देवयानी / भाग-6 / पुष्पा सक्सेना

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“देख लिया, तुमने ही इसे पढ़ने की इजाज़त दी। आज ये जो कुछ भी है, उसके लिए तुम्हारा एहसान मानने की जगह, उल्टे जवाब दे रही है। चलो, हम चलते हैं।” सरस्वती क्रुद्ध थी।

“क्षमा करें, माँ। पापा जी और आप हमेशा हमारे पूज्य रहेंगे। पापा जी, आपने हमारी जो सहायता की उसके लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ। अगर हम कभी आपके काम आ सकें तो प्रसन्नता होगी। बड़े विनम्र स्वर में कल्याणी ने अपनी बात कह दी।

“रहने दो, भगवान न करें हमे कभी तुम्हारी ज़रूरत पड़े। तुम्हारी औकात ही क्या है ? चलिए जी, चलें। मै तो पहले ही यहाँ नहीं आना चाहती थी।” सरस्वती का आक्रोश शब्दों में फूट पड़ा।

“चुप रहो, सरस्वती। इसी अभिमान की वजह से हमने बेटा खोया घर आई बहू और बेटी का निरादर किया। अब और एक शब्द भी मत कहना। हमे माफ़ करना, बहू। देवयानी को देखने की साध थी, उसे हमारा आशीर्वाद देना।” स्नेह विगलित कंठ से आशीर्वाद दे, कमलकांत चले गए।

कॉलेज से वापस लौटी देवयानी से कल्याणी ने सास-ससुर के आगमन की बात बताई। देवयानी को निर्णय लेने में देर नहीं लगी।

“तुमने ठीक किया माँ। वो घर कभी हमारा था ही नहीं। एक-एक पल हमने अपमान के साथ जिया। हाँ, बाबा के मन में ज़रूर कभी हमारे लिए दया उमड़ती थी, पर घर के बाकी सदस्य हमें सिर्फ नफ़रत की नज़रों से देखते रहे। ऐसे खून के रिश्तों के मुकाबले, महिमा मौसी के साथ रिश्ते को मैं ज़्यादा बड़ा मानती हूँ। माँ।”

“ठीक कहती है, देवयानी। तूने मेरे मन का भार हल्का कर दिया। चल हाथ-मुँह धोकर कुछ खाले।"

“तुम्हारी पढ़ाई का क्या हाल है, माँ ? जानती हो एक साल बाद मैं पूरी डाक्टर बन जाऊँगी। मेरे साथ तुम्हें भी एम.ए. कर लेना है।

“घबरा नहीं, तुझसे पीछे नहीं रहूँगी।” सहास्य कल्याणी ने कहा।

रोहित मेडिसिन की पढ़ाई पूरी कर, डॉक्टर बन चुका था। न जाने क्यों पिता के नर्सिंग होम में काम करने की जगह, वह अपने ही मेडिकल कॉलेज में रेसीडेंस की तरह जॉब करने लगा। देवयानी पूछ बैठी-

“क्या बात है, रोहित, अपने पापा की शानदार नर्सिंग होम छोड़कर तुम यहाँ जॉब कर रहे हो ? कहीं अपने पापा से लड़ाई तो नहीं कर डाली, देवयानी ने परिहास किया।

“सच कहूँ, तो इस कॉलेज में मुझे जो अनमोल रत्न मिला है, उसे छोड़कर स्वर्ग जाना भी संभव नहीं है, देवयानी। वैसे मैं क्या लड़ाका इंसान लगता हूँ, जो अपने पापा से भिड़ जाऊँगा। रोहित हँस रहा था।

“अरे, इस जगह तुम्हें कोई रत्न मिल गया। कमाल की बात है, कहाँ है वो रत्न ?” देवयानी हँस रही थी।

“वो रत्न तुम हो, देवयानी। कभी सोचा नहीं था यहाँ तुम जैसा हीरा मिल सकेगा।”

क्या ? मुझ जैसी मामूली लड़की को तुम हीरा कह रहे हो, रोहित ?”

“तुम नहीं जानतीं, तुम क्या हो, देवयानी। सच्चाई तो ये है, मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूँ। लगता है, तुमसे एक पल अलग रहना भी भारी पड़ेगा। बस इसीलिए यहाँ जॉब ले लिया है। आई लव यू, देवयानी।”

“नहीं, रोहित। ऐसा मत कहो, हमें डर लगता है।” देवयानी जैसे घबरा-सी गईं

“किससे डरती हो, देवयानी ? मुझसे या मेरे प्यार से ? सच कहो, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करतीं, देवयानी ?” रोहित की सवालिया निगाहें, देवयानी के चेहरे पर गड़ी थीं।

“हमे कुछ नहीं पता, रोहित। प्लीज़ ऐसी बातें मत करो हमारी ज़िंदगी का मकसद प्यार या शादी नहीं है।”

“तुम्हारा मकसद ही मेरा मक़सद होगा। तुम्हारे रास्ते में कभी बाधा नहीं बनूँगा, ये मेरा वादा है।” रोहित गंभीर था।

“ऐसा नहीं हो सकता। अपनी वजह से तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकते, रोहित। तुम शानो-शौकत की दुनिया में पले-बढ़े हो। मैंने कांटों का रास्ता तय किया है। उस रास्ते पर तुम नहीं चल सकोगे, रोहित।

“आज़मा कर देखो, देवयानी। तुम्हारे साथ कांटे भी फूल बन जाएँगे।”

“ये बातें सच नहीं होती, रोहित। जिंदगी की कड़वाहट प्यार-व्यार भुला देती है।”

“कुछ भी कहो, मैंने तय कर लोया है, तुम्हारे सिवा किसी और लड़की से न शादी करूँगा न प्यार। तुम्हीं मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी लड़की हो और हमेशा रहोगी। सोचकर जवाब देना, देवयानी।” देवयानी को कुछ कहने का मौका दिए बिना, रोहित तेज़ कदमों से चला गया।

घर आई देवयानी को सोच में डूबा देख, कल्याणी ने प्यार से वजह जाननी चाही। बिना कुछ छिपाए देवयानी ने रोहित के प्रस्ताव के बारे में सब कुछ बता दिया। कल्याणी को अपना अतीत याद हो आया। अमर के प्रस्ताव को भी वह आसानी से कहाँ स्वीकार कर पाई थी। आज कल्याणी को साफ़ नज़र आ रहा था, रोहित और अमर में कितना साम्य है। शायद इसी वजह से रोहित के साथ देवयानी को घूमने-फिरने की छूट उसने दे रखी थी। अमर की तरह ही रोहित, देवयानी से सच्चा प्यार करता है। बेटी के माथे पर आई लटें प्यार से सहलाती कल्याणी ने कहा-

“सच्चा प्यार किस्मत से ही मिलता है, देवयानी। अगर इस प्यार को ठुकरा दिया जाए तो शायद ज़िंदगी भर पछताना पड़ सकता है।”

“नहीं, माँ अभी मैं शादी या किसी भी दूसरे बंधन के लिए तैयार नहीं हूँ। इंटर्नशिप खत्म करके मैं पापा के गाँव जाऊँगी। पापा का अधूरा सपना मुझे ही पूरा करना है। अब आगे कभी इस बारे में बात मत करना।”

बेटी के दृढ़ चेहरे को देख, कल्याणी की और कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई।

कल्याणी का एम.ए. का रिज़ल्ट और देवयानी की एम.बी.बी.एस. की डिग्री एक साथ ही मिलीं। कल्याणी ने एम.ए. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी और देवयानी ने पूरे कॉलेज मे टॉप किया था। देवयानी के प्रोफ़ेसर डा0 राघव ने कहा था-

“मै चाहता हूँ तुम रिसर्च-वर्क करके, कोई नई खोज करो। तुम जैसी जहीन लड़की साधारण डॉक्टर भर बनकर रह जाए, ये ठीक बात नहीं है।”

“थैंक्स, सर। मेरी जरूरत एक ऐसे गाँव में है, जहाँ बरसों से मेरा इंतज़ार किया जा रहा है। मुझे माफ करें, पर मैं वचनबद्ध हूँ।”

घर पहुचने पर कल्याणी ने देवयानी को एक और खुशख़बरी दी। कल्याणी के कार्यालय में निर्देशक के रिक्त पद पर कल्याणी की नियुक्ति की गई थी। माँ का चमकंता चेहरा देख, देवयानी का मन संतोष से भर उठा-

“ओह, माँ। आज तुमने पापा के सपने साकार कर दिए। अब तो जिंद़गी तुम्हारी मुट्ठी में है। मुझे तुम पर गर्व है, माँ।”

“गर्व तो मुझे भी अपनी बेटी पर है। मेरा सच्चा गौरव तो तू, मेरी बेटी देवयानी हैं”

“माँ, मैंने गाँव में चौधरी जी को चिट्ठी भेजी है। उन्हें लिखा है, मै गाँव पहुँच रही हूँ। हमारा घर ठीक करा दें।”

“तू क्या अकेली वहां रह सकेगी, देवयानी ? मैं भी तेरे साथ चलूँगी। मै यहाँ की नौकरी छोड़ दूँगी।”

“ना बाबा, ऐसा ग़जब मत करना। तुम्हारे चले जाने के बाद, तुम्हारे चेतना-केन्द्र का क्या होगा ? सुना है जल्दी ही गाँव में औरतें अपना बैंक खोलना चाह रही हैं।”

“हाँ, देवयानी। जब से पारो और ज़मीला चाची पंचायत में आई हैं, चेतना केंद्र’ दिन-ब-दिन तरक्की ही करता जा रहा है। पारो इस साल मेट्रिक की तैयारी कर रही है। चंदन की मदद से पारो अपने काम आसानी से पूरे कर लेती है।”

“चंदन बहुत समझदार युवक है। काश् गाँव के और पुरूष भी उसकी तरह समझदार होते।”

“वैसे गाँव के कई नौजवानों के सोच में बदलाव आया है। प्रधान जी का बेटा भी चेतना केंद्र की तरक्की में साथ दे रहा है।”

“ये तो अच्दी बात है, माँ। अब मुझे जाने की तैयारी करनी है।”

“समझ में नहीं आता, तेरे बिना कैसे जी सँकूगी?” कल्याणी उदास थी।

“तुम अकेली कहाँ हो, माँ। यहाँ तो महिमा मौसी और चेतना का भरा-पुरा परिवार तुम्हारे साथ है। अकेले तो हम अपने बाबा के घर में थे।”

“उन बातों को भूल जा, देवयानी। गाँव में चौधरी काका की उम्र हो गई है, पर उनके साथ तेरे पापा को प्यार करने वाले और लोग तेरा ख़्याल रखेंगे, इसी बात का संतोष है।” कल्याणी ने गहरी साँस ली।

“हाँ माँ, ठीक कह रही हो। चौधरी काका ही क्यों, गाँव में पापा को प्यार करने वाले कम तो नहीं हैं। जो पापा को प्यार करते थे, वो क्या उनकी बेटी को प्यार करेगे। मेरी सहेलियाँ भी तो गाँव में होगी। रमा काकी, सुगना बुआ सब हमें कितना प्यार करती थीं।” देवयानी पुरानी मीठी यादों में खो गई।

“अरें, अपने गोपाल भइया को भूल ही गई। तुझे पीठ पर बैठाकर, गाँव भर का चक्कर लगाता था।”

“उन्हें कैसे भूल सकती हूँ। पापा के सबसे बुद्धिमान छात्र थे। अब न जाने वो कहाँ होंगे।”

“हाँ, देवयानी। गाँव छोड़े अरसा हो गया। न जाने कौन कहाँ होगा।”

“घबराओं नहीं, माँ। मै नए रिश्ते जल्दी ही कायम कर सकती हूँ।”

“और पुराने रिश्तों को तोड़ भी आसानी से देती हो। क्यों ठीक कहा न, देवयानी।” खुले दरवाज़े से अंदर आए रोहित ने कटु स्वर में कहा।

“अरे, रोहित, तुम कब आए ?”

“तब ही, जब तुम नए रिश्ते कायम कर रही थीं।”

“सॉरी, रोहित। मेरा वो मतलब नहीं था।”

“तुम्हारा जो भी मतलब हो, मैं समझना नहीं चाहता। बस इतना बता दो नए रिश्ते बनाने कब जा रही हो। कम से कम तुम्हें जाते वक्त अपनी शुभकामनाएँ तो दे सकूं।”

" चौधरी काका की चिट्ठी आते ही ख़बर करूंगी, रोहित और प्लीज़ इतने कड़वे मत बनो। हम अच्छे दोस्त थे और हमेशा अच्छे दोस्त बने रहेंगे।”

“इस कृपा के लिए एक बार फिर शुक्रिया। अब चलता हूँ।”

अरे, बेटा, जब आए हो तो खाना खाकर जाओ” कल्याणी जैसे सोते से जागी।

“नहीं, माँ, भूख नहीं है।” रोहित तेज़ी से चला गया। कल्याणी उदास हो गई।

“देख रही है, देवयानी, तेरे जाने की बात सुनकर रोहित का मुँह कैसा सूख गया है। खिले-खिले चेहरे पर काली बदली छा गई है। तू शादी के बाद भी तो अपना काम कर सकती है?”

“ओह, माँ। फिर वही पुराना राग मत अलापो। जाते वक्त मेरा मूड तो मत ख़राब करो।”

देवयानी गाँव जाने को तैयार थी। कल्याणी ने मंगल-तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया। देवयानी के लाख मना करने के बावजूद रोहित उसे गाँव तक छोड़ने, अपनी कार ले आया था। रास्ते भर रोहित चुप बैठा, ड्राइव करता रहा। गाँव में प्रविष्ट होते ही देवयानी चहक उठी-

“वो देखो रोहित, उस कुंएँ पर हम पापा के साथ पानी खींचकर, मुँह धोते थे। ये हैंड पंप पापा ने लगवाया था। इस खेत के गन्ने हम खुद उखाड़कर खाते थे। इस आम और सामने वाले अमरूद के फल तो हमने किसी और को खाने ही नहीं दिए।”

बरसात की हरियाली चारों ओर बिखरी पड़ी थी। ठंडी-ठंडी हवा ने रोहित का मूड ठीक कर दिया। बच्चों-सी उत्साहित देवयानी की ओर देख, वह हल्के से मुस्करा दिया।

“थैंक्स गॉड। तुम्हारे चेहरे पर हँसी तो आई।” देवयानी खुश थी।

अपने घर के सामने पहुँच देवयानी कुछ देर के लिए अपने को भूल-सी गई। जीवन के ग्यारह वर्ष उसने उसी घर में बिताए थे। आज भी दीवारों पर माँ के बनाए चित्र धूमिल होकर भी देवयानी की स्मृति में चमक रहे थे।

कार रूकते ही लाठी टेकते चौधरी काका के साथ पूरा गाँव उमड़ पड़ा। चौधरी काका के पाँव छूती देवयानी की आंखें भर आईं। सुगना बुआ, रमा, काकी, देवयानी को सीने से लगा, रो पड़ीं।

“एकदम अपनी माँ जैसा रूप पाया है। हमारी कल्याणी को क्यों नहीं लाई, बिटिया?” आँचल से आंसू पोंछती रमा काकी ने पूछा।

“माँ ठीक हैं। जल्दी ही आप सबसे मिलने आएगी। बुआ शन्नो, बसंती कैसी हैं?”

“अरे उन सबकी शादी हो गई। अपने-अपने घरमें खुश हैं। तुझसे मिलने आ रही होंगी। जमना चाची ने सूचना दी।

“तेरे साथ तेरा दूल्हा है, देवयानी ?” सुगना बुआ ने धीमे से पूछा।

बुआ के धीमे से पूछे गए सवाल ने देवयानी के कान तक लाल कर दिए और रोहित के चेहरे पर शैतान मुस्कान तैर गई।

“नहीं, बुआ। ये हमारे सीनियर डॉक्टर रोहित हैं।” दोनों के लिए हर घर से खाना आया था। सब उन्हें अपना भोजन खिलाने की कोशिश कर रहे थे।

रोहित उनके आतिथ्य से अभिभूत था। देवयानी के लिए घर में सभी ज़रूरी सामान की व्यवस्था कर दी गर्ह थी। पिता की मेज़-कुर्सी की मरम्मत कराकर नया-सा कर दिया गया था।

“अमर बेटे ने हमें जो राह दिखाई, हमने उस पर अमल करने की कोशिश की है, बेटी। अब गाँव में बिजली-पानी की कोई कमी नहीं है। स्कूल में एक तुम्हारी उम्र की मास्टरनी आई है। बहुत अच्छी लड़की है।” गदगद कंठ से चैधरी ने कहा।

“ये तो बहुत अच्छी बात है, काका। मैं जल्दी ही स्कूल जाकर टीचर से मिलूँगी।”

रोहित के वापस जाते वक्त देवयानी अचानक उदास हो आई। लगा, कोई अपना अभिन्न उसे अकेला छोड़कर जा रहा है।

“तुम आते रहोगे न, रोहित ?”

“तुम कहो तो हमेशा के लिए तुम्हारे साथ ही रह जाऊँ।” मुस्कराते रोहित ने कहा।

फिर वही बात ठीक है जाओ, पर माँ की खोज-खबर लेते रहना, प्लीज़।”

“ये भी क्या कहने की बात है ? वो मेरी भी तो माँ हैं” गंभीर रोहित ने कहा।”

“सॉरी गलती हो गई।”

देवयानी ने अपने को काम में पूरी तरह डुबो लिया। सुबह से देर रात तक वह रोगी देखती। घरों में जाकर औरतों को सफ़ाई की शिक्षा देती। सब देवयानी को आशीष देते न थकते। अचानक एक दिन देवयानी के सामने उसकी सहेली सुष्मिता आ खड़ी हुई। देवयानी खुशी से लगभग चीख़ उठी......

“सुषी तू यहाँ ?”

“हाँ, देवयानी। मैं यहाँ स्कूल में टीचर हूं।”

“ठीक कहा जाता है, दुनिया बहुत छोटी है। मैं तो तुझे खो ही चुकी थी। एक बात बता, तू इस गाँव में क्यों आई ?”देवयानी विस्मित थी।

“लम्बी कहानी है, देवयानी। इतवार को स्कूल बन्द रहेगा। घर आ जाना, वहीं बैठकर बातें करेंगे। हाँ, खाना मेरे साथ ही खाना।”

“ज़रूर, सुषी। अब तो इतवार का इंतजार कर पाना मुश्किल होगा। तुझे देखकर कितनी खुशी हो रही है, बता नहीं सकती।”

“ठीक है, मैं चलती हूँ, तू अपना काम कर।”

इतवार को जल्दी से नहा-धोकर देवयानी सुष्मिता के घर पहुँच गई। सुष्मिता का घर स्कूल कम्पाउण्ड में ही था। खपरैल के दो कमरों वाले घर को सुष्मिता ने सादगी से सजा रखा था। देवयानी को वो घर बहुत अच्छा लगा। घर के काम करने के लिए एक हँसमुख लड़की कमली को देख, देवयानी को पारो याद आ गई।

चाय पीती देवयानी ने अपना सवाल फिर दोहराया, सुष्मिता इस गाँव में क्यों आई। बड़ी गंभीरता से सुष्मिता ने अपनी बात कही-

“मेरे पिता की इस गाँव में डॉक्टर की तरह पहली पोस्टिंग थी। उनके घर एक आदिवासी लड़की महुआ, खाना बनाने आती थी। महुआ के भोलेपन पर पिता रीझ गए और अपनी सीमा तोड़ दोनों एक हो गए।”

बात कहती सुष्मिता चुप हो गई।

“फिर क्या हुआ, सुषी ? क्या तेरे पिता ने महुआ से शादी कर ली ?”

“अगर ऐसा होता तो अपने पिता पर मैं गर्व करती, पर वह तो कायर निकले। महुआ ने जब उनसे अपने माँ बनने की बात बताई तो पिताजी रातों-रात गाँव छोड़कर शहर चले गए।”

“ओह ! फिर महुआ का क्या हुआ, सुषी ?”

“महुआ पिताजी के घर के सामने बैठी, उनका इंतज़ार करती रही। उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। विक्षिप्तावस्था में ही उसने एक बेटी को जन्म दिया। एक दिन महुआ मृत पाई गई और उसकी बच्ची गायब थी।”

“ये तो बड़ी करूण कहानी है, सुषी। तुझे ये सब किसने बताया ?” देवयानी उदास थी।

“पिताजी की मृत्यु के बाद उनकी डायरी मिली। वो भी अपने कृत्य पर शर्मिन्दा थे। तू तो जानती है मेरा कोई भाई नहीं, पिता के अन्याय का प्रायश्चित तो मुझे ही करना है। इस गाँव की लड़कियों में महुआ की बेटी और अपनी बहिन को खोजती हूँ , देवयानी।” सुष्मिता का कंठ भर आया।

“तू डॉक्टर बनकर भी तो यही कर सकती थी, सुषी। तेरे पापा तो तुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे, न ?”

“हाँ, देवयानी। पिताजी को दंड तो नहीं दे सकती थी, पर उनकी इच्छा पूरी न कर, एक तरह से उन्हें दंडित ही तो किया है, देवयानी।”

देवयानी विस्मय से सुष्मिता के दृढ़ चेहरे को देखती रह गई। खाने का स्वाद ही जैसे बिगड़ गया। घर लौटकर देवयानी सोचती रह गई, कहाँ होगी, महुआ की बेटी। न जाने किसके हाथ वो नन्हीं बच्ची पड़ी होगी। अपने पिता पर देवयानी को गर्व हो आया, परिवार से निष्कासन सहकर भी उन्होंने माँ को अपनाया। सुष्मिता के प्रति उसके मन में अभिमान था, पिता की भूल का प्रायश्चित कर वह पुत्र का कर्तव्य निभा रही थी। अचानक एक दिन कल्याणी के साथ रोहित गाँव आ पहुँचा। कल्याणी से लिपट देवयानी रो पड़ी।

“हे, ब्रेव गर्ल। ये आँसू कैसे ? माँ आई है” तो खुशी मनाओं।” रोहित ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा तो देवयानी हँस पड़ी।

“थैंक्स, रोहित। माँ को लाकर तुमने बहुत अच्छा काम किया हैं”

“तो मेरा इनाम मिलेगा?”

“क्या इनाम चाहिए?”

“पहले वादा करों, जो माँगू दोगी।”

चलो, वादा किया, पर ऐसी चीज़ मत माँग बैठना जो दे न सकूं, ये गाँव हैख, समझे।”

“मंजूर। वही माँगूगा, जो तुम-सिर्फ तुम दे सकती हो।”

“ठीक है, माँगकर देखों, जरूरत मिलेगा।”

“मुढे स्वीकार कर लो, देवयानी। मै तुम्हारे बिना अधूरा हूं। तुम इस गाँव को अपनी कर्म-भूमि बनाए रखों, मुझे कोई ऐतराज नहीं है। जब समय मिलेगा, हम मिलते रहेंगे।”

“ये तो तुमने ऐसी चीज़ माँग ली, जिसे मै पहले ही अस्वीकार कर चुकी हूं।”

“अभी तुमने वादा किया है, जो चाहूंगा, मिलेगा। माँ साक्षी हैं, अब तुम वादा नहीं तोड़ सकतीं।”

”रोहित ठीक कह रहा है, देवयानी। मुझे खुशी है, तूने अपनी सेवा से गाँव वालों का दिल जीत लिया है। जिंदगी में और भी दायित्व पूरे करना तेरा फ़र्ज है। रोहित से अच्छा पति नहीं मिल सकेगा।”

“अच्छा ये तुम दोनों की मिली भगत है, इसीलिए रोहित तुम्हें यहां लाया है।”

“जी हां। एक बिगड़ी हुई लड़की को उसकी माँ ही सम्हाल सकती है। ठीक कहा न, माँ?”

कल्याणी की मुस्कान पर देवयानी चिढ़ गई -

“वाह, माँ। कुछ ही दिनों में बेटी को भुलाकर बेटे को अपना बना लिया।”

“अब ये तो बेटे के गुण पर निर्भर करता है। मै एक समझदार, सुलझा हुआ बेटा हूँ।”

“ठीक है, अपने मुंह मियां मिट्ठू। आत्मप्रशंसा से बड़ा दुर्गुण दूसरा नहीं, जानते हो, न?”

“चलो, तुम वादा तोड़कर तो हार ही गईं।”

“नहीं, रोहित। मेरी बेटी वादा कभी नहीं तोड़ सकती। ये गुण इसे अपने पिता से विरासत में मिला है। ठीक कहा न, देवयानी ?”

“माँ, तुम भी अब इमोशनली ब्लैकमेल कर रही हो। मुझे सोचने का वक्त चाहिए। हाँ, कल ज़िला-कलक्टर का गाँव का दौरा है, मुझे अपने स्वास्थ्य-केंद्र को ठीक करना है।”

“वाह ! इस काम में तो मैं भी तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। चलें।”

दूसरे दिन कलक्टर के रूप में जो युवक कार से उतरा, उसका चेहरा देवयानी को बहुत परिचित लगा। नाम सुनते ही देवयानी की स्मृति में गोपाल नाम का वह लड़का कौंध गया जिसकी पीठ पर बैठ, वह घंटों गाँव के चक्कर लगाती थी।

“गोपाल भइया, आप गोपाल भइया हैं, न ? मेरी याद है, मैं देवयानी...... अमरकांत......जी की बेटी।”

“देवयानी......तू इतनी बड़ी हो गई। जब मुझे पता लगा गाँव में देवयानी नाम की डॉक्टर आई है, तब से मन में तुझसे मिलने की इच्छा थी।”

“पापा ठीक कहते थे, आखिर तुम कलक्टर बन ही गए।”

“ये सब उन्हीं का प्रताप है। बचपन से कुछ कर-गुज़रने की इच्छा उन्होंने ही पैदा की थी। माँ कैसी है, देवयानी ?”

“माँ अब एक शक्ति-संपन्न महिला बन गई हैं। आज वो यहाँ आई हुई हैं, मिलोगे ?”

“उनके चरण छुए बिना कैसे जा सकता हूँ। तुम्हारा स्वास्थ्य- केंद्र देखकर बहुत खुशी हुई। जो भी सामान चाहिए, मैं व्यवस्था करा दूँगा। तुम्हारी सहायता के लिए जल्दी ही दो नए डॉक्टर भी आने वाले हैं।”

“ये तो बड़ी अच्छी बात है। गाँव के स्कूल मे मेरी सहेली सुष्मिता टीचर है। उसकी भी मदद कर देना, भइया।”

“तुम सुष्मिता जी को जानती हो ? मै पहले से ही उनकी मदद करता आ रहा हूँ। तुमने देखा नहीं, स्कूल की इमारत और फ़र्नीचर कितना अच्छा है। जब तुम छोटी थीं तो टाट की दरी पर बच्चे बैठते थे।” गोपाल हँस पड़ा।

कल्याणी के पाँव छू गोपाल ने आशीर्वाद पा लिया। पुरानी यादों में काफ़ी रात हो गई। कल्याणी के अनुरोध पर गोपाल ने खाना भी खा लिया। रोहित का परिचय पाकर, गोपाल हल्के से मुस्करा दिया। देवयानी के कान में धीमे से कहा-

“कांग्रेच्युलेशन्स। अच्छी पसंद है।” देवयानी फिर लाल पड़ गई।

कल्याणी और देवयानी से विदा लेते गोपाल ने कार स्कूल की ओर मोड़ दी। सुष्मिता उसे आया देख चौंक गई।

“कहिए, स्कूल कैसा चल रहा है। सुना है शाम को खाली वक्त में आप औरतों को भी पढ़ाती हैं?” मुस्कराते गोपाल ने पूछा।

“जी, वक्त तो काटना ही पड़ता है। अगर कुछ और सुविधाएँ मिल जातीं तो अच्छा होता।” कुछ संकोच से सुष्मिता ने कहा।

“आप हुक्म कीजिए। सब कुछ आ जाएगा। आप जैसी टीचर का होना, गाँव वालों का सौभाग्य है।”

“शुक्रिया। यहाँ के लोगों से जो प्यार और अपनापन मिलता है, वो मेरी भी तो खुशकिस्मती है।”

“आप तो बहुत कुछ डिजर्व करती हैं, सुष्मिता जी। आज चलता हूँ, आता रहूँगा। यहाँ मेरी मुंहबोली बहिन देवयानी, आपकी सहेली है। आपका वक्त उसके साथ अच्छा बीतेगा। बॉय।”

रोहित के साथ शहर लौटती कल्याणी ने देवयानी को अकेले में बहुत समझाया, अब वह सेटल हो चुकी है। स्वास्थ्य-केंद्र में भारी भीड़ के बीच भी देवयानी के चेहरे पर थकान का चिन्ह तक नहीं आता। अब उसे रोहित के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करना चहिए। रोहित को छोड़ना, सबसे बड़ी ग़लती होगी। कल्याणी की बातों में सच्चाई थी। अकेला जीवन काटने में उसके साथ उसकी बेटी देवयानी थी, पर देवयानी के सामने कौन है ?

माँ के चले जाने के बाद देवयानी सोच में पड़ गई। इतने दिनों में वह जान गई थी, रोहित ने उसके दिल पर अधिकार कर लिया था। वह मन ही मन उसे चाहने लगी थी। सुष्मिता के सामने जब उसने अपने मन की बात रखी तो उसने भी कल्याणी की ही बात का समर्थन किया। अगर रोहित को देवयानी के गाँव में रहने पर आपत्ति नहीं तो देवयानी के पास उसका प्रस्ताव ठुकराने का क्या कारण हो सकता है। बड़े संकोच से सुष्मिता ने बताया, गोपाल ने उसके सामने भी विवाह का प्रस्ताव रखा है। वह सुष्मिता से अक्सर मिलता रहा है। देवयानी खुशी से सुष्मिता से लिपट गई। अब वह उसे भाभी कहेगी।

सुष्मिता ने कल्याणी के पास देवयानी की रोहित के साथ विवाह की स्तीकृति भेज दी । ख़त पाते ही रोहित और कल्याणी आ पहुँचे। देवयानी ने गोपाल को भी फ़ोन करके बुला लिया। पूरी बात सुनते ही गोपाल ने एक शर्त रख दी-

“अपनी बहिन की शादी के लिए मेरी एक शर्त है। देवयानी की बारात इसी गाँव में आएगी। ये गाँव देवयानी के पिता की कर्म-भूमि थी और अब देवयानी का भी कर्म-क्षेत्र है।”

“सौ बार मंजूर है, साले साहब। कहिए तो बारात चाँद तक ले जाऊँ।”

“एक शर्त मेरी भी है, गोपाल भइया को हमारी सुष्मिता से शादी करनी होगी।

ये शादी माँ के घर से होगी।” देवयानी ने मुस्कराते हुए गोपाल की मनचाही शर्त रख दी।

“शर्त मंज़ूर की जाती है, पर पहले शादी बहिन की होनी चाहिए वर्ना ननद भाभी में झगड़ा होगा। ननद के ससुराल जाने के के बाद कोई ख़तरा नहीं रह जाएगा।” गोपाल के परिहास पर सब हँस पड़े।

गोपाल के साथ पूरा गाँव देवयानी की शादी की तैयारियों में जुट गया। सात-आठ दिन पहले से रात-रात भर नाच-गाकर, औरतों ने गाँव को गुलज़ार कर दिया। कल्याणी के अनुरोध पर देवयानी के बाबा-दादी और शशिकांत भी विवाह में सम्मिलित होने आ गए। देवयानी का सम्मान देख, उनका हृदय गर्व से फूल उठा। अमर की लोग पूजा करते थे। सरस्वती के मन का मैल दूर हो गया, देवयानी को सीने से लगाकर, वह रो पड़ीं। ये वही लड़की थी, जिसे एक ग्लास दूध को उन्होंने तरसाया था। बाबा-दादी का प्यार पाकर देवयानी की आँखों से भी गंगा-जमना बह निकलीं।

नियत दिन धूम-धड़ाके के साथ रोहित की बारात आई। मेडिकल कॉलेज के बहुत से साथी बारात में भाँगड़ा करते नाच रहे थे। नीता भी शादी में शामिल होने आई थी। गाँव वालों के आतिथ्य ने बारातियों को गदगद कर दिया। देवयानी और रोहित परिणय-सूत्र में बँध गए।

गाँव की परंपरानुरूप उनकी मधु-यामिनी गाँव में ही संपन्न होनी थी। सुष्मिता ने बेले और रजनीगंधा की लड़ियों से कमरा सजाया। गोपाल ने धीमे से पूछा-

“हमारी सुहाग-रात में हमारा कमरा कौन सजाएगा ? अपनी पसंद बता दो, पहले से ही तैयारी करा लूँगा।”

“धत्त्। हम बात नहीं करेंगे।”सुष्मिता लजा गई।

“ज़िंदगी भर साथ रहना है, क्या मौन-व्रत रखोगी।” गोपाल हँसता हुआ चला गया।

सूर्योदय की चिड़ियों की चहचहाहट ने देवयानी और रोहित को जल्दी जगा दिया। दूर कहीं कोयल बोल रही थी। आम्र-मंजरियों से सुवासित हवा उन दोनों को छू गई। आँखें खोल रोहित ने देवयानी को अपने वाहुपाश में जकड़ना चाहा, पर देवयानी छिटक गई-

“तुमने कभी गाँव की भोर देखी है, रोहित। यहाँ का सवेरा कोयल में बोलता है, सुन रहे हो ?”

“मैं तो बस अपनी देवयानी को देख सुन रहा हूँ। इधर मेरे पास आओ।”

“प्लीज़ रोहित, थोड़ी देर को इस खिड़की के पास आ जाओ। तुमने ऐसा सूर्योदय कभी नहीं देखा होगां”

जबरन रोहित को बिस्तर छोड़, उठना पड़ा। पूरब से चमकता लाल सूरज उभरता आ रहा था। गाँव जैसे लाल-सुनहरे रंग में रंग गया था।

“जानते हो राहित, जब मैं छोटी थी, सूरज को मुट्ठी में पकड़ने की ज़िद करती थी, तब पापा कहते थे, अगर अपनी शक्ति और अपने पर विश्वास रखो तो सूरज ज़रूर मुट्ठी में आ जाएगा।”

“पापा की उस बात का मबलब समझती हो, देवयानी। सच, उनका कहना कितना सार्थक था।”

“क्या मतलब था, रोहित ?” भोलेपन से देवयानी ने पूछा।

“उनके कहने का मतलब यही था, अपने विश्वास और मेहनत से अपने लक्ष्य पा लेने का अर्थ, सूरज को मुट्ठी में कैद कर लेना ही तो होता है। आज उनकी देवयानी ने सचमुच सूरज को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया है।”

“तुम कितने अच्छे हो, रोहित। पापा की बात की व्याख्या कितनी अच्छी तरह की है। शायद मैं उनकी बेटी होकर भी उनकी बात नहीं समझ पाई।”

“अरे उनकी बेटी तो स्वयं चमकता सूरज है, जिसका उजाला दूर-दूर तक फैल रहा है।” प्यार से देवयानी की ठोढ़ी उठाकर रोहित ने कहा।

देवयानी ने शर्माकर रोहित के सीने में सिर छिपा लिया। उगते सूर्य की रश्मियाँ कमरे में अनुराग का रंग छिठका गईं।