धूल-मिट्टी से उठा एक सितारा / संतलाल करुण

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लगभग अर्धशती की उम्र तक संघर्ष करते रहने और उसके उपरान्त करीब बारह-तेरह वर्षों तक कलंक-व्यूह में विरोधियों से घिरे, उनका चौतरफा सामना करते नरेंद्र मोदी ने आज शाम भारत के प्रधान मंत्री पद की शपथ ले ली है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्हें जिजीविषा की पराकाष्ठा की सीमा तक विरोधियों को झेलना पड़ा। उत्तरापेक्षियों को वर्षों तक सफाई देनी पड़ी। जाँच संबंधी संस्थाओं तथा न्यायालयों, यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय की दृष्टि में अभ्युक्तता से मुक्त होने के बाद भी उनके विरोधी उन्हें घेरते रहने से कभी बाज नहीं आए। पर आज देश की जनता ने लगभग तीस वर्षों का कीर्तिमान तोड़ते हुए भारी बहुमत से देश की बागडोर उनके हाथों में सौंप दी है।

नरेंद्र मोदी का बचपन एक औसत भारतीय की तरह कम बाधाग्रस्त नहीं रहा। बचपन में उनकी माँ परिवार चलाने के लिए बड़े लोगों के घरों में काम-काज करती थीं। पिता वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय की छोटी-सी दुकान चलाते थे और नरेंद्र ट्रेन आने पर चाय बेचने के लिए पिता का हाथ बँटाते थे। बचपन में ही उनका विवाह कर दिया गया। वे पढ़ने-लिखने की उम्र में उच्च शिक्षा से वंचित रहे और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचार-प्रसार में तन-मन से जुट गए। प्रचारक का कार्य करते हुए व्यक्तिगत प्रयास से दूरस्थ शिक्षा के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978 में स्नातक हए और गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में परास्नातक की परीक्षा 1983 में उत्तीर्ण की। कुछ विशेष करने की धुन और चितन-मनन में घर-गृहस्थी से दूर हो जाना उनके कैशोर्य-युवा-काल की ऐसी विडम्बना रही कि वयस्क-प्राप्ति और पचास वर्ष की दीर्घ अवस्था तक उन्हें कुछ भी बनने से बहुत दूर लेकर चली गई– “करने के सपने बहुत हैं, बनने का सपना एक भी नहीं।”

आसमान के सितारे जन्मते ही प्रदर्शन के लिए देश-दुनिया के सामने खड़े कर दिए जाते हैं। पर धूल-मिट्टी के सितारों की रास्ता नापने और धूल फाँकने में ही तमाम उम्र बीत जाती है। नरेंद्र मोदी देश की इस दुरवस्था के अद्वितीय उदाहरण हैं। वे हार न मानने वाले कठोर जीवट के ऐसे धनी व्यक्तित्व हैं कि देश-भ्रमण, श्रमशीलता, आध्यात्मिक साधना, परिव्राजकता, सामाजिक-राजनीतिक उत्थान के उपक्रम साधते-साधते अपनी उम्र का गुमनाम पचासा पार कर जाते है, किन्तु कुछ करने का सपना नहीं छोड़ते। फलत: उनकी परिव्राजकता 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में तब्दील हो जाती है। किन्तु चार बार मुख्य मंत्री बनने और देश-दुनिया के तीखे सवालों, कानूनी तेवरों, सख्त जाँचों, राजनीति के विषाक्त वातावरण आदि के बीच दुर्द्धर्ष जिजीविषा के साथ यदि नहीं बदला तो उनका धैर्य, संयम, नित्य का योग-प्राणायाम, शुद्ध शाकाहारी जीवन, रात्रि के 1 बजे से 5 बजे तक लगभग चार घंटे के समय को छोड़कर लगभग 18-20 घंटे की अथक नैत्यिक कर्म-यात्रा और राष्ट्र के प्रति समर्पण भावना।

लगभग तीन वर्षों बाद जब उन्होंने अपने से जुड़े ‘टोपी-विवाद’ का ज़वाब ‘आप की अदालत’ में खुलकर दिया, तो न केवल धर्म-मज़हब का दिखावा करने वालों की कलई की पर्त खुली, बल्कि उनके विचारों में ‘सर्व धर्म समभाव’ की अपेक्षित रूप-रेखा भी प्रकट हुई— “मैं मेरी परम्पराओं को लेकर जीता हूँ, हर एक की परम्परा का सम्मान करता हूँ।” इसे स्पष्ट रूप में इस प्रकार भी समझना जरूरी है कि देश-विदेश की किसी भिन्न परम्परा के किसी व्यक्ति को उसकी परम्परा के विपरीत यदि यहाँ का कोई नागरिक कंठी-माला-टीका-गंडा-तावीज़-कलावा-छाप-जनेऊ-सिन्दूर-बिंदी आदि में से कुछ भी धारण करने को कहे और यदि वह व्यक्ति अपनी परम्परा के अनुसार स्वीकार करने में अनिच्छा व्यक्त करे, तो आप क्या करेंगे ? यदि आप के दिखावे में वह शामिल न हो, तो क्या उसे अपनी बात मनवाने के लिए दबाव डालेंगे ? न मानने पर उसके भाई-चारे और सद्भाव पर प्रश्न-चिह्न खड़ा करेंगे ? यदि ऐसा है तो वैश्विक ग्लोबल की इस सदी में आप का यह प्रयोग भारतीय चेतना और सद्भाव पर बहुत भारी पड़ने वाला है। यदि यह प्रयोग आज के भारत के हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई-जैन-बौद्ध-पारसी आदि परस्पर एक दूसरे को तौलने के लिए करेंगे और अपने अंत:करण में नहीं झाँकेंगे तो सच्ची भारतीयता देश में चरितार्थ नहीं होगी।

इधर के वर्षों में बलात्कार की घटनाओं ने देश को झकझोरा है। छोटी-छोटी बच्चियाँ तक कुकर्मियों की बदनीयत का शिकार हुईं। ऐसी घटनाओं को भी देश के नेता अपनी राजनीति की खेती का जरिया बनाने से बाज नहीं आए। इस पर मोदी का दर्द कुछ इस प्रकार प्रकट होता है —“ मान लीजिए आप ही वह बालिका हैं, जिस पर यह जुर्म हुआ है या आप की बेटी है, जिस पर यह जुर्म हुआ है तो आप के मन में कैसे विचार आएँगे।” सर्व धर्म समभाव पर उनका स्पष्ट मत है—“ हमारे देश की सोच है, ईश्वर एक है और उसे प्राप्त करने के रास्ते अलग-अलग हैं और सभी रास्ते ईश्वर के पास ले जाते हैं।” आश्वासन की माँग पर उन्होंने साफ-साफ कहा है— “आप आश्वस्त रहिए, ये जातिवाद का जहर, सम्प्रदाय का जनून भारत की प्रगति को रोकता है और ये हम नहीं होने देंगे।”

इसलिए आज का दिन निश्चित ही मोदी-जैसे महानायक का दिन है। आशा-आशंकाओं के बीच बढ़ते-तपते लौह व्यक्तित्व के राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठापित होने का दिन है। आज जब भारतीय इतिहास के इस अनोखे दिन पर सांध्य वेला में नरेंद मोदी प्रधान मंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तो आकाश के अनेक सितारे मन-ही-मन न जाने क्या-क्या सोचते रहे होंगे, क्योंकि धूल-मिट्टी में जन्मा, पला-बढ़ा और कर्मठता से ऊपर उठा एक अनोखा सितारा जो उनके बीच जगमगा रहा था।