धरोहर / डॉ. कैलाश मंडेला / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012  

“मां!”

“कांई है रे? कठै घूमतो फिरै फटोळ री जियां। चाल, पढबा बैठ।”

“कांई मां अबारूं तो गयो ई हो पढ'र खेलबा नै।”

“फेरूं ठीक है तो, चुपचाप बैठ जा अठै।”

“नी मां, म्हनै अेक बात हणी है।”

“कांई?”

“म्हनै अेक गैंद चाहिजै।”

“कांई वास्तै चावै थारै गैंद?”

“म्हं खेलस्यूं”

“रोज-रोज गैंद गुमा देवै, अठै कांई दुकान लागरी है जो रोज थारै वास्तै अेक नुंवी गैंद ले आस्यूं, बोल!”

“मां, बस अेक बार और दिलादे, फेरूं कदै नीं मांगूं, म्हारी आछी मां।” दिवाकर आपरी मां रो पल्लो पकड़तो बोल्यो।

“अरऽर...ऊपरां मत चढै, देख नीं रह्यो, म्हं तुरपाई कर री हूं। थारै सूई चुभ जासी।”

“दिरा दे ना मां।” पल्ला नै और जोर सूं खेंचता हुयां ऊ बोल्यो।

“चींठे मत नसरड़ो कठा को, दूरो रह'र बात कर, आज तो थूं घणो ही आड़ो कर रह्यो है।” झिड़कतां हुयां सुमित्रा बोली।

“सगळा टाबर गैंद खेल रह्या है मां, म्ह भी खेलस्यूं।” पग पचाठ'र दिवाकर बोल्यो।

“देख बेटा, स्याणा टाबर गैंद नीं खेलै।” भोळाता हुयां वा बोली।

“तो कांई करै?” रीस खा'र दिवाकर बोल्यो।

“पढाई करै।”

“पढ तो ल्यो न मां! म्हारी इस्कूल री मैडम कैवै क हुस्यार टाबर पढबा रै सागै-सागै खेलै भी है, कांई मैडम भी झूठ बोले? बता।”

“म्हं कहद्यो क नीं खेलणी गैंद, देख जो ज्यादा गैंद खेलै वै बड़ा हो'र अेक दिन ऊ गणेस है न मोटी-मोटी दाढ़ी राखै, वीं री जियां बण जावै। थन्नै पतो है वीं दिन वो अेक आदमी रै..........”

“हां मां, चक्कू मार दियो हो” बीच में ही बात काट'र दिवाकर बोल्यो।

“हां तो बोल, कांई तू भी उस्यो ही बणसी?”

“नहीं मां, पण आज म्हनै गैंद चावै ही चावै, वो आज अेक बात होगी।”

“कांई?”

“ऊ आपणी पड़ोसण राधा मासी रो छोरो है ना 'सोनू', ऊ म्हनै धक्को दे दियो अर कह्यो क म्हं थन्नै म्हारै साथ नीं खिलाऊं।”

“क्यूं नीं खिलासी थन्नै?”

“ऊ कहवै क थारी मां तो दूसरा घरां म बरतन मांजै, झाड़ू पौंछा करै। तू गरीब है। यो गरीब कुण होवै मां?”

सुमित्रा वीं री बात सुण'र सुट्ट होगी। फेर बोली-

“जा, म्हनै पतो कोनी, भाग अठै ऊं। दिमाग ही चाटग्यो म्हारो।”

पर वीं री झिड़की सूं टस सूं मस नीं हो'र दिवाकर बोल्यो- “म्हं भी वीं नै कहद्यो मां क आज ही थारै जसी क जसी गैंद ला'र दिखा देस्यूं। पतो है माई तो या बात सुण'र वो कह्यो कै 'आज जो तू गैंद ले आसी तो तू थारै बाप री असली औलाद होसी।Ó कांई म्हं अपणा बाप री असली औलाद कोनी मां?”

“देख दिव्वू, म्हारी तबियत पैल्यां सूं ही खराब है बेटा, तू जा दूजा छोरां रै सागै खेल ले। म्हां थारै कालै गैंद जरूर ले आस्यूं।”

“पण मां, तू समझै क्यूं नीं, सोनू तो म्हारा सूं आज री शरत लगाई है।”

“अबार म्हारै पास पीस्या कोनी बेटा, कालै थानै जरूर ला देस्यूं, म्हारो राजा बेटो, तू तो आछो लड़को है, ऊ सोनू तो गंदो है जो असी बातां करै। अब जा, म्हनै काम करबा दे।” टाळता हुयां सुमित्रा बोली।

“पर मां ऊ सोनू तो फेरूं नितका ही म्हनै चिड़ासी, ला दो ना मॉ प्लीज।” मनाता हुयां दिवाकर बोल्यो।

“तू समझै क्यूं नीं रे, सात साल को ढींडो होग्यो पण अक्कल नामेक भी नीं आई थारा में। म्हा कहद्यो क पीस्या कोनी तो कांई म्हारा हाडक्या बेच'र लाऊं? यूं ही रीस दिला रह्यो है करमफूटो।”

“पीस्या है मां।”

“कठै है पीस्या बोल? म्हैं कांई घुसाड़ राख्या है?”

“वो ठाकुरजी का आळा में पूजा रा थाळ में अेक रूप्यो पड़्यो है।”

“नीं बेटा, अेक रुप्या में गैंद नीं आवै अर ठाकुरजी को रुप्यो लेबा सूं तोठाकुरजी नाराज हो जावै।”

“मां, थन्नै ठाकुरजी रै नाराज होबा री फिकर है पण म्हारै नाराज होवण री कोनी। म्हैं ऊ रुप्यो लेÓर जास्यूं।” पग पछाटतो ऊ बोल्यो।

“देख दिव्वू, अब थारै झांपड़ पड़ जासी, घणी बार होगी देखतां-देखतां।”

“रुप्यो नीं देसी तो म्हैं यो गिलास फेंक देस्यूं।” पास में पड़ी गिलास नै उठातां ऊ बोल्यो।

“देख कहणो मानजा नीतर इतरो पिटसी क कोई छुड़ाबा वाळो नीं मिलसी।” रीस खा'र सुमित्रा बोली।

“तू मार सकै पण गैंद नीं ला सकै।” या कैवता-कैवता ऊ पूरी ताकत सूं गिलास सामैं चौक म फैंक दी। अबै तो सुमित्रा रो गुस्सो भी सातवैं आकास म चढ़ग्यो। हाथ रो काम नीचै रख'र दिवाकर रो पूंचो पकड़्यो अर जोर सूं अेक झांपड़ मासूम रा गालड़ा पर छेंटाद्यो। ऊ जोर सूं बाको फाड़्यो तो दो चार लपेड़ा और लगाय दिया।

“ले और ले गैंद, बदमास नै कै री हूं क कालै ला देस्यूं पण लातां रा भूत बातां सूं कदै मानै कोनी।” थप्पड़ा अर मुक्कां रै सागै सुमित्रा रा वाक-प्रहार भी तेज होग्या।

“असी औलाद सूं तो भगवान म्हनै बांझड़ राख देतो तोई ठीक हो। व्यांरी जगैं भगवान म्हनै उठा लेतो तो आज ये दन नीं देखणा पड़ता। बोल, और लेसी गैंद.......?” वींनै झिंझोड़ता हुयां वा बोली।

“नीं मां, मारो मती, म्हारै लागै है। अब कदै कोई चीज नीं मांगू।” डरप खायोड़ो दिवाकर गिड़गिड़ा रह्यो हो।

“हूं, गैंद चावै बापड़ा नै, ज्यां थारो बाप सोनां री खान खोद'र मेलग्यो अठै। आज थारी ही गैंद बणा देस्यूं। बेटा-बेटा कैतां म्हारी जबान थाकगी पण बेटो है क म्हारा ही माथा रो उस्ताद। जाणै कोई रईस री औलाद है न जो गैंद खेलसी बापड़ो।” सुमित्रा रो दब्योड़ो आक्रोश ज्वालामुखी री जियां बारै आर्यो हो। अेक और झांपड़ या कैवता वा टाबर रा गालां पर दे मारी।

“नीं मां, अब कदै नीं मांगू, सोनू तो झूंठ्याड़ो है। म्हैं तो म्हारा ही बाप री औलाद रहस्यूं। गैंद सूं बाप रो कंई मेळ?” टाबर रा भोळापण नै देख'र सुमित्रा रो काळजो भर आयो। दिवाकर नै छाती सूं भींच'र रोवण लागी। छोरो चुपचाप अणमणो-सो दूजा कमरा म फरोग्यो।

“देखो हो थां।” आपरा पति री फोटू रै सामै देख सुमित्रा भावुक होगी। जम्योड़ो दरद पाक्या फोड़ा री जियां रिसबा लाग्यो।

“देखो हो थां, आज थारा लाड़ला नै म्ह कितरो मार्यो। ऊ भी रांड अेक मामूली-सी गैंद रै वास्तै। याद है थां कह्या करता हा- “देख सुम्मी, आपणो दिव्वू जदै बड़ो होसी तो ईं रै वास्तै घणा सारा खिलूणा लास्यूं। क्यूंकि म्हारो बाळपणो तो अभावां म बीत्यो पण कम सूं कम खुद री औलाद नै तो अब कोई अभाव नी होबा द्यूं। अर आज थांका वीं बेटा नै अेक गैंद रै वास्तै तरसणो पड़ रह्यो है। कांई करूं म्ह? अतरी मैणत अर कटौतियां रै बाद भी पेट भरबो दोरो होर्यो है। काश! थांकी ठौर भगवान म्हनै उठा लेतो तो कम सूं कम टाबर री परवरिस तो चौखे सूं हो जाती। सांची पूछो तो कदै-कदै घबरा'र जै'र खाबा री सोचूं पण ईं मासूम रै खातर जीणो पड़ै है।” भावां रा आवेग म सुमित्रा बै'ती जारी ही, आंख्यां सूं गंगा जमना बै'री ही। आंसूड़ां नै पूछबा नै ऊंचो हाथ उठायो तो आंगळी म चांदी री अंगूठी जीं पर अंगरेजी रो 'एस' खुद्योड़ो हो, वीं पर सुमित्रा री नजर पड़ी। या अंगूठी वीं रा दिवंगत पति सुधीर री आखिरी सैनाणी ही जो ब्याव री दूजी बरसगांठ पर ऊ दी ही अर वीं ही रात स्कूटर सूं अेक्सीडेन्ट म व्यांरो सरवस लुटग्यो। सासरा अर पी'र म आपणो कैबा नै कोई हो कोनी। दूरदराज रा रिस्तेदार लोकाचार निभा'र फराग्या। छोड़ग्या पाछै अेक लंबी लड़ाई जीं सूं आज तक वा लड़ती आ'री ही। धीरां-धीरां सब बिकग्या। गहणां रै नांव पर या अंगूठी ही बाकी री जो व्यांरी आखिरी याद रै रूप म हमेसा साथ रहवै ही। पुराणी बातां सूं सुमित्रा रो काळजो चीर-चीर हो रह्यो हो। धीरै-धीरै मन नै ज्यांन-त्यांन थ्यावस दे'र तस्वीर रै सामणै सूं ऊठी। मूंडो धो'र मन म कंई सोच'र घर रै बारै निकळी। पाछी बावड़ी तो देख्यो क दिवाकर सूतो हो। वा वींनै जगाती थकी बोली- “दिव्वू, ओ बेटा, उठ, ऊबो हो, देख म्ह थारै वास्तै कांई लाई हूं।”

“नहीं मां, म्ह गैंद नीं लेऊं, म्ह तो आच्छो लड़को हूं। गैंद खेलबा सूं आवारा बण जावै, गणेस री भांत, सोनू झूठ बोलै मां, भगवान नाराज हो जावै। आपां गरीब हां, आपां नै गैंद नीं खेलणी चावै।” टूटती नींद में दिवाकर बरड़ायो। सुमित्रा रो दिल यां बातां नै सुण'र अंतस तक हिलग्यो।

“नहीं बेटा, आंख्यां खोल, देख म्हं थारै वास्तै गैंद ले'र आई हूं। म्हारो बेटो इतरी बड़ी गैंद सूं खेलसी।” छळकती निजरां सूं जगातां व्यांरी नैण-तळायां भरगी।

“कठै सूं ल्याई मां, थारै पास तो पीस्या ही कोनी हा।” जागतां ही गैंद रै हाथ लगा'र दिवाकर पूछ्यो।”ले आई रे, थन्नै रोतो देख'र म्हारा सूं रेहणी कोनी आयो म्हारा लाल! यो थारा पापा रो सुपणो हो क वै थन्नै कोई कमी नीं आवण देवणो चावता हा। तो बता म्हं थनै तड़पतो कयां देख सकूं। म्हारै वास्तै तो जो व्यांरो सुपणो ऊ ही म्हारो भी सुपणो है बेटा! भावुकता म बह'र सुमित्रा कह्यां जा री ही पण यां बातां नै नीं समझ'र दिवाकर फेरूं सवाल कर्यो-

“पर मां, गैंद वास्तै पीस्या कठा सूं लाई?”

“वो कांई है रे, म्हारी अेक अंगूठी ही चांदी री........”

“हां-हां वा ही जींनै आप सदा आंगळी म पैर्यां रैवा हा।”

“हां, वा ही, वीं नै म्ह बैच दी।”

“पण मां, आप तो कहवै हा क वा म्हारा पापा री आखिरी सैनाणी ही जो आपनै घणी बा'ली ही।”

“वा तो निरजीव निसाणी ही बेटा, वीं री जगहां तू सजीव सैनाणी री रक्षा करबो बहौत जरूरी हो म्हारै लिए।” सामणै भींत पर टंक्योड़ी पति री तस्वीर री ओर देख'र बोली-

“बीती यादां रा सुपणा देखतां-देखतां म्हारा आगत री उम्मीदां रा सुपणा नीं टूट जावै। आसा री धूमिल चानणी अंधारा म नीं बदळ जावै म्हारा लाल! थारी या गैंद म्हारा सिंदूर री याद सूं ज्यादा कीमती है। अब तो थारी मुस्कान ही म्हारा जीवन म सिंदूर घोळ सकै।” भर्राया कंठ सूं दिवाकर का कांधा पर हाथ रख'र बोली-

“जा बेटा जा, या गैंद ले जा अर दिखा दे ऊ सोनू अर सगळा दुनिया वाळां नै क थूं आपरै बाप री असली औलाद है। अेक गरीब बाप रा अमीर सुपणां री रक्षक अेक निरधन मां री मूल्यवान धरोहर!”