नखरे / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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“सुनिए जी!! ये तुम्हारे पापा जी के नखरे अब हमसे नहीं उठाये जाते। रोज के रोज नए क़ानून निकालते रहते हैं, कभी सब्जी में नमक ज्यादा बताते हैं तो कभी मिर्च। जरा सुबह का खाना इनको शाम को खाने को दे दो तो इनके दांतों में दर्द होने लगता है।” मनोहर की बीवी श्यामा आज फिर वही रोज का रोना लेकर बैठ गई।

तभी दूसरे कमरे से उनके बारह वर्षीय बेटे के कुनमुनाने की आवाज़ आई, “क्या मम्मी मैं रोज कहता हूँ कि मुझे दूध में मलाई नहीं पसंद। फिर भी आप छानते हुए ध्यान नहीं देतीं।”

“हाँ बेटा अभी आई, दुबारा छान देती हूँ।”

और मनोहर बच्चे के नखरे उठाने को रसोई की ओर भागती बीवी को देर तक देखता रहा।