निधन एवं अन्तिम इच्छा / बलराम अग्रवाल

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निधन

जिब्रान बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। पूरी दुनिया उन्हें एक स्तरीय कवि, कथाकार, चित्रकार, मूर्ति-शिल्पकार, लेखक, दार्शनिक, विज़ुअल आर्टिस्ट और धर्म के अध्येता के रूप में जानती है। लीवर और गुर्दों की कार्यक्षमता नष्ट हो जाने के कारण 10 अप्रैल 1931 को 48 वर्ष 3 माह 4 दिन की अल्पायु में अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित सेंट विंसेंट्स हॉस्पीटल में उनका निधन हो गया। उन्होंने 16 पुस्तकों की रचना की जिनका अनुवाद संसार की 30 से अधिक अनेक भाषाओं में हो चुका है।


अन्तिम इच्छा

जिब्रान की अंतिम इच्छा थी कि निधन के बाद उनके शव को उनकी मातृभूमि लेबनान में दफनाया जाए तथा उनका समूचा कलाकर्म किसी संग्रहालय में रखकर जनता को सौंप दिया जाय। 1930 में उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था — “मेरे निधन के बाद मेरे स्टुडियो की किताबें, कला का सामान आदि सब-कुछ श्रीमती मेरी हस्कल मिनिस को दे दिया जाय जो इस समय 24, गेस्टन स्ट्रीट वेस्ट, सावन्नाह, जॉर्जिया में रहती हैं। मेरी इच्छा है कि ये सारी चीज़ें वे सुरक्षापूर्वक मेरे गृहनगर पहुँचा दें। मैं समझता हूँ कि यह कर सकने में वह सक्षम हैं।”

खलील जिब्रान के अन्तिम पत्रों में उनकी इच्छा “मध्य पूर्व, लेबनान, बिशेरी मार सरकिस जाने जैसी बातें पढ़ने को मिलती हैं। वह “प्रकृति के बीच नया जीवन जीने; गेहूँ की सुनहरी बालियों, हरे-भरे मैदानों, चरागाहों की ओर भेड़ों को हाँकने, झरनों के दहाड़ने और सूरज की किरणों से चमचमाते कोहरे” को देखने के सपने देखते थे।

वस्तुत: 1926 में ही उन्होंने बिशेरी के ‘मार सरकिस’ मठ को खरीदने और जीवन के शेष दिन वहीं बिताने की योजना बना ली थी। क़दीशा घाटी में स्थित यह मठ 16वीं सदी में स्थापित हुआ था। वह मठ वस्तुत: सागर किनारे की एक ढलवाँ पहाड़ी को काटकर बनाया गया था और रहने के लिए बेहद सुरक्षित था। पुराने जमाने में इस तक किसी रस्सी या सीढ़ी के सहारे ही पहुँचा जा सकता था। आगन्तुकों की सुविधा के लिए वहाँ एक फुटपाथ बनाकर रास्ते को अब सुगम बना दिया गया है। जीवनभर जहाँ रहने के सपने देखते रहे, निधन के बाद ही जिब्रान वहाँ पहुँच पाए।