न तुम हारे, न हम जीते / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
न तुम हारे, न हम जीते
प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2019


क्रिकेट विश्वकप के समाप्त होने के बाद अंतिम फैसले पर विवाद जारी है, धूल उड़ रही है, मीडिया को मसाला मिल रहा है। जब किसी भी क्षेत्र में, कहीं भी अन्याय होता है तब अंग्रेजी भाषा के मुहावरे 'इट्स नॉट क्रिकेट' का इस्तेमाल किया जाता है। गोयाकि न्याय इस खेल का आधार स्तंभ माना गया है। इस खेल को अनिश्चितता का खेल माना जाता है और अंतिम गेंद के बाद ही निर्णय होता है। इंग्लैंड में इस खेल का जन्म हुआ और इंग्लैंड के साम्राज्यवाद ने इसे उन देशों में लोकप्रिय किया, जहां हुकूमत-ए-बरतानिया ने राज किया।

क्रिकेट से अधिक अंग्रेजी भाषा का प्रसार हुआ और आज भी अंग्रेजी भाषा में रचा साहित्य अत्यंत लोकप्रिय है। शेक्सपीयर के लिखे नाटकों से प्रेरित फिल्में आज भी बन रही हैं। विशाल भारद्वाज ने शेक्सपीयर साहित्य पर फिल्में बनाने का हक हासिल कर लिया है। 'मैकबेथ' से प्रेरित उनकी फिल्म 'मियां मकबूल' उनकी श्रेष्ठ फिल्म है। 'ऑथेलो' से प्रेरित 'ओंकारा' में उनसे चूक यह हुई कि ऑथेलो अश्वेत वीर है और जैसे ही एक श्वेत कन्या उससे प्रेम करने लगती है, सभी उसके खिलाफ उठ खड़े होते हैं। ऑनर किलिंग हमारी ही कुरीति नहीं है। विशाल भारद्वाज की 'ओंकारा' के पहले दृश्य में ही नायक लूटखसोट करते दिखाया गया है। मूल नाटक में वह राष्ट्र के लिए युद्ध करता है न कि लूटखसोट के लिए। जब ओंकारा का नायक गलतफहमी में अपनी पत्नी की हत्या करता है तो भी दर्शक से उसका भावनात्मक रिश्ता नहीं जुड़ पाता।

ज्ञातव्य है कि वर्तमान में इंग्लैंड की आर्थिक दशा अत्यंत जर्जर हो चुकी है। विश्वकप क्रिकेट के आयोजन के कारण दो लाख पर्यटक वहां पहुंचे। वैसे भी पर्यटन इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, क्योंकि उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे रखा है। वे हमारी तरह उदासीन नहीं है। हमारी सांस्कृतिक विरासत को हुड़दंगियों ने खत्म कर दिया है।

विश्वकप के फाइनल में तकनीकी आधार पर विजय मिलने के कारण उस रात दर्शक वर्ग ने जश्न नहीं मनाया। सब अपने घर लौट गए, क्योंकि उन्हें 'यह क्रिकेट नहीं लगा'। उनके अवचेतन में समाई न्याय धारणा ने उन्हें जश्न मनाने की इजाजत नहीं दी। सारी रात जागने वाले मयखानों में सन्नाटा पसरा हुआ था। सच तो यह है कि फाइनल मैच में न इंग्लैंड जीता और न ही न्यूजीलैंड हारा। अब नियमावली पर पुन: विचार किया जा रहा है। बारिश के कारण रुके हुए मैच के पुन: प्रारंभ होने पर नियम निर्मम हो जाता है और कम गेंदों पर अधिक रन बनाने होते हैं।

गौरतलब है कि विश्वकप के बाद सभी देशों की टीमों में परिवर्तन किए जा रहे हैं। यह कितने आश्चर्य की बात है कि भारत महान में कपिल देव गेंदबाजी के कोच नहीं हैं, सचिन तेंडुलकर बल्लेबाजों के कोच नहीं है और सुनील गावस्कर मैनेजर नहीं हैं। दरअसल, हमारे क्रिकेट संगठन पर ऐसे लोग काबिज हैं, जिन्होंने कभी यह खेल खेला ही नहीं। राहुल द्रविड़ जैसे महान खिलाड़ी को कमसिन उम्र के खिलाड़ी तैयार करने का काम सौंपा गया है।

एक खिलाड़ी किश्तों में रिटायर हो रहा है, जिस कारण उसका स्थान लेने वालों को कम अवसर प्राप्त हो रहे हैं। किसी में इतना साहस भी नहीं है कि उससे धीमा खेलने का कारण पूछे। यह सच है कि वह कभी बेहतरीन खेला है परंतु सुनील गावस्कर, सचिन एवं कपिल देव के योगदान को भी कम नहीं आंका जा सकता। संत तुलसीदास सच कह गए हैं कि समरथ को नहीं दोष गुसाई तो फिर क्या प्रजा ही दोषी है?