नयकी काकी / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Gadya Kosh से
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माघी पूणिर्मा के दिन, सांझ तक गौना करी केॅ गोपी बिदा होलै। घोॅर सेॅ ससुरार मोटा-मोटी दू बहियार दूर होतै। टोला-टाटी के बरियाती सब चिटराही छिमरी खैनें अन्हरूखोॅ ताँय घोॅर आबी गेेलै। सरंग के घाटा कखनूं-कखनूं चन्दरमॉ कैॅ छेकी लै। गोपी के बहनोय कनियांन केॅ साथें बैल गाड़ी रपेटनें पहँुची चुकलोॅ रहै। देखतेॅ-देखतेॅ चनरमा घटा में समाय गेलै। इनोरिया रात एकदम करिया मिसाल होय गेलै। बिजली छिटकलै आरोॅ टिप-टिपाबैॅ लागलै ते दम्मे नय मारै। कोर कुटुम पबनमां केॅ जिद्द पर बामें-दहिनें खाय-पी केॅ जन्नें जोगाड़ लागलै गुंड़ियाय गेलै। रात भर फिसीर-फिसीर पड़तेॅ रहलै। एक तेॅ जाड़ोॅ के दिन उप्पर सेॅ झरिया, एकदम बिसबिसी बढ़ी गेलै। आदमीं सें लेकेॅ जनाबर तक सुटकलोॅ।

बिहान होना रहै से होलै, मतर बेरा के ठौर-ठिकाना नै। सुतले-सुतल पबनमा गरजलकै-उठोॅ हो गोपी काका, देखोॅ न कैसन लगन बरसी रहलोॅ छै। आय सुतले रहभोॅ की। -हेरे छौड़ा अटर-सटर नै बोलियोॅ। उठतौ तेॅ मारबो करतौ। कोय धोपलकै।

-अच्छा दादा आबेॅ मजाक नै करबै। तबताँय धोती खोसनेॅ गोपी दुआरी पर आबी केॅ हाफी लेनें पूछलकै-कत्तेॅ बजी गेलोॅ होतै रे पवन। की पता काका, आबै छीहौन नयकी काकी के नयका घड़ी देखी केॅ। अरे छोड़ न। दू-तीन लग्गी सूरज गेलोॅ होतै आरोॅ की।

अच्छा तेॅ गैया के निकाली दहोॅ काका! देखोॅ केना टुक-टुक तोरहै हियाबै छौन। एकदम कुकडी गेलै बेचारी। लादी मेॅ कुट्टी, खल्ली देभेॅ तेॅ आपन्हें सनसनी चढ़ी जैतै।

गोपी अंगेठी करनेॅ उठलै। रस्सी तन्टा ढ़िल्ला होत्थैं गैया सरसराय के लादी तरफ दौरी गेलै। रस्सीये साथें घिचाय केॅ गोपी चार चित खेली गेलै। एकदम लेटम-सेट। पवनमा ठहक्का मारी देलकै। गोपी लजाय के पानी। गैया केॅ खंूड़ सेॅ गोपी के अंगुरी लहुआ-लिघ्धिर। गोपी कैॅ तॉव चढ़ी गेलै। ओलती सेॅ पैनां घींची केॅ गैया केॅ धुनाठी देलकै। हरामी, सोहदा ओहरिया कूटी देबौ। घींच्हैं! घींच्हैं आबेॅ पाघा। हरमी जनाबर। गैया थरथरैतें-थरथरैतें तलमलाय केॅ लोघड़ी गेलै। बड़का-बड़का आँख तानी देलकै, देह में कपकपी अलगे।

कर-कुटुम तेॅ देखी के सन्न रही गेलै। पवनमां हक्का-बक्का आरो गोपी केॅ ठकमुरगी लागी गेलै। पवनमां गोपी केॅ लहू पोछी कॅ पुरनका गमछा बॉन्ही देलकै। कर-कुटुम गैया केॅ उठाबै के जुकती करेॅ लागलै। कोय नेंगड़ी साहै तेॅ कोय कान घीचै। कोय नाक दाबै, तेॅ कोय हुर्रोॅ चलाबै। मतर सब बेरथ। गैया टस-मसोॅ नै होलै। नयकी टटिया के दोगा सेॅ सब लीला देखी-सुनी रहलोॅ छेलै। एकदम कठुआय गेलै। सोचे लागलेॅ, जों कुच्छू होतै तेॅ लोग की कहतै। कहतै कि कनियांन के पैरा ठीक नै छै। राती अैलै आरो भोरे लहुआलिध्धिर होय गेलै। हिम्मत से काम लेलकै। पवनमां केॅ इशारा सेॅ बोलाय कॅ गौठेरी सेॅ बोरसी उतरबाय केॅ आगिन सुनगैलकै।

पवनमां धुंअैले बोरसी लेने दुआरी पेॅ अैलै, आरो नयकी नूंगा खोसनें एक हांथ में करूओॅ तेल के कटोरी आरो दोसरोॅ हांथ सेॅ माथों पें घोघो ताननें कलेॅ-कलेॅ आबी गेलै। पवनमां झरिया के पानी गरम करी केॅ गोपी के गोड़ धुअै मेॅ लागी गेलै आरो नयकी, गैया केॅ कान सेॅ पेट तक सेकना सुरू करकै। गैया आँख घुराय के नयकी केॅ देखलकै। दोनो के ऑख लोर सेॅ ढबढबाय गेलै। नयकी लोरियैले आँखी सेॅ गोपी कैॅ देखलकै। मनें-मन कहलकै-आखिर की बिगाड़नेॅ रहौन लक्षमी। देर तांय सेकला के बाद, गैया देह साहलकै। नयकी आपन्हैं सेॅ बथानी पर राखलोॅ दौरी में लारोॅ के कुटटी मिललोॅ मसूर के भूस्सा लादी मेॅ उझली केॅ उप्पर सेॅ ददरी बुलबुलाय देलकै। गैया केॅ पुचकारी केॅ हसोतलकै, उठोॅ आबै हम्में छीयै नी। गैया फेरू नैकी केॅ हियैलकै आरो थरथरैली उठी केॅ लादी भूस्सा चाटैॅ लागलै। गैया के आँखी सेॅ गरम-गरम दू ठोप लोर नयकी के गोड़ोॅ पेॅ टपकी गेलै। नयकी खाड़ी रही केॅ हसोततेॅ रहै। गोपी केॅ आँख नयकी से मिललै, दोनोॅ मुस्की देलकै। पवनमां बोरसी उठाय केॅ कर-कुटुम के हिन्ने देॅ अैलै। कुटुम सब गैया उठाबै मेॅ लेटाय गेलो रहै। सब हांथ-गोड़ धोय केॅ बोरसी तापे लागलै।

हिन्नें नयकी के बहादुरी केॅ खिस्सा सुरू आरो हुन्ने चाय चढ़ाय के गोपी केॅ घाव मेॅ गरम तेल लगाबै लागलै नैकी। गोपी आह-इस करतेॅ रहलै। दुलार के नोक-झोक चलतेॅ रहलै। बेकसूर के मारल्होॅ तबेॅ नी है तकलीफ होल्हौन।

हों काकी, गोपी काका मरखन्नों होलोॅ जाय छौन। -हे रे! तहूँ दही मॅ सही मिलाबै छैं। -ओ वाजिब बोलै छै तेॅ दही मॅ सही होय गेलै। की कहै होथौंन कर-कुटूम। पवनमां के मौका मिली गेलै इ तेॅ अच्छा होल्हौन गोपी काका, जे कोय बड़ोॅ लोकलीया नै अैल्हौन, नै तेॅ। -नै तेॅ कि रे! नै तेॅ कहथियौन कि पहुँनां कहिनोॅ छै। बात चलतेॅ रहलै नेमों के बेजोरबा चाय गौठोॅ गिलास करी केॅ सब पिलकै।

नयकी टोला के ननद-गोतनी के मदद सेॅ सुखलोॅ जारन जुटाय केॅ भन्सा के काम निपटाय लेलकै। झरिया खतम होय गेलै। पिछली बेरिया होतेॅ-होतेॅ रौदा उगी गेलै। सब कर-कुटुम खाय पी केॅ सब नयकी के गुणगान करने विदा होलै। गोपी नयकी ऐसन कनियांन पावी केॅ मनेॅ-मन गद-गद रहै। पवनमां के नयकी काकी बुढ़ाड़ी ताँय नयकी काकी रही गेलै।