नरगिस की हर हकीकत में राज कपूर अफसाने की तरह / जयप्रकाश चौकसे

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नरगिस की हर हकीकत में राज कपूर अफसाने की तरह
प्रकाशन तिथि :19 जुलाई 2017


अमेरिका के फिल्म उद्योग में मेक-अप कला का एक हिस्सा प्रोस्थेटिक्स है। ज्ञातव्य है कि ऋषि कपूर ने करण जौहर की 'कपूर एंड सन्स' नामक फिल्म में अस्सी पार बूढ़े की भू्िमका की थी और मेकअप के बाद वे बोल सकते थे परंतु खाने-पीने के लिए मुंह खोलने पर मेकअप बिगड़ जाता था। इस कारण प्रतिदिन चार घंटे मेकअप के बाद चार घंटे ही वे काम कर सकते थे। यह करण जौहर का अपना फितूर था अन्यथा पात्र की उम्र बीस वर्ष कम भी रखी जा सकती थी।

खबर है कि संजय दत्त के जीवन से प्रेरित राजकुमार हिरानी की फिल्म में रणवीर कपूर संजय दत्त की भूमिका निभाने वाले हैं। सितंबर या अक्टूबर में उसकी शूटिंग शुरू होगी। रणवीर कपूर संजय दत्त जैसे नहीं दिखते परंतु मेकअप के प्रोस्थेटिक्स विज्ञान की मदद से यह किया जाएगा गोयाकि पिता ऋषि कपूर की तरह सुपुत्र रणवीर कपूर भी घंटों मेकअप की असुविधा सहेंगे। गौरतलब है कि राजकुमार हिरानी की फिल्में मनुष्य की अच्छाई केंद्रित फिल्म रही हैं परंतु संजय दत्त तो सजायाफ्ता मुजरिम हैं और उनकी जेल से जल्दी रिहाई पर इस समय बवाल मचा हुआ है। यहां तक कि विधानसभा में भी मुद्‌दा जेरे बहस होगा। सुनील दत्त ने अपने राजनीतिक प्रभाव से अपने सुपुत्र को बचाए रखने के जतन किए और उन्हें टाडा कानून से मुक्ति दिलाई अन्यथा उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा कायम किया जा सकता था। इसके अतिरिक्त सजा के घोषित समय में वे अनेक बार पैरोल पर जेल से बाहर रहे। उनके साथ और उनके समान सजा काटने वालों को इतनी बार पैरोल पर नहीं छोड़ा गया। कहा तो यह भी जाता है कि जेल में संजय दत्त को कुछ सुविधाएं दी गई थीं। एक भ्रष्ट देश की जेलों में न्याय व समानता की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए। कोई भी महकमा भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है।

गौरतलब है कि मनुष्य की अच्छाई केंद्रित फिल्में बनाने वाले राजकुमार हिरानी संजय दत्त को एक अच्छा व्यक्ति कैसे प्रस्तुत कर सकते हैं? यह फिल्म एक तरह से सुभाष घई की संजय दत्त अभिनीत 'खलनायक' से एकदम जुदा होगी। पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित राजकुमार हिरानी फिल्मकार विनोद चोपड़ा के सहायक रहे। राजकुमार हिरानी ने 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' की पटकथा पहले शाहरुख खान को सुनाई थी और उन्हें पटकथा बेहद पसंद आई थी परंतु वे विधु विनोद चोपड़ा के साथ काम नहीं करना चाहते थे। दरअसल, उन दोनों के बीच कोई वैमनस्य नहीं है परंतु उनके मिज़ाज़ बहुत अलग-अलग हैं। विधु विनोद चोपड़ा प्राय: ज़िद पर अड़े रहते हैं, यह प्रवृत्ति अपना काम जानने वाले सभी व्यक्तियों में होती है। ज्ञातव्य है कि विधु विनोद चोपड़ा फिल्मकार रामानंद सागर के सौतेले भाई हैं परंतु उनका सिनेमा सागर के सिनेमा से हमेशा अलग रहा है। विधु विनोद चोपड़ा की मौलिक विचार प्रक्रिया है और ऐसे व्यक्ति प्राय: अपनी ज़िद पर कायम रहते हैं। वे उस मिलनसारिता के खिलाफ है, जिसमें आपको अपने जीवन मूल्य से समझौता करना पड़ता है। वैचारिक विविधता मानव जीवन का केंद्रीय मूल्य है। जीवन का फॉर्मूला फिल्म से अलग है।

राजकुमार हिरानी एवं रणवीर कपूर के लिए संजय दत्त बायोपिक बहुत बड़ी चुनौती है। एक तथ्य यह भी है कि जब माइकलएंजेलो अपनी पेंटिंग 'लास्ट सपर' रच रहे थे तब बुरे व्यक्ति के लिए मॉडलिंग करने वाले व्यक्ति ने सात वर्षों के अंतराल के बाद क्राइस्ट की छवि के लिए भी मॉडलिंग की जबकि इस बीच वह कत्ल की सजा काट चुका था। इस तथ्य से यह बात भी रेखांकित होती है कि कोई व्यक्ति सारे समय भला या सारे समय बुरा नहीं होता। अच्छाई उसके आगे चलने वाली परछाई है तो बुराई पीछे चलने वाली। सबकुछ सूर्य के कोण पर निर्भर करता है।

मेहबूब खान की तीव्र इच्छा थी कि उनके प्रिय कलाकार दिलीप कुमार 'मदर इंडिया' में बिरजू का पात्र अभिनीत करें परंतु दिलीप कुमार अभिनीत कुछ फिल्मों में नरगिस नायिका रही थीं, अत: उसके बेटे की भूमिका करने से उन्होंने इनकार कर दिया। बिरजू की भूमिका सुनील दत्त ने निभाई और कई बार लगता है कि संजय दत्त के अवचेतन पर बिरजू ही छाया रहा है। इतना ही नहीं वरन बिरजू के पात्र ने दशकों की छलांग लगाई और 'दीवार' में अमिताभ बच्चन अभिनीत पात्र भी कमोबेश बिरजू ही हैं। आत्माएं विचरण करती हैंया नहीं, पक्का नहीं कह सकते परंतु भूमिकाएं तो निश्चय ही विचार संसार में विचरण करती रहती हैं। बकौल धर्मवीर भारती, 'भटकोगे बेबात कहीं, लौटोगे अपनी हर यात्रा के बाद यहीं।'