नटुआ दयाल, खण्ड-10 / विद्या रानी

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सब्भै लोटी के गामों में जावे लगलय। एकठो बुजुर्ग ने कहलकय कि ठीक कहलो जाय छै कि मारो केॅ डरो स भूत भागै छै। देखलौ नी जेन्हें मार खाय के डर होलय तेन्हैं सबटा बात सकारी गेलय। '

दोसरो आदमी बोललकय, 'अरे इ तेॅ छेवेकरै सब दिनो के नठ्ठिन, हरामजादी, आपनो भतारो के खाय में देरिये नय लगलय, आरू जमाय के बातो पर सतवन्ती बनै छै।'

ढोलन कहलकय, 'अब कुछु नय, अब खाली नटुआ के आवै के देरी छै। ओकरा आनवै आरू इ डैयनी सें सात सौ जमाय के जिलावे के काम करी लेवय। आरू ऐकरो मारी देवय।'

मांगन कहलकय, 'इ रंग सदरी बोली रहलो छौ। कुछ समझो में आवि रहलो छौं। एक कान दू कान तीन कान वियावान होय छै। जेकराकरना छौं करिहो मतरकि बड़बोली नेॅ बोलो।'

सब्भैं कहे लागलय, 'हाँ हाँ ठीकै कहे छौ। पहिने ओकरो जमाय के खोजी के लानो, ओकरा बाद बहुरा पर जोर डालो कि वें अपनो कौल पूरा करे, जैन्हें करले छै ओकरे फलो तेॅ ओकरे भरेला पड़तय इ बोलना छै। कहलो जाय छै जैन्हों करनी तैहनों भरनी।'

यहे रंग बिचारी के तय होलय कि भढ़ौरा गाँव जाय के पहिने बहुरा केरो जमाय के पता लेलो जइतय फिनु केन्हो करी केॅ ओकरा फुसलाय वटराय केॅ गाँवों में ल आनना छै।

यही रंग सोची विचारी के हुनका सिनी भढ़ौरा गाम जाय ला सोचले छेलय आरू ऊ गाँवो में की होलय से तेॅ तोहं सिनी देखवे करलो।

यही रंग घुरपेंच लगी गेलय कि कुछु हुअ नय पारे छेलय। नटुआ के खोजते-खोजते चार बरस बीती गेलय। अमरौतिया के दुःखो के अंत नय छेलय रोज नटुआ केरो खिस्सा कही-कही के काने छेलय। सेानामंती ढाड़स दै छेलय, 'धीर-धीरो अमरो, धीरज धरहु तेॅ उतरहु पारा, नय व्याकुल हुओ.'

गामों के लोग तेॅ सब्भे जमाय के जियावे ला व्याकुल छेलय आरू दुखरन तेॅ जीते जी मरलो रं होय गेलो छेलय सब ठियां असमंजस आरू धकधकावे वाला हिसाब किताब छेलय।

एकरो में आगी में घी तखनी पड़ी गेलय, जखनी दुखरन के गामों के लोग ओकरा कहे लगलय कि नटुआ तेॅ नय अइल्हौं, नय मिलल्हौं से तोहं ओकरो सराध करी दहू कैन्हें कि बिना सराध के मुक्ति नय मिलै छै। इ क्षेत्रा में यहो प्रचलन छेलय जे आदमी कही भागी-वराय गेलो, घुरी के नय अइलो, कहीं मरी-हेराय गेलो तेॅ ओकरो नामों से घास-फूसो के पुतला बनाय के जराय देलो जाय छेलय। आरू सराध करी देलो जाय छेलय। ऐहनो विश्वास छेलय कि सराध नय होतय तेॅ ऊ आदमी प्रेत जोनी में ही रही जैइतय। से गाम वाला सिनी दुखरन के घेरे लगलय कि अब नटुआ के बिसरी जा ओकरे में सबके भलाई छै। आरू एतना ज़रूर करिहो कि ओकरो सराध करी दहू जब तक सराध नय करभौ तब तक ओकरो आत्मा तेॅ बउऐते रहतय। फिनु बेद के बात नय मानला पर तेॅ पाप केरे भागी दुखरन बनी जैइतय।

समझावे वाला केरो भोज खाय के बुद्धि चारो तरफ सें तर्क-वितर्क करी के दुखरन पर जोर डालै छेलय कि तोहं सराध करो, भोज-भात करो आरू भोज-भात के बाद गाँजा आरू भांग केरो इंतजाम भी करौ। इ तेॅ करै ला ही पड़तय नय तेॅ तोरो बेटा तेॅ प्रेत जोनी में भटकवे करतय तहूँ पाप केरो गठरी ढोते रहवो।

कलपी उठलय दुखरन, सोचलकय कैन्हों समाज छै। केकरो हमरो पहाड़ रंग दुख देखाय पड़ी रहलो छै सब्भै पाप पुण्य, वेद पुरानो के चक्कर में छै। केना एतना कठोर बात मुँहों सें निकालै छै जेकरा सुनी के हमरो तेॅ कलेजा उलटे लागे छै। अब की कहिये, केकरा कहिये जैन्हों हिनी सिनी नेॅ ठानी रहलो छै। तऽ लगै छै कि हमरा भोज दिये ला ही पड़तय। गाँव समाजो सें भागी के कहाँ जइवो। मोन कठोर करी के दुखरन पहले नटुआ माय के समझैलकय आरू सराध करै के ठानि लेलकय।

दुखरन नेॅ संउसे गाम भरो में सराध केरो न्योता देलकय। पंडित नौआ गोतिया समाज सब्भै के बोलैलकय। सब्भै केॅ कहलकय कि हमरो बेटा बारह बरसों सें घुरी के नय अइलो छै अब की होलय नय जानी रहलो छी मतरकि सब्भै के विचार होलय कि ओकरो सराध करी देलो जाय यहीं ला सराध होय रहलो छै। तोहं सिनी इ भोज में आवी के हमरा आरू हमरो बेटा के आत्मा के शांति दहू।

भोज-भात के तैयारी होय गेलय। सब्भै खाय बाला सिनी ठीक समयो पर जुटी गेलय। जे लोग सिनी भोज करै ला एतनाय हुरकुच्चा मारि रहलो छेलय हुनके सिनी नटी रहलो छेलय। कोय कहे कि हम्में तेॅ सराधो में नय खाय छी तेॅ कोय कहे कि सखरी अन्न सिझलो भात तेॅ नय खैयभों। कोय अगरावे कोय मगरावे बड़ा विचित्रा बात होय गेलो छेलय। दुखरन आपनो दुख भुलाय के सब्भे के गोड़परिया करी रहलो छेलय। हे बाबू हे भैया कही रहलो छेलय। जेना लगै छेलय कि हुनका सिनी भोज खाय के दुखरन आरू ओकरो बेटा दुनु के मुक्ति दै देतय आरू नय खैयला सें तेॅ मुक्ति नहिये होतय। एतना पैसा कौड़ी रहला के बादो दुखरन केरो हालत एकठो भिखारी रंग होय गेलो छेलय। नटुआ माय अलगे बेहाल। दुखरन केरो बेटी भागोवंती भी ससुराल से अइलो छेलय। ओकरा आपनो माय बाबू के दुःख आरू गांव बाला सिनी के नाटक दुनु समझो में नय आवी रहलो छेलय। एकटा तेॅ बेटा गेलय दोसरो इ झुठ्ठो के सराध में एतनाय खरचा और तेसरो नय खैयवो हाँ खैयवो केरो नाटक। ओकरा तेॅ लगे छेलय जेना कोढ़ में खाज होय गेलो छै। वें ने देखलकय कि गाँव वालासिनी बाबू के पछाड़िये रहलो छै केन्हौं मानो ल नय तैयार छै तेॅ वें ने आपनो बुद्धि लगैलकय। बाहर सें घुरी के घर अइलय आरू हरखित होय के बोललकय कि 'बाबू हो बाबू अखनी हमरो ससुरालो के एकठो आदमी नें आवी के कहलकय कि ओकरा नटुआ सें भेंट होलो छै। हमरे गामों में पक्का इनारा के पास ऊ मिललो छै। हो बाबू तोहें सराध नय करौ हमरो भाय जिन्दा छै।'

इ बात तेॅ जंगलो में आग जुकां पसरी गेलय इ बात सुनतै गाँव वाला सिनी के खैयवो नय खैयबो के कचकचे खत्म होय गेलय। सब्भैं लाजो से अपनो-अपनो घर चल्लो गेलय। गोड़ पड़िया करै के हालत से दुखरन उबरि गेलय, नटुआ माय के भी जीयो मं जी अइलये। ओकरा तेॅ विश्वासे होय गेलय कि सच्चे नटुआ आवी गेलो छै। आरू चलो जो इंतजामो में खरचा होलय तेॅ होलय मतरकि बेटा तेॅ लौटी अइलय।

ऊ तेॅ सब के गेलाके बाद भागोवंती नेॅ बतैलकय कि एतनाय नाटक तेॅ सच्चे-मुच्चे के सराध में नय करै छै। एक तरफो सें जोर कि भोज करो सराध करो आरू दोसरो तरफ नय खैयभो यही ला हम्में जड़े मिटाय देलिये कि हमरो भाय मरवे नय करलो छै जैन्हे इ बात होलय तैन्हें तुर-तेॅ ुर करी के सब्भै केना गेलो।

दुखरन तेॅ बेटी के चालाकी पर अवाक मतरकि भागोवंती बोललकय, 'हमरो भाय जिन्दा छै बाबू कतनोदिन होलो छै मतरकि ऊ मरलो नय छै हमरा विश्वास छै कोसी माय पर कमला माय पर हमरो भाय नय मरलो छै।'

भागोवंती बड़ी लछमी बेटी छेलय ऊ तेॅ बचपने से देवी देवता के खूब पूजा करै छेलय आरू ओकरा आपनो भक्ति पर पूरा विश्वास छेलय। वें ने अपनो माय बाबू के कहलकय, 'हम्में कल माता कमला के थान पर जइबै। वहाँ लीपी पोती के हम माय से निहोरा करवै तोरा सिनी मना नय करिहैं।'

माय बाप की कहतियै, कहै ला कुछु बचलो छेलय की जे कर जेना तोरो भाय लौटी आवो यही समझैलकै।

दोसरा दिन भागोवंती भोरे-भोरे नयका नारियल के झाड़ू लै के कमला माय के थान गेलय। वहाँ बोढ़ि-सोढ़ि के लीपी देलकय ओकरा बाद धूप-धुमना जलाय के पालथी मारी के बैठी गेलय। पहले तेॅ वें मने मन माता कमला के गुहार करलकय। आँखों में झर-झर लोर आरू मुँहों में बोली नय। आँख तेॅ लाल हिंगोर होय गेलो छेलय। ओकरो बड़का-बड़का बाल कंधा आरू छाती पर पसरी गेलो छेलय। पिंडा पर आपनो अँचरा पसारी के गुहार करे लागलय भागोवंती। ऊ आपनो नैहरा के दुखे सें दुखी खूब दुखी छेलय। थोड़ा देरो के बाद ऊ बोले लगलय। हे कमला माय अगर हम्मे जीवन भर तोरो पिंडी धोले छियो आरू अगर तोरा में कुछु सत्त छौं तेॅ हमरा हमरो भाय के दर्शन करवाय दऽ। हे कमला माय अगर तोरा में सत्त छौ तेॅ इ ठो काम करिये द नेॅ तेॅ हम्मे हमरो माय बाप सब्भै छाती पीटी-पीटी के मरी जइवैय। हे कमला माय जब तोहं पूजा पाठ जप तप चाहो छौ तेॅ हमरा माय के पता बतलाय दा, लौटाय दा जों तोहं हमरो बात नय मानभौ तेॅ हे माय मजबूर होय के हम्म तोरा कुइयां में थोपी देभोें। पूजा पाठ सब कुछ नय करभों नेॅ भजन करभों नय धियाने करभों हम्मे यही ढिया बैठी-बैठी के जान दे देभों। हमरो माय बापों के कुलो के नास तेॅ होइवे करतय मतरकि हम्मे तोरा सिनी के पिंडी के भी मिट्टी में मिलाय देभों। तोरो नय रहेला देभों।

हे कमला माय हमरो दाहिना में रहियो। हमरो अरज पूरा करौ। जौं तोहं हमरो मनकामना पूरा करभो माय तेॅ अठवीं के रात तोरा बलि चढ़ैवों, जोड़े पाठा देभों हे माय, काला कबूतर, लाल अंचरा आरू केला के पत्ता पर मिठाय चढ़ैवों। ' एतना बोली-बोली के भागोवंती हकरी-हकरी के काने लगलय। माथा पटकी-पटकी के आपनो माथा लाल करी लेलकय। ओकरा देखी के लगी रहलो छेलय कि आपनो करेजा काटि के माय के पिंडी पर चढ़ाय देतय।

घंटो सुमरला पर कमला माय केरो मोन हिली गेलय हुनी आपनो पांचों बहिनी सिनी सें कहलकय कि की कहे छौ इ भक्तिन केरो भाय खोजी के आनवो? सभै बहिन कहलकय कि हाँ आनवै देखे नय छौ कतना व्याकुल छै इ भक्तिन। '