कमरे में सिगरेट जलाकर सोचने लगा। उसके दिमाग में दो ही बाते थी.. आस्था और उसका मरना। कैसे करे. क्या करे. वो शान्ति से सोचने लगा। उसमे ये एक खूबी थी कि, वो तुरंत उत्तेजित या आतंकित या तेजी से घबरा नहीं जाता था। वो सोचने लगा, कि कैसे वो आस्था का खात्मा करे.. जितना वो आस्था और वीरेंद्र के बारे में सोचता था उतना ही उसका खुन खौल जाता था.. उसने एक ड्रिंक बनायी और फिर से सोचने लगा। फिर उसने खड़े होकर आस्था की अलमारी को खोला। यूँ ही देखने लगा, इधर उधर हाथ मारने लगा. उसने देखा कि आस्था की दवाईयां रखी हुई है। उसे याद आया कि आस्था को अर्रहयाथ्मिया [arrhythmia ] है, उसके दिमाग में घंटी बजने लगी। योगेश को पता था कि अर्रहयाथ्मिया एक तरह की दिल की बिमारी होती है, जिसमे दिल की धड़कन बहुत धीमी हो जाती थी और कभी कभी एक आध धड़कन चूक जाती थी। और अर्रहयाथ्मिया की वजह से इंसान को हार्ट अटैक भी आ सकता था.. वो सोचने लगा कि अगर आस्था को हार्ट अटैक आ जाए तो कोई उस पर शक नहीं कर सकता है..क्योंकि एक साल पहले भी आस्था को अर्रहयाथ्मिया के कारण हार्ट अटैक आ चूका था. बस योगेश के मन में प्लान बनने लगे। वो एक मेकानिकल इंजिनियर था और उसने मार्केटिंग में MBA किया हुआ था..।. प्लानिंग में वो बहुत तेज था. उसने दूसरी ड्रिंक बनायी और सोचने लगा।

अब वो बैठ गया एक आराम कुर्सी पर और सोचने लगा। आस्था को जो अर्रहयाथ्मिया था वो bradycardia टाइप का था। इसमें दिल की धड़कन बहुत धीमी और कम हो जाती थी। और अगर आस्था को सीने में दर्द या एकाग्रता की प्रॉब्लम या व्याकुलता या एक भ्रमित मनस्तिथि का तैयार होना या चक्कर आये या थकावट या घबराहट के कारण उसकी धड़कने धीमी और कम हो जाये और इन सबके कारण सांस लेने में तकलीफ हो जाये वो Syncope का शिकार बन जायेंगी और बेहोशी के हाल में पहुँच जायेंगी। और इसके चलते उसे अर्रहयाथ्मिया का दौरा पड़ सकता है, और यदि उसे करीब १ घंटे तक प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिले, तो “she can get a deadly heart attack !” “Yes yogesh yes” उसने खुद से ही कहा.. उसका दिमाग अब और तेजी से चलने लगा। उसने एक कागज़ पर प्लान लिखा।

योगेश ने अपने MBA की पढाई के दौरान ये सबक सीखा था कि plan your work and than work your plan। आज उसी सबक को वो अमल में ला रहा था. उसने लिखा कि आस्था की मौत हार्ट अटैक से होंगी, और ये हार्ट अटैक उसे अर्रहयाथ्मिया की वजह से आयेंगा और समय पर करीब एक घंटा उसे प्राथमिक चिकित्सा न मिलने की वजह से उसकी मौत हो जायेंगी। यहाँ आकर उसने एक गहरी सांस ली और मुस्कराया। अब ठीक है। उसने एक और पैग बनाया और एक और सिगरेट सुलगाया। आस्था मर जायेंगी इस बात से ही उसे बड़ा जुनूनी सकून मिल रहा था.. फिर अचानक उसके दिमाग में ये बात आई कि आस्था को अर्रहयाथ्मिया का दौरा कैसे पड़ेंगा। क्योंकि इसके लिए या तो सीने में दर्द या एकाग्रता की प्रॉब्लम या व्याकुलता या एक भ्रमित मनस्तिथि का तैयार होना या चक्कर आये या थकावट या घबराहट का होना जरुरी है तब कहीं जाकर वो Syncope (fainting or near-fainting) का शिकार बन जायेंगी। और इसके चलते उसे अर्रहयाथ्मिया का दौरा पड़ सकता है, योगेश तेजी से सोचने लगा। कुछ समझ नहीं आ रहा था.. उसने एक और ड्रिंक बनायी।

योगेश ने फ्रिज में से खाना निकालकर गर्म किया और खाने लगा. फिर यूँ ही टीवी शुरू करके खाना खाने लगा। चैनेल बदलते बदलते वो इंदौर के लोकल चैनल पर रुका। वहां किसी मेले का विज्ञापन आ रहा था, योगेश थोड़ी देर तक यूँ ही देखता रहा और फिर किचन में जाकर बर्तन रख आया और वही के वाशबेसिन में हाथ दोने लगा। तभी उसके कानो में एक आवाज सुनाई पड़ी। “देखिये भारत में पहली बार सबसे बड़ा जायिंट व्हील। आज तक आपने देखा न होंगा, रोमांचित कर देने वाला झूला देखिये…. देखिये”। योगेश ने टीवी की ओर देखा। वहां एक बड़े से झूले का विडियो दिखाया जा रहा था... योगेश पहले तो अनमने भाव से देखने लगा। फिर अचानक ही उसकी आँखे चमक उठी। वो टीवी के सामने जाकर बैठ गया और पूरे विज्ञापन को गौर से देखने लगा. विज्ञापन ख़त्म हो गया तो उसने टीवी बंद कर दिया और कमरे में चहलकदमी करने लगा।

वो लगातार सोच रहा था। अब वो थक रहा था. उसने थककर आज का अखबार उठा लिया और यूँ ही उसके पेज पलटने लगा। अचानक एक विज्ञापन पर उसकी नज़र पढ़ी... ये उसी मेले का विज्ञापन था, जो उसने अभी टीवी पर देखा था। ये उन दिनों इंदौर के मेघदूत पार्क में लगा हुआ था.. उसमे कुछ चित्र दिए थे। खाने पीने के स्टाल और झूले इत्यादि के। योगेश ने यूँ ही देखा और पेज पलट दिया, अचानक उसके दिमाग में स्पार्क हुआ। उसने फिर से उस विज्ञापन को देखा। गौर से। उसमे दिए गए चित्रों में एक झूले का चित्र था. वो एक जायिंट व्हील का चित्र था.. योगेश ने अपनी नज़रे उस पर focus कर ली..

आस्था को जायिंट व्हील से बहुत डर लगता था.. एक बार वो उसके साथ शुरुवाती दिनों में बैठी थी, तब वो रोने लगी थी और उसे सदमा पहुंचा था.. इस बात की याद ने योगेश के दिमाग को टॉनिक की तरह मदद की. योगेश अब तन कर बैठ गया थे और उसने वो पेपर निकाला, जिसमे वो प्लान लिख रहा था. और उसमे लिखने लगा। योगेश ने मुस्करा कर अपने आप से कहा। “ये बात हुई न, अब तू कैसे बचेंगी आस्था” उसने फिर लिखा. आस्था को झूले से डर लगता है, वो उसे उस मेले में ले जायेंगा और फिर उसे उस झूले में अपनी बातो में फंसाकर बिठायेंगा। और फिर झूले में ही उसे घबराहट के कारण उसे अर्रहयाथ्मिया का अटैक आयेंगा और फिर वो उसे हॉस्पिटल ले जाने में देरी करेंगा , जिसकी वजह से उसे प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिलेंगी और उसे एक शक्तिशाली हार्ट अटैक आयेंगा और वो मर जायेंगी। योगेश ने अपने प्लान को पढ़कर पागलो की तरह हंसने लगा। योगेश ने अपने आप से कहा “अब ठीक है। This is going to be a perfect murder.” फिर वो रुका और सोचने लगा और अपने आप से कहा, “yogesh; calm down।.. Loop holes को cross check कर”। उसने पूरे प्लान को कई बार पढ़ा। एक सवाल आया कि अगर उसके पास कार है तो वो देरी से हॉस्पिटल क्यों पहुंचेंगा.. उसने उत्तर लिखा। कि उस दिन वो कार के कारबोरेटर में कचरा डाल देंगा और इस तरह से कार स्टार्ट नहीं होंगी। गुड. नेक्स्ट सवाल। अगर किसी ने उससे पुछा कि आस्था को अर्रहयाथ्मिया था तो उसने उसे झूले में क्यों बिठाया। कौन पूछेंगा। कौन कौन ? वीरेंद्र ओके। उसे कह देंगा कि उसे ख़ुशी के कारण याद नहीं रहा और गलती हो गयी। इंस्पेक्टर आनंद। उसे भी यही जवाब दे देंगा। गुड नेक्स्ट सवाल.. और और और। कुछ नहीं। सही प्लान है। उसने कई बार पढ़ा फिर उसने हर बात को याद किया और संतुष्ट होकर उस कागज़ के टुकड़े टुकड़े कर के उसे जला दिया और फेंक दिया।

अब वो पूरी तरह से संतुष्ट था। उसने आईने में जाकर अपने आप को देखा। उसे आईने में खुद की जगह एक राक्षस नज़र आया... उसे एक बारगी तो डर लगा फिर वो हँसते हुए कहने लगा. “पहले आस्था तू , उसके बाद तेरा वीरेंद्र. उसे भी मैं ऐसे ही मारूंगा। ” शराब फिर उसके सर पर चढ़कर बोल रही थी.. वो बिस्तर पर लेटा और फिर से सो गया।अबकी बार उसे थोड़ी अच्छी नींद आई।

मंगलवार सुबह

आस्था ने उसे जगाया। “क्या बात है, कल से सो रहे हो। मैं देर रात आई थी। तुम गहरी नींद सो रहे थे, मैंने उठाना ठीक नहीं समझा। अगर तबियत ठीक नहीं है, तो एक बार आ जाओ हॉस्पिटल में, पूरा चेकअप करवा लेते है।”

योगेश ने कहा, “नहीं यार कोई बात नहीं है, बहुत लम्बा टूर था, थक गया था. अब ठीक है”..

आस्था ने फिर कहा “आजकल बहुत पीने लगे हो तुम, थोडा कण्ट्रोल करो.”

योगेश ने कहा, “कर लेंगे यार. चलो आज ऑफिस जाना है। रिपोर्टिंग करना है। ”

दोनों तैयार होकर चले गए, योगेश ने आस्था को उसके हॉस्पिटल छोड़ा और फिर अपने ऑफिस चला गया।

मंगलवार शाम

सुबह से ही योगेश बहुत बिजी था। १५ दिन के रिपोर्टिंग और दूसरो के कामकाज सब कुछ समझते समझते उसे शाम हो गयी। जैसे ही वो खाली हुआ, उसके दिमाग में फिर खुरापात होने लगी। वो अपने प्लान पर फिर से सोचने लगा। कहीं उसे कोई खोट नहीं दिखाई दे रही थी। सब कुछ ठीक ही था.. उसने अपने आप से कई सवाल किये और उनके जवाब दिए, कभी लिखता था कभी खुद ही बोलता था.. इसी तरह सोचते सोचते रात के ९ बज गए.. आस्था का फोन आया। “घर आओ जल्दी, ” योगेश का घर जाने का मन नहीं था. उसने कहा “एक मीटिंग है, रात हो जायेंगी। तुम खा कर सो जाओ। ”

योगेश ऑफिस के पास के ही एक बार में चला गया, वहां वो फिर पीने लगा। रात को घर पहुँचा , उसका घर पांचवे माले पर था. लिफ्ट फिर बंद थी। गुस्से में बडबडाते हुए वो सीडियां चढ़कर वो अपने घर पहुंचा।

उसके पास घर के एक चाबी थी, उससे उसने दरवाजा खोला और अन्दर आया। बेडरूम में जाकर देखा तो आस्था सोयी हुई थी. उसे सोता देखकर उसे मन हुआ कि वही उसका गला दबाकर उसे मार दे. लेकिन वो चुपचाप वापस आया। बाहर सोफे पर पसर कर सो गया। रात को उसे बहुत डरवाने सपने आये. एक बार चिल्लाकर उठा,तो आस्था दौड़कर आई. पूछी , “तुम कब आये, मुझे उठाया क्यों नहीं। चलो अन्दर सो जाओ। ”

वो अन्दर जाकर फिर सो गया और फिर उसे वही डरावने सपने आये।

बुधवार सुबह

सुबह उठा तो सर में दर्द था. आस्था ने उसे चाय दी और हँसते हुए कहने लगी, “रात को तुम मुझे मार ही डाल रहे थे. क्या हुआ, अभी से मार दोंगे तो ज़िन्दगी कैसे चलेंगी तुम्हारी.”. कहकर वो जोर जोर से हंसने लगी,

योगेश ने डरकर पुछा, “मैंने शायद नींद में कुछ बडबडाया क्या ?” आस्था ने कहा, “हाँ भई तुम तो मुझे मारने की बात कर रहे थे..” योगेश ने खिसियाकर कहा, “पता नहीं क्या सपना देखा.”. कहकर वो बाथरूम चले गया..

योगेश और आस्था नाश्ता कर रहे थे कि आस्था का मोबाइल बजा। आस्था ने कहा “अरे इतनी सुबह फ़ोन.” योगेश ने पुछा “किसका है ?”। आस्था ने कहा “वीरेंद्र का है। ” उसने मोबाइल पर कहा, “हां वीरेन्द्र, गुड मोर्निंग, कैसे हो, इतनी सुबह.”. वीरेंद्र ने कुछ कहा. जिसे सुनकर आस्था ने कहा। “अरे कब.?” फिर वीरेंद्र ने कुछ कहा। आस्था ने कहा “ठीक है तुम अपने ख्याल रखना। कब तक आओंगे। ” योगेश ने ये बात सुनी तो उसका खून खौल गया। उधर से वीरेंद्र ने कुछ कहा और फिर बाय बोलकर आस्था ने फ़ोन काट दिया। योगेश ने पुछा “क्या हुआ ?” तो आस्था ने कहा कि वीरेंद्र के मामा को हार्ट अटैक आया है दिल्ली में , वो जा रहा है.

योगेश ने मन ही मन सोचा अच्छा हुआ. अब सब कुछ प्लान के मुताबिक हो होंगा. नहीं तो आस्था उसे भी मेले में ले जाने की जिद करती थी।

बुधवार दोपहर

योगेश लंच करने के बाद ऑफिस के अपने कमरे में बैठा हुआ था.. और सोच रहा था। यूँ ही एक flashback की तरह उसका जीवन उसकी आँखों के सामने से गुजर गया। करीब तीन साल पहले उसकी और आस्था की शादी हुई थी। एक सादे से समोराह में, उनका प्रेम विवाह था. आस्था को वो पांच साल से जानता था, जब से वो MBBS की पढाई कर रही थी। दोनों में प्यार हुआ। और फिर उन्होंने शादी कर ली थी। MBBS की पढाई के दौरान ही वीरेन्द्र और आनदं से भी योगेश की दोस्ती हुई। वीरेंद्र आस्था का MBBS का सहपाठी था और आनंद आस्था का स्कूल का साथी था. आनंद अब इंदौर में ही पुलिस इंस्पेक्टर था और वीरेंद्र एक सफल Gynecologist था. आस्था ने पढाई पूरी करके गीता भवन हॉस्पिटल के साथ जुड़ गयी थी। वो गरीबो की सेवा में ही विश्वास रखती थी। इसलिए उसने ये सरकारी हॉस्पिटल चुना था ।

कॉलेज के शुरुवाती दिनों में वीरेंद्र आस्था पर बहुत फ़िदा था, आस्था भी उसे चाहती थी, लेकिन आस्था के जीवन में योगेश एक तूफ़ान की तरह आया और छा गया था। योगेश को वीरेंद्र कभी भी न भाया। उसके मन में वीरेंद्र को लेकर हमेशा ही एक शक बना रहा और अब वो शक उसे हकीक़त के रूप में दिख रहा था. वीरेन्द्र ने शादी भी नहीं की थी और उसका क्लिनिक भी अच्छा ही चल रहा था. और करीब कर हफ्ते वीरेंद्र उसके यहाँ खाने पर आया करता था. योगेश का मन कभी भी उसे लेकर नहीं बदला। आस्था और आनंद और वीरेंद्र खूब हंसी मज़ाक करते हर रविवार को और आस्था अक्सर योगेश को वीरेंद्र के नाम से चिडाया करती थी।

लेकिन योगेश अक्सर चुप ही रहता। और धीरे धीरे ये चुप्पी उसके मन में ज़हर भरती गयी और फिर उसने एक महीने पहले ही अमर नाम के प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवायें ली ताकि उसका शक सही साबित हो और अब वो एक खतरनाक निर्णय पर पहुँच गया था. योगेश ने अपने ब्रीफकेस से वो फोटो निकाले और उन्हें देखने लगा, उसकी आँखों में फिर खून उतर आया. उसने वो सारे फोटो और डाटा कार्ड जिसमे वो फोटो थे जलाकर राख कर दिया। और अपने प्लान पर सोचने लगा.

बुधवार शाम

योगेश ऑफिस से जल्दी निकल गया और मेघदूत पार्क में जाकर देख आया। मेला खुल चूका था और सारे झूले भी लग चुके थे. अच्छा माहौल था. उसने जायिंट व्हील को देखा। वो बहुत ऊंचा था. उसे देखकर योगेश के चेहरे पर और मन में एक वहशी मुस्कराहट आई। और वो वापस घर की ओर चल पढ़ा. राह में उसे एक बार दिखाई दिया। वो उसमे जाकर पीने लगा। रात को फिर उसे सीढियां चढ़कर अपने घर जाना पढ़ा, लिफ्ट खराब थी। उसे सीढियां चढ़ना पसंद नहीं था.

घर जाकर देखा तो आस्था बैठी हुई थी। जाग रही थी।

योगेश को देखकर उसने कहा चलो खाना खा लेते है। योगेश ने कहा, हाँ

खाना खाते हुए योगेश ने देखा कि आस्था का चेहरा उतरा हुआ था। योगेश ने सोचा, “वीरेंद्र के जाने का दुःख है। ठीक है और कितने दिन। जल्दी ही तुझे नरक भेज रहा हूँ। ” आस्था ने पुछा “अरे क्या बडबडा रहे हो, खाना तो खाओ। कितना काम करने लगे हो। छुट्टी ले लो। ”

योगेश ने कहा “ठीक है यार, कल छुट्टी ले लेते है। तुम भी ले लो; कल कहीं घूम आते है। ” आस्था ने कहा “चलो ये भी ठीक है, तुम ऐसे तो मानते नहीं हो। इसी बहाने कुछ घूम लेते है। मैं सोने जा रही हूँ.” योगेश ने कहा “मुझे कुछ काम है, अगर कल छुट्टी लेना है तो मैं कल का कुछ काम कर लेता हूँ.”

योगेश देर रात तक काम करने लगा। फिर करीब बारह बजे वो सोने गया। बेडरूम में देखा तो आस्था सोयी हुई थी, वो बगल में लेटकर अपने प्लान के बारे में सोचने लगा, उसे नींद नहीं आ रही थी। वो जाकर एक पैग बनकर बैठ गया। बेडरूम की खिड़की के बाहर देखने लगा....बहुत से बादल चन्द्रमा को बार बार ढक लेते थे.. हलकी बूंदा बंदी हो रही थी। वो पीते गया और सोचते गया। फिर आकर वो सो गया.

गुरुवार सुबह

योगेश की आंख आस्था की आवाज से खुली, “अरे चाय तो पी लो। ”

योगेश का सर दर्द कर रहा था.. जैसे तैसे वो तैयार हुआ. देखा तो आस्था का चेहरा पीला नज़र आ रहा था.. योगेश ने पुछा “क्या हुआ.?”. आस्था ने कहा “पता नहीं। तबियत ठीक नहीं लग रही है। ”. योगेश ने कहा “छुट्टी तो ले ही रही हो। आराम कर लो। हम दोपहर के बाद चलते है.”

आस्था ने कहा, “पता नहीं पर जाने क्यों लगता है कि आज अर्रहयाथ्मिया का attack ही आयेंगा.. दर्द हो रहा है।” योगेश ने मन ही मन कहा , ‘यही तो मैं चाहता हूँ”.. उसने आस्था के हॉस्पिटल में फ़ोन करके उसकी छुट्टी ले ली और अपने ऑफिस में फ़ोन करके अपनी छुट्टी ले ली।

फिर वो बाहर से नाश्ता ले आया. और इसी बहाने नीचे जाकर अपनी कार के कारबोरेटर में कचरा डाल दिया। ताकि वो स्टार्ट ही न हो..

फिर आकर देखा तो आस्था सोयी हुई थी। उसका चेहरा भी बहुत थका हुआ लग रहा था..

गुरुवार दोपहर

योगेश ने आस्था को उठाया और चलने को कहा। आस्था ने थके हुए स्वर में कहा "आज अगर नहीं जाते तो ".. योगेश ने कहा "अब यार चलो घूम आते है थोडा बाहर का मौसम तो देखो। तुम पर प्यार भी तो आ रहा है ".. "आज तुम मेरी सारी बाते मानोंगी। तो तबियत ठीक हो जायेंगी"। आस्था ने पुछा " क्या बात है आज बहुत रोमांटिक हो रहे हो ". योगेश ने कहा, "कुछ ख़ास नहीं, बस यूँ ही. अगले हफ्ते हमारी शादी की सालगिरह है न, इसलिए ".

योगेश ने कहा "चलो एक मेला लगा है मेघदूत गार्डेन में।, हम मेला देखने चलेंगे”. आस्था चिहुंक कर पूछ बैठी, “मेला ?” फिर आस्था ने मुस्करा कर कहा, “अरे हम बच्चे है क्या”. योगेश ने कहा, ”चलो न आस्था । बहुत दिनों से कहीं नहीं गए".. आस्था ने आश्चर्य से योगेश को देखा "अरे आज तुम्हे हुआ क्या है। बोलो तो इतना प्यार दिखा रहे हो। मैं जरुर चलती लेकिन पता नहीं मेरा दिल क्यों घबरा रहा है. पसीना भी आ रहा है। और डर भी लग रहा है की कहीं शायद अर्रहयाथ्मिया का अटैक न आ जाए। मैं ठीक नहीं हूँ योगेश ".

योगेश ने कहा, "कुछ नहीं होंगा, बस जाकर घूमकर आ जायेंगे, फिर भले ही तुम सो जाना ".

योगेश ने कभी इतनी बार कहा नहीं था.. आस्था मान गयी। आस्था तैयार हो गयी। दोनों घर से बाहर निकले। कार स्टार्ट करने की कोशिश की गयी। कार शुरू नहीं हुई.. फिर उसने कहा, "छोडो यार कार को, हम ऑटो में चलते है. पुराने दिन याद आ जायेंगे." आस्था मुस्कराने लगी। उसने योगेश का हाथ जोरो से पकड़ कर कहा, "क्या बात है बड़े रोमांटिक हो रहे हो, कहीं जान लेने का इरादा तो नहीं है। "। योगेश हँसता हुआ बोला. "कुछ नहीं जी। बस यूँ ही ".. सड़क पर जब वो दोनों ऑटो का इन्तजार कर रहे थे.. तब सामने से इंस्पेक्टर आनंद आ गया. उसे देखकर योगेश का दिल धड़कने लगा। आनंद भी इसी कालोनी में रहता था.. उसने कहा, "क्या बात है आज दोनों मियां बीबी, बनठन कर कहाँ जा रहे है। ". योगेश कुछ बोलता इसके पहले ही आस्था बोल पड़ी, "आज इनको मुझे खुश करने की इच्छा जागृत हुई है, तो हम भी क्यों पीछे रहे। अगले हफ्ते हमारी शादी की सालगिरह है, , उसी के लिए योगेश साहब मस्का मार रहे है। ". आनंद बोला, "कार का क्या हुआ ?”.. आस्था बोली, " कार खराब हो गयी है। अब हमें मेघदूत गार्डेन में जाना है। " आनंद ने कहा, " मैं छोड़ देता हूँ। " योगेश ने कहा "नहीं यार, बस आज ऑटो को मजे लेते है ".. आनंद हंसने लगा.. "पुराने दिन याद किये जा रहे है. क्यों ? " सब एक साथ हंस पड़े.. आनंद ने अचानक आस्था को गौर से देखा और पुछा "तेरी तबियत ठीक नहीं है क्या ".. आस्था ने कहा " नहीं नहीं। बस यूँ ही, थोड़ी सी हरारत है ".. आनंद ने नकली गुस्से से कहा। " योगेश साहेब, “मेरी दोस्त का ख्याल रखना। नहीं तो... !!! " सब फिर हंस पड़े. इतने में एक ऑटो आ गया, और दोनों ने उसमे बैठकर उसे मेघदूत गार्डेन में चलने को कहा।

मेघदूत गार्डेन में मेला लगा हुआ था.. योगेश और आस्था थोड़ी देर इधर उधर घूमे फिर अचानक ही योगेश ने कहा "चलो झूले में बैठते है ".. आस्था ने कहा "नहीं। मेरा मन नहीं है और अब तो तबियत भी खराब है"। “पता नहीं, लेकिन उलटी आये जैसे हो रहा है, जी मितला रहा है , चलो घर वापस चलते है, तुम्हे कुछ बताना है ".. योगेश कुछ भी सुनने के किसी भी मूड में नहीं था. उसने कहा "चलो न यार। बैठते है । तुम्हे याद है। हम फर्स्ट इयर में एक मेले में गए थे और वही झूले में मैंने तुम्हे फर्स्ट किस किया था.."

आस्था के चहरे पर थकावट दिखने लगी थी और कुछ पसीने की बूंदे भी नज़र आ रही थी। वो बार बार अपने छाती पर हाथ लगा रही थी, और ये देख कर योगेश की आँखों में एक वहशी मुस्कान आ रही थी। उसने आस्था का हाथ पकड़कर कहा, "चलो, तुम्हे मेरी कसम । आज मना न करो "। आस्था रुक गयी और बहुत गहरी नजरो से उसे देखने लगी। और फिर उसने पुछा, " आज बहुत प्यार कर रहे हो मुझे, क्या सच में मेरी जान लोंगे क्या। ? "

" तुम्हे क्या लगता है "।. योगेश ने डरी हुई आवाज में पुछा। आस्था ने मुस्करा कर कहा " अगर इतना प्यार करोंगे तो ऐसी ही जान दे दोंगी योगेश.. तुम्हे मारने की कोई जरुरत नहीं। ". ये सुनकर योगेश का दिल लरज गया.. फिर वो हडबड़ाकर बोला, " चलो, इस पर बैठते है "। आस्था ने एक बार फिर कहा, " योगेश, सच में मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। हम कल या परसों आ जायेंगे." योगेश के सर पर तो पागलपन सवार था.. उसने उसकी सुनी नहीं और आस्था का हाथ पकड़कर उसे भी साथ ले लिया और उस झूले में जाकर बैठा गया ये एक बड़ा सा जायिंट व्हील था, जिसे देखकर आस्था को डर लगने लगा। उसने एक बार जी भर कर योगेश को देखा और कहा, " मैं कुछ बताना चाहती हूँ तुम्हे ".. योगेश ने कहा "अरे यार अभी बैठो न। बाद में बताना।" वो दोनों बैठ गए और वो बड़ा सा जायिंट व्हील शुरू हो गया। थोड़ी देर में ही उसने रफ़्तार पकड़ ली., आस्था घबराने लगी, , उसके सीने में दर्द आ रहा था और अब वो एकाग्रचित्त भी नहीं हो पा रही थी। सारी चीजे उसे घूमती दिखाई दे रही थी। उसकी व्याकुलता बढ गयी थी और उसके दिमाग में एक भ्रमित मनस्तिथि तैयार कर रही थी। उसे चक्कर आ रहे थे और अब उसकी घबराहट बढ़ गयी थी उसने जोरो से योगेश का हाथ पकड़ा और कहने लगी " इसे रोक दो योगेश, मैं मर जाउंगी, मुझे अर्रहयाथ्मिया का दौरा पड़ जायेंगा। " योगेश ने कहा " बस थोड़ी देर और, तुम एन्जॉय तो करो "। झूले की रफ़्तार और तेज हो गयी। योगेश ध्यान से उसे देख रहा था. आस्था का मुंह खुल गया था और उसकी आँखे पलटने लगी थी। पूरा चेहरा पसीने से भर गया था. आस्था उसे इशारे में कुछ बताने लगी। लेकिन योगेश कुछ सुनना, समझना नहीं चाहता था. आस्था का एक हाथ बार बार उसके छाती और पेट को पकड़ लेता था. थोड़ी देर में वो बेहोशी की हाल में पहुँच गयी। योगेश ने उसे ऐसे पकड़ रहा था कि जैसे आस्था को डर लग रहा हो और वो आस्था को संभाल रहा हो. आस्था का सर झुक गया था. झूला बहुत तेजी से घूम रहा था. अचानक जोरो से आस्था ने अपनी छाती को पकड़ा और उसका चेहरा लाल हो गया। वो कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पा रही थी। फिर वो बेहोश हो गयी। क्रोध, डर और उत्तेजना के इस माहौल के कारण योगेश की आँखे भी लाल हो गयी थी, वो समझ गया था कि आस्था को अर्रहयाथ्मिया का दौरा पड़ा है।

करीब वो झूला पांच मिनट और चला फिर रुक गया, और जब योगेश और आस्था के बैठने का डब्बा नीचे झूले में से लोगो को उतारने वालो के पास पहुंचा तो योगेश ने आस्था को उठाने की एक्टिंग की ", आस्था उठो, अरे उठो। क्या हो गया तुम्हे, उठो.." लोग जमा हो गए थे। योगेश ने आस्था को बांहों में उठाकर बाहर लाया, उसके चेहरे पर पानी डाला.. लेकिन आस्था को कोई होश नहीं था.. योगेश ने उसकी नब्ज़ देखी । वो बहुत धीरे से चल रही थी। आस्था का चेहरा काला पड़ गया था..।. योगेश ने चिल्लाकर कहा "कोई गाडी है, हॉस्पिटल ले जाना है। ". अब वो इन्ही सारी बातो में देर कर रहा था.. करीब आधा घंटा गुजर गया था। और आस्था को प्राथमिक चिकित्सा का उपचार अब तक नहीं मिला था। फिर जैसे तैसे एक ऑटो लाया गया और उसमे योगेश ने आस्था को लिटा दिया और वही के पास में मौजूद राजश्री हॉस्पिटल में ले गया। वहां के OPD में उसे पता चला कि वहां पर कोई cardiac डॉक्टर नहीं है। उसने फिर वहां के अम्बुलेंस में आस्था को AB रोड पर स्थित CHL हॉस्पिटल ले गया। तक तक आस्था को अर्रहयाथ्मिया का पूरा अटैक आ चूका था और वो करीब करीब एक MASSIVE हार्ट अटैक के करीब पहुँच चुकी थी।

हॉस्पिटल में जब वो INTENSIVE CARE UNIT में जा रही थी.. तब भी, उसने बेहोशी में भी योगेश का हाथ नहीं छोड़ा।.योगेश को पसीने आ चुके थे.. उसने वहां के DOCTORS को यही बताया कि अचानक ही मेले में उसे ये दौरा पड़ा। और वो उसे वहां से यहाँ ले आया। रास्ते में ट्राफिक और दूसरी बातो की देरी से वो देरी से यहाँ पहुंचे।.. हॉस्पिटल के स्टाफ ने आस्था को ICU में लेकर गये । उसने वहां पहुँचने के बाद जब आस्था INTENSIVE CARE UNIT में थी। योगेश ने सभी दोस्तों को फ़ोन पर बताया। इंस्पेक्टर आनंद तो चिल्ला बैठा.. जब वो वीरेंद्र को फ़ोन किया और उसे बताया, वीरेंद्र ने कहा कि उसके मामा को भी massive हार्ट अटैक आया हुआ है, और वो भी शायद नहीं बचेंगे.. वो जितना जल्दी हो सके आने की कोशीश करेंगा। उसने उस हॉस्पिटल के एक सीनियर डॉक्टर का नाम बताया और योगेश को उनसे मिलने को कहा.

थोड़ी देर में आनंद और दुसरे दोस्त वहां पहुंचे। ये हॉस्पिटल HEART की बीमारियों के लिए माना हुआ हॉस्पिटल था. एक SENIOR डॉक्टर ने आकर कहा की आस्था को MASSIVE हार्ट अटैक आया हुआ है और वो अपनी पूरी कोशिश कर रहे है। ये वही डॉक्टर था, जिसे वीरेंद्र ने भी फ़ोन करके आस्था को देखने के लिए कहा था। वो परेशान दिख रहा था.

गुरूवार देर रात

आस्था को होश नहीं आया था. हॉस्पिटल के सन्नाटे से अब योगेश को डर लग रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि उसने कोई गलती कर दी है शायद.. आनंद उसके साथ था.. आनंद उसका बुझा हुआ चेहरा देख कर कहने लगा " योगेश, सब ठीक हो जायेंगा। आस्था बहुत अच्छी लड़की है। ईश्वर सब ठीक करेंगा " योगेश को उसके शब्द सिर्फ तसल्ली से भरे हुए लगे। योगेश का दिमाग हारने लगा था और अब उसका दिल घबरा रहा था. वो अपने आप से ही बाते करने लग जाता था.. आनंद ने उसे जबरदस्ती सुलाने की कोशिश किया, लेकिन योगेश सो नहीं सका।

शुक्रवार सुबह

थोड़ी देर में ही उसी डॉक्टर ने आकर कहा कि आस्था नहीं रही। वो बचा नहीं सके। बहुत देर हो चुकी थी और वो बेहोशी में ही चल बसी। योगेश को पहली बार ये बात सुनकर एक झटका सा लगा.. क्या कर दिया उसने।अचानक वो चिल्लाने लगा, फिर वो जोर जोर से रोने लगा.. तब तक दुसरे दोस्त भी वहां पहुँच चुके थे. सभी उसे समझाने लगे। लेकिन वो पागल सा बन गया था. कभी चिल्लाता था, कभी रोता था और कभी हँसता था.. फिर वो थक कर चुप हो गया। सबकी आँखे गीली थी। इंस्पेक्टर आनंद जैसा कठोर पुलिसवाला भी रोने लगा था.. आस्था बहुत ही प्यारी और हंसमुख लड़की थी। इंस्पेक्टर आनंद ने वीरेंद्र को भी फ़ोन पर बता दिया। वीरेंद्र ने कहा की उसके मामा भी नहीं रहे वो जल्दी से दाह संस्कार करके पहुँचेंग। वीरेद्र की आवाज आनंद को एक मरे हुए आदमी की आवाज लगी। ज़ाहिर था कि वो भी इस खबर से टूट गया था.

शुक्रवार शाम

योगेश, आनंद और दुसरे दोस्त और मोहल्ले के लोगो ने आस्था का अंतिम संस्कार किया। योगेश का चेहरा सफ़ेद हो रहा था. वो सुबह से लगातार शराब पी रहा था. रात को आनद योगेश को अपने घर लेकर गया और उसे जबर्दाश्ती सुलाया। आनंद की बीबी और दुसरे दोस्तों ने कहा, योगेश अब तक मन से पूरा नहीं रो पाया है, सदमे में है अगर वो पूरा रो दे तो ठीक हो जायेंगा। रात को योगेश नींद में और शराब के नशे में पता नहीं क्या क्या बडबडाता रहा। आनंद बार बार उठ जाता था.. एक बार उसने सुना योगेश बडबडा रहा था. “मैं मार दूंगा तुझे”। आनंद सोच में पड़ गया, फिर उसने यही समझा की योगेश में आस्था के नहीं रहने का सदमा पहुंचा था.

शनिवार सुबह

इंस्पेक्टर आनंद और मोहल्ले के कुछ लोग आये, सब मिल कर योगेश के साथ शमशान गए। वहां से उन्होंने आस्था की राख जमा की, और उसे लेकर वापस आ गए योगेश के घर। कुछ देर बाद सब चले गए।.अब वहां कोई नहीं था सिर्फ योगेश और आनंद ही थे। योगेश का चेहरा सफ़ेद बन चूका था। उसे अब लग रहा था कि उसने ठीक नहीं किया। आनंद बहुत चुपचाप था, उसने अपने बचपन के दोस्त को खोया था..

इतने में घर की घंटी बजी। आनंद ने दरवाजा खोला। देखा तो वीरेंद्र था. वो योगेश को देखते ही रोने लगा। उसे देखकर योगेश को फिर से बहुत गुस्सा आया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वीरेंद्र बहुत देर तक रोते रहा। उसे आनंद ने चुप करवाया।

थोड़े देर बाद उसने गुस्से में भड़ककर कहा “ योगेश तू ही उसका हत्यारा है। साले तुने उसे झूले पर कैसे बिठाया जबकि तुझे मालुम था की उसे हार्ट की प्रॉब्लम है ?” आनंद ये सुनकर थोडा चौंका। और कहा, “हां ये बात तो मुझे भी पूछना था. तुने क्यों बिठाया she was a heart patient। ” योगेश ने कहा " बस हम खुश थे इसीलिए मैंने सोचा कि थोडा और खुश हो जाए। कई साल हो गए थे. हमने सोचा की पहली बार जैसे बैठे थे। वैसे ही बैठ जाते है ".

वीरेंद्र ने पुछा, "आस्था एक डॉक्टर थी, उसने मना नहीं किया।" योगेश ने कहा “नहीं..”। उसके स्वर में हिचकिचाहट तो थी। जिसे आनंद ने महसूस किया। फिर वीरेंद्र ने कहा "वो कितनी खुश थी, , तुझे कितनी खुशियाँ देनी चाहती थी। तुम दोनों की कल शादी की सालगिरह थी, वो तुझे एक बहुत बड़ी खुश खबरी देना चाहती थी, "।

योगेश का वीरेंद्र की बातो पर कोई ध्यान नहीं था.. वो पता नहीं किस दुनिया में खोया हुआ था.. उसे आस्था का मासूम सा चेहरा याद आ रहा था. आनंद ने पुछा, " कौन सी खुशखबरी। "

वीरेंद्र ने योगेश का कन्धा पकड़ कर पूछ, " साले तुझे मालुम है, वो प्रेग्नेंट थी ?"

योगेश ने चौंककर पुछा, "क्या ? "

वीरेंद्र के आँखों में आंसू आ गए, "हां यार, वो तेरे बच्चे की मां बनने वाली थी। और यही खुशखबरी तुझे वो बताने वाली थी ".

योगेश के सर में जैसे बम फटा। वो आँखे फाड़े वीरेंद्र को देखते ही रह गया। ये खबर उस पर गाज बनकर गिरी। आनंद की आँखों में आंसू आ गए..

वीरेंद्र ने आगे कहा। "हां योगेश, हां ! तुझे याद है, कई साल से तुम दोनों माँ बाप बनने को तरस रहे थे.. करीब १० दिन पहले उसने मुझसे टेस्ट करवाया तो ये बात पता चली। तुम टूर पर थे.. हम ने कई और टेस्ट करवाए। क्योंकि आस्था को दो बार miscarriage हो चूका था. इस बार वो पूरी सावधानी बरत रही थी। और हमने सोचा कि इस बार कल के दिन तुम्हे ये बात बताकर मीठा सा surprise दे..लेकिन तुने उसकी और अपनी खुशियों को आग लगा दी। "

योगेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था…..उसका तेज दिमाग कुंद हो चूका था। वो सोच रहा था कि उसने बेकार में ही शक किया। ये दोनों तो उसके अपने बच्चे के लिए ही मिला करते थे.. तो आस्था उस दिन सपने में जो बडबडा रही थी, उसका मतलब यही था कि वो वीरेन्द्र से योगेश को surprise देने की बात थी. और जो अमर ने उसे बताया था, वो दोनों इसी सिलसिले में एक दुसरे से मिला करते थे और जिस बिल्डिंग के बारे में अमर ने कहा था कि बहुत से क्लिनिक है वह ये उसके बच्चे के टेस्ट के लिए जाते थे....ओह भगवान, मैंने क्या कर दिया।मन ही मन वो पागलो के तरह बडबडाया। और उसने बेकार में ही इन पर शक किया और अपनी देवी जैसी पत्नी की जान ले ली.. ….

वीरेंद्र कह रहा था " अगर तू आस्था का पति और मेरा दोस्त नहीं होता तो तुझ पर मैं क़त्ल का इल्जाम लगा देता. "

आनंद ने कहा "और मैं तुझे फांसी पर चढ़ा देता "

आनंद ने उसे एक थप्पड़ मारा। योगेश की आँखों में आंसू आ गए।

वीरेंद्र ने आनंद को रोका। आनंद गुस्से की वजह से कांप रहा था. उसने योगेश से बहुत गुस्से में कहा "साले. तुझे अक्ल नहीं, बेवजह में आस्था के साथ अपने बच्चे की भी जान ले ली। "

योगेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.. वो बडबडाने लगा। "हाँ , मैंने ही आस्था को मारा है, मैं गुनाहगार हूँ.."

वीरेंद्र अन्दर किचन में गया और पानी ले आया। योगेश को पानी पिलाया। योगेश उठा। और कोने में रखे आस्था के पार्थिव शरीर की राख के कलश को हाथो में लेकर रोने लगा।।वीरेंद्र और आनंद दोनों ही उसे समझाने लगे। लेकिन योगेश पर एक बेहोशी सी छाई हुई थी। वो बडबडा ही रहा था.. "मैं ने ही मारा है आस्था को और अपने बच्चे को ".. आनंद को फिर गुस्सा आ गया। उसने दांत पीसकर कहां , "अगर मेरे बस में होता तो मैं तुझे खींचकर ले जाता और फांसी चढ़ा देता "..।वीरेंद्र ने आनंद को चुप रहने को कहा। और फिर योगेश को थोड़ी देर समझाया।

उसने कहा " मैं एअरपोर्ट से सीधे यहाँ आया हूँ, घर जाकर और फ्रेश होकर आता हूँ। फिर हम तीनो उज्जैन जाकर क्षिप्रा नदी में इसे अर्पित कर देंगे। वो महाकाल को बहुत पूजती थी। उसकी यही गति है। " “और उसकी यही अंतिम इच्छा मानकर पूरी करते है..” ये कहते कहते वीरेंद्र की आँखों में आंसू आ गए। आनंद भी रोने लगा.

वीरेंद्र चुप हुआ और आनंद से कहा " आनंद, चल, मुझे छोड़ दे. हम १ घंटे में निकलते है "

दोनों घर से निकल गए। योगेश अजीब सी ख़ामोशी के साथ बैठा ही हुआ था.. वीरेंद्र की आवाज आई, " लिफ्ट बंद है आनंद; हम पैदल ही नीचे चलते है. " वो दोनों पैदल ही नीचे की ओर चल पड़े.

योगेश धीरे धीरे उठा. उसके दीवार पर आस्था के एक फोटो थी। उसने उसे देखा और कहा " मुझे माफ़ कर दो आस्था.. मैं तेरे लायक नहीं और तेरे बिना मैं रह भी नहीं सकता. " उसने अपनी ड्रिंक की बोतल उठायी, और पीने लगा। फिर उसने आस्था का कलश उठाया और उसे बेतहाशा चूमने लगा। बहुत जोर जोर से रोने लगा फिर वो चुप हो गया। उसने कुछ सोचा. और अपनी बालकनी की खिड़की खोली। उसने नीचे देखा। वीरेंद्र और आनंद; दोनों आनन्द की जीप की तरफ बढ़ रहे थे.. उसने आवाज लगायी। "वीरेंद्र। आनंद। "

दोनों ने ऊपर देखा। वीरेंद्र ने कहा, , "तू यहाँ क्या कर रहा है। अन्दर जा." "नहीं तो गिर जायेंगा "

योगेश ने कलश को अपनी छाती से लगाया और कहा। " आनंद तू मुझे ले जाना चाहता था. मैं आ रहा हूँ ". कहकर वो नीचे खुद गया !

पांचवी मंजिल से योगेश का शरीर सर के बल दोनों के पैरो के पास गिरा. दोनों जब तक उसे संभालते। वो अपनी आस्था के पास पहुच चूका था. आस्था के राख का कलश टूट चूका था और योगेश के सर से बहता हुआ खून आस्था की राख को भिगो रहा था………………..!