धंधा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Gadya Kosh से
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बाहर से पुकारने की आवाज़ आई तो श्रीमती अंजना ने दरवाजा खोला .सामने एक युवती खड़ी थी.

गृहणी को देखकर उसकी आँखों में चमक आ गयी .आर्त स्वर में उसने गृहणी से कहा- बहिन जी, कुछ दे दीजिये.

कुछ क्या ? अंजना ने पूछा.

आटा, पैसा, कपड़े, कुछ भी. उसका जवाब था.

अंजना ने एकटक उसकी ओर देखा, फिर बोली- तुम तो जवान हो .काम धंधा कर सकती हो.फिर भीख क्यों मांगती हो? क्या तुम्हें शर्म नहीं आती?

शर्म कैसी बहिन जी, यह तो मेरा धंधा है. युवती ने तपाक से कहा.

अंजना समझ नहीं पायी कि वह क्या कहें और चुपचाप घर में चली गयी.