निर्णय / सेवा सदन प्रसाद

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दो फिल्मी कलाकारों के नित्य की घरेलू - कलह एवं मारपीट तलाक के केस का रूप धारण कर अदालत में पहुंची हुई थी। उनके तलाक को स्वीकृति देने का निर्णय तो जज ने कर लिया था। सवाल उनके आठ वर्षीय बेटे का बचा था। पति - पत्नी दोनो उस पर अपना अधिकार जता रहे थे। पर उस मासूम को माँ - बाप में से किसे सौंपा जाए, इस पर कशमकश चल रही थी।

"बच्चे पर पहला हक तो माँ का ही होता है। माँ ही बच्चे की देखभाल ठीक से कर सकती है।" माँ का तर्क था। पिता अपनी अच्छी कमाई का हवाला देकर बेहतर परवरिश की दलील दे रहा था।

पलड़ा तो माँ का ही भारी था। फिर भी गर लड़के की ईच्छा पूछ ली जाय तो निर्णय देना आसान हो जायेगा। यह सोच कर जज ने लड़के की इच्छा जानने के लिए ही उससे पूछ लिया - "बेटे, तुम अपनी माँ के पास रहना चाहते हो, या पिता के साथ?"

लड़के ने पहले पिता की ओर देखा, फिर माँ की ओर। कुछ देर सोचता खड़ा रहा। फिर लड़के ने अपना निर्णय सुना दिया - "सर! न मैं माँ के साथ रहना चाहता हूँ न पिता के साथ... मुझे अनाथालय भेज दिया जाय।"

बच्चे का निर्णय सुन कर माँ - बाप और जज