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फुल्लू चाटवाला - माधुरी दीक्षित का घनघोर कद्रदान।

मकबूल फिदा हुसैन के अलावा भी माधुरी दीक्षित पर फिदा हज़ारों दीवाने हैं इस देश में, जिन्हें कोई नहीं जानता, खुद माधुरी भी नहीं, इसलिए कि वे मकबूल की तरह मकबूल नहीं हैं। ऐसे ही दीवानों में एक दीवाना है फुल्लू चाटवाला। उसके पास न तो इतने पैसे हैं, न वह इतना रसूखवाला है और नाही इतना इल्मदार कि अपनी दीवानगी को मूर्त रूप देने के लिए उससे बतौर हीरोइन काम करवाकर गजगामिनी फिल्म बना दे। यों वह जानता है कि दीवाना होने के लिए फिल्म बनाना, अमीर होना या मारूफ होना कोई शर्त नहीं हैं।

वह यह भी जानता है कि दीवाने तो अक्सर फक्कड़, फटेहाल और बेनाम लोग ही होते रहे हैं। तो माधुरी को लेकर उसके पागलपन से अब यह पूरा शहर अवगत हो गया है। अखबारवाले अब इसके समाचार को चुहलबाजी की मुद्रा में किसी चटनी या अचार परोसने की तरह छापते हैं जिसे लोग लुत्फ ले-लेकर पढ़ते हैं। कई लोगों को यह समाचार पढ़कर फुल्लू से रश्क हो उठता है कि यह आदमी एक बेवकूफी करके ही सही मगर धीरे-धीरे चर्चित हो रहा है।

दीवानगी का बीजारोपण वहाँ से हुआ था जब फुल्लू बनारसी चाट की अपनी पुश्तैनी दुकान पर बैठकर मक्खियाँ मारा करता था।

यों ही टाइम पास के लिए फिल्मी पत्रिकाओं के पन्ने पलटता रहता और हीरोइनों की अर्धनग्न तस्वीरें निहारा करता। उनके स्तनों के उभार, जाँघों के सुडौलपन, नितंबों के कसाव और कपोलों व होठों में समाये आमंत्रण-आकर्षण में देर तक खो सा जाता। खासकर माधुरी दीक्षित की तिरछी हंसी और कंटीली अदा का मानो उस पर जादू छा जाता। उसकी कोई भी फिल्म लगती, वह हॉल में जाकर जरूर देख आता। वह माधुरी के जन्म-दिन पर बधाई कार्ड भी डालने लगा। आदमी के पास करने के लिए कुछ न हो तो वह क्या-क्या करने लग जाता है? शायद कुछ लोगों का यह मानना ठीक है कि देश के ऐसे ही बेरोजगारों के वक्त-काटू शगल के कारण अपना यह बॉलीवुड ज्यादातर अनाप-शनाप फिल्में बनाकर भी आबाद है।

फुल्लू की दो-तीन साल पहले यह नौबत न थी। खासकर तब जब हार्ट अटैक से मरने के पहले उसके पिता कल्लू दुकान पर बैठते रहे। कम से कम सौ दुकानों वाले इस मार्केट में पक्की छत और दीवारों के बीच चलने वाली चाट की यह अकेली दुकान थी, जहाँ ग्राहक बजाब्ता अपने परिवार सहित कुर्सी-टेबल पर ठाठ से बैठकर चाट खा सकते थे। इस दुकान के अलावा अगर कहीं चाट की उपलब्धता थी तो विभिन्न नुक्कड़ों-चौराहों पर सड़क के किनारे ठेलों पर थी, जहाँ हाथ में प्लेट लेकर खड़े-खड़े खाना होता था। इस हिसाब से फुल्लू की दुकान चाट की एक्सक्लूसिव दुकान थी।

इस दुकान पर ग्रहण लगना तब शुरू हुआ जब इसके ठीक सामने चिरंजी शर्मा जूस वाले ने अपनी दुकान का कायाकल्प करके उसे 'ग्लोबल स्नैक्स कॉर्नर' में तब्दील कर दिया। पहले वह गन्ने का, संतरे का, मुसम्बी का, अनार का रस बेचा करता था, अब वह पिज्जा, चाउमिन, हैमबर्गर, सैंडविच और हॉटडॉग बेचने लगा। पहले उसकी दुकान में भीमसेन जोशी, शुभा मुद्गल और किशोरी अमोनकर के ऑडियो आलाप गूँजते रहते थे, अब वहाँ माइकेल जैक्सन, मडौना, ब्रिटनीस्पीयर्स आदि के शोर और हुल्लड़ सीडी पर दिखने-बजने लगे। बस देखते ही देखते चाट के सारे ग्राहक उस तरफ मुड़ गये। फुल्लू के पास ग्राहक की जगह उड़ाने के लिए सिर्फ मक्खियाँ रह गयीं। बड़े शौक से चाट खाने वाले अपने कई परिचित ग्राहकों को अब वह दूर से पिज्जा या नॉनवेज हैमबर्गर खाते हुए देखता रहता। उसे दया आती कि आधुनिकता का आकर्षण लोगों को क्या-क्या खाने के लिए मजबूर कर रहा है? उसका एक दोस्त था गोरेलाल, जो कोई काम न मिलने के कारण अंतत: एक स्थानीय अखबार में स्ट्रिंगर बन गया था। फुर्सत में वह अक्सर उसके पास आकर बैठ जाया करता। वह जानता था कि एक खानदानी निष्ठा (उसके पिता कल्लू स्वदेशी जागरण मंच के सदस्य थे) के कारण बनारसी चाट की दुकान में निहित देसीपन में वह कोई ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकता, जैसा चिरंजी ने कर लिया, इसलिए इसी में कुछ गुंजाइश निकालने की जरूरत है।

इस तरह फुल्लू की खंडहर होती हालत देखकर सोचते-सोचते एक दिन उसने कहा, “ठीक है, तुम चाट की दुकान ही चलाना चाहते हो, चलाओ। लेकिन विज्ञापन और प्रचार के इस जमाने में तुम्हें वो तरीके अपनाने होंगे कि ग्राहक तुम्हारी तरफ आकर्षित हो। चाट परोसने में भी कुछ फीचर जोड़ो। विज्ञापन का ही कमाल होता है कि एक ब्रैंड का नाम देकर चमकदार रैपर में पैक किया हुआ मामूली आटा, लाल मिर्च, आलू चिप्स, नमक, पानी आदि राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित होकर गैरमामूली तरीके से बिकने लगता है। स्वदेशी रैपर में भी हम अच्छी पैकिंग कर सकते हैं।” गोरेलाल को सुनते हुए जैसे फुल्लू के दिमाग की कोई खिड़की धीरे-धीरे खुलने लगी। गोरेलाल ने आगे कहा, “चलो, हम एक काम करते हैं, अगले महीने १५ मई को माधुरी दीक्षित का जन्म दिन है, हम उसे भारी धूमधाम से मनाते हैं। इससे माधुरी के प्रति तुम्हारे दीवानेपन की तुष्टि भी हो जायेगी। उस दिन जो भी दुकान में आएगा, उसके लिए मुफ्त की चाट और मुफ्त का एक लॉटरी टिकट। लॉटरी में प्रथम पुरस्कार एक मारूति कार रख दो। इस मद में तुम्हें चालीस-पचास हजार खर्च करना पड़े, कर दो। अपने पास न हो तो इसे एक जरूरी निवेश समझकर कर्ज ले लो।”

फुल्लू ने हिसाब लगाते हुए पूछा, “चालीस हजार में कैसे होगा कम से कम ढ़ाई लाख तो मारूति कार के लिए ही चाहिए।”

गोरेलाल ने उसे असली बनियागिरी सिखाते हुए समझाया, “अरे लॉटरी का ड्रॉ करना किसे है कोई पूछे तो ड्रॉ की तारीख बढ़ाते जाना है। यही तो करते हैं ज्यादातर धंधेबाज। एनाउंस होनेवाली तीन-चार प्रतिशत लॉटरी ही ड्रॉ के परिणाम तक पहुँचती है। भला फुर्सत भी किसे है इतना पीछे पड़ने की। जिसका टिकट मुफ्त में मिला हो उसके लिए पूछने का आदमी के पास मॉरल भी कहाँ होता है।”

फुल्लू सहमत हो गया बात बिल्कुल ठीक है। उसे ऐसी दर्जनों लॉटरियों का खयाल आ गया जिनमें उसने इंट्री भेजी थी, मगर आज तक उनका परिणाम नहीं आया।

दोनों इस विषय पर कई दिनों तक बातचीत करते रहें। हर कोण से इसके नफा-नुकसान को टटोलते रहें और प्रारूप तय करते रहें।

एक दिन लोगों ने देखा - फुल्लू की दुकान के साईनबोर्ड के ऊपर एक बड़ा-सा बैनर लगा है - “प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री माधुरी दीक्षित का जन्म दिन समारोह। आप सभी नि:शुल्क स्पेशल माधुरी चाट और नि:शुल्क लॉटरी ड्रॉ के कूपन के लिए आमंत्रित हैं।” ग्लोबल स्नैक्स कॉर्नर के मालिक चिरंजी का तो जैसे माथा ही ठनक गया। उसने सामने से ही देख लिया - दुकान की दीवारों पर माधुरी की कई मुद्राओं में मुस्कुराती आलीशान फ्रेमों में मढ़ी हुई बड़ी-बड़ी तस्वीरें टांग दी गयी हैं और बड़े-बड़े कट आउट लगा दिये गये हैं। एक बोर्ड पर उसकी तमाम फिल्मों के नाम और झलकियाँ उसके विभिन्न यादगार किरदारों की कैश काउंटर पर रखे म्यूजिक सिस्टम द्वारा पर्दे पर माधुरी द्वारा गाये गीतों की मंद-मंद स्वरलहरियाँ पीछे की दीवार पर लगे साउंडबॉक्सों से झरती हुई एक रंगीन पोस्टर माधुरी लकी ड्रॉ का, जिस पर अंकित - “प्रथम पुरस्कार - मारूति ८००, इसके अलावा दस-दस हजार के पचास अन्य पुरस्कार एक कूपन माधुरी चाट खाने पर फ्री।” इस तरह पूरी दुकान माधुरीमय।

१५ मई को सबने देखा कि वहाँ स्वप्नलोक जैसा एक मनोहारी दृष्य उतार दिया गया। मार्केट के मुहाने पर एक भव्य तोरण-द्वार बनाया गया जिस पर लिखा था - लांग लाइव माधुरी। युवा दिलों पर बिजली गिराने वाली माधुरी के दो हसीन कट आऊट किनारे में चस्पां कर दिये गये थे। इस द्वार से लेकर उसकी दुकान तक मिनी बल्वों की अद्भुत साज-सज्जा थी। दुकान के सामने २५ पौंड का एक विशाल बर्थ डे केक सजा हुआ था। केक काटने के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर जिले के एस पी आमंत्रित थे। स्ट्रिंगर गोरेलाल आखिर कब काम आता, इतनी पहुँच तो उसकी थी ही। अपने उद्देश्य को व्यक्तिगत से सामाजिक रंग देने लिए उसने शहर में स्थित यतीम और विकलांग बच्चों के शरणस्थल चेशायर होम में एक माधुरी मेला आयोजित कर दिया, जिसमें बच्चों के लिए मुफ्त में चाट, गोलगप्पे, आइसक्रीम, जलेबी आदि खाने की व्यवस्था कर दी गयी। उसमें दो-तीन किस्म के झूले भी लगा दिये गये। बच्चों ने माधुरी को कम और फुल्लू को ज्यादा दुआएँ दीं।

शहर में धूम मच गयी। अगले दिन हर स्थानीय अखबार में फुल्लू छाया हुआ था। गोरेलाल का सब एडीटर कहा करता था - एक हीरो की तलाश करो, एक स्टोरी बनाओ उ़से हीरो और स्टोरी दोनों ही मिल गयी थी। लोगों ने उसकी इस दीवानगी का खूब आनंद लिया, कुछ अखबार पढ़कर और कुछ दुकान में चाट खाकर।

फुल्लू अब विदूषकीय कौतूहल और विस्मय का एक चर्चित किरदार हो गया था। लोग उसे एक बार देखना चाहते थे। अत: दुकान में आमद-रफ्त बढ़ गयी। आनेवाले चाट भी खाने लगे। चाट के कुछ पुराने परंपरागत ग्राहकों का आकर्षण फिर लौट आया। उसकी इश्कमिजाजी से प्रोत्साहित होकर कुछ नयी उम्र के प्रेमी जोड़े मिलने और गपियाने की दृष्टि से इस दुकान को एक निरापद जगह समझने लगे। अब चाट में उसने कई नये फीचर जोड़ दिये थे। पकौड़ी चाट, टिकिया चाट, सिंगाड़ा चाट, चाट बत्तीसी, चाट छप्पन भोग चाट में गठिया तथा टोमॅटो और चिल्ली सॉस आदि भी मिलाया जाने लगा। साथ में खट्टा, मीठा और झाल के अलग से द्रवीय घोल अपनी रुचि के अनुसार जितना जो चाहे मिला लें। मतलब चाट में चाट कम और ठाठ ज्यादा हो गया।

अब फुल्लू माधुरी के प्रति दीवानगी दिखाने का हर अवसर लपक लेने लगा। हॉल में माधुरी की कोई फिल्म लगती तो बाहर खड़े होकर वह अंदर जानेवाले दर्शकों में टॉफियाँ या आईसक्रीम बँटवा देता। माधुरी ने अमेरिका के डॉक्टर राम नेने से शादी कर ली तो लोगों ने समझा कि फुल्लू बड़ा मायूस होगा, लेकिन उसने खुश होकर शिशु निकेतन के बच्चों में एक महीने तक दूध वितरण करवाया। गोरेलाल ने इसकी रिपोर्ट देते हुए अखबार में लिखा, “फुल्लू ने साबित कर दिया है कि उसके प्रेम में कोई स्थूल माँसल आकांक्षा नहीं हैं, बल्कि वह सात्विक किस्म के आनंद का रसिया है। माधुरी की खुशी में वह अपनी खुशी देखता है, अन्यथा तो घर में उसकी पत्नी पिंकी है जो उसे हर तरह से पसंद हैं और माधुरी से उसके प्रेम में कोई बाधक नहीं बल्कि मददगार है।”

स्थानीय पत्रकारों की अड्डेबाजी उसकी दुकान में काफी बढ़ गयी। इनके लिए अघोषित रूप से यहाँ खाना-पीना नि:शुल्क था। भुगतान में, यह अनकहा समझौता था कि उसे वे खबरों में बनाये रखेंगे। खबरों में बने रहते-रहते जैसे उस पर सचमुच ही एक नायकत्व की खब्त सवार होने लगी। महज दुकान चलाने के लिए जिसे फिड़के के तौर पर इस्तेमाल किया गया था, उसमें वह बहुत गहराई से संलिप्त होने लगा। दुकान चलने लगी थी, पत्नी चाहती थी कि घर में सुख-मौज के कुछ सामान आ जायें एयरकंडीशनर, माइक्रोवेव ओवन, म्यूजिक सिस्टम, वाशिंग मशीन, कोई पुरानी कार, ताकि जीवनस्तर कुछ बेहतर लगने लगे। लेकिन फुल्लू था कि इससे ज्यादा जरूरी समझता था ओल्डएज होम में कंबल वितरण करना, शिशु निकेतन में दूध वितरण करना, चेशायर होम में फल, मिठाई और दवाई वितरण करना और १५ मई को पिछले से बड़ी धूमधाम, बड़ा केक, बड़ी साज-सज्जा।

ऐश्वर्य और विलासिता के सामान तो बहुत लोगों के पास होते हैं, उन्हें कोई नहीं जानता, लेकिन वह पाँच हजार का ही कंबल बाँट देता है, दस हजार खर्च करके केक कटवा देता है, चाट खिला देता है तो पूरे शहर में उसकी चर्चा हो जाती है, कितने गरीबों की दुआएँ मिल जाती हैं। पत्नी को लगता कि यह सब लफ्फाजी और बकवास है। इस सस्ती लोकप्रियता से वह आराम नहीं हासिल हो जाता जो कार दे सकती है, एयरकंडीशनर दे सकता है। ऐसे दर्जनों लोग हैं इस शहर में जिनके पास करोड़ों की सम्पत्ति हैं, समाज-सेवा पर वे लाख-दो लाख खर्च कर दें तो उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला, फिर भी उन पर कोई जूँ नहीं रेंगती, फिर हमें ही क्या पागल कुत्ते ने काटा है? पत्नी उसकी खब्त, सनक और झख से परेशान होने लगी। उसे लगने लगा कि अपने बीवी-बच्चों से ज्यादा इसके लिए माधुरी की अमूर्त और निराकार दीवानगी की अहमियत है।

फुल्लू ने अपनी पत्नी पिंकी के व्यावसायिक अविवेक को कोसते हुए कहा, “तुम औरतों को सिर्फ ईर्ष्या करना आता है तह में जाकर समझना नहीं आता। आज का जमाना निवेश पर आधारित है ह़म माधुरी के नाम से जो भी करते हैं उसे तुम एक निवेश मानकर गले से उतारना सीखो।” पिंकी ने झुँझलाते हुए कहा, “निवेश तो हो गया लोगबाग जान गये कि एक दुकान है जहाँ हर चीज पर माधुरी दीक्षित के नाम की मुहर है अब और क्या करोगे, माधुरी के नाम से ताजमहल बनाओगे?” “काश, मैं ताजमहल बना पाता लेकिन तुम्हें शायद पता नहीं हैं कि ताजमहल सिर्फ इश्क करने से नहीं बन जाता। उसके लिए शहंशाह भी होना पड़ता है और दौलतमंद भी। प्यार में ताजमहल आज भी दुनिया का सबसे बड़ा इन्वेस्टमेंट है। शहंशाह इस दुनिया में नहीं है फिर भी लाभांश उन्हें आज भी मिल रहा है।” “जिसे दुनिया सात्विक और शुद्ध प्यार का इज़हार मानती है उसे तुम निवेश कह रहे हो? प्यारके लिए यही जगह है तुम्हारे मन में?” “प्यार का इजहार मन में अमूर्त हो तो वह ताजमहल से भी बड़ी चीज बनकर रहता है। लेकिन जब उसे कोई भौतिक आकार देता है तो वह न चाहते हुए भी एक निवेश की शक्ल अख्तियार कर लेता है। निवेश जरा वाणिज्यिक शब्दावली हो जाता है अन्यथा ध्यान से देखो तो घर-परिवार में दायित्व-निर्वाह के नाम पर जो हो रहा है वह एक प्रकार का निवेश ही तो है!” “मुझे लगता है तुम पूरी तरह बनिया हो गये हो जो हर चीज को नफा-नुकसान के तराजू पर तौलने लगे हो। माँ-बाप अपने बच्चों के लिए जो करता है, पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए जो समर्पण भाव रखते हैं, बहन भाई में जो एक रिश्ते की पवित्रता होती है, क्या यह सब कुछ निवेश पर टिका है?”

“ध्यान से देखो तो बेशक सब कुछ निवेश पर ही टिका है। पिता बेटे को पढ़ा रहा है, बेटी के लिए दहेज दे रहा है, हम पड़ोसी की मदद कर रहे हैं एक रिटर्न पाने की अपेक्षा से सारा कुछ निवेश ही तो है। हमारा भविष्य बढ़िया रहे हमारा परलोक बढ़िया रहे अगला जन्म बढ़िया रहे यह कामना उस लाभांश की तरह ही तो है जिसके निवेश के उपरांत प्राप्त होने की आशा रहती है।”

पिंकी को लगा जैसे उसके सामने उसका पति नहीं कोई अजनबी मुखातिब है जिसके दिमाग पर खुली अर्थव्यवस्था की तरह एक साथ कई देश के झंडों के रंगों का घालमेल हो गया है। हर चीज में बाज़ार और बाज़ार में हर चीज ढूँढ़ने लग जानेवाले उस आदमी ने माधुरी नाम को एक ब्रांड बना लिया है और इस नाम का जलाल यह है कि वह पति होने को भी एक व्यवसााय मानने लगा है। क्या दाम्पत्य अब खरीदफरोख्त के गणित से संचालित होगा?

गोरेलाल को लगने लगा कि फुल्लू सचमुच माधुरी को दिलोजां से चाहने लगा है। पड़ोस के दुकानदार भी लक्ष्य करने लगे कि फुल्लू की प्रकृति कुछ-कुछ असामान्य होने लगी है। उसके जरा विशिष्ट होते जाने पर उन्हें चिढ़ तो थी ही, उसे सुनाकर कुछ लोग माधुरी के बारे में उल्टी बातें, “माधुरी माने हुस्न का बियर बार' 'फ्लॉप फिल्म की फूलन' 'दांत दिखाये, कमर लचकाये' आदि कहने लगे। कुछ लौंडों ने तो तंज और फब्तियों 'लल्लू जगघर चाटवाला, जपे माधुरी नाम का माला', 'कौआ चले हंस की चाल, काले रंग का नहीं खयाल' ‘धागा खींचा नेने ने गुड्डी उड़ी विदेश, मजनू की नानी मरी लगी नाक में ठेस' आदि की कुछ तख्तियाँ और पोस्टर बना लिये, जिन्हें वे फुल्लू के आने-जाने के रास्ते में सड़क पर या दीवार पर चिपका देते या फिर उसकी दुकान की शटर के नीचे डाल देते। वह बेजब्त हो जाता, उखड़ जाता, बिगड़ जाता। पिंकी ने इसे झिड़ककर समझाने की कोशिश की, “माधुरी तुम्हारी खरीदी हुई जायदाद नहीं हैं, वह सबकी है। कोई उसे गाली दे या प्यार करे, तुम उसे रोकनेवाले कोई नहीं होते।”

फुल्लू जानता था कि यह बात ठीक है, फिर भी माधुरी के प्रति कोई अपशब्द सुनकर वह खुद को बेकाबू हो जाने से रोक नहीं पाता था। चिढ़ानेवाले का मकसद पूरा हो जाता। उसके चिर प्रतिद्वंद्वी चिरंजी की इन हरकतों की पृष्ठभूमि में खास भूमिका रहती। वह रोज उसके खिलाफ कोई न कोई नया किस्सा 'जन्म दिन का बधाई कार्ड भेजा था तो उधर से उसका सेक्रेटरी का जवाब आया कि जरा होश में और अपनी औकात में रहो' 'सुबह माधुरी का माला जप रहा था, पत्नी ने देखा तो सिर पर चार-पाँच चप्पल दे मारा' ब़ाज़ार में चला देता ताकि ग्राहक उसे सनकी समझकर भड़क जायें। मगर वह हैरान था कि ग्राहकों का उसके प्रति क्रेज और बढ़ता जा रहा था। शायद उसकी दीवानगी में निहित निश्छलता, पवित्रता और परदु:खकातरता से लोग उसके और भी कायल बनते जा रहे थे।

चिरंजी के ग्लोबल पिज्जा का जादू इतना क्षणभंगुर होकर रह जायेगा, इसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी। वह फुल्लू के प्रभामंडल को खत्म करने के लिए उसी की तर्ज पर सोचते हुए दिमाग दौड़ाने लगा। उसे याद आया कि फुलुआ ने लॉटरी का झाँसा देकर सबको उल्लू बनाया आ़ज तक उस घोषित लॉटरी का ड्रॉ नही हुआ। उसके मन में पहले तो आया कि इस मुद्दे को उभारकर उसे लफ्फाज साबित कर दें ताकि वह सबकी नज़रों में गिर जाये और खुद को सच्चा-सही साबित करने के लिए वह वाकई एक लॉटरी करवा डाले। फिर मन में आया कि ऐसा करने की जगह उसी के रास्ते पर वह भी क्यों न चलें? उसने जब बिना खर्च किये काम निकाल लिया तो इसे क्या जरूरत है खर्च करने की? लॉटरी घोषित करके ड्रॉ की एक-एक कर कभी न आनेवाली तारीख बढ़ाता जाये। उसने कोक बनानेवाली एक कंपनी के स्थानीय मैनेजर को पटाया, चूँकि इस ब्रैंड के पेय का बहुत बढ़िया कलेक्शन देनेवाला वह एक अग्रगण्य रिटेलर था। इस कंपनी की मदद से माधुरी के कार्यक्रम की उसने तैयारी शुरू कर दी। जोरदार प्रचार किया जाने लगा अमुक तारीख को शहर के सबसे बड़े स्टेडियम में माधुरी का लाइव शो। शो के लिए हर टिकट धारक को पिज्जा, कोक और लॉटरी कूपन फ्री। लॉटरी का ड्रॉ ऑन स्पॉट माधुरी द्वारा। प्राइज में कई ब्रैंड की कारें शामिल।

गोरेलाल ने फुल्लू को बताया कि उसका बिजनेस प्रभावित करने के लिए यह नहले पे दहला चाल चली जा रही हैं। एक बारगी फुल्लू को भी लगा कि सचमुच यह तो सरासर बदमाशी है। उसे करना ही था तो रवीना टंडन, ऐश्वर्या राय, प्रीति जिंटा, करिश्मा कपूर या रानी मुखर्जी नाइट करा लेता। जब वह देख रहा है कि उसके सामने माधुरी के लिए इतना कुछ हो रहा है, फिर माधुरी पर इसका क्या हक था? अगले ही पल उसे खयाल आया कि अगर इसने माधुरी को चुना है तो ठीक ही चुना है। माधुरी का मुकाबला किसी और से हो भी कहाँ सकता है। पूरी दुनिया में माधुरी तो सिर्फ एक ही है अव्वल, बेमिसाल, अभूतपूर्व, जिसके नृत्य और मुस्कराहट का कोई विकल्प नहीं, कोई सानी नहीं। चलो अच्छा है, उसकी एक जमाने की साध पूरी हो जायेगी। माधुरी को उसने आज तक पर्दे पर या चित्रों में ही देखा अब सामने साक्षात देख सकेगा। उम्मीद है एकदम पास से मिलने-बतियाने का उसे सुअवसर भी मिल जायेगा। निश्चित रूप से जब उसे मालूम होगा कि उसका ऐसा कोई फैन है जो सालों भर किसी खुदा की तरह उसकी इबादत करता है तो वह जरूर इंकार नहीं कर सकेगी।

माधुरी आयी आ़ने की एक बड़ी कीमत लेकर बड़ी कीमत, जिसे चिरंजी ने और कोक कंपनीवाले ने एक जरूरी निवेश समझकर जुटाया किसी तरह। वे जानते थे कि यह कीमत शो के टिकट बेचकर बहुत हद तक वसूल ली जायेगी। उनका अनुमान सही साबित हुआ। चूँकि देखनेवालों की भेड़ियाधसान भीड़ हज़ारों में जुटी पूरे शहर में मानो माधुरी का बुखार छा गया। चिरंजी मन ही मन सोचता रहा कि कितने पागल हैं यहाँ लोग कि उस ग्लैमर को देखने के लिए मरे जा रहे हैं जिससे उन्हें कुछ हासिल नहीं होना है। शो देखनेवालों में ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे सभी थे नहीं था तो एक फुल्लू, जिसके लिए चिरंजी ने खास तौर पर हिदायत दे रखी थी कि वह किसी भी तरह अंदर दाखिल न हो सके। अखबारों में माधुरी के साथ चिरंजी के धुआँधार फोटो छपने लगे।

गोरेलाल इस विडंबना पर हैरान था कि माधुरी के साथ सचमुच जिसका फोटो होना चाहिए उसे धकियाकर किनारे कर दिया गया। यहाँ तक कि उसे एक झलक तक देखने का अवसर नहीं दिया जा रहा। जो चिरंजी माधुरी के बारे में हमेशा अनर्गल, भी और अश्लील अफवाहें इज़ाद करता रहता था, वह आज खुद को इसका सबसे बड़ा कद्रदान सिद्ध करने में लगा था। फुल्लू रात-दिन उसका कीर्तन करता रहता था, मगर आज किसी खतरनाक वायरस की तरह वह परे हटा दिया गया।

गोरेलाल के लिए यह रवैया असह्य हो गया। उसने अपनी पत्रकार की हैसियत दिखाकर होटल में माधुरी से मुलाकात की और फुल्लू के बारे में विस्तार से बताया कि उसके नाम पर वह क्या क्या आयोजन करता है किन-किन लाचार और उपेक्षित लोगों में भलाई और पुण्य का काम करता है उसकी फिल्मों को कितनी आसक्ति और बेताबी से एक उत्सव की तरह देखता है किसी देवी की तस्वीर की तरह उसके फोटो के मढ़े फ्रेमों से दुकान की दीवारें सजा रखी है उसके फोटो का लॉकेट तक बनवाकर उसने गले में पहन रखा है।

माधुरी के चेहरे पर यह सब सुनकर अच्छा भाव आने की जगह एक हिकारत का भाव उभर आया। उसने कहा, “ऐसे-ऐसे बेढंगे लोगों के कारण मेरी छवि खराब होती है। ये लोग मुझे एकदम चीप बना देते हैं। अब भला चाटवाला, सफाईवाला, रिक्शावाला, कबाड़ीवाला मेरे लिए इस तरह पागलपन दिखायेंगे तो संभ्रांत समाज मुझे क्या महत्त्व देगा?” माधुरी की नजर अचानक सामने खड़े एक पुलिस ऑफिसर पर पड़ी जो उसकी सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर नियुक्त था और अपने आवभाव से यह कई बार जतला चुका था कि वह माधुरी का घनघोर प्रशंसक है। गोरेलाल की शिकायत पर अपना कान उसने भी खड़ा किया हुआ था। माधुरी ने उसे संबोधित किया, “सुन रहे हो ऑफिसर, तुम्हारे रहते इस शहर में मेरे नाम पर लोग क्या-क्या फूहड़ तमाशा कर रहे हैं? तुम कहते हो कि मेरे बहुत बड़े फैन हो, फिर भी क्या इस तरह की भौंडी हरकतों पर अंकुश नहीं लगा सकते?”

ऑफिसर को लगा कि माधुरी जी ने उसे कुछ करने के लिए कहकर मानो उसके जीवन को सार्थक कर दिया। इतनी बड़ी स्टार उसे कुछ कह रही है, क्या कह रही है, जायज या नाजायज यह मायने नहीं रखता बस वह कुछ कह रही है और जो कह रही है उसका पालन होना चाहिए।

गोरेलाल को लगा कि जैसे कोई बड़ा हवाई जहाज क्रैश होकर ठीक उसके सामने गिर पड़ा। लाखों-करोड़ों की कीमत वाला और बहुत ऊपर उड़ने वाला हवाई जहाज जब जमीन पर गिरता है तो तहस-नहस होकर किरचों में तब्दील हो जाता है। हवाई जहाज का क्रैश होकर गिरना हमेशा उसे विचलित कर देता रहा है आज भी वह विचलित हुए बिना न रह सका। गोरेलाल ताज्जुब में पड़ गया कि वह तो फुल्लू का भला करने चला था फिर उसका बुरा क्यों होने लगा? क्या उससे कोई चूक हो गयी? या कहीं ऐसा तो नहीं कि माधुरी जैसे लोगों के लिए अच्छाई-बुराई की परिभाषा अलग है? उसका माथ एकदम चकरा गया। उसने एक तल्ख रिपोर्ट लिखी कि फुल्लू जैसे अदना व्यक्ति की भावनाओं का इन नामचीन फिल्मी हस्तियों के लिए बस उतना ही महत्त्व जितना किसी रैपर या पैकिंग का होता है अंदर का माल यूज किया और बाहर का थ्रो कर दिया। यही फुल्लू अगर साधारण चाटवाला की जगह किसी पंचसितारा होटल का मालिक होता या फिर प्रसिद्ध चित्रकार, पत्रकार या मंत्री तो इनकी जिह्वा से कृतज्ञता के संभाषण कभी खत्म नहीं होते।

यह रिपोर्ट सुबह छपी मगर उस पुलिस ऑफिसर ने शाम में ही अपनी खैरख्वाही जताकर पीठ थपथपवा ली और कृतार्थ हो गया। उसने दुकान जाकर माधुरी के सारे ब्लोअप, पोस्टर, कटआउट और सीडी-कैसेट जब्त कर लिये। दीवारों पर लिखे फिल्मों के नाम और गानों के बोल आदि पर अलकतरा पोतवा दिया। ऐसा लग रहा था जैसे वह माधुरी का पक्ष नहीं ले रहा, बल्कि विरोध कर रहा है। फुल्लू की तो जैसे अक्ल ही गुम हो गयी थी। उसे कहीं से भी समझ में नहीं आ रहा था कि किसी को अगर वह ईश्वर की तरह ऊँचा स्थान दे रखा है तो इसमें गुनाह क्या है? उसकी पत्नी पिंकी पर भी यह बर्बर कार्रवाई नागवार गुजर गयी थी, हालांकि इसी के साथ उसके मन का आधा हिस्सा मुदित भी था कि चलो अच्छा हुआ इसे एक तमाचा लगा मुँह पर ज़मीन पर रेंगनेवाले चले थे आसमान में उड़ान भरने अब अक्ल ठिकाने आ जायेगी। गोरेलाल एक अपराधबोध से एकदम आहत महसूस कर रहा था उसी के कारण बेचारे फुल्लू के जिगर को लहूलुहान होना पड़ रहा है। उसने अपना तेवर सख्त बना लिया, “सुनो फुल्लू, ऐसी अहमक और कमजर्फ औरत का अपनी दुकान और ख्यालात से नामोनिशान तक मिटा दो। तस्वीरें ही लगानी हैं तो मदर टेरेसा की लगा दो और जो भी आयोजन करने हैं कल्याण-कार्य करने हैं, उनके नाम पर करो।”

पिंकी ने भी लगे हाथ अपने मन मुताबिक झोंके के साथ जरा उड़ लेने का आनंद उठाते हुए अपना इरादा सामने रख दिया, “मेरा भी मन एकदम घिना गया है इस माधुरी-फादरी से। अब इसके नाम पर तुम कुछ भी नहीं करोगे द़ुकान चले या न चले। सभी लोग ऐसे टोटके और स्वांग रचकर ही अपना व्यवसाय नहीं चलाते। अगर माधुरी के नाम से तुमने आगे कुछ किया तो भगवान कसम मैं तुम्हें छोड़कर मायके चली जाऊँगी और फिर कभी वापस नहीं आऊँगी।”

फुल्लू बहुत असहाय नज़रों से कभी गोरेलाल को, कभी पिंकी को और कभी अपनी बदसूरत-सी हो गयी दुकान को निहार रहा था। उसके पास बोलने के लिए मानो मुँह ही नहीं रह गया था। दूर से देखकर चिरंजी खुश हो रहा था और उसे लग रहा था कि उसने फुल्लू को एक जोर की पटकनी दे दी।

गोरेलाल फिर एक प्रहारात्मक रिपोर्ट लिखने के लिए तड़फड़ा उठा। मगर पुलिस ऑफिसर ने उसे और उसके संपादक को भी चेता दिया कि माधुरी के खिलाफ मुहिम बंद कर दे, नहीं तो उन्हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। फुल्लू मन मसोसकर रह गया। काश वह अखबार का खुद मालिक और संपादक होता। अखबार में कोई रिपोर्ट न छपने के बाद भी उसने देखा कि दुकान की कहानी कानों-कान पूरे शहर में फैल गयी और अगले दिन दुकान में आनेवालों की संख्या और भी बढ़ गयी। सभी देखना चाहते थे कि जो हवाई जहाज आसमान में उड़ता है वह क्रैश होकर जमीन पर कैसे ढेर हो जाता है।

भीड़ को देखकर चिरंजी को मानो फिर साँप सूँघ गया था।

कुछ अर्सा बीता चुप-चुप रहनेवाला फुल्लू अचानक फिर सुर्खरू हो उठा। वह माधुरी के बेटा होने की खुशी में एक उत्सव मनाने की तैयारी करने लगा। गोरेलाल, पिंकी, चिरंजी आदि हैरान रह गये। पिंकी तमतमाकर मायके चली गयी गोरेलाल ने भी दुकान पर न आने की कसम खाली फुल्लू के आसपास अब अपना कोई नहीं रह गया हालाँकि दुकान में ग्राहकों की संख्या और बढ़ गयी।