परदे के पीछे और परदे पर प्यार / जयप्रकाश चौकसे

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परदे के पीछे और परदे पर प्यार
प्रकाशन तिथि : 22 मई 2013


प्रदर्शन पूर्व प्रचार में इस समय रणबीर कपूर अभिनीत 'ये जवानी है दीवानी' शिखर पर है और 'यमला पगला दीवाना-2' के चटपटे संवाद वाले प्रोमो दूसरे नंबर पर हैं। सन् १९७२ में रणधीर कपूर और जया भादुड़ी अभिनीत 'जवानी दिवानी' में आरडी बर्मन ने माधुर्य रचा था। जया भादुड़ी 'गुड्डी' और 'उपहार' कर चुकी थीं और उनकी छवि पास-पड़ोस की घरेलू लड़की की तरह बन रही थी कि रमेश बहल की इस फिल्म में उन्होंने ग्लैमर धारण किया। इन दिनों उनका अमिताभ बच्चन से इश्क चल रहा था। 'गुड्डी' की कुछ शूटिंग अमिताभ बच्चन के साथ बतौर नायक की गई थी, परंतु 'आनंद' के प्रदर्शन के बाद दर्शक उनसे परिचित हो गए थे और भूमिका में नए कलाकार का होना आवश्यक था। रमेश बहल ने जया को उनकी पहली कार भेंट की थी और अमिताभ बच्चन के प्रति आदर दिखाया था और इसी व्यवहार के पुरस्कार स्वरूप उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ 'कस्मे-वादे' और 'पुकार' बनाने का अवसर मिला।

'जवानी दिवानी' कॉलेज परिसर में पनपे प्रेम की कहानी थी। उन दिनों युवा रणधीर कपूर इकहरे बदन के निहायत ही खूबसूरत अभिनेता थे। आज के युवा रणबीर से थोड़े लंबे और कहीं अधिक गोरे थे तथा उन्होंने अपने पिता राज कपूर-सी आंखें भी पाई थीं। वर्तमान दौर में उन्हें नायक के पिता की भूमिकाएं मिल रही हैं।

रमेश बहल की 'जवानी दिवानी' की प्रेम-कथा में हास्य और पारिवारिक ड्रामा भी था। उसके प्रदर्शन के समय तक रणबीर, दीपिका और नई 'ये जवानी है दीवानी' के निर्देशक अयान मुखर्जी पैदा भी नहीं हुए थे। अगर हम यह मान लें कि फिल्में युवा दर्शकों के दम पर ही सफल होती हैं, तो रमेश बहल की 'जवानी दिवानी' को सफल बनाने वाले युवा पांचवें दशक के मध्य में पैदा हुए होंगे अर्थात नेहरू के कालखंड में और सिनेमा के स्वर्णकाल में जन्मे थे। उनकी युवावस्था में जयप्रकाश नारायण का भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चल रहा था, जिसके परिणामस्वरूप १९७७ में चुनी हुई सरकार असफल पाई गई। आज के भ्रष्टाचार के अनेक आरोपी दागी नेता उसी जत्थे के नारेबाज थे। उस दौर के युवा दर्शकों पर राज कपूर की 'बॉबी' का नशा छाया था और 'जंजीर' द्वारा वे सलीम-जावेद की आक्रोश की छवि के अमिताभ बच्चन के भी दीवाने हो गए थे। 'जंजीर' की कामयाबी के बाद अमिताभ बच्चन ने जया भादुड़ी से विवाह किया, जिसमें राजीव गांधी और संजय गांधी ने शिरकत की थी।

अब रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की 'ये जवानी है दीवानी' प्रदर्शित होने जा रही है। रमेश बहल की फिल्म में मासूमियत थी, परंतु इस फिल्म में प्रेम करने वाला नायक 'बदतमीज दिल' का गीत गा रहा है। मासूमियत का युग नहीं है, युवा का थोड़ा बदतमीज होना आज उसका 'कूल' होना माना जाता है और उसे स्मार्ट मोबाइल फोन से खेलने का हक है। इस फिल्म के युवा दीवाने आर्थिक उदारवाद के दौर में जन्मे हैं और उनके जीवन-मूल्य नेहरू के दौर में पैदा होकर 'बॉबी', 'जवानी दिवानी' और 'जंजीर' को पसंद करने वालों से अलग हैं। वो मिश्रित अर्थशास्त्र का दौर था और दिल्ली से चले रुपए के आठ आने गरीब तक पहुंच जाते थे, जो राजीव गांधी के दौर में दस पैसे रह गए थे और अब शायद एक पैसा ही पहुंच रहा है। तमाम अच्छी योजनाओं को नष्ट करने वाले भी वही लोग हैं, जो रामलीला मैदान पर अन्ना हजारे का उत्साह बढ़ाते थे। भ्रष्टाचार के खिलाफ चले हर आंदोलन का राजनीतिक लाभ हमेशा प्रतिक्रियावादी ताकतों को ही मिलता है और यह केवल भारत महान में ही संभव है। रमेश बहल की 'जवानी दिवानी', राज कपूर की 'बॉबी' और सलीम-जावेद की 'जंजीर' के समय सिनेमा की टिकट दरें एक से दस रुपए तक थीं, परंतु रणबीर कपूर की फिल्म की टिकट दरें तीस रुपए से साढ़े तीन सौ रुपए तक होंगी। मूंगफली खाने वाले दर्शक अब पॉपकॉर्न खाने लगे हैं। आज के युवा दर्शक उस कालखंड में पैदा हुए, जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे और आज वे प्रधानमंत्री हैं। आज उदारवाद के फल थोड़े-से लोगों को उपलब्ध हैं, परंतु उसके नुकसान आने वाली पीढिय़ां भुगतेंगी।

आज युवा प्रेम का स्वरूप भी बदला है। अब कोई देवदास नहीं हो जाता और विरह के दर्द में डूबने से बेहतर वे पारो को लेकर भाग जाएं या दूसरी पारो खोज लें। आज प्रेम में भावुकता नहीं है। आज का प्रेमी बड़ा समझदार, व्यावहारिक व्यक्ति है। वह जीवन में रोना नहीं जानता वर दूसरों को रुला देने को वीरता कहता है। आज महानगरों में ऐसे युवा दंपती भी हैं, जो कमाने और ऐश्वर्य का जीवन जीते हुए बच्चे पैदा करने से बचते हैं, गोया कि उन्हें उत्तरदायित्व पसंद नहीं है। इस तरह के जोड़ों को डिन्कस कहते हैं अर्थात डबल इनकम एंड नो किड्स।

दरअसल, इन सामाजिक रीतियों का यह अर्थ नहीं है कि जीवन से प्रेम का लोप हो गया है। प्रेम सर्वकालिक महान भाव है, उसके स्वरूप में परिवर्तन होने से भी वह नष्ट नहीं होता। वियोग आज भी सालता है, परंतु अब कोई उसमें गर्त नहीं होता। टेक्नोलॉजी के उपयोग से भी प्रेम के स्वरूप में अंतर आया है। आज प्रेम-पत्र नहीं लिखे जाते, मोबाइल पर संदेश या ई-मेल की भाषा भी प्रेम-पत्र वाली नहीं है वरन ये उस भाषा का नया रूप है, जो टेलीग्राफ के उदय के समय विकसित हुई थी। इसमें क्रिया या वाक्य पूरा करने की जरूरत नहीं।

बहरहाल, रणबीर कपूर और दीपिका में इश्क रहा है, परंतु फिर अलगाव हुआ और अब दोनों का कहना है कि जीवन में भले ही हम अब प्यार नहीं करते, परंतु सिनेमा के परदे पर प्रस्तुत हमारे प्यार में सच्चाई है। शायद आम युवा भी काल्पनिक फिल्म में प्रेम का निर्वाह कर रहा है।