दीपिका पादुकोण दीवानी मस्तानी नायिका / जयप्रकाश चौकसे

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दीपिका पादुकोण दीवानी मस्तानी नायिका
प्रकाशन तिथि : 28 नवम्बर 2013


इस वर्ष दीपिका पादुकोण ने तीन सफल फिल्मों में न केवल अभिनय किया है वरन् इन तीनों फिल्मों में उसकी भूमिकाएं केंद्रीय है। प्राय: फिल्में नायक को केंद्र में रखकर बनाई जाती है और नायिकाएं गीत गाने और दो चार प्रेम दृश्य करने के लिए ली जाती हैं परन्तु दीपिका पादुकोण की ये जवानी है दीवानी, चेन्नई एक्सप्रेस और रामलीला में नायिकाएं महज सजावट की चीजें नहीं हैं वरन् उनका अपना व्यक्तित्व है और नायकों के समानांतर महत्व उन्हें मिला है। यह एक ऐसी महत्वपूर्ण चीज है जिसका भूतपूर्व शिखर महिला सितारा जैसे कटरीना कैफ या करीना कपूर मुकाबला नहीं कर सकतीं। वे अपनी फिल्म में कमोबेश सजावट के रूप में ही सामने आई थी। दीपिका ने अब नया मानदंड स्थापित कर दिया है। संजय लीला भंसाली ने ऐसी नायिका प्रस्तुत की जो अपनी सेक्सुएलिटी को छुपाती नहीं है या शर्मिंदा नहीं होती है। वह उसके व्यक्तित्व का अविभाज्य हिस्सा है। हिन्दुस्तानी सिनेमा की नायिकाएं आंसू बहाने या मुस्कान बिखेरने का काम करती रही हैं उनकी ऊर्जा दरख्तों के गिर्द नायक के पीछे दौडऩे में अभिव्यक्त होती थी परन्तु लीला सैकड़ों की भीड़ में एक अनजान व्यक्ति पर आसक्त होती है तो दौड़कर उसका चुम्बन लेती है। प्राय: इस तरह का चरित्र चित्रण हमारी फिल्मों में नायक का किया जाता है जो सभी मामलों में पहल करता है परन्तु संजय की यह नायिका स्वयं पहल करती है वह पुरुषों के पीछे चलने वाली उसकी परछाई मात्र नहीं है और ना ही डोरमेट हैं जिस पर पुरुष अपने गंदे जूतों को साफ करके घर में प्रवेश करता है। दशकों पूर्व ब्रिजिता बारडोट के आत्महत्या करने के असफल प्रयास पर सिमोन द ब्वू ने लिखा था कि मध्यम वर्ग की महिला जब प्रसाधन के बुर्जुआ प्रसाधनों का उपयोग करने से इनकार करके स्वाभाविक रूप में अपने पूरे शरीर के साथ प्रगट होती है तो पुरुषों के पैरों के नीचे से जमीन सरक जाती है और वे अश्लीलता या बेशर्मी के आरोप लगाते हैं और सेक्स सिम्बल की अफवाहें फैलाते हैं ताकि महिला 'मर्यादा' में रहे और इसी कारण ये मध्यमवर्गीय साहसी महिलाएं खुदकशी का प्रयास करती हैं। अनेक लड़कियों ने आत्महत्या की है और यह सिलसिला मर्लिन मनरो से सिल्क स्मिता तक जारी रहा है। बहरहाल दीपिका पादुकोण ने 'लीला' के चरित्र का अभिनय विश्वसनीयता से करके नया मानदंड स्थापित किया है। फिल्म यूनिट के 200 सदस्यों के सामने बेझिझक इस तरह की भूमिका करना आसान नहीं रहा होगा। यह पात्र हमें मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास कुरु कुरु स्वाहा की 'पहुंचेली' की याद दिलाता है। हमने समाज में पाखंड इस तरह का रचा है कि जिसे पुरुषों के लिए 'अनुभव' कहते हैं, वह नारी के लिए 'शर्म' हो जाती है। दीपिका पादुकोण ने कहा कि वे कभी साहसी या भीरू पात्र के आधार पर कोई फिल्म स्वीकार या अस्वीकार नहीं करती, वह कहानी के समग्र प्रभाव और उससे भावात्मक संबंध की ओर ध्यान देती है। उनके लिए 'ये जवानी है दीवानी' करना आसान था क्योंकि पात्र उनको परिचित सा लगता था। एक घरघुस्सी पढ़ाकू लड़की के अपने केंचुल से बाहर आने की प्रक्रिया थी और नायक कैटेलेटिक एजेन्ट था जो उसके परिवर्तन की प्रक्रिया को तीव्र गति देता है। 'चेन्नई एक्सप्रेस' अलग किस्म की फिल्म थी और उसमें उसे तमिल में अनेक संवाद बोलने थे। अत: प्रारंभ में अजीब सा लगा परन्तु बाद में वह भूमिका में रम गई और शाहरुख खान की आंख के सामने उसने बाजी मार ली। किसी शाहरुख अभिनीत फिल्म में उसे स्पॉटलाइट से धकेल कर बाहर करना आसान काम नहीं था। बहरहाल आज दीपिका अपने सारे विरोधियों से मीलों आगे निकल गई है।

करीना -कटरीना आपसी द्वंद्व में लगी रहीं और दीपिका ने उन्हें पछाड़ दिया। दीपिका ने कहा कि वह सलमान खान के साथ फिल्म करने को उत्सुक हैं परन्तु अभी तक किसी निर्माता ने प्रस्ताव नहीं दिया। 'लीला' के बाद पारम्परिक मूल्यों वाले सूरज बडज़ात्या को कुछ घबराहट हो रही होगी। इम्तियाज अली की अगली फिल्म में दीपिका रणबीर कपूर के साथ आ रही हैं। जाने कब ठंड़े पड़े इश्क की राख के नीचे दबी कोई चिनगारी दहक उठे?