नीरस कमरा / अशोक कुमार शुक्ला

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यादों का झरोखा
तो क्या पीछा करोगे इनका..?

बहुत हो गए पहाड़ के वो किस्से जब समझ विकसित हो रही थी। आज याद कर रहा हूँ बस दो हाथ की दूरी पर ठिठककर खड़े उस किस्से को जो किसी भी हॉस्टलर के लिए लालित्य भरा हो सकता है। इस किस्से में है लखनऊ सिटी का रेलवे स्टेशन, रचनात्मक प्रशिक्षण विद्यालय का हॉस्टल और हॉस्टल के पीछे मुस्लिम कालोनी..! लखनऊ से बाहर के मित्रो को बता दूँ कि यहाँ का जुबली कालेज ठीक लखनऊ की नाक पर बसता है।चारो और मुस्लिम आबादी है। इसी कालेज के ठीक बगल में था अपना हॉस्टल।जो कमरा हमें मिला था बड़ा नीरस सा था ..खिड़की खोलने पर कालेज का ग्राउंड दिखाई देता था जिसमें कालेज आवर्स के बाद सन्नाटा पसरा रहता ....कोई हलचल नहीं होती... वख्त बेवख्त हम हॉस्टलर चाय पीने सिटी रेलवे स्टेशन चले जाया करते थे..जहां हर समय चहल पहल रहती थी...। उस दिन विमल अवस्थी के साथ था मैँ... स्टेशन पर चाय पी रहा था। प्लेटफार्म पर तीन लडकियां एक साथ दाखिल हुयीं । उनका बैग बता रहा था कि किसी स्कूल में पढ़ती हैं ... उन्हें देखते ही विमल बोला- "देखना ..ये तीनो अभी रिटायरिंग रूम में चली जाएंगी..!" मैंने गौर किया सचमुच वो तीनो रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय के भीतर चली गयीं। मैंने विमल से पूछा- "यार तुम्हे कैसे पता था यह...कि वो रिटातायरिंग रूम में ही जाएंगी..?" "अबे...मुझे तो यह भी पता है कि जब वो निकलेंगी तो तुम उन्हें पहचान भी न सकोगे..." विमल ने बताया। "क्या मतलब...? क्यों नहीं पहचान सकेंगे..?" मैंने पूछा। "क्योकि तीनो एक जैसी लगेंगी.."विमल बता ही रहा था कि प्रतीक्षालय के भीतर से बुर्का पहने कुछ महिलायें बाहर निकली तो विमल ने पूछा- "नहीं पहचान पाये..न?" मैंने पूछा -"किसको..?" विमल ने बताया -"अरे मुर्ख..! ये वही हैं..जो अंदर जाकर बुर्का ओढ़कर निकली हैं" "ओह हो...तुम्हे बड़ा पता है इनके बारे में..?"मैंने पूछा तो विमल हंस कर बोला- "हाँ पता तो है..मुझे तो यह भी पता है कि ये जाएंगी कहाँ.." विमल के इस अति आत्मविश्वास का कारण मुझे नहीं पता था सो मैंने बात आगे बढ़ाई "अच्छा ..तो बताओ न कहाँ जाएंगी..?" मेरी उत्सुकता को भांपकर विमल ने कहा "तो फिर चल मेरे साथ..!" मैं अचकचा गया.-"तो क्या पीछा करोगे इनका..?" "नहीं यार... पीछा नहीं करना है...हॉस्टल में अपने कमरे पर चलने को कह रहा हूँ यार.." ...और मैं उस दिन अपने कमरे पर न लौटकर हॉस्टल में विमल के साथ उसके कमरे में चला गया। विमल का कमरा तो मेरे कमरे से भी ज्यादा नीरस था। वह था तो प्रथम तल पर लेकिन कालेज की सीमा से लगा हुआ था। खिड़की खोलने पर घनी मुस्लिम आबादी दीखती थी..दूर भी नहीं बिलकुल नजदीक ही..एक दो मंजिला मकान था जिसकी एक खिड़की कालेज हॉस्टल की ओर खुलती थी।घर की छत पर कबूतरो के लिए बना मचान और मुर्गियों का बाड़ा यही दीखता था। मैने कहा-"यार विमल तुम्हारा कमरा तो मुझसे भी ज्यादा खराब है यार..खिड़की भी नहीं खोल सकते.." "नहीं..! ऐसा नहीं है यार...मेरे कमरे की खूबसूरती देखनी हो तो सुबह आठ बजे मेरे कमरे में आना.." उसने बताया। "क्यों ऐसा क्या दिखता है सुबह..?"मैंने पूछा..। उसने शैतानी भरे लहजे में हंसकर कहा-"हाँ ..दिखता तो जरूर है कुछ.." मेरी उत्सुकता बढ़ गयी तो .. अचानक सामने वाली खिड़की में हलचल हुई..। मुझे सामने से हटा कर विमल खिड़की के पास खड़ा हो गया और इशारे से मझे दूर रहने को कहा। उसके बाद जो देखा वह सचमुच यकीन नहीं करने वाला था..सामने वाली खिड़की खुली और उससे एक लड़की ने झाँका... अरे यह तो उन्ही तीन लड़कियो में से एक थी..जिन्हें रेलवे स्टेशन के पास देखा था। मैं कुछ समझ पाता इसके पहले उसने गजब की अंगड़ाई ली बिलकुल वैसी जैसी सोनम कपुर ऋतिक रोशन अभिनीत ने उस खास गाने में ली गयी है...और हाँ प्रतिउत्तर में विमल भाई भी उसी तरह अंगड़िया लिये... हम तो बस उन दोनों की इस अदा को देखने भर से ही अंदर ही अंदर पिघल रहे थे...