नटुआ दयाल, खण्ड-16 / विद्या रानी

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अमरौतिया हबर-हबर साड़ी खोली के पानी भरे के कोशिश करै लगलय मतरकि पानी तक डोल नहिये पहुंचलै। ऊ तेॅ परेशान होय गेलय। घबड़ाहट में ओकरा पसीना छूटे लागलय, 'जै कमला माय अबे की करभौं।'

अमरौतिया आरू सोनामंती प्रायः रोजे पानी लै ला आबै छेलय मतरकि आज को रंग तमाशा कहियो नय होलो छेलय। एक तेॅ ओतना बड़का डोरी तहु पर अमरौतिया के साड़ी आरू पानी की पानी तेॅ पताले चल्लो जाय रहलो छेलय। साड़ी खोलला आरू डोर में जोड़ला के बादो जबे डोल पानी तक नय पहुँचे पारलकय तेॅ अमरौतिया ने घबड़ाय के कहलकय, 'हे भौजी तोहें आपनो ठो साड़ी बांधि दहू होय सके छै कि तोरो साड़ी बांधला के बाद डोल पानी के छुवी लेतय।'

सोनामंती अभी लुंगा खोले ला सोच विचार करिये रहलो छेलय कि खोली के ऊ आपनो साड़ी भी डोल केरो रस्सी में बांधि देतय कि तब तक देखे छै कि कन्हूँ सें एकठो मरदाना आवि रहलो छै। अबे तेॅ अमरौतिया लाजो सें लाल होलो जाय रहलो छेलय। ओकरा देखी के भौजी सें कहलकय भौजी जल्दी से जल्दी आपनो साड़ी खोली के दहु नेॅ हौ देखो, ऊ मरदवा चल्लो आवि रहलो छै हम्में केना की करियौं। एक तरफ तेॅ लुंगा खुललो छै। आरू लुंगा खोललो पर पानी तेॅ पताले चललो गेलो छै आरो दोसरो तरफ मरदाना आवि रहलो छै। हम्में कहाँ जाय के नुकाय जैइये हे माय कमला तोही सहाय छौ। तोहीं रक्षा करिहो। अमरौतिया डरो सें गिड़गिड़ाय रहलो छेलय आरू नटुआ नेॅ ऐन्हो उड़ौवा वाण मारलकय कि अमरौतिया केरो लुंगा उड़ी गेलय आरू ऊ साया आरू बिलाउज पिन्हलै वैनठियां ठाड़ि होय गेलय। साड़ी उड़ते ही अमरौतिया जेना कौआ-कौआ होय गेलो छेलय। जहाँ छह गजो के साड़ी लपैटलो-लपैटलो रहे छेलय वहाँ खाली साया ब्लाउज में, दोसरा अनजान मरद के सामने पड़ला के कारण ऊ तेॅ बौखलाइये गेलो छेलय। ओकरा तेॅ लगी रहलो छेलय कि धरती में घुसी जैइये कि आकाशो में उड़ी जैइये।

नटुआ तेॅ दूरे से देखी के पहचानी गेलो छेलय कि इ अमरौतिया छिकै मतरकि वैं-नेॅ जाने ला चाही रहलो छेलय कि अमरौतिया ने ओकरा पहचानलकै कि नय? यही सें ऊ आवि के इनारा के जगतो पर बैठी गेलय। अब तेॅ अमरौतिया लाजो से काठ, 'हे भगवान लुंगो खुललो छै आरू इ पराया मरद कहिनो निर्लज्जा। की रंग इनारा पर आवि के बैठी गेलो छै।'

ऊ दौड़ी के गेलय आरू सोनामंती के छाती से जाय के सट्टी गेलय ओकरो नजर नीचे ही छेलय, ऊपर आँख करी के देखे के ओकरा हिम्मते नय छेलय। भौजी केरो छाती सें सटली-सटली ऊ ठाढ़ी होय गेलै। आबे वैं की करतय? ऊ भौजी केरो छाती में मुंडी घुसाय के ठाढ़ी होय गेलो छेलय। ओकरा लजैतें देखि के नटुआ के तेॅ बड़ा मजा आवि रहलो छेलय। वैं-नेॅ े एक तरफ मैनमा के देखि रहलो छेलय जे अचेत होय के नाटक करी के सुतलो छेलय, आरू दोंसरा ओर अमरौतिया के देखी रहलो छेलय, जे भौजी से सट्टी के आपनो इज्जत झाँपै के कोशिश करी रहलो छेलय। अमरौतिया तेॅ उमिर में छोटी छेलय मतरकि ओकरी भौजाय सोनामंती तेॅ बड़ी सयानी छेलय। वैं-नेॅ े नटुआ के धियानो सें देखलकय तेॅ ओकरा याद आवि गेलय कि अमरौतिया ने कहले छेलै,

'घुंघरालो बाल गोरो रंग लकपक देह लम्बा एतनाय सुन्दर कि देखवे तेॅ देखथैं रही जैइभो।' मने मन सोचलकय कि हुअ नेॅ हुअ इ अमरौतिया केरो पाहुना ही छै। अमरौतिया जे बौला-बौला छेलय ओकरा सें कहलकय, 'कपार नय धुनों अमरो, औला-बौला होय के बात नय छै। धियान सें आँख उठाय के देखौ, हमरा तेॅ लगे छै कि इ तोरे भतार छौं।'

सोनामंती भौजी केरो बात सुनी के अमरौतिया केरो तेॅ आँख डब-डब होय गेलय, बोले लगलय, 'कथी ला सताय रहलो छौ भौजी, हमरो तेॅ कपारे फुटलो छै।' माय नेॅ बच्चे में बिहा करी के बड़ाय लूटी लेलकय कि हमरो बेटी केरो बिहा होय गेलो छै आरू स्वामी जे छोड़ी के गेलो छै से आज तक नय अयलो छै। बारह बरसो के समय होय गेलय, कहियो ससुरालो नय गेलो छियै। हमरो तेॅ जवानी में आग लगी गेलो छै। एही रंग कुढ़ी-कुढ़ी के दिन जाय रहलो छै। हिन्ने हम्में मरी रहलो छी आरू हुन्ने तोहें मजाक करी रहलो छौ। ' बोलते-बोलते अमरौतिया केरो आँखि सें झर-झर लोर गिरे लगलय।

तबे नटुआ आगू आवि के हाथ बढ़ाय के कहलकय, 'हे देवि बड़ी पियास लगलो छै। एक चुल्लु पानी तेॅ दै दहू। एक्को बून्द पानी तेॅ कहूँ नय मिललय, सब्भै जग्घो छानी मारलियै। संउसे संसार तेॅ बेकारे लगी रहलो छै। हमरा साथे ढेरी आदमी छै। हुनकौ सिनी के पानी पिलाना छै। से हमारा कनटा पानी पिलाय दहू।'

अमरौतिया भौजी में सटलो-सटलो आपनो जबानी केॅ छिपाय केॅ खड़ी छेलय। वही सें बोललकय, 'इ जख रंग कपारो पर जे खाड़ा छै जैइवो नय करै छै। हे रे छौड़ा तोरा पानी कहाँ से पिलैइयौ देखी नय रहलो छैं तमाशा। पानिये के चलतें उ ठो छौड़ा अचेत पड़लो छै, हमरो घैइला भी सुखलो छै, तोरा कहाँ से आनी के दीयो पानी।'

नटुआ भी मैनमे रंग बोले लगलय, 'हे बहिन भुखलो के अन्न आरू पियासलो के पानी देला से आदमी के उद्धार होय जाय छै। जौं तोंहे हमरा पानी पिलैवो तेॅ तोहं सात बेटा केरी माय बनी जैइवो, सौ बरस जीवा, आरू तोरो संसार भरी पुरी जैइथौं, हे बहिन प्यासला के पानी पिलाय दहू।'

अमरौतिया के तेॅ तलवा के लहर कपारे पर चढ़ि गेलो छेलय बोलकय, 'गोस्सा नय दिलावें। छौड़ा निपुतरा जो यहाँ से चल्लो जो दूर होय जो। हमरो भतार तेॅ मरी-बोहाय के सरंग चल्लो गेलो छै आरू इ अइलो छै हमरो संसार भरा-पुरा करै ला। भतारो के पते नय आरू हमरो संसार भरते पुरते जी तेॅ करै छै कि तोरो मुँहें में आग लगाय दीयो भागवे कि नय भाग यहाँ सें झुठ्ठे आवि के हमरो करेजा में दबलो दुखो के जगाय रहलो छै मोन कुहकी रहलो छै।'

सोनामंती ने आपनी ननदो के साथे साथ बोले लगलय, 'भागै छैं कि नय रे छौड़ा, देखभैं? हल्ला करी देवौ तेॅ भीड़ आवी जैइतो आरू तोरा तेॅ कुटियाइयै देतौ। निर्लज्जा, लाज नय आवै छौ तोरा छौड़ी यहाँ उधाड़ि-पुधाड़ि बैठलो छै आरू तोहं कठीचरी छांटी रहलो छैं? जो यहाँ सें नय तेॅ चुटटा धिपाय के दागी देबो। माथो खराब नय कर।'

नटुआ बोललकय, 'दागना होथौं तेॅ दागी दीहो, मतरकि पानी तेॅ पिलाय दहूँ एतना देरो सें कैन्हें तरसाय रहलो छौ?'

भौजाय के धमकैलो के बादो भी जब ऊ नय हटलय, तवे अमरौतिया नेॅ तनी के कहलकय हे रे छौड़ा। तोरो नाम की छौ आरू तोहं केकरो बेटा छैं। तोरो गाँव केरो नाम की छौ? तोहें कहाँ जाय रहलो छैं, आरू कहाँ से आवि रहलो छैं। एक दाब हौ मरलका छौड़ा यही रंग पानी मांगे अइलय आरू पानी पीये के बदले नहाबे लगलय ओकरा बाद तोहें अयलो छैं दुनु एक्के रंग बात करी रहलो छैं कि पानी पिलैवो तेॅ इ होतो ऊ होतो आखिर बात की छै रे। इ सुन्नो सपाटा में हमरा सें बतियाय रहलो छैं रे छौड़ा। तोरा तेॅ बड़का पाप लिखतो। देखी नय रहलो छैं कि सुरूज भी डुबलो जाय रहलो छै, तनीये देरी में अंधार होय जैइतय? '

इनारा पर बैठले-बैठले नटुआ बोललकय, ' हमरो नाम नटुकवा छै हम्में भरोड़ा गामो के रहे वाला छीये, आरू हमरो बापो के नाम दुखरन छै। हम्में तेॅ कमला माय के सुमिरन करी के बराती लै के गौना करवावे ला जाय रहलो छीये। अब तेॅ तोहें पानी पिलैवो कि नय पिलैवो, मतरकि आपनो नाम बताय द, देखियो तोरा पानी भी मिली जइथौं। आरू इहो बतैइहो कि है जे तोरा अंचरा से झाँपि के खड़ी छै से के छै?

अमरौतिया ने कहलकय, 'हमरो नाम अमरौतिया छै आरो इ सोनामंती हमरो भौउजी छिकै। हम्में तेॅ आपनो नाम बताय देलिहों अब तोहंें तनटा हुंडे जा तेॅ हम्में साड़ी पिन्ही लेवै आरू पानी तेॅ पताले चललो गेलो छै तोरा पानी केना करी के पिलैवौं।'

कमला माय केरो किरपा अमरौतिया के नाम बतैते नटुआ नेॅ ऐन्हों उमकौआ बान मारलकय कि कुंइया में पानी भरी गेलय। अमरौतिया केरो बदनो पर लुंगा आवि गेलय, लुंगा पिन्ही के घोघो तानी के अमरौतिया कपसे लगलय, नटुआ केरो नाम सुनथैं ओकरो करेजा फाटै लगलय कि नटुआ तेॅ आवि गेलय। एतना दिनो के वियोगो के दुःख आँखि के रास्ता सें बहि-बहि केॅ सामने आवे लगलय। सोनामंती भी लोर पोछे लगलय। नटुआ तेॅ ठक्क रही गेलय।

सोनामंती बोललकय, 'हे पहुना तोरो नाम जपते-जपते तेॅ एकरो दिन जाय छै, तोहें एतना निरमोही कैन्हें होय गेलो छौ। हमरी ननद तेॅ सूखी के कांटा होय गेली छै, एकरो मुँह नय देखलो जाय छै, एतना-एतना दिन कोय नेह लगाय के भुलै छै पहुना? देखो तेॅ एकरो हालत!'

अमरौतिया अबे जानी गेलो छेलय कि इ नटुआ ही छै जेकरा से ओकरो बिहा होलो छै। वैं ने कहलकय, ' हमरा कुमरपत मिटाय के केना चल्लो गेल्हौ आरू आज बारह बरीस के बाद मग टूटलो छौं। एतना निरदय छै।