नायिकाओं के सुख दुख के अफसाने / जयप्रकाश चौकसे

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नायिकाओं के सुख-दु:ख के अफसाने

प्रकाशन तिथि : 03 अगस्त 2012

मधुर भंडारकर की करीना कपूर अभिनीत 'हीरोइन' की झलक टेलीविजन पर दिखाई जा रही है। 'द डर्टी पिक्चर' एक निम्न श्रेणी की वयस्क फिल्में करने वाली स्त्री की सच्ची कहानी पर आधारित थी, परंतु 'हीरोइन' एक सुपर सितारे की काल्पनिक कहानी है। सच्चाई यह है कि आजकल सारी शिखर नायिकाएं आइटम गीत कर रही हैं और राखी सावंत या मल्लिका शेरावत को अवसर ही नहीं मिल रहा है। चमड़ी प्रदर्शन अब 'बी' और 'सी' ग्रेड फिल्मों की नायिकाओं तक सीमित नहीं है। करीना, कैटरीना, दीपिका सभी अत्यंत साहसी लिबास या लिबास की कमी में एक-सी नजर आ रही हैं। यह 'दमड़ी (पैसा) दो, चमड़ी देखो' का कालखंड है। दूसरी ओर नेताओं के भी कपड़े उतारे जा रहे हैं। समाज की प्याज के भी छिलके उतर रहे हैं। यह उजागर करने का समय है। यह बात अलग है कि सत्य फिर भी हमसे कोसों दूर है। रोटी के अभाव से भूखे मरने वालों की चिंता किसी को नहीं है। भूख की मजबूरी और भूख के हथियार सब सत्ता के खेल हैं।

बहरहाल, नायिकाओं के जीवन पर बनने वाली फिल्मों के कुछ ढांचे, कुछ फॉमूर्ले आजमाए हुए हैं। मर्लिन मुनरो के जीवन से प्रेरित फिल्में बन चुकी हैं। हंसा वाडकर के जीवन से प्रेरित 'भूमिका' फिल्म श्याम बेनेगल ने स्मिता पाटिल के साथ बनाई थी। उसको भी आधार बनाया गया है। एक खूबसूरत महत्वाकांक्षी लड़की के शोषण की कथा भी दोहराई गई है। मीना कुमारी का जीवन भी फिल्म के लिए कच्चा माल है और सोहा अली खान के साथ सुधीर मिश्रा 'खोया खोया चांद' बना चुके हैं। स्वयं मधुर भंडारकर 'फैशन' में महत्वाकांक्षा और शोषण की कहानी प्रस्तुत कर चुके हैं। गुरुदत्त की 'कागज के फूल' कला में संपूर्णता के प्रयास की कथा के साथ एक युवा लड़की के सितारा बनने की कहानी भी है।

फिल्म उद्योग की पृष्ठभूमि उस आधारभूत सत्य को नहीं बदलती कि हर क्षेत्र में प्रगति करने वाली महिला को 'शिकार' बनाने का प्रयास किया जाता है। यह प्रकरण सीधे नारी विमर्श का है। महानगरों में दफ्तरों में काम करने वाली महिलाएं सारा दिन लोलुप नजरों को झेलती हैं और शाम को घर लौटते समय भीड़भरी ट्रेन या बस में कितने अनजान, परंतु समान नीयत के स्पर्श को भुगतते हुए घर लौटती हैं। उनकी सुन्न देह को अभी आराम कहां?

बहरहाल, शिखर नायिकाओं के अपने भय होते हैं। वे जोर-जबरदस्ती के दौर से उबर चुकी हैं। अब तो उसके साथ अपनी सेना चलती है। अब वह 'शिकार' कर सकती हैं। कॅरियर की शतरंज पर कब, कौन-सा मोहरा आगे करना, कब पीछे हटाना वह बखूबी जानती हैं। दरअसल आज की सफल नायिकाएं एकल व्यक्ति उद्योग की तरह हैं और वे अपने जीवन को एक ब्रांड की तरह संचालित करना जानती हैं। वे कतई निरीह नहीं हैं। सच तो यह है कि आज की शिखर तारिकाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती मासूमियत का अभिनय करना है। परदे पर प्रेम दृश्य करते-करते उनकी संवेदनाएं भी उतनी ही भोथरी हो जाती हैं, जितनी कि दफ्तर में कामकाजी स्त्री की हो जाती हैं।

आज की सारी चोटी की नायिकाओं की सालाना औसत आय पचास करोड़ से कम नहीं होती और समृद्धि के इस ढेर में उनके लिए सचमुच कौन प्रेम करता है, यह जानना कठिन है। सारे समय सुंदर और चुस्त-दुरुस्त बने रहना आसान काम नहीं है। वे उतना कम ही खा पाती हैं, जितना मजबूरी के कारण जनजातियों की स्त्रियों को मिलता है। वजन लेने की मशीन उनके अवचेतन पर टिक-टिक करती घड़ी की तरह सवार रहती है। करीना कपूर के व्यक्तिगत स्टाफ के लोग विदेश यात्राओं से उकता चुके हैं। कई बार वे घर लौटकर पहले से तैयार नया सूटकेस लेकर चंद घंटों में ही फिर एयरपोर्ट पहुंच जाते हैं। यह प्रचार मिथ्या है कि संजय लीला भंसाली ने विवाहित जूलियट का विचार पसंद नहीं किया। उन्हें अपनी फिल्म के लिए नायिका से डेढ़ सौ दिन का समय चाहिए था और करीना के पास उस फिल्म के लिए बमुश्किल सौ दिन का समय था।

बहरहाल, नायिकाओं का गहरा रिश्ता आईने से होता है। हर शॉट के पहले वे आईने में अपना मेकअप देखती हैं। जवानी के दिनों का यह दोस्त आईना, अधेड़ उम्र में आलोचक लगता है और जीवन की संध्या में दुश्मन। नायिकाएं प्राय: आत्ममुग्धा और स्वयं को प्यार करने वाली नारसिष्ट होती हैं। नारसियस नामक अत्यंत सुंदर व्यक्ति स्वयं को झील के पानी में देखकर मंत्रमुग्ध हो गया और उसमें डूबकर मर गया। तभी से नारसिष्ट शब्द का प्रचलन प्रारंभ हुआ। नायिका को जब आईने तड़कते से लगें, तब आप उसके टूटे हुए दिल का दर्द समझ नहीं सकते।

'हीरोइन' की प्रस्तुत झलकियों के एक एक दृश्य में करीना घरेलू हिंसा की शिकार-सी दिखाई पड़ती हैं। एक सुपरनायिका द्वारा अपने को हिंसा की शिकार प्रचारित किया गया था, ताकि खत्म होते हुए रिश्ते में बदनामी का ठीकरा उसके मासूम प्रेमी सितारे के सिर फोड़े। शायद मधुर ने इसी घटना का उपयोग करके उसके द्वारा दिए गए धोखे का बदला लिया है।