पतली गलियां और मुख्य मार्ग / जयप्रकाश चौकसे

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पतली गलियां और मुख्य मार्ग
प्रकाशन तिथि : 17 अक्तूबर 2013


तिग्मांशु धूलिया प्रतिभाशाली फिल्मकार हैं और उन्होंने उत्तरप्रदेश के एक अपराध सरगना के जीवन से प्रेरित फिल्म लिखी 'बुलेट राजा'। इसमें इरफान खान को लेना तय था परंतु अधिक आय एवं तथाकथित सुरक्षा की खातिर जाने किसके दबाव में इरफान की जगह सैफ अली खान को लिया। इरफान खान सैफ से बेहतर कलाकार हैं परंतु उनकी सितारा हैसियत सैफ से कम समझी गई, जबकि 'पानसिंह तोमर' जैसी अनेक फिल्में इरफान खान के दम पर चली हैं। उत्तरप्रदेश के दादा की भूमिका इरफान विश्वसनीय बना देते हैं। सैफ के साथ यह फिल्म 'एजेंट विनोद' की तरह लग रही है, क्योंकि उत्तरप्रदेश के अपराध सरगना तीन पीस का सूट नहीं पहनते।

हमारे अनेक प्रतिभाशाली फिल्मकारों ने बड़े अहंकार के साथ लीक से हटकर सिताराविहीन फिल्में बनाई और अपनी बॉक्स ऑफिस पहचान बनते ही वे सितारों की मुलायम सुविधाजनक गोद में बैठ गए। यह इसलिए होता है कि प्रारंभ से ही उद्देश्य मुख्यधारा में शामिल होने का होता है परंतु उसके पास की पतली गली से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुंचते हैं और फिर पलटकर नहीं देखते। नसीरुद्दीन शाह और ओमपुरी को भी शिकायत थी कि लीक से हटकर नया कुछ करने वालों ने उन्हें कम पैसे दिए और उनका शोषण किया।

हमारे यहां राजनीति में भी भ्रष्टाचार का विरोध कर देश को महान बनाने का झंडा हाथ में लिए आंदोलन करने वाले सत्तासीन होकर उन जैसे ही हो जाते हैं, जिनके विरोध के मंच का उन्होंने लाभ उठाया और कुर्सी तक पहुंचे। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े अनेक लोग सत्ता में पहुंचते ही बदल गए और उनमें से एक सबसे अधिक बोलने वाला लालच का चारा खाकर जेल पहुंच गया है। अन्य क्षेत्रों में भी क्रांतिकारी का मुखौटा लगाकर अवसर पाते ही लोग आरामदायक जगहों पर पहुंच गए। सारी पतली कांटे वाली गलियां मुख्य मार्ग को ही जाती हैं। पाकिस्तान को सबक सिखाने का नारा लगाने वाले सत्तासीन होकर 'समझौता एक्सप्रेस' चलाते हैं और क्रिकेट कप्तान को कहते हैं कि पाकिस्तान में कप भले ही नहीं जीतना, दिल जीत कर आना, क्योंकि व्यावहारिक सत्य मित्रता का ही है परंतु दुश्मनी का नारा वोट दिलाता है। उसी तरह पाकिस्तान में भारत विरोधी नारा लगाए बिना सत्ता नहीं मिलती। यही हुआ है और यही होता रहेगा क्योंकि साफगोई और सत्ता में बैर आम आदमी के ही जुनून ने पैदा किया है।

तिग्मांशु धूलिया पाला बदलने वाले पहले या आखिरी फिल्मकार नहीं हैं, क्योंकि फिल्म निर्माण में पैसा बहुत महत्वपूर्ण है और सितारे की टकसाल से ही वह बनता रहा है परंतु परचूने की दुकान में भी कम मुनाफा और गहरा संतोष मिलता रहा है। यह सब व्यक्ति की अपनी पसंद के मामले हैं। तिग्मांशु धूलिया ने यह कहानी एक यथार्थ के बाहुबली के जीवन से प्रेरित होकर लिखी है, जिसकी हाल ही में दोबारा 'ताजपोशी' हुई है, क्योंकि एक हत्याकांड में उसके खिलाफ 'यथेष्ठ प्रमाण' नहीं मिले। अनेक तथाकथित विकास में संदिग्ध श्रेष्ठता का दावा करने वालों के दाएं-बाएं भी सजायाफ्ता हैं और कुछ मुख्यमंत्रियों के भाई अपने इलाके में कहर ढा रहे हैं।

प्रकाश झा ने 'दामुल' से 'गंगाजल' और 'अपहरण' तक सामाजिक सोद्देश्यता का निर्वाह किया और 'राजनीति' में सितारों के साथ काम करके जाने किस रास्ते चले गए। अब वे फिर अजय देवगन के साथ अपनी सही जगह आ रहे हैं। यह बात खुशी की है। तिग्मांशु भी लौटेंगे या इरफान ही बड़ा सितारा हो जाएगा।