नारी...पीयूष स्रोत सी बहा करो / जयप्रकाश चौकसे

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नारी...पीयूष स्रोत सी बहा करो
प्रकाशन तिथि : 13 जून 2020


‘टाइटैनिक’ के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार जेम्स कैमरून की फिल्म ‘अवतार’ की अगली कड़ी की शूटिंग न्यूजीलैंड में की जा रही है। ज्ञातव्य है कि पहले भाग की शूटिंग भी न्यूजीलैंड में ही की गई थी। फिल्मकार पृथ्वी से हजारों मील दूर एक अन्य ग्रह पर जीवन का विवरण फिल्म में देना चाहता है। इसके लिए वह न्यूजीलैंड का चुनाव करता है, क्योंकि वहां प्रकृति की रक्षा की गई है। इसका अर्थ यह है कि अन्य देश प्रकृति की रक्षा नहीं कर पाए। पर्वतों को श्रीहीन किया गया, नदियों को प्रदूषित किया गया है। गंगा की स्वच्छता के नाम पर करोड़ों का घपला हुआ है और आज भी जारी है। वहां के नागरिक पेड़ों को स्थिर मनुष्य और मनुष्य को चलते-फिरते वृक्ष की तरह मानते हैं। इस महान आदर्श का जन्म भारत महान में हुआ था परंतु इस पर अमल नहीं किया गया। ‘अवतार’ के पहले भाग के एक दृश्य में अन्य ग्रह के वृक्ष काटे जाने के समय एक पात्र कहता है कि इस ग्रह पर काटे गए वृक्ष का दर्द हमारी पृथ्वी के वृक्ष भी महसूस करते होंगे। याद आते हैं निदा फाज़ली "चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात।" "कट कर भी मरते नहीं पेड़ों में दिन रात।।"

न्यूजीलैंड में प्रकृति का संरक्षण ऐसा किया गया है कि वहां समय के थम जाने का आभास होता है। प्रकृति के संरक्षण द्वारा मनुष्य स्थान और समय के रिश्ते को समझ सकता है। जावेद अख्तर ने इस आशय की बात की है कि चलती हुई रेलगाड़ी में यात्री को लगता है कि बाहर लगे वृक्ष चल रहे हैं और रेल स्थिर खड़ी है। कहीं इसी तरह ऐसा तो नहीं कि समय स्थिर खड़ा है और मनुष्य उसके सामने से गुजर रहा है। बच्चों का लकड़ी का घूमता हुआ लट्‌टू स्थिर होने का भ्रम पैदा करता है। यह इत्तेफाक की बात है कि न्यूजीलैंड और भारत दोनों को राजनैतिक स्वतंत्रता 1947 में मिली। न्यूजीलैंड में कोरोना का तांडव नहीं के समान रहा, क्योंकि उन्होंने प्रकृति का संरक्षण बड़े जतन से किया था। वहां नागरिक की सेहत प्राथमिकता रही है। न्यूजीलैंड की तरह ही केरल में भी गली-मोहल्ला हेल्थ प्राथमिक सेंटर हैं और नागरिक जागरुक हैं। बेचारे केजरीवाल जाने कब से मोहल्ला हेल्थ सेंटर योजना लागू करने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु इस तरह के हर प्रयास में टांग अड़ाता है दौलत वाला जो अन्य नाम से भी पुकारा जाता है। न्यूजीलैंड, फिल्मकारों को भी बड़ी सुविधाजनक लोकेशन लगता है। ‘द क्रॉनिकल्स ऑफ़ नार्निया’ की शूटिंग भी वहां की गई थी। राकेश रोशन ने ‘कहो न प्यार है’ की कुछ शूटिंग न्यूजीलैंड में की थी। सभी कॉमनवेल्थ देशों की तरह न्यूजीलैंड में क्रिकेट खेला जाता है। खेल में परास्त होने के बाद भी वहां के खिलाड़ी बहुत गम नहीं पालते, क्योंकि हमारी तरह क्रिकेट को देश की अस्मिता का मामला नहीं बनाया गया है। देश का गौरव नागरिक के चरित्र पर निर्भर करता है। 50 लाख की आबादी वाले न्यूजीलैंड में गम और कुंठाओं को कोई बसेरा नहीं मिलता। यह संभव है कि इसका कारण यह हो कि उस देश के पास कोई मायथोलॉजी नहीं है।

नागरिक वर्तमान से इस कदर रू-ब-रू हैं कि वहां इस तरह की कोई कथा नहीं कि हजार वर्ष पूर्व एक था राजा....न्यूजीलैंड का इतिहास 1280 से ही लिखित रूप में उपलब्ध है। गौरतलब है कि कैमरून की ‘टाइटैनिक’ का नायक साधनहीन वर्ग से आया है और नायिका की मां, कन्या का विवाह अमीर व्यक्ति से कराकर अपने तथाकथित सामंतवादी अतीत के गौरव को वर्तमान में लाना चाहती है। कैमरून की ‘अवतार’ में समान लोगों की प्रेम कथा प्रस्तुत की गई है। संकेत नारी-पुरुष की समानता के आदर्श की ओर है। ‘अवतार’ में प्रस्तुत नायिका का निशाना अपने साथी पुरुष से बेहतर है और शारीरिक चपलता भी उससे अधिक है। मानव के शिकार युग में ऐसा ही था। सारे भेद-भाव कृषि युग के आरंभ में उत्पन्न हुए हैं, जब संपत्ति का जन्म हुआ। जमीन पर कब्जे के लिए संग्राम भी तभी शुरू हुआ। यह संभव है कि इस फिल्म में नारी पात्र पुरुष पात्र से अधिक शक्तिशाली प्रस्तुत किए जाएं। सारे पात्र अपनी त्वचा को ही धारण किए हुए हैं। सदियों पूर्व सिमोन द बोउआर ने कहा था कि जब स्त्री बुर्जुआ के सभी सौंदर्य प्रसाधनों का त्याग करके, अपने स्वभाविक रूप में सामने आती है, तो पुरुष कांपने लगते हैं।