निर्देशक और अभिनेता का रिश्ता / जयप्रकाश चौकसे

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निर्देशक और अभिनेता का रिश्ता
प्रकाशन तिथि : 19 जून 2013


आजकल करण जौहर अपने को अभिनय के लिए तैयार कर रहे हैं, क्योंकि अनुराग कश्यप की 'बॉम्बे वेलवेट' में वे खलनायक की भूमिका करने जा रहे हैं, फिल्म के नायक हैं रणबीर कपूर। करण जौहर के बार-बार प्रार्थना करने पर ऋषि कपूर ने उनकी 'अग्निपथ' में अपनी छवि के विपरीत खलनायक की भूमिका की थी और अब उनके पुत्र से वे स्वयं खलनायक की तरह टकराएंगे। करण जौहर के मन में अभिनय का कीड़ा लंबे समय से कुलबुला रहा है और 'बॉम्बे टॉकीज' के निर्माण के समय अनुराग कश्यप से उनकी कई मुलाकातें हुईं। करण हर मंच के माध्यम से स्वयं को उजागर करने के लिए हमेशा बेकरार रहते हैं। उनके पिता निर्माता यश जौहर दक्षिण मुंबई के पारंपरिक श्रेष्ठी लोगों के क्षेत्र में एक छोटे फ्लैट में रहते थे और बचपन में करण कभी अपने स्कूल में यह नहीं बताते थे कि उनके पिता फिल्मों से जुड़े हैं, क्योंकि उस दौर में दक्षिण-मुंबई के अमीर लोगों के मन में फिल्म के लिए अनादर था, परंतु आज वे ही फिल्मवालों से मिलने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अब तो अनेक औद्योगिक घराने फिल्मों में पैसा लगा रहे हैं। बचपन में करण बहुत सहमा हुआ मासूम-सा अंतर्मुखी लड़का था और उन दिनों खूब उजागर होने की इच्छा मन में घुटती रही थी। अब उन्हीं दिनों की कुंठाओं को बदले की भावना से प्रस्तुत कर रहे हैं। किसी भी सितारे से अधिक उनकी तस्वीरें प्रकाशित होती हैं और वे टेलीविजन के हर मंच पर मौजूद रहते हैं तथा इन गतिविधियों के बावजूद निरंतर फिल्में बना रहे हैं।

अनुराग कश्यप की ही 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने खलनायक की भूमिका अत्यंत प्रभावोत्पादक ढंग से निभाई थी। निर्देशकों का अभिनय करना कोई नई बात नहीं है। वर्षों पूर्व अमित खन्ना की एक फिल्म में महेश भट्ट ने भी भूमिका निभाई थी और निष्णात निर्देशक विजयआनंद ने चेतन आनंद की 'हकीकत' में भूमिका निभाई तथा स्वयं की 'तेरे मेरे सपने' में अपने सितारा भाई देव आनंद के साथ समानांतर भूमिका इतनी कुशलता से संपन्न की कि उनकी प्रशंसा देव आनंद से ज्यादा हुई और परिणामस्वरूप विजयआनंद खुद को सितारा बनाने की प्रक्रिया में जुट गए तो देव आनंद ने निर्देशन शुरू करके दर्जन भर हादसे रच दिए। विजय आनंद ने जया बच्चन के साथ 'कोरा कागज' में नायक की भूमिका की तथा राज खोसला की सफल फिल्म 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' में भी नायक रहे। इसी तरह किशोर साहू जैसे विचारवान और सफल निर्देशक ने भी अनेक फिल्मों में अभिनय किया तथा विजय आनंद की 'गाइड' और 'काला पानी' में वे खूब सराहे गए।

हॉलीवुड के प्रसिद्ध निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक अपनी हर फिल्म में अत्यंत लघु भूमिका करते थे और उसी परंपरा में सुभाष घई भी अपनी फिल्मों में एक झलक जरूर दिखाते थे, जबकि पुणे फिल्म संस्थान से उन्होंने अभिनय में प्रशिक्षण लिया था तथा अनेक असफल प्रयास के बाद वे सफल निर्देशक भी बने।

अनेक निर्देशक अपनी फिल्म बनाते समय पात्रों को स्वयं अभिनय करके दिखाते रहे हैं और इसी परंपरा में महान निर्देशक गुरुदत्त सफल सितारा भी बने, परंतु बिमल रॉय ने हमेशा अपने कलाकारों को कथा के गहन अर्थ सघनता से समझाए और श्रेष्ठ अभिनय कराया। वे स्वयं कभी दृश्य करके नहीं दिखाते थे।

वी. शांताराम ने अनेक अभूतपूर्व फिल्में रचीं और वे नायकों को उनके मांगे पैसे कभी नहीं देते थे। उनका विश्वास था कि फिल्म की रीढ़ की हड्डी फिल्मकार हैं। जब शांताराम से पृथ्वीराज ने उनकी फिल्म 'शकुंतला' के लिए अपने मेहनताने को कम नहीं किया तो स्वयं शांताराम ने दुष्यंत की भूमिका निबाही तथा वे 'दो आंखें बारह हाथ' और 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' के भी नायक रहे।

दरअसल, फिल्म निर्माण के सारे पक्ष एक-दूसरे से जुड़े हैं और इसी कारण जर्मनी में फिल्म प्रशिक्षण का कोर्स 6 वर्ष का है और विद्यार्थी को सारी विधाओं का अध्ययन करना पड़ता है। सारी कलाएं भी एक-दूसरे से जुड़ी हैं, जैसे कत्थक नृत्य शैली में अभिनय शामिल है। इसी तरह से ज्ञान के सारे विभाग भी एक-दूसरे से जुड़े हैं। भारत में तो मनुष्य को केंद्र में रखकर ही सभी विधाओं का ज्ञान संधान किया जाता है और पेड़ों तथा पत्थरों में भी मनुष्य खोजा जाता रहा है, यह बात अलग है कि आज आप अधिकांश मनुष्यों में पत्थर ही पाएंगे।