नाम परिवर्तन / ब्रह्मर्षि वंश विस्तार / सहजानन्द सरस्वती

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श्रुति, स्मृति, इतिहास और पुराण आदि सिद्ध अयाचक और याचक द्विविध ब्राह्मण प्रदर्शनपूर्वक, उनके धर्म, आचार-व्यवहार एवं पदवियों आदि की विवेचना, अयाचक ब्राह्मणों के साथ याचक ब्राह्मणों के विवाह सम्बन्ध आदि का प्रदर्शन, आधुनिक इतिहास, व्यवस्थापत्र आदि प्रमाण निरूपण और विविध आक्षेप निराकरण आदि अति प्रयोजनीय विषयों की सविस्तर मीमांसा।

श्री मत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्री 108 स्वामीसहजानन्दसरस्वती, द्वारा लोकोपराकार्थ विरचित

आदावन्ते च यन्नास्ति वर्त्तमानेपि तत्तथा।

वितथै: सदृशा: सन्तोवितथा इव लक्षिता:॥


नाम परिवर्तन

आज से 8-10 वर्ष पहले कुछ भूमिहार ब्राह्मणों ने, जिनसे हमारा विशेष परिचय था, हमसे यह अनुरोध किया कि हम लोगों के इतिहास से सम्बन्ध रखनेवाला कोई ग्रन्थ आप लिख दें तो बड़ा उपकार हो। हम इस बात से सहमत हो गए। प्रथम कोई विशेष विचार न था, इसलिए तय पाया कि उस ग्रन्थ का नाम भूमिहार ब्राह्मण परिचय रखा जावे। हमारा विचार था कि कोई छोटी-मोटी पुस्तक लिख दी जावेगी। पर, जब हमने सामग्री एकत्र करना और लिखना आरंभ किया तो ब्राह्मण मात्र के इतिहास और धर्म पर प्रकाश डालने और विचार करने को हम बाध्य हो गए। इसके लिए बीच में और भी कारण आ गए। फलत: ग्रन्थ विस्तृत हो गया या और उसमें सभी ब्राह्मणों का विचार भी आ गया। फिर भी पूर्वनिश्‍चय और संकल्प के अनुसार वही रखा गया। परंतु हमें इस बात का दु:ख उसी समय हुआ और वह अन्त तक बना रहा कि व्यापक विषय की पुस्तक लिख कर उसका संकुचित नाम रखना अच्छा न हुआ और वह दु:ख तभी से बराबर बना रहा। इतना निश्‍चय तो हमने उसी समय कर लिया था कि दूसरी आवृत्ति में इसका नामक अवश्यमेव बदल देना होगा। तदनुसार कुछ और भी इतिहास-सामग्री और धार्मिक विषय मध्य में संगृहीत हुए और पूर्व पुस्तक में उनका भी समावेश कर के प्रस्तुत पुस्तक तैयार की गई है और नाम भी उसी के अनुसार ब्रह्मर्षि वंश विस्तर रखा गया है, जो इस ग्रन्थ के लिए सर्वथा उपयुक्‍त हैं। त्यागियों और गौड़ों के सम्बन्ध आदि का विशेष रूप से इस बार समावेश किया गया है। यद्यपि बहुत यत्‍न करने पर भी सरस्वतों और महियालों के सम्बन्ध की विशेष बातें इस बार न दी जा सकीं। तथापि आशा हैं तीसरे संस्करण में यह कमी भी पूरी हो जावेगी। इस व्यापक नाम से प्रचार भी विशेष होगा, जो पहली बार इसी कारण नहीं हो सका और यही हमारा लक्ष्य हैं।