ध्यान के लघु प्रयोग-5 / ओशो

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प्रवचनमाला


विपरीत विचार!

यह एक सुंदर व उपयोगी विधि है। उदाहरण के लिए- यदि आप बहुत असंतुष्ट महसूस कर रहे हैं, तो उसके विपरीत संतोष का मनन करें- संतोष क्या है? एक संतुलन लाएं। अगर आपके मन में क्रोध उठ रहा है, तो करुणा को ले आएं, करुणा के बारे में विचार करें। और, तुरंत आपकी भाव दशा बदलने लगेगी, क्योंकि दोनों एक ही हैं, विपरीत भी वही ऊर्जा है। जैसे ही आप विपरीत भाव-दशा को ले आते हैं, तो वह पहली भव-दशा को पी जाती है, अपने में समाहित कर लेती है।

तो अगर क्रोध हो तो करुणा पर मनन करें। एक काम करें : बुद्ध की एक मूर्ति रख लें, क्योंकि बुद्ध की मूर्ति करुणा की मूर्ति है। जब भी क्रोध उठे, अपने कमरे में चले जाएं, बुद्ध को देखें, बुद्ध की तरह बैठ जाएं और करुणा का भाव करें। अचानक ही आप देखेंगे कि आपके भीतर एक रूपांतरण होने लगा है। क्रोध विलीन होने लगा, उत्तेजना चली गई, करुणा पैदा होने लगी। और यक कोई दूसरी ऊर्जा नहीं है। वही ऊर्जा है- वही क्रोध वाली ऊर्जा- लेकिन इसका गुणधर्म बदल गया, यह ऊपर उठने लगी है।


अद्वैत!

यह बहुत पुराने मंत्रों में से एक है। जब भी आप विभाजित महसूस करें, जब भी आप देखें कि द्वैत आ रहा है, तो भीतर सिर्फ कहें : 'अद्वैत'- लेकिन इसे पूरे होश से कहें, यांत्रिक ढंग से न दोहराएं। जब भी आप महसूस करें कि प्रेम उठ रहा है,

कहें : 'अद्वैत'। नहीं तो पीछे घृणा प्रतीक्षा कर रही है- वे एक ही हैं। जब महसूस करें कि घृणा पैदा हो रही है, कहें : 'अद्वैत'। जब आप महसूस करें कि जीवन पर पकड़ पैदा हो रही है, कहें 'अद्वैत'। जब भी आप मौत का भय महसूस करें, कहें : 'अद्वैत'। एक ही हैं।

यह कहना आपकी अनुभूति होनी चाहिए। यह आपके बोध से, आपकी अंतर्दृष्टिं से आना चाहिए। और अचानक आप अपने भीतर एक शांति अनुभव करेंगे। जिस क्षण आप कहते हैं 'अद्वैत'- यदि आप इसे पूरे बोध से कह रहे हैं, सिर्फ यांत्रिक ढंग से नहीं दोहरा रहे हैं- तो अचानक आप एक प्रकाश से भर उठेंगे।

(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)