दो क़ैदी / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

Gadya Kosh से
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मेरे पिता के बाग में दो पिंजरे हैं।

एक में शेर है। पिताजी के गुलाम उसे निनावा के रेगिस्तान से लाए थे।

दूसरे में एक गुमसुम गौरय्या है।

सूर्योदय के समय गौरय्या हर रोज़ शेर से कहती है, "सुबह की नमस्ते मेरे कैदी भाई।"