नटुआ दयाल, खण्ड-15 / विद्या रानी

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मैनमा कहलकय, 'की कहियौं मालिक सगरे देखी लेले छीयै। एकठो नाली तक तेॅ ढेर दिखी रहलो छै। पानी केरो एक्को बूंद नय तेॅ देखाय पड़ी रहलो छै नेॅ चमकी रहलो छै। यहाँ कहीं पनसल्ला भी तेॅ नय छै मालिक।'

नटुआ बड़ी उदास होय गेलय। अबे सब इंतजाम तेॅ करी के अयले छै पानी केना लानतियै आरू पानी नय मिलतय ई तेॅ वें सोचले नय छेलय। वैं-नेॅ े परगट में मैनमा सें बोललकय, ' रे मैनमा हमरो तेॅ किस्मते खराब छौ, जीवन वेकार छै कुछ चीज आसानी सें नय मिले पारे छै। इ गाँव समाज के जेतनाय खुश करे ला चाहे छियै तेॅ अबे पानी के ही झंझट होय रहलो छै। दुनु कमला माय के याद करते-करते कुछु दूर आगू बढ़ी गेलय। थोड़ो दूर गेला के बाद नटुआ देखलकय कि सांझ होय के समय होय गेलो छै। लुक-लुक बेरा डूबलो जाय रहलो छेलय। अंधार

धीरे-धीरे पसरी रहलो छेलय। ऊ अंधारो में बगीचा केरो बीचों में एकठो ठुट्ठो गाछ ठाड़ा छेलय, ओकरा देखते नटुआ केरे मनो में एकठो बात अइलै कि इ ठूँठ पर चढ़ि के ज़रा देखलो कि कहीं कुइया इनारा छै कि नय नहीं तो, रे मैनमा आज तेॅ जात इज्जत कुछुनय बचतौ। गाँव वाला सिनी कहतय कि पानी बिना मारि देलकैय। ओना भी गाँव वाला सिनी तेॅ खिसियैबे करे छै, इ पानी केरो बहाना मिली जइतय तेॅ आरू आग मूततय। आज तेॅ पानी के चलते हमरा सिनी वेइज्जत होय जइवै। '

माता कमला केरो नाम लैके मैनमा ऊ ठूँठ गाछो पर चढ़ी गेलय। सबसे ऊपर जाय के जबे वें देखलकय तेॅ ओकरा एकठो इनारा देखाय पड़लै। ऊ तेॅ खुशी सें उछली गेलय।

कहलकय, 'मालिक एकठो इनारा देखी रहलो छीये। इनारे के जगतो पर दू ठो मौगी बैठलो छौं। दुनु जवान छै माथा उघारि के निश्चित बैठली गप करी रहलो छै। दोनों के बाँह में बाजूवंद छै आरू हाथों में कंगना पिन्हले छै। गल्ला में बड़का ठो हार छै। दुनु आँख नचाय-नेॅ चाय, मुँह घुमाय-घुमाय बतियाय रहलो छै। दुनु एतनाय निश्चित छै कि आँख मुँह के साथे, हाथो खूब नचाय रहलो छै। मालिक लगे छै कि उ दुनु कुंइया पर पानी भरेला अयलो छै। दुनु नेॅ आपनो-आपनो घइला इनारा के जगतो पर राखी देले छै, आरू एक घइला के गल्ला में रस्सी देले छै। दोनो गप करते-करते झिकाझोरी भी करी रहलो छै। हमरा तेॅ लगै छै मालिक कि ऊ दुनु ननद भौजाई छै, दुनु ने नाक पर से सिन्दूर पिन्हले होलो छै आरू एकठो के लुंगा ओकरे खोपा में खोसलो छै आरू दुसरकी के लुंगा ओकरो कंधा पर लहराय रहलो छै।'

नटुआ कहलकय, 'तोहें इनारा देखल्है कि ऊ मौगी सिनी के जे एतनाय विस्तार से बतलाय रहलो छैं। ओकरा सिनी से की काम छै तोरा इ बराती सिनी ला पानिये नेॅ लाना छौ। उतर नीचे, आरू जो दौड़ी के पानी ले आन। वहाँ जाय के पानी पीवियो लीहें, आरू माँगियो लीहें, मतरकि है देखिहैं मैनमा कहीं ऊ छौड़ी सिनी तोरा मोही नय लियौ, होशियार रहिहें।'

मैनमा बोललकय, 'तोहें निश्चित रहो मालिक, हौसिनी कुछु नय होतय हम्में अखनी जाय छिये आरू अखनी आनै छिये पानी। माय कमला सहाय रहतय तेॅ कौन छौंड़ी के मजाल छै कि हमरा मोही लेतय।'

नटुआ बोललकय, 'बड़बोली नय बोल। जो काम कर।'

मैनमा आपनो बाल्टी लै के हुन्ने इनारा के तरफ बढ़े लागलय। बलिहारी कमला माय जपते-जपते ऊ इनारा तक तेॅ पहुँचिये गेलय। वहाँ पहुँची के मैनमा नेॅ मुसकाय के ऊ छौड़ी के देखलकय जे कम उमर के लगी रहलो छेलय, मतरकि ओकरो बियाह होय गेलो छेलय। फिनु कहलकय, ' हे बहिन पियास लागलो छै तनी पानी पिलाय दहू, तोरो बाल बुतरू जीतौं, नहइतो केस नय टूटटों, जिनगी भर तोरो बड़ाई होतों, तनटा हमरा पानी पिलाय द। मैनमा केरो बात सुनी के दुनु छोड़ी लजाय गेलय। इ अनजान मरद बहिन-बहिन कही केॅ पानी मांगे छै।

अबे ओकरा की जबाव दीये, की नय? दुनु अगल बगल ताके लगलय एकठो नेॅ तेॅ हाथ भरी केरो घोघा ओढ़ी लेलकय आरू दुनु हँसी-हँसी के एक दोसरा के ताके लगलय। मैनमा नेॅ घोघा के अंदर झांकि के जखनी कनखी मारलकय तखनी छोटकी छौड़ी तेॅ बौखलाय गेलय। फिनु बड़की ने इशारा करी केॅ बोललकय, ' कुछ जबाव दहू नेॅ हे, एकरा पानी पिलाना छै कि नय पिलाना छै।

तबे हिम्मत करी के छोटकी बोललकय, ' दूर भाग रे छौड़ा निपुतरा, हम्में पानी नय पिलैवौ। आपनो स्वामी के तेॅ हम्में ढेर पानी पिलैले, पूछी ला हौ सामना हमरो भौजाय खड़ी छै से हम्मे केकरो पानी पिलैइलिये छीये।

मैनमा कहलकय, ' कहे तेॅ तोहं ठीके छौ बहिन मतरकि भुखला के अन्न आरू पियासला के पानी पिलावे में कतनाय पुण्य होय छै, इ तोहें जाने छौ? ज्यों तोहें हमरा पानी पिलैइभो तेॅ दिने दिन तोरो वंश बढ़थौं, घरो केरो धन रोजे-रोज दुगुना होय जैइथौं एतनाय सुख मिलथौं कि अँचरा में नय समेट पारभौ।

जै कमला माय ऐतना सुनि के तेॅ छौड़ी दबी गेलय, ऊ आरू कोय नय अमरौतिया आरू सोनामंती छेलय। अमरौतिया के लगलय कि एतना आशीर्वाद दै रहलो छै कि की जानियो ऊ आशीर्वाद फलिये जाय।

वैं-नेॅ े डोल कुइंया में डुबाय के पानी भरे लागलय। पानी भरे में ओकरो कम्मर लची-लची जाय रहलो छेलय। मैनमा के पानी दै के कहलकय, 'हे बटोही डोल भरी पानी छौं, तोहें भरी पेट पानी पीबी ला।'

मैनमा के नै जाने की सुझलै कि उ छौड़ी के परीक्षा लै छेलय कि धीरज देखै छेलय। वें ने मजाके शुरू करी देलकय एक डोल पानी सें मुँह धोलकय दोसरो डोल सें हाथ धोय लेलकय तेसरो डोल से गोड़ पखारलकय। आरू चौथे डोल सें नहाय लेलकय आरू पाँचवा डोलपानी ला फिनी हाथ पसारी के हुकुम देलकय तेॅ अमरौतिया चिढ़ि गेलय। ओकरा एतनाय गुस्सा आवि गेलय कि वैं-नेॅ े डोल उठाय के मैनमा के दै मारलकय।

कहे लगलय अमरौतिया, 'इ पानी पीबी रहलो छैं कि खेल करी रहलो छैं, चार-चार डोल पानी के ऐन्हें हेराय देलकय, आरू पाँचवा डोल भी पानी चाहियो। हुँ हिन्को बापो के लौंडी छिये, भरी-भरी नभैते रहवय निपुत्तरा हरामी केॅ हुँह।'

सोनामंती तेॅ सब देखिये रहलो छेलय, बोललकय, ' हे अमरो नय गुस्सावो, देखो तोहें जे डोल भारी देले छौ इ छौड़ा तेॅ अचेत होय गेलो छौं देखो इनारा पर इ कैन्हों चित्त लेटलो छै।

अमरौतिया बोललकय, 'कुछु नय करले छिये। इ छौड़ा नौटंकी बाज छै, खाली नाटक करी रहलो छै तखनी से, अब नय ठहरवै चलो पानी लै के घर चलै छियै।'

दुनु नेॅ माथो पर घइला राखि के खेते-खेत जाबे लगलय। जइते-जइते सोनामंती ने कहलकय, 'हे अमरो, मतरकि तोरा ऐन्हो नय करना चाहिए छेलय। जे होलय तेॅ होवे करलय चार बाल्टी पानी भरिये देलो, एक बाल्टी ला तोरो धीरज नय रहल्हौं, जे मारि बैठलो? एतनाय पानी सें वैं-नेॅ े जे हाथ गोड़ धोलकय, नहैलकय मतरकि एक्को बूंद पानी ओकरो कंठो के पार नय होलय, आरू ऊ बेचारा अचेत होय गेलय। देखोनी अभियो ताँय अचेते छै। नय उठलो छै छौड़ा।'

अमरौतिया बोललकय, 'हे भौउजी हमरा गोस्सा आवि गेलय आरू अबे तोहें घुरी-घुरी के नय देखो। जौं मरी मराय जइतय तेॅ तुरन्ते गाँव भरी में हंगामा मची जैइतय। जाय ताँय इ सब होतय ताय ताँय हमरा सिनी घर पहुँची जैइबो, चलो झटकी के कहाँ-कहाँ सें पगलवा सिनी आवि के माथो खराब करी दै छै।'

जय माय कमला तोरो महिमा अपरम्पार छौं तोहें हमरा सब पर सहाय होइयो हमरा सब के उद्धार करिहो नटुआ मैनमा के आसरा देखते-देखते जबे थकी गेलय तेॅ सोचलकय कि इ मैनमा कहाँ जाय के रमी गेलो छै। इ पानी आने ला गेलो छै कि इनारा खोदे ला चललो गेलो छै। विचारते-विचारते नटुआ ठुठठो पाकड़ पर चढ़ि के देखे लगलय कि मैनमा कहाँ छै तेॅ वैं-नेॅ े देखलकय कि उ इनारा पर अचेत पड़लो छै आरू वहाँ दोसरो कोय नय छै। ओकरा चार चितांग देखी के नटुआ नेॅ नजर दौड़ैलकै तेॅ देखलकय कि दुनु छौड़ी सिनी लम्बा-लम्बा धाप दै के जाय रहलो छै आरू माथो पर घइला छै। कमला माय के नाम लै के नटुआ नेॅ ऐन्हो वाण मारलकय कि अमरौतिया के घइला क्षंणे में सुक्खी गेलय। अचानक माथो हल्का होलो देखी के अमरौतिया हड़बड़ाय गेलय। भौजी से बोललकय, 'भौजी हे देखो गल्ला भरि पानी भरी के लानल छेलिये इ घइला तेॅ खाली होय गेलो छै, केना सुखी गेलय पानी?'

सोनामंती बोललकय, 'तोहें तेॅ जुलुम करी रहलो छौ हे अमरो। घैइला केना सुखी गेल्हों तोरो माथो की पानी पीये छौं? जे तोरो घैइला सूखी गेल्हों? अजब लीला करै छो तोहें। कहीं ऊ छौड़ा ने जादू करी के तोरो घैइला तेॅ नय सुखाय देलखों?'

अमरौतिया बोललकय, ' अबे जे होलय से होलय भौउजी चलो घुरी के पानी बिना लेले केना जैइवे पानी भरी के लै जैइये। दुनु घुरी के इनारा तेॅ आवि गेलय डोल लैके कुंइया में गिरैलकय मतरकि डोलो म पानी नय आवि रहलो छेलय। ऐन्हों वाण मारले छेलय नटुआं कि घैइला के साथे-साथे कुंइया केरो पानी भी सूखी गेलो छेलय। मैनमा सुतलो-सुतलो सब तमाशा देखी रहलो छेलय।

अमरौतिया बोललकय, 'हे भौजी पानी तेॅ पाताल चल्लो गेलो छै इ डोरी छोटो पड़ी रहलो छै केना पानी भरवय।'

सोनामंती बोललकय, 'अब की देखी रहलो छौ डोरी में अंचरा जोड़ी के पानी भरी ला डोरी बड़ो होय जैइथौं। घरो पर माय आसरा देखी रहलो होतय सोचते होतय कि अमरावती कन्डे चल्लो गेलय।'

मतरकि पानी तेॅ पाताल चल्लो गेलो छेलय अमरौतिया कहतिये तेॅ की कहतियै वैं-नेॅ े डोरी सें अंचरा बांधी के पानी भरै के कोशिश करे लगलय मतरकि पानी मरैतिये की? वैं कहलकय, 'भौजी अंचरा बांधला के बादो पानी तक डोल नय पहुँचलय। लगै छै कि पानी तेॅ पाताले चल्लो गेलो छै। अखनिये नेॅ हमरा सिनी पानी भरले छिये आरू अखनिये एतनाय सूखी गेलय कुंइया की बात होलय भौजी.'

सोनामंती बोललकय, 'हे हमरो ननद अमरो तोहं डोरी में संउसे साड़ी लूंगा बांधी दहू यहाँ देखे वाला कोय नय छौं। आरू एकठो मरद जे छेवे करै तेॅ ऊ तेॅ मुर्दा जुकां सुतलो छै।'

अमरौतिया बोललकय, 'हे भौजी तोहं हमरा आपनो अंचरा से आड़ करी दहू ओना लाज लगी रहलो छै। संउसे लुंगा केना खोलवय। जौ तोहं आढ़करी देभों तेॅ कोय अंचरा उघाड़ि के तेॅ नहिये नी देखतय।'

सोनामंती बोललकय, 'ठीके कहे छौ हम्में तोरा अंचरा के आड़ो में छिपाय लै छियों। तोहें जल्दी-जल्दी पानी भरी ला।'