दीवार में खिड़की खोलती शबाना आजमी / जयप्रकाश चौकसे

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दीवार में खिड़की खोलती शबाना आजमी
प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2019


शबाना आज़मी महान शायर कैफी आज़मी की पुत्री और शायर जावेद अख्तर की पत्नी हैं। दो शायरों से रिश्तों के बाद भी उन्होंने शायरी नहीं की परंतु अपने जीवन को ही एक नज़्म और नदी बना दिया, जो सारे कूल-किनारे तोड़कर निरंतर बहती रहती है। जिस देश में नदियां प्रदूषित हो रही हैं, अदृश्य हो रही हैं, उस देश में शबाना ने अपने को वैचारिक प्रदूषण से बचाए रखा है और उनका वजूद वैचारिक किनारों में बंधने वाला नहीं है।

भारत में फिल्मों का कला और व्यावसायिक फिल्मों में लोकप्रिय विभाजन किया गया है, जबकि हक़ीकत यह है कि फिल्में मनोरंजक या उबाऊ होती हैं परंतु हम लोकप्रिय विभाजन के तहत भी देखें तो शबाना आज़मी ने सामाजिक सोद्देश्यता की 'अंकुर' और इसी श्रेणी की फिल्मों में काम किया और व्यावसायिक फिल्मों में भी काम किया है गोयाकि श्याम बेनेगल के निर्देशन में काम किया तो मनमोहन देसाई के साथ भी काम किया और मध्यमार्गीय महेश भट्‌ट के साथ भी काम किया है। शबाना आज़मी ने मुंशी प्रेमचंद की कथा से प्रेरित सत्यजीत राय द्वारा बनाई 'शतरंज के खिलाड़ी' में अभिनय किया साथ ही इस्माइल मर्चेन्ट की 'मुहासिब' में भी अभिनय किया।

सितारे प्राय: वातानुकूलित कमरों में रहते हैं और अपने आइवरी टावर में रहते हुए उस अवाम से दूरी बनाए रखते हैं, जो उनकी फिल्में बार-बार देखकर उन्हें विशेष बनाती हैं परंतु शबाना आज़मी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए एक बार आमरण अनशन पर बैठ गई थीं और व्यवस्था हिल गई थी। उन्हें हड़ताल से उठाने के लिए मंत्री और सितारे भी पहुंचे परंतु वे टस से मस नहीं हुईं तब सरकार ने वह ब्रह्मास्त्र अपनाया जो कभी असफल नहीं होता। व्यवस्था ने उन्हीं लोगों को शबाना के पास भेजा, जिनके हितों की रक्षा के लिए वे उपवास कर रही थीं। उन्होंने शबाना आज़मी को यकीन दिलाया कि उन्हें सरकार के वचन पर भरोसा है कि हालात सुधार जाएंगे। भूख-हड़ताल के कारण उनका वजन कई किलो घटा परंतु मनुष्य के रूप में उनका कद बड़ा हो गया।

उन्होंने विनय शुक्ला की फिल्म 'गॉडमदर' में प्रमुख भूमिका अभिनीत की और इस फिल्म की प्रशंसा हुई साथ ही टिकट खिड़की पर इसने लाभ भी अर्जित किया। उनका पात्र एक संगठित अपराध सरगना था। उनका एकमात्र पुत्र एक कन्या से इकतरफा प्रेम करता है। कन्या उन्हें बताती है कि वह किसी और युवा से प्रेम करती है। 'गॉडमदर' पुत्रमोह को त्याग कर कन्या का विवाह उसके प्रेमी से करा देती है। फिल्म का पहला प्रदर्शन हैदराबाद में आयोजित भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के तहत हुआ। फिल्म देखकर श्याम बेनेगल को सुखद आश्चर्य हुआ कि शबाना इस तरह की भूमिका भी प्रभावोत्पादक ढंग से अभिनीत करती हैं। फिल्म में वे शराब पीती हैं, हुक्का गुड़गुड़ाती हैं और नाची भी हैं। दर्शकदीर्घा से आवाज आई कि वे तो नायक की भूमिका भी कर सकती हैं।

अपने जीवन में भी वे गॉडमदर की तरह नए कलाकारों के लिए अवसर बनाती हैं। 'मासूम' के बनते समय वे शेखर कपूर से परिचित हुईं और बोनी कपूर की 'हम पांच' में वे अभिनय कर चुकी थीं। शबाना आज़मी ने शेखर कपूर और बोनी कपूर की मुलाकात कराई और सलीम-जावेद की लिखी 'मि. इंडिया' का निर्माण हुआ। इसी फिल्म से बोनी कपूर और श्रीदेवी की नज़दीकियां हुईं, जो अंततोगत्वा विवाह में परिणत हुई। गॉडमदर शबाना आज़मी ने मदरहुड को यूं परिभाषित किया कि अपने बच्चों को तो सभी प्रेम करते हैं परंतु दूसरों के बच्चों को प्रेम करना ही सच्चा मदरहुड है।

हमारा मीडिया हमेशा ही फिल्म उद्योग में 'शत्रुता' की ईजाद करता है जैसे दिलीप कुमार बनाम राज कपूर शाहरुख खान बनाम सलमान खान इत्यादि। इसी शैली में उन्होंने शबाना आज़मी बनाम स्मिता पाटिल छाया-युद्ध भी रचा था। दोनों ने ही श्याम बेनेगल की 'मंडी' में काम किया और कभी कोई तनाव नहीं रहा। ज्ञातव्य है कि कैफी आज़मी वामपंथ के दर्शन को यथार्थ जीवन में जीते थे। वह उनके रक्त में घुलमिल गया था। एक मुशायरे में उनकी मुलाकात शौकत से हुई, जो हैदराबाद के खानदानी रईस घर में जन्मी थीं। इश्क का सेतु सारे किनारों के बीच सफर मुमकिन करता है। खानदान की नवाबी अकड़ और रुकावट के बावजूद उनका विवाह हुआ और वे लंबे समय तक कम्यून में रहे। शौकत पृथ्वीराज कपूर के नाटकों में अभिनय करती रहीं। शौकत आज़मी अपनी नन्ही पुत्री शबाना को साथ लेकर नाटक के मंचन के लिए पहुंचतीं थीं, इसलिए पृथ्वीराज कपूर ने नन्ही शबाना के लिए एक आया का प्रबंध किया था। शौकत आज़मी अपने किरदार निभातीं और अपने एग्ज़िट पर परदे के पीछे जाकर शबाना को दूध पिलाती थीं। इस तरह शबाना आज़मी की नसों में मां के दूध के साथ ही प्रतिभा भी प्रवाहमान रही है। आज यह लोकप्रिय चर्चा है कि वामपंथ का अंत हो गया है परंतु सच्चाई यह है कि वामपंथ के आदर्श आज भी हमारे बीच विद्यमान हैं जैसे शबाना के रूप में हम उन्हें पाते हैं। आज इंदौर में शबाना आज़मी कुंती माथुर पुरस्कार से सम्मानित की जाएंगी।