नजर / धनन्जय मिश्र

Gadya Kosh से
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परम प्रिय मित्र मोहन!

आय तोरा कत्ते दिनोॅ रोॅ बाद है चिट्ठी लिखी रहलो छियौ। है चिट्ठी पढ़ी केॅ तोहें चैकिहे नय। कैन्हें कि आय इंटर नेटो आरू मोबाईलोॅ रोॅ युगो में कोय भला चिट्ठी लिखै छै की। सच कहै छियो है बात लिखै केॅ कोनोॅ इक्छा नै छैलै। सोचै छेलियै कि है बातोॅ के चर्चा मोबाइलौ पर करी लेबै, मतुर एतना बेसी बात मोबाइल पर कि संभव छै। आरोॅ एखनी तोहे हैदराबादो सें ऐभो नै करभो।

दोस्त, है तहुँ जानै छौ कि आय विज्ञान रोॅ तरह-तरह के प्रयोग है रंग सफल होय रहलो छै कि देख बैया आरू सुन बैया हैरान छै। वांही कहियौव-कहियौव गाँव घरोॅ में है रंग घटना घटी जाय छै जेकरा पर लोग भी सोचल लाॅ मजबुर होय छै।

मोहन तोहेॅ तोॅ जानतै छै कि हमरोॅ घरोॅ सें सटलो बिनोदी भगत रोॅ घोॅर छै। बिनोदी भगत मोटो सोटो सामान्य कद काठी केॅ अक्षर कट्टु मतुर तेज दिमागोॅ केॅ आदमी रहै। बीहा के करीब बारह-तेरह बरसो रोॅ बाद एकटा संतान बेटी रूपोॅ में कत्ते नी इलाजोॅ रोॅ बाद जनम लेने रहै। साँसें घरोॅ के हौ बच्ची 'तनिका' आँखों रोॅ तारा छेलै।

भियनको समय छेलै। सूरज हिमालय पहाड़ नाॅकी उच्चोॅ आकाशो पर सनै-सनै चढ़ी रहलो रहै। बिनोदी भगत हमरोॅ घरोॅ सें लागलो दुआरी पर मन झमान होय के खाड़ो छेलै। हम्में टोकैलियै-"खाड़ो कैन्हे छो बिनोदी भाय, आवो बैठौ नी। मनझमान लागै छौ की होलौ?" बिनोदी भगत र्भरैलो आवाजोॅ में बोललै-"कि कहियौ मास्टर साहेब हमरो बेटी...! आँख भरी ऐलै।" होॅ-होॅ शान्ति सें बोलो नी कि होलौ तोरोॅ बेटी केॅ हम्में कहलियै। "हमरोॅ फूल नाँकी बच्ची कई दिनोॅ से खाली कानतै रहै छै। कांनतें-कांनते होकरो मुंह-कान लाल-लाल होय जाय छै। माय रोॅ दुधोॅ ठीक सें नै पीयै छै। थोड़ों बहुत जों पीतौ छै तॅ होकरौ बोकरी दैय छै।" बिनोदी भगत काॅनी के बोललैय। तोहे काॅनोॅ नै भगत भाय भगवान सब पर छै, हुनि सब कुछ ठीक्के करतै। हम्में साॅत्वना देने छेलियै।

"अच्छा भगत भाय है बोलो-हौ बच्ची कत्ते दिनों के छै आरू कै दिनों से काॅनी रहलो छै?" "आभी ताॅय तॅ हौ बुतरू दसे महिना के छेकै आरू रहि-रहि कॅ सात-आठ दिनों सें कानी रहली छै।" भगत जी बोललो रहै "कोनों डाक्टरी इलाज करने छौ कि नै।" हम्में फेरू पुछैलिये। "होॅ मास्टर साहेब, हम्में बच्ची के इलाजो में कोनों कमी नै राखने छियै। बांका, भागलपुर रोॅ बच्चा विशेषज्ञ डाक्टरोॅ से इलाज करी-करी केॅ थक्की गेलो छियै, मतुर बच्ची के कानबो नै बंद होलोॅ छै। दवाय रोॅ बीचोॅ-बीचोॅ में कखनु लागै छै कि बच्ची ठीक होय रहली छै मतरकि फेरू वहाँ कन्ना रोहट।" भगत जी कारूणिक स्वर में बोललै। "हमरा लागै छै भगत जी बच्ची के शरीरों में कन्हौ दर्द छै। जखनी हौ दर्द कमीं जाय छै, बच्ची तखनी चुप होय जाय छै आरू दर्द बढ़ते ही फेरू बच्ची के कानना शुरू होय छै।" हम्में बोललियै।

"आपने ठीक्के सोचने छियै मास्टर साहेब। कैन्हें कि एक सप्ताह पहिने बच्ची के हेपेटाइटिस बी आरू चेचक रोॅ बचाव लेली दू टा सुई स्वास्थ्य केन्द्रों के दीदी जी ने लगैने रहै। हेकरो जिक्रो भी हम्में शिशु रोग विशेषज्ञ सें करने छेलियै। यै पर डाक्टर बाबु बोललो रहै" कोय बात नय"। अगर कोय बात नै छै तॅ हमरोॅ बेटी रोॅ कानबो खतम कैन्हे नी होय छै।" भगत जी आँख लाल-पीला करी के बोललो छेलै। हमरा तॅ लागै छै मास्टर साहेब आय-काल रोॅ डाक्टर-डाक्टर नै रहि गेलो छै, मतुर भैंसी के जोंक नाॅकी व्यवहार करै छै। रोगी सें सटलो तॅ छोड़तो नै। खाली जाँचे-जाँच। जाँचो में की जाँचै छै हुनिये जानै। तैयो डाइग्नोसिस जीरोॅ। इलाज के नामोॅ पर ढेरी सिनी दवाय दै देलकौ दवाय सुट होलौ तॅ जीवन, नै होलौ तॅ मरण। हुनका रोगी सें की मतलब। " भगत जी रोॅ दर्द साफ झलकी रहलो छेलै।

बेरा चढ़ी के धूप गरमाय रहलो रहै। लागै छेलै कि बैसाखोॅ रोॅ हवा पछिया रूपी रूप धरी केॅ तुफान आय्ये से शुरू होतै। मतरकि भगत जी के हृदय रोॅ ममता रूपी दुःखो के तुफान खतम कबें होतै। है सिनी भाव मनोॅ में जागिये रहलो रहै कि तखनिये भगत जी बोली उठलै-"मास्टर साहेब हमरा आपनो घोॅर जाय के मोॅन नै करै छै।" सुनि रहलो छौ नी हमरोॅ बच्ची रोॅ कानय के आवाज। बातो सच छेलै। बच्ची जोरोॅ-जोरोॅ सें कानी रहली छेलै। आवेॅ मास्टर साहेब हमरोॅ बुद्धि ओझराय गेलो छै, आपन्है है बच्ची लेली कुच्छु सोचिहौ। "

दोस्त मोहन! आवेॅ तोहेॅ है समय में हमरो मनोस्थिति के बारे में सोचैलॅ पारै छौ। हौ बच्ची के जोरोॅ-जोरोॅ से कानवो सुनी के हम्मु दवाब में छेलिहै। हम्मु है समझैल नै पारै छेलियै कि आखिर हौ बच्ची तनिका ऐत्तेॅ जोरोॅ-जोरोॅ से कहिने कानै छै। शाम रोॅ समय छेलै। हम्में भगत जी रोॅ यहाँ जायकेॅ बच्ची केॅ देखलियै। सच्च बच्ची रोॅ दशा देखी केॅ मोन हाहाकार करी उठलै। ऐखनी बच्ची रोॅ कानवो रूकी गेलो छै। मतुर कखनी कानै लागतै है के जानेॅ। बच्ची ठीक होय जइतौ के संात्वना रोॅ बोल बोली के हम्में घोॅर आवी गेलियै।

दूर्गा पूजा रोॅ समय छेलै। चारोॅ ओर माता दूर्गा रोॅ जयगान के साथै सप्तसदी रोॅ पाठ प्रायः हर घरोॅ में होय रहलो रहै। बाताबरण में आनंद घुली रहलो छेलै। मतरकि भगत जी रोॅ घरोॅ मंे उदासी पसरलो रहै। हुनका साथै हमरोॅ मनोॅ में भी बेचैनी छेलै। आय अष्टमी पूजा रहै। पूजा-पाठ करी के आभीं उठले छेलियै कि फेरू हौ बच्ची तनिका के कानै रोॅ आवाज कानोॅ में पढ़तै हम्में दौड़ी के गाँव के काली माय रोॅ भसम मंदिर से लानी केॅ भगत जी के दै के बोललियै कि "भगत जी माता रोॅ भसम के बच्ची के सौसे देहोॅ में लगाय दहु।" है बोली के हम्में घोॅर आवी गेलियै। घोॅर ऐतै हमरो बड़की पतोहु संध्या मिश्र रोॅ मुहो सें हटाठ है बात निकली गेलै कि "पापा जी, लागै छै कि हौ बच्ची केॅ केकरो बुरी नजर लागी गेलो छै। आपने गाँवों केॅ बड़का भगतोॅ केॅ बोलवाय केॅ बच्ची रोॅ माथा में हाथ दिलवाय दियै। बच्ची ठीक होय जैतै।" है सुनथै जेना हमरा लागलै कि हमरोॅ छठी इन्द्रिय जागी गेलो छै। है रंग खुब्बे होय छै मोहन। गाँव घरोॅ के कोनो विधवा के नजर रो पातरोॅ डाइन जोगिन जनानी के टोक गाय माय आरो छोटो कोमल बुतरू केॅ लागी जाय छै आरू हौ समय कोनो दवाय दारू हौ बुरी नजरो रोॅ प्रभाव से काम नै करै छै। मतुर येहो सच छै कि झाड़-फूक में बेसी तॅ दलाली आरू धोखे-बाजीऐ होय छै जेकरा सें हेकरा पर लोगोॅ के विश्वास उठी गेलो छै। मतुर मंत्रा के सता के तॅ विज्ञानोॅ मानै छै। अगर कोय बिरंची साधक मिली जाय तॅ मंत्रा असंभव केॅ संभव बनाय के शक्ति राखै छै।

हम्में दौड़ी के बिनोदी के यहाँ जाय के सब बात बिनोदी जी के कहलियै। है सुनी के बिनोदी जी हमरोॅ हाथ पकड़ी के र्भरैलो आवाजोॅ में बोललै कि "मास्टर साहेब आपनै केन्हौ के हमरो बच्ची के बचाय लाॅ, जीवन भर है उपकार के मानते रहभो। संयोगो से गाँव में दूदिन पहिने कामरू कामाख्या रोॅ सिद्ध भगत चुलाॅय दुर्गा पूजा मनाय लेली ऐलौ रहै। हम्में भगत जी रोॅ यहाँ जाय के हुनका ई काज लेली राजी करलियै। वै पर भगत जी बोललौ रहै-" जय माता कामरू कामाख्या की। आय बड़ा शुभ दिन छै। यही दिनों रोॅ प्रतिक्षा कत्ते योगी महात्मा औघड़ बड़ी बेसबरी से करते रहै छै। आय अष्टमी के निशा राती रोॅ बाद हम्में वहाँ जाय केॅ बच्ची के झाड़ी देवै। माता कामाख्या रोॅ कृपा से बच्ची ठीक होतै है हमरो विश्वास छै। जे अलाय-बलाय बुरी नजर छै सब भागी जैतै। मतुर है अनुष्ठान में कुच्छु सामानों लागै छै। सब समानोॅ के इंतजाम करी केॅ रखबैयो। "

मित्रा मोहन! है अनुष्ठान मंे हम्मु उपस्थित छेलियै। अष्टमी रोॅ निशा रात्राी रोॅ पहर छेलै। निष्तब्ध वातावरण में अनुष्ठान रोॅ सब सामान तैयार छेलै। निशा पहर रोॅ बाद भगत चुलाॅह जी बिनोदी के यहाँ आवी के फरमान देलकै, "बच्ची के माय गोदी में लैकेॅ आखरोॅ गोवर से निपलो चैका पर बैठाबो। साथे बापो बैठतै।" है समय बच्ची के कानवोॅ कुछछ हद तक रूकलो रहै, मतरकि कपसवो नै रूकलोॅ छेलै। आवेॅ भगतो के अनुष्ठान शुरू होलै। सब सामानों रोॅ प्रयोग होतै ही भगत आँख बंद करी केॅ मंतर पढ़ै लागलै। कुछछ देरो रोॅ बाद जबे भगतो रो आँख खुललै तॅ हौ समय हुनको दोनों आँख लाल सिनुरिया आमो नाकि लाल-लाल होय रहलो छेलै जेकरा से डाॅर निकली के डाॅर डरोॅ के डराय रहलो छेलै। दस-पन्द्रह मिनटोॅ रोॅ बाद हम्मी की सभ्भेॅ देखलकै कि जे बच्ची आठ-दस दिनों सें कानते-कानते देह तिरगांय दै छेलै। वहा बच्ची आवेॅ माय रोॅ गोदी में शांति से सुतली रहै। भगत के बोल फुटलै, " है बच्ची एक दुष्ट अतृप्त नजरोॅ के फेरा में बुरी तरह से फसी गेलो छेलै। दुहाय कामरू कामाख्या माता की जिनको कृपा से सब कुछ ठीक होय गेलै। है देखी के हम्मु अचंभित छेलियै। दोसरो दिनों से बिनोदी भगत के घरोॅ में महा बिनोद शुरू छेलै।

मित्रा मोहन, है सुनि के तोहे है नजर के कत्ते अंक देभौ! बतैइयो!

तोरे मित्र-धनन्जय!