देश के दामादों / प्रमोद यादव

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भारतीय समाज में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होता है- दामाद... .दामाद के रिश्ते को किसी ने बढ़िया परिभाषित किया है- वह शख्स जिसके सानिध्य में रहने वाले को “दमा” हो जाए. अब अपने घर में तो कोई दामाद, दामाद नहीं होता तो जाहिर है कि ससुराल वाले ही उनके करीबी होंगे. अतः तय है दमा ससुरालियों को ही होगा ... हिन्दुस्तान के चालीस प्रतिशत दामादों का “ रेसिडेंशियल एड्रेस “ ससुराल होता है... ऐसे दामादों को “घरजमाई” कहते है... घरजमाई कहने से लगता है ये घर को “जमाते“ होंगे (जोड़ते होंगे) पर हकीकत ये है कि जमे-जमाये घर को जमाकर (अच्छे से) तोड़ते हैं... एक ने तो दामाद को ऐसे भी परिभाषित किया - यह वह चीज है जो न खाते बने न उगलते...

मध्यमवर्गीय परिवारों में दामाद को भगवान् या वी.वी.आई.पी. जैसा दर्जा दिया जाता है... .इनके मान-सम्मान का हमेशा ध्यान रखा जाता है... इन्हें ससुराल में पुत्रवत मानने का भी चलन है... लेकिन ऐसे दामादों की गिनती नहीं के बराबर है... भगवान् श्रीराम ऐसे ही दामाद थे राजा जनक के... श्रीराम जैसे तो इक्के-दुक्के ही होते हैं... अधिकाँश तो बर्बादी के आंकड़े होते है... प्रेम चोपड़ा और गुलशन ग्रोवर की तरह... ... बेटी की हथेली से मेहंदी उतरी नहीं होती और ये मुखौटा उतार लेते हैं... औकात पर आ जाते हैं... मान-सम्मान में कहीं कोई थोड़ी भी चूक हुई कि ससुराली जलील और अपमानित... .ससुर सब कुछ न्यौछावर कर याचक बन जाता है पर दामाद कभी उसका शुक्रगुजार नहीं होता. उसकी नजर में तो ससुराल वाले दोयम दर्जे के होते हैं... काका हाथरसी ने भी दामादों की दुनिया पर एक कविता लिखी थी- “ jamजम और जमाई “... .गौर फरमाएं—

बड़ा भयंकर जीव है, इस जग में दामाद

सास-ससुर को चूसकर, कर देता बरबाद

कर देता बरबाद,आप कुछ पियो न खाओ

मेहनत करो, कमाओ, इसको देते जाओ

कहें काका कविराय , सासरे पहुंची लाली

भेजो प्रति त्यौहार, मिठाई भर-भर थाली

जामाता की तारीफ़ में आगे कहा है—

कितना भी दे दीजिये,तृप्त न हो यह शख्स

तो फिर यह दामाद है अथवा लेटर-बक्स

अथवा लेटर-बक्स, मुसीबत गले लगा ली

नित्य डालते रहो, किन्तु खाली का खाली

कहें काका कवि,ससुर नरक में सीधा जाता

मृत्यु समय यदि दर्शन दे जाए जामाता

एक अदद दामाद-विशेष पर इन दिनों देश में काफी हो-हल्ला है. उनके “विकास माडल” पर सवाल उठाये जा रहे... .पर सच्चाई ये है कि विवाह के बाद प्रत्येक पुरुष दामाद बनता है... .अतः सवाल करने वाले को पहले खुद अपने भीतर झाँक के(दामादी-आँख से) देखना चाहिए कि क्या ससुरालियों ने उनकी खातिरदारी में कभी कोई कमी की? क्या उसने ससुराल से कोई भेंट या दहेज़ नहीं ली? क्या ससुराल से कोई ”विशेष” सुविधा नहीं ली? हमारे यहाँ तो परम्परा है कि किसी एक घर के दामाद को पूरे गाँव का दामाद मानकर खातिरदारी करने की... वे एक बड़ी पार्टी के दामाद हैं... पार्टी वालों ने उनकी थोड़ी आवभगत कर दी... थोड़ी सी जमीन उसे बेमोल दे दी तो इतनी हाय तौबा क्यों? पाकिस्तान में तो भुट्टो परिवार के दामाद जरदारी को देशवासियों ने राष्ट्रपति बनाकर पूरा देश ही उन्हें दहेज़ में दे दिया था... किसी ने उफ़ तक नहीं की? अल कायदा के संस्थापक ओसामा बिन लादेन ने अपने दामाद सुलेमान अबू को अल कायदा का प्रवक्ता बनाकर उसकी खातिरदारी की... किसी ने विरोध नहीं जताया... अन्य देशों में जब दामादों की इतनी खातिरदारी तो फिर भारत तो भारत है... परम्पराओं का देश... तहजीबों का देश... यहाँ दामादों के साथ यह कैसा रोष? कैसा गुस्सा?

गुस्से से ख्याल आया कि भगवान् शिव बड़े गुस्सैल दामाद थे राजा प्रजापति दक्ष के... दुनिया के सबसे प्रथम दामाद होने का उन्हें गौरव प्राप्त है... राजा दक्ष शिवजी को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं चूकते थे... यज्ञ हो या हवन ... जानबूझकर उन्हें आमंत्रित नहीं करते... हमेशा उसे निरादर भाव से देखते... .कारण केवल यह था कि एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था.यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था. जब राजा दक्ष आये तो सभी खड़े हो गए लेकिन शिवजी नहीं हुए.वे बड़े स्वाभिमानी थे... दक्ष क्रोधित हुए... और यहीं से दामादजी भी हुए गुस्सैल... ... राजा दक्ष को दामाद से ऐसी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी... आखिर में हश्र ये हुआ कि एक दिन गुस्से में उनका तीसरा नेत्र खुल गया और उनके आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया.

शिवजी के बाद भी कई स्वाभिमानी दामाद अवतरित होते रहे... जैसे कालान्तर में भारत में नेहरूजी के दामाद फिरोज गाँधी... उन्होंने ससुर का सिर तो नहीं काटा पर संसद में उनकी काफी चिकोटी काटे... उनकी काफी आलोचना किया करते... शिवजी की तरह इनकी भी ससुर से कभी नहीं बनी... .इसके विपरीत जिन ससुर दामादों की सबसे ज्यादा बनी... वे श्रीराम और राजा जनक थे... आज के युग में भी हर ससुर-दामाद राजा जनक और श्रीराम के जैसे ही बनना चाहते हैं लेकिन अधिकाँश बन जाते हैं दक्ष और शिव जैसे... ... दुनिया में दो ही प्रकार के दामाद होते हैं- पहला-अच्छा दामाद और दूसरा- बुरा दामाद... इनमें भी दो वर्ग होते हैं- एक-पैसे वाला दामाद और दूसरा- कंगला दामाद... वैसे दूसरे प्रकार वाले की ख्वाहिश किसी सास-ससुर को नहीं होती... कंगले दामाद पर एक लतीफा याद आ रहा है--

.रेलवे प्लेटफार्म पर एक व्यक्ति ट्रेन के इन्तजार में बैठा रहता है कि एक स्मार्ट सुन्दर नवयुवक करीब आकर पूछता है- “ महाशय... क्या टाईम हुआ है?” व्यक्ति बड़ी ही बेरुखी से कहता है- “ नहीं मालुम “ नवयुवक पुनः कहता है- “ अरे... आपने घडी पहन रखी है... बताइये न... क्या बजा है? “

‘नहीं बताऊंगा “ व्यक्ति कहता है.

“ क्यों?” नवयुवक पूछता है. तब वह व्यक्ति कहता है- “ अभी टाईम पूछ रहे हो... फिर ट्रेन पूछोगे... कहीं दोनों का ट्रेन एक हुआ तो उसी डिब्बे में तुम भी बैठ जाओगे जिसमें मैं बैठूँगा... फिर तुम मेलजोल बढाने की कोशिश करोगे... हो सकता है जिस स्टेशन में उतरूं , वहीं तुम भी उतर जाओ... फिर कहोगे-चलिए... आपको घर तक छोड़ देता हूँ... घर में मेरी सुन्दर बेटी दरवाजा खोलेगी तो तुम उसे देखोगे और वो तुम्हें... हो सकता है मेरी बेटी तुम्हें देख तुमसे शादी के लिए अड़ जाए... तब क्या मैं ऐसे कंगाल युवक को अपना दामाद बनाउंगा जिसके हाथ में घडी तक नहीं? “

एक जमाने में घडी भी रसूखदारों, अमीरों की निशानी हुआ करती... हर सास-ससुर अपनी बेटी को चाहे कुछ दे - न दे... दामाद को एक अदद “ हेनरी सेंडोज “या “ स्वीटजरलैंड की बेहतरीन घडी टाईटस “ जरुर दिया करते ताकि बेटी उसे देख ससुराल में अपना “टाईम”(समय) ठीक से “पास” कर सके... कंगाल दामाद कोई नहीं चाहता... मजबूरीवश किसी कंगले से बेटी का रिश्ता जोड़ना भी पड़े तो उसे घडी दे मालामाल कर देते... मेरे साथ भी ऐसा हुआ था... वैसे शादी के पहले मैं कंगला नहीं था फिर भी ससुरजी ने बिरादरी में अपनी हैसियत दिखाने मुझे ekएक घडी दी थी... सासुmaaमाँ ने द्वार-चार में मेरी कलाई में कुछ ऐसे बाँधी कि सुहागरात के पहले ही पट्टा टूट गया... और छः-आठ महीने बाद घडी ने भी दम तोड़ दिया ... पर उनकी दी हुई बेटी आज तक चल रही है... शुरू-शुरू के दिनों में बेहद फास्ट चलती थी... फिर कई सालों तक घडी जैसे ही चलने लगी... अब तो शादी को तीस साल बीत गए... इन दिनों काफी लेट चल रही है... .सुबह बेड टी मांगो तो नाश्ते के समय तक मिलती है...

खैर... तो बातें हो रही थी दामादों को भेंट-दहेज़ देने की... आज जिस दामाद की प्रापर्टी पर लोग शक जता रहें, सवाल कर रहे, क्या उन्हें नहीं मालुम कि आज की तारीख में उनके लिए तीन सौ करोड़ के मायने एक घडी से ज्यादा कुछ नहीं? सब वक्त वक्त की बात है... तब घडी पहनाकर दामाद को इज्जत बख्शते थे - अब कारोबार थमाकर बख्शते हैं... इतने बड़े घराने का दामाद है, कोई किराना या परचून का कारोबार तो करेगा नहीं... जाहिर है,ससुराली हैसियत को देखते उसके अनुरूप ही कारोबार करेगा... बड़े लोगों की बड़ी बातें... अब अगर उसने एक का तीन कर लिया ( एक लाख का तीन सौ करोड़ ) तो क्या जुल्म कर लिया? तेजी का ज़माना है... उसे जल्दी रही होगी... सो उसने तीन साल में ही कर लिया... अब कोई इसी काम को तीस साल में करे तो बुद्धिमान किसे कहेंगे? बुद्धिमान तो “तीन साला” ही हुआ न... तो ऐसे बुद्धिमान दामाद पर बेईमानी का आरोप लगाना ही बेमानी है... वैसे भी हमारे संस्कार कहते हैं- दामादों से कोई सवाल नहीं पूछना चाहिए... (सवाल पूछने का एकछत्र अधिकार केवल इनका है )

तो देश भर के प्यारे नौजवान दामादों... .आग्रह है कि इस करोड़ी दामाद का साथ दो... एकजुटता दिखाओ... और सवाल दागने वालों को मात दो... उनके विकास माडल को येन-केन-प्रकारेण उचित बताओ... ... दामाद पर दोषारोपण बंद कराओ... और नारे लगाओ- दामाद एकता- जिंदाबाद...