पटकथा लेखन : निरंजन पॉल से अभिजात जोशी तक / जयप्रकाश चौकसे

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पटकथा लेखन : निरंजन पॉल से अभिजात जोशी तक
प्रकाशन तिथि : 11 जून 2020


फिल्म में पटकथा का महत्व इतना अधिक है कि कहावत बन गई कि बचपन की पटकथा पर जीवन की फिल्म बनती है। वर्तमान में राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी इस क्षेत्र में श्रेष्ठ काम कर रहे हैं। जावेद अख्तर की पुत्री जोया अपनी मित्र रीमा कागती के साथ मिलकर पटकथा लिखती हैं। ज्ञातव्य है कि जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी पटकथा लेखक रही हैं। आदित्य चोपड़ा की ‘दिलवाले दुल्हनिया..’ की पटकथा हनी ने लिखी थी। उसमें कुछ परिवर्तन करके, रंदा मारकर फिल्म बनाई गई और आदित्य ने श्रेय ले लिया। दौलतवाले ही हमेशा दुल्हनिया ले जाते हैं। आदित्य चोपड़ा में सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे प्रतिभा को उसके उदय होने के समय ही चीन्ह लेता है और उसके अस्त होने के पहले ही उससे हाथ धो लेता है। साहसी आदित्य चोपड़ा ने नए कलाकारों और फिल्मकारों को अवसर दिए हैं। दरअसल फिल्म माध्यम में असली लेखक फिल्मकार ही होता है।

भारतीय सिने उद्योग में निरंजन पॉल पहले पटकथाकार हुए हैं। ज्ञातव्य है कि महान क्रांतिकारी पॉल के निकट रिश्तेदार निरंजन को परिवार ने लंदन भेज दिया था। उन्हें आशंका थी कि अंग्रेज पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। यह घटना भारत में अंग्रेजों के शासन के समय की है। लंदन में निरंजन को नाटक देखना बहुत पसंद था। कुछ समय पश्चात उन्होंने स्वयं नाटक लिखना प्रारंभ किया। धीरे-धीरे उनके लिखे नाटकों का मंचन होने लगा। उनकी सफलता से प्रभावित होकर हिमांशु राय और देविका रानी ने उनसे संपर्क किया। बाम्बे टॉकीज की प्रारंभिक फिल्में निरंजन पाल ने लिखी हैं। हिमांशु राय से मतभेद होने के कारण निरंजन पॉल लंदन वापस चले गए। विगत सदी के चौथे और पांचवें दशक में पंडित मुखराम शर्मा की लिखी पटकथाओं पर सफल फिल्में बनीं। पंडित मुखराम शर्मा की पटकथा में पूरा ब्यौरा लिखा होता था। ख्वाजा अहमद अब्बास की पटकथाओं में भी छोटी से छोटी बात का विवरण होता था।

पटकथाएं प्राय: अंग्रेजी भाषा में लिखी होती हैं। देश के विभिन्न क्षेत्र के लोग फिल्म उद्योग से जुड़े थे इसलिए अंग्रेजी का उपयोग किया गया। उन पटकथाओं में संवाद रोमन इंग्लिश में लिखे जाते थे। फिल्म शास्त्र कहता है कि संवाद पटकथा का अविभाज्य हिस्सा है परंतु भारतीय फिल्म उद्योग ने फिल्म लेखक के 3 विभाग बना दिए, कथा, पटकथा और संवाद। एक ही फिल्म से एकाधिक लेखक जुड़ गए। बहुत से रसोईयों के होने से भोजन का स्वाद कसैला हो गया। संवाद लेखक स्वयं को पटकथा लेखक से अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए अधिक शब्दों का प्रयोग करने लगा। इस प्रक्रिया में हमारी फिल्में वाचाल हो गईं। कलाकार मशीनगन की तरह शब्दों की गोलियां दागने लगे। शब्दों के अतिरेक के कारण कुछ दर्शक आहत हो गए इस तरह के अपराध की एफ.आई.आर भी दर्ज नहीं की जा सकती। सलीम-जावेद की पटकथाओं में भी सूक्ष्म विवरण दिया गया। उनकी पटकथाएं पनडुब्बी की तरह गढ़ी गईं जो जल में रहती हैं परंतु उसमें बाहर की एक बूंद भी भीतर नहीं घुस पाती।

गुरुदत्त शूटिंग के समय सेट पर ही दृश्य को अपने नजरिए से लिखते रहे। गौरी शिंदे की श्रीदेवी अभिनीत फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ का आधार ही अंग्रेजी बोलने की क्षमता है। नायिका अमेिरका प्रवास के समय अंग्रेजी सीखकर परिवार के सदस्यों के भरम तोड़ देती है। जबान से व्यक्ति का मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए। उन सदस्यों की बात भी सुननी चाहिए जो ज्यादा मुखर नहीं हैं। भाषा के खेल पर ही आधारित था पंकज कपूर संचालित शो ‘जबान संभाल के’ जिसकी प्रेरणा उन्हें ‘माइंड योर लैंग्वेज’ से मिली थी। शब्दों का जन्म और उनकी यात्रा एक स्वतंत्र विधा है। शब्द बिना वीजा और पासपोर्ट के ही यात्रा करते हैं। पंछी, पानी और हवा की तरह ये भी सरहद से नहीं बंधते। महान सत्यजीत राय की पटकथा में रेखा चित्र बनाए होते थे। न्यूनतम शब्दों का प्रयोग राय महोदय ने किया। चार्ली चैपलिन और दादा फाल्के का विश्वास था कि मूक फिल्म संवाद फिल्म से अधिक अभिव्यक्त कर सकती है। दरअसल पटकथा लेखन का हव्वा खड़ा करके, आम आदमी के लिए क्षेत्र प्रतिबंधित कर दिया गया है। रामायण और महाभारत श्रेष्ठ रचनाएं हैं। वाल्मीकि और वेदव्यास पटकथा लेखक नहीं थे परंतु अनगिनत पटकथाएं उनकी रचनाओं से प्रेरित हैं।