नेताजी की जय / अलका प्रमोद

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”बेटा तुम कुछ तय कर के बता ही दो लड़की वालों को टालते टालते मै तंग आ गया हूँ। अभी कल ही सहदेव महतो ने घेर लिया, कह रहे थे कि उनकी भांजी सुंदर है, सुशील है और बीए पास है, कहो तो तुम्हारे बेटे के लिये बात चलाएं”

नरेश एक शानदार सूट पहने होटल से बाहर आता है तो दरबान उसे देख कर एक जोर दार सलाम ठोंकता है। नरेश उसे बिना देखे सिर तिरछा करके आधा इंच सिर झुका कर उसके अभिवादन का उत्तर देता है।उसे देखते ही गाड़ी का ड्राइवर गाड़ी ले कर पोर्च में आ जाता है और दौड़ कर दूसरी ओर आ कर गाड़ी का दरवाजा खोल कर झुक कर खड़ा हो जाता है।

दिन में देखे अपने इन सपनों पर नरेश स्वयं ही हंस पड़ता है। दिन में सपनें देखना उसकी पुरानी आदत है पर पहले इन सपनों की दुनिया से वह जब जागता था, तो यह सपने उसे कुंठित कर देते थे और उसकी गरीबी और बदहाली की अनुभूति उसे अधिक तीव्रता से होती थी। पर आजकल उसे ये दिवा स्वप्न एक मधुर अनुभूति से भर देते हैं, आज कल उसके मन में एक आशा जग चुकी है कि वह दिन दूर नहीं जब उसके यह सपने पूरे होंगे। उसका यह विश्वास जगा था राजवीर जी से मिलने के बाद। बस उनका सत्ता में आना ही नरेश के सपनों के पूरे होने की गारंटी थी।

उस दिन के एक एक क्षण की स्मृति नरेश के मन मस्तिष्क में आज भी अंकित है। उस दिन यूं ही वह राज वीर जी की सभा में उनका भाषण सुनने चला गया था।

”मैं जानता हूँ कि भूखे पेट सत्य का मार्ग नहीं अपनाया जा सकता “

“कार में बैठ कर आदर्श की बातें करना आसान है पर दूसरों का दुख समझना है तो उसकी जड़ में जाओ।यदि कोई रोटी की चोरी करे तो उसे सजा देने से पहले पता करो कि उसे चोरी क्यों करनी पड़ी “

“ आज वह समय आ गया है जब आज का युवा मात्र रोटी नहीं वरन् बराबरी का हक चाहता है।”

“ वह मेहनत में पीछे नहीं है उसे काम चाहिये”।

नरेश को लग रहा था मानो उसके ही मन की बात वह बोल रहे हों। कितना विश्वास और आशा थी उनकी बातों में उन्होने अन्य नेताओं की तरह न तो कोरे आदर्शवाद की बातें की थी न ही विपक्ष पर दोषारोपण। वरन् ठोस जमीन से जुड़ी विचार धारा थी उनकी।वह हवा में बातें नहीं करते थे कि हर आदमी को गाड़ी-बंगला दे देंगे बल्कि वह ईमानदारी से स्वीकारते थे कि समस्या इतनी विकराल है कि किसी एक के वश का नहीं है, इससे निबटना। इसके लिये देश के युवा वर्ग को सामने आना होगा। जब तक गद्दी पर बैठे लोग युवा वर्ग की ताकत को नहीं पहचानंगे और उसे इस तंत्र का भागी दार नहीं बनाएंगे, उसे सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराएंगे, तब तक देश की किसी भी समस्या का समाधान संम्भव नहीं है।

उन्होने समस्याओं के ठोस समाधान रखे। बस उनके सत्ता में आने की देर है, फिर तो हर युवा को उनका साथ देने के लिये आगे आना होगा...

उनकी तार्किक बातें, उनकी ओजस्वी वाणी, प्रभावशाली व्यक्तित्व, नरेश के मन पर भाषण सुनने के बाद, लौटने पर भी देर तक, मन पर थपकियां देता रहा। अगले दिन नरेश ने समाचार पत्र में पढ़ा कि उनका भाषण लोहिया पार्क में है और वह समय से पूर्व ही अपने काम से छुटटी ले कर सभा स्थल पर पहुंच गया, जिससे आगे बैठ कर ध्यान से उनकी कही एक एक बात सुन सके।अन्य नेताओं से भिन्न वे ठीक समय पर आ गये और जब तक वह बोलते रहे नरेश मंत्र मुग्ध-सा उनके जादू से बंधा उनके विचारों को आत्मसात् करता रहा... भाषण समाप्त होने पर राजवीर जी ने उसे इशारे से बुलाया, वह चौंक उठा, उसे विश्वास नहीं हुआ कि नेता जी उससे कुछ कह रहे हैं, पर जब दोबारा उन्होने उसे पास आने को कहा तो उसका हदय बल्लियों उछलने लगा, उसके आदर्श राजवीर जी, जिनके महिमा मंडल के प्रभाव से वह पूरी तरह बंधा है, वह स्वयं ही उसे बुला रहे हैं? राजवीर जी के पास जाने तक के कुछ क्षणो के अंतराल में ही सैकड़ों प्रश्न उसके मन में उमड़ने लगे, क्या वह उसके मन में जो उसके प्रति श्रद्धा है उसे समझ गये हैं या उससे कोई गलती हो गई है?

“तुम्हारा क्या नाम है? “

“जी नरेश”

“तुम मेरे साथ काम करोगे? “

नरेश को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, वह विस्मय विमूढ़-सा उन्हे देखता रहा। तब नेता जी के किसी कार्यकर्ता ने उसे टकोहा मारते हुये कहा” नेता जी की बात का जवाब तो दो “।

तब नरेश ने हड़बड़ाते हुये कहा ”ज्ज्ज्जजी आप आज्ञा दें क्या करना है “।

“तुम्हे देख कर पता नहीं क्यों हमंे लग रहा हे कि तुम में काबिलियत है। तुमको अवसर मिले तो बहुत आगे जाओगे इसी लिये मेैं तुम्हे अपने साथ जोड़ना चाहता हूँ।“

अगले दिन नरेश प्रातः ही नेता जी के कार्यालय पहुंच गया। घीरे धीरे नित्य शाम वह काम के बाद नेता जी के कार्यालय जाने लगा।अब तो देर रात्रि तक वह राजवीर जी के कार्यालय में कार्य करता।उसका तन मन नेता जी के लिये ही समर्पित था उनके कहने भर की देर होती और नरेश के लिये वह ब्रह्म वाक्य बन जाता और एक दिन अनेकों की ईर्ष्या का कारण बनता वह उनके मुख्य विश्वास पात्रों की श्रेणी में आ गया।

चुनाव आ गये, उसे तो बस एक ही धुन थी कि किसी भी तरह राजवीर जी को चुनाव जितवाना है। वही उन सबके सच्चे हितैषी हैं उन्ही के भरोसे समाज और देश सुधर सकता है।उसे राजवीर जी के रुप में एक ज्योति पुंज दिखाई पड़ रहा था और उस प्रकाश में ही उसका और उसके जैसे अनेक नवयुवकों का उद्वार है, ऐसा उसका मानना था। अब तो नरेश को दम मारने की भी फुरसत नहीं थी। प्रायः वह रात में दो तीन ही घंटे ही सो पाता। आज कल रोज ही कही न कही सभाएं आयोजित हो रही थीं। सभा में सब इंतजाम ठीक हो, अधिक से अधिक श्रोता हों, शान्ति रहे यह सब देखने का उत्तर दायित्व नरेश के कंधों पर ही था। कभी कभी तो अपने काम को देखने वह आधी रात में ही निकल पड़ता, यहाँ तक कि किस क्षेत्र में कितना प्रचार हो रहा है, कहाँ पोस्टर कम लगे हैं, कहाँ विपक्ष का प्रत्याशी अधिक लोकप्रिय हो रहा है, सारा सिरदर्द दूसरों का उत्तर दायित्व होते हुए भी, नरेश स्वयं देख आता। भले ही अन्य कार्य कर्ता इसे अपना अपमान समझ कर उससे चिढ़ जायें, पर उसे किसी की परवाह नहीं थी। उसे तो एक ही धुन थी, किसी प्रकार राजवीर जी सत्ता में आ जायें।

अम्मा बाबा उसके अथाह परिश्रम को देख कर, उसके स्वास्थ्य के लिये चिंतित हो जाते।उसे न खाने का सुध थी, न पहनने की। अम्मा देर रात तक उसका खाना लिये बैठी रहतीं, उसके न आने पर टोकतीं।

“ बिटवा तू दिन रात जी हलकान किये है न खाये का होस है न कपरा लत्ता का” पर उसका एक ही उत्तर होता “अम्मा तुम नहीं समझती राजवीर जी का जीतना कितना ज़रूरी है।”

चुनाव का दिन आ गया।ं प्रचार-प्रसार रुक गया था, पर नरेश की नींद अभी भी हराम थी।उसे चिन्ता थी कि कहीं फर्जी वोटिंग न होने पाये।विपक्ष के दयाल चन्द को असामाजिक तत्वों का पूरा सहयोग है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। जरा-सी चूक होने पर पूरा पासा ही पलट सकता है।

सड़कों पर सन्नाटा था और जगह जगह पुलिस चक्कर लगा रही थी। हर प्रत्याशी के पक्षधर मतदाताओं को घर से निकल कर वोट डालने के लिये प्रेरित कर रहे थे। नरेश चार बन्दूक धारियों के साथ जीप में एक मतदान केंद्र से दूसरे केन्द्र के चक्कर लगा रहा था। एक केन्द्र पर अचानक उसकी दृष्टि एक युवक पर पड़ती हैयह क्या अभी तो इसी युवक को नरेश ने दूसरे केन्द्र पर मतदान करते हुए देखा था। नरेश ने उसके पास जाकर पूछा ”क्या नाम है तुम्हारा?“

“तुम से मतलब?“

नरेश ने कहा “हां, क्योंकि तुम अभी दूसरी जगह वोट डाल चुके हो“।

तब तक वहाँ पर कई गुंडे टाइप के युवा एकत्र हो गये और इसके पूर्व कि नरेश और कुछ पूछताछ करे उसे पीटने लगे। बस फिर क्या था नरेश के साथी भी मैदान में आ गये और फिर थोड़ी देर में मारपीट और गोली की बौछारों ने दंगे की ष्शक्ल ले ली। जब तक पुलिस, स्थिति नियंत्रण में करती, दोनो पक्षों के दस बारह लोग धराशायी हो चुके थे।

जब नरेश के अम्मा बाबा को नरेश के गोली लगने की सूचना मिली तो उनका तो दिल ही बैठ गया। वे किसी तरह गिरते पड़ते अस्पताल पहुंचे।वहां अनेक घायल पड़े कराह रहे थे। वे अपने लाल को ढूंढने लगे, उसके सिर में गोली लगी थी और वह एक कोने में बेसुध पड़ा था, पर उसको देखने वाला कोई न था। वे दोड़ कर डाक्टर के पास गये।

“ डाक्टर बाबू मेरे लाल को बचा लीजिये उसे गोली लगी है“।

तो डाक्टर ने रुष्ट हो कर कहा”यहां तो सभी गंभीर ही हैं, सभी को गोली लगी है एक ही एक ही को तो देख पाऊंगा न? “

बाबा ने घबराकर उन्हे लगभग घसीटते हुय कहा ”वह मेरा अकेला बेटा है जल्दी देख लीजिये“।

डाक्टर ने उसका हाथ झटकते हुए कहा “अरे अकेला बेटा था तो संभाल कर रखते, जब नेतागिरी में पड़ेंगे तो गोली लगेगी ही, फिर हमारी मुसीबत करेंगे“।

जब डाक्टर ने उसकी न सुनी तो, दीनू घबरा कर नरेश के एक साथी के साथ राजवीर जी के पास दौड़ पड़ा। वहाँ पता चला कि राजवीर जी व्यस्त हैं।उसने दरबान से कहा” कह दो नरेश के बाबा आये है। नरेश की जान खतरे में हैं, वह उसका नाम सुनकर ही आ जाएंगें “।

“ अरे वह अपनी हार जीत को देखें कि तुम्हारा पचड़ा सुनें “।

यह सुनकर दीनू आपे से बाहर हो गया, वह भड़क उठा और बोला” तुम्हारे साहब की खातिर ही उसकी जान खतरे में है और तुमको यह सब पचड़ा दिखाई दे रहा है“।

तभी राजवीर जी बाहर आ गये उन्हे देखकर गार्ड ने बताया “सर यह आदमी अपने कार्यकर्ता नरेश का बाप है, उसे गोली लगी है, इसी लिये यह आप के पास सहायता के लिये आया है।”

फिर सफाई देते हुय बेाला “सर हम मना कर रहे हैं कि आप बिजी हैं पर यह सुनता ही नहीं“।

दीनू राजवीर जी को सामने पाकर उसके पांव पर गिर पड़ा” हुजूर नरेश की हालत बहुत खराब है कोई डाक्टर ध्यान नहीं दे रहा है, आप ज़रा चल कर कह दें तो डाक्टर उसको देख लेंगे, वह बच जाएगा”।

“ क्या कह रहे हो अपने नरेश को गोली लगी है हमे तो किसी ने बताया ही नही। क्या बताये हम तो बहुत व्यस्त हैं, पर चिन्ता न करो, हम अभी डाक्टर को फोन पर कह देते है कि उसका खास खयाल रखा जाय और तुमको रुपये आदि की जो ज़रूरत हो बताना, नरेश का इलाज हम करायेंगे।”

राजवीर जी का आश्वासन पाकर दीनू को लगा मानो नरेश ठीक हो गया, उसने हिकारत से गार्ड को देखा मानो कह रहा हों कि देखा मालिक हमारे नरेश को कितना माने हैं और तुम उसी नरेश के बाप को टरका रहे थे? पर नरेश के ठीक होने के आश्वासन से सन्तुष्ट दीनू ने मन ही मन गार्ड की इस धृष्टता के लिये उसे माफ कर दिया।

दीनू दौड़ता दौड़ता अस्पताल आया, वहाँ पता चला कि डाक्टर ने कहा है कि उसका आपरेशन करना पडे़गा। आपरेशन के लिये बीस हजार रुपये चाहिए थे। दीनू फिर राजवीर जी की शरण में गया पर राजवीर जी को समय न मिलना था न मिला। दीनू ने उसके पी०ए० से कहलवाया कि नेता जी ने रुपये देने का आश्वासन दिया था। पर वह बोला 'कल आना।”

उस तरह के न जाने कितने कल निकल गये।

चुनाव का परिणाम आ चुका था, राजवीर जी भारी मतो ंसे विजयी हो गये थे।अब तो उनके पास बिल्कुल ही समय न था। नरेश की हालत गिरती जा रही थी, जब दीनू को पता चला कि राजवीर जी चुनाव जीत गये है तो उसको आशा बंधी, चलो अब तो राजवीर जी की चिन्ता दूर हुई अब वह ज़रूर अपने खास नरेश के बारे में सुध लेंगे आखिर उनकी जीत में उसका भी तो योगदान है। नरेश की हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी पर न तो नेताजी को समय मिल रहा था न ही उन्होने रुपये भिजवाये थे। दीनू बारबार नर्स और डाक्टर की डांट खाकर भी दिन रात उनके हाथ पैर जेाड़ता और कहता” आप मेरे बेटे का आपरेशन कर दीजिये अभी नेताजी काम में लगे है पर उन्होने कहा है कि वह पैसा भिजवा देंगे“।

एक दिन डाक्टर ने उसकी चिरौरी से तंग आकर उसे समझाया” देखो पैसा तो आपरेशन के पहले ही जमा करना पड़ता है अब देर न करो एक दिन में पैसे का इंतजाम कर लो वर्ना मामला हाथ से बाहर हो जाएगा।”

दीनू फिर राजवीर जी के घर की ओर चल पड़ा उसकी सांस फूल रही थी, पर शायद बेटे को जीवित रखने की जिजीविषा ही उसे चल़ा रही थी॥राजवीर जी के घर पर जीत का जश्न मनाया जा रहा था। राजवीर जी की जयकार से आकाश गूंज रहा था। दीनू भीड़ को चीर कर नेताजी मिलने को आगे बढ़ा पर विजय के मद में उन्मत्त भीड़ में उस दुर्बल दीनू के लिये कहाँ जगह थी?

वह जितना आगे जाने का प्रयास करता भीड़ उसे उतना ही पीछे ढकेल देती। वह बड़बड़ा रहा था“ भैया हमें नेताजी से मिलने दो हमरे बिटवा की जान खतरे में है हमार मिलना बहुत ज़रूरी है।“

तभी शेार उठा “नेता जी आ गये, नेता जी आ गये”।

राजवीर जी आ गये थे।उन्हे हार पहनाने की होड़ में धक्कम धुक्का होने लगी उसी में आगे जाने की कोशिश में दीनू गिर पड़ा और फिर न जाने कितने पाँव उसे कुचल कर आगे बढ़ गये। दीनू मूर्छित हो गया था

राजवीर जी भाषण दे रहे थे ”देश के युवा ही देश की ताकत हैं, देश का भविष्य हैं, देश की आशा हैं, उनके सहारे ही हम अपना लक्ष्य पूरा कर पाएंगे हम चाहते हैं कि युवा जन आप आगे आयें”

जनता की तालियों से सारा आसमान गूंज रहा था, चारों ओर एक ही आवाज थी “नेताजी की जय”,

“नेता जी की जय”।

जिसकी आवाज में कोई नहीं सुन पाया कि किसी ने आ कर कहा “नरेश नहीं रहा”।