धूप -छाँव / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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बूढ़े किसान ने मिचमिचाती आंखों से ऊपर देखा। आसपास बिल्कुल साफ था। दूर-दूर तक बादलों का नामोनिशन तक न था।

किसान के चेहरे पर चिन्ता के गहरे लक्षण उभर आए.

"फिर सूखा परैगो का? द्वै बरस पहले पड़ौओ तब बाल-बच्चन कौ पेटु मुश्किल ते भरि पाए. हे भगवान। अब का होइगौ?" बूढ़े किसान की दयनीय बुदबुदाहट।

दूसरी तरफ खण्ड विकास अधिकारी एवं उसकी पत्नी में बात-चीत...

"क्यों जी, अबकी बरसात तो काफी लेट हो गई!" पत्नी।

"हाँ, सूखे के आसार लगते हैं।"

"सच।" अधिकारी की पत्नी ने खुशी से मचलते हुए कहा-" तब तो बड़ा मजा रहेगा। दो साल पहले सूखा पड़ा था, तब तुमने 'सूखा राहत कोष' से लगभग दस हजार झटक लिए थे। हे भगवान! अबकी सूखा पड़ जाए तो मैं रसोई के लिए 'कुकिंग रेंज' ले लूँ।