नीलाम्बर-पीताम्बर / प्रदीप प्रभात

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नीलाम्बर-पीताम्बर के जनम तिथि काहीं उपलब्ध न´ छै। अंग्रेजोॅ के हस्तक्षेप सबसेॅ पहिलेॅ 1772 में पलामू राज्य के कामों में होलै। धीरे-धीरे ब्रिटिश शासकोॅ रोॅ मूल उद्देश्य बनी गेलै। ई कारण पलामू के शासक सीनी आरो जनता 3में आक्रोश बढ़लोॅ गेलै। पलामू में अंग्रेजोॅ सें उलझै के लेली उचित समय रोॅ प्रतिक्षा छेलै। पलामू में 1857 के पलिेॅ शान्ति तेॅ छेलै मतर कि भीतरें-भीतर असंतोष रोॅ आगिन सुलगी रहलोॅ छेलै।

पलामू जिला में 'चेरो' आरो 'खरबार' जातिसीनी रोॅ प्रधानता छै। खरबार विभिन्न वर्गां में बँटलोॅ छै। हेकरा में 'भोगता' प्रमुख छै। भोगता जाति केॅ आजादी जान सें भी प्यारोॅ रहलोॅ छै ई लोग अत्यन्त साहसी आरो वीर होय छै। ई लोग विदेशी शासक के घोर विरोधी छेलै। हिनका सीनी रोॅ अंतिम प्रधान-जाति निष्कासित होय केॅ मरलै। हुनकोॅ मृत्यु रोॅ पश्चात् हुनका दू बेटा नीलाम्बर आरो पीताम्बर केॅ पलामू के पहाड़ी श्रेणी रोॅ हर्रा आरो यहाँ करोॅ दुर्गम परकोट के जागीर नाम मात्र रोॅ लगान पेॅ छै देलोॅ गेलोॅ छेलै। ई हुनकोॅ बुद्धिमता छेलै कैहनेॅ कि हेकरा सें भोगता प्रधान रोॅ सहानुभूति होकरा मिललै आरो ई क्षेत्रोॅ में शांति स्थापित भी होलेॅ। मतुर कि 2 अक्टुबर 1857 केॅ राँची सैनिक विद्रोह के बाद नीलाम्बर-पीताम्बर दून्हु भाय के अगुयायी में भोगता सीनी आरो सब्भेॅ खेरवार समुदाय केॅ एक विशाल शक्तिशाली संगठन बनैलोॅ गेलै।

नीलाम्बर-पीताम्बर गुरिल्ला युद्ध में निपुण छेलै। आपनोॅ उŸाराधिकार रोॅ ख्याल करि केॅ हिनी दून्हु भाय आक्रमण करै के उचित अवसर देखलकै आरो पूरा तैयारी रोॅ साथें 21 अक्टूबर 1857 केॅ आक्रमण करि देलकै। नीलाम्बर-पीताम्बर के अगुआयी में खेखार, चेरो के एक टुकड़ी आरो लगभग 500 भोगता सीनी नेॅ चैनपुर, शाहपुरा आरो लेस्लीगंज पेॅ आक्रमण करलेॅ देलै। चैनपुर के लड़ाय में ई रघुवर दया सिंह सें पराजित होय गेलै मतुर कि लेस्सीगंज के आक्रमण में सफल रहलैं।

सीनियर असिस्टेंट कमिश्नर जे. उस। डेविस नेॅ 9 नवम्बर 1887 केॅ रामगढ़ कैवेलरी आरो सिक्ख वोलंटियर के साथेॅ लेस्लीगंज के लेली प्रस्थान करलकै। जे. एस. डेविड कैप्टन नेशन के नेतृत्व रोॅ सेना के साथेॅ 20 नवम्बर 1857 केॅ छेछारी के लेली रबाना होलै आरो विद्रोही सेना रोॅ सहयोग करै के आरोपोॅ में बेॅनेॅ भुइयाँ कुँवर साहब के सम्पŸिा जब्त करि लेलकै आरो हुनकोॅ चचेरोॅ भाय शील साहबोॅ केॅ गिरफ्तार करि लेलकै। हुन्नेॅ 29 नवम्बर 1857 केॅ जुधुर सिंह आपनोॅ सहयोगीसीनी के साथेॅ ऊँटारी पहुँची गेलै। सच ई छै कि नवम्बर के अन्त तांय सम्पूर्ण पलामू क्षेत्रोॅ में अंग्रेजोॅ के विरूद्ध विद्रोह फैली गेलोॅ छेलै।

23 फरवरी 1858 तांय नीलाम्बर-पीताम्बर केॅ पकड़ै में डाल्टन आरोॅ हुनकोॅ सेना असफल रहलै। चारोॅ तरफ जंगलोॅ में नीलाम्बर-पीताम्बर केॅ पकड़ै लेली सेना भेजी देलोॅ गेलै। ढेरी सिनी प्रभावशीली आदमी पकड़ैलोॅ गेलै। मतुर कि प्रलोभन आरो दबाबोॅ रोॅ बाबजूद को न´ आपनोॅ सर्वोच्च नेता सीनी के गुप्तठीकानोॅ बतैलकै। डाल्टन कोय भी कीमत पर नीलाम्बर-पीताम्बर केॅ पकड़ैलेॅ चाहै छेलै। पकड़ै लेली निर्ममतापूर्वक मारलोॅ-पीटलोॅ जाय छेलै। अंत में एक वेरी ई दोनों भाय आपनोॅ परिवारवालासीनी साथेॅ कोय गुप्त जग्धा पर खाना खाय रहलोॅ छेलै वहीं समय में आपनोॅ गुप्त चरों के सूचना पावी केॅ डाल्टन हुनका सीनी केॅ पकड़ै लेॅ दौड़ी पड़लै। डाल्टन नेॅ ऊ आवास के घेरी लेलकै। दोनोॅ भाय तलवार लैकेॅ सेना सेॅ भीड़ी गेलै। मतुर कि दोनोॅ भाय-भाय तलवार लैकेॅ सेना सेॅ भीड़ी गेलै। मतुर कि दोनोॅ भाय पकड़ाय गेलै। हुनका पर छोटोॅ मुकदमा चलाय केॅ एक आमोॅ गाछी सेॅ लटकाय केॅ सार्वजनिक रूपोॅ सेॅ लेस्लीगंज में अप्रैल 1859 में फाँसी दै देलोॅ गेलै। दोनोॅ सपूत शहीद होय गेलै। अय्योॅ ऊ फाँसी स्थल आरो गुफा के पूजा करलोॅ जाय छै।

कहलोॅ जाय छै कि पीताम्बर के फाँसी रोॅ रस्सी टूटी गेलोॅ छेलै फेनू नियम के खिलाफ हुनका दोवारा फाँसी पेॅ लटकैलोॅ गेलै। नीलाम्बर-पीताम्बर रोॅ साथेॅ शिवचरण मांझी, रूदन मांझी आरो भानुप्रताप सिंह जैहिनोॅ 150 अन्य देशभक्तोॅ केॅ भी मौत रोॅ सजाय दै देलेॅ छेलै।