पसंद-नापसंद की 'इंजीनियरिंग' / जयप्रकाश चौकसे

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पसंद-नापसंद की 'इंजीनियरिंग'
प्रकाशन तिथि : 26 दिसम्बर 2012


आम आदमियों का दिमाग आजकल प्रयोगशाला बना दिया गया है। कुछ राजनीतिक प्रयोग उसमें किए जा रहे हैं, जिसके तहत जाने किस लहर पर सवार दोषी और दंडित व्यक्ति जमानत पर छूटकर चुनाव जीत रहा है और अब उन सबको उसे सलाम करना होगा, जिन्होंने उसके खिलाफ साक्ष्य जुटाए और अधिक दस्तावेजों की तलाश कर रहे हैं। बहरहाल, विज्ञापन की फिल्में बनाने वाले भी इस प्रयोगशाला में प्रयोग कर रहे हैं।

हर चीज को बेचने के लिए सेलिब्रिटी की तलाश की जाती है। आजकल रिश्तेदारों की जोडिय़ों को विज्ञापन फिल्मों में लिया जा रहा है। आज अपनी पहली चार में से तीन सफल फिल्मों में काम करने वाली सोनाक्षी सिन्हा को उनकी माता पूनम सिन्हा के साथ लेकर यह काम किया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि पूनम सिन्हा आशुतोष गोवारीकर की 'जोधा अकबर' में अकबर की मां की भूमिका कर चुकी हैं। यह खेल शुरू किया था हेमा मालिनी ने अपनी दो बेटियों के साथ विज्ञापन शृंखला में काम करके। इस शृंखला में नीतू कपूर अपनी विवाहित पुत्री रिद्धिमा के साथ देखी जा सकती हैं।

आज माता और पुत्री की इस जोड़ी का विज्ञापन दर्शक के दिमाग में तुरंत ही यह विचार पैदा कर देता है कि ऋषि कपूर की पत्नी नीतू कपूर स्वयं अनेक फिल्मों में नायिका रह चुकी हैं और आज उनका बेटा रणबीर कपूर युवा वर्ग का चहेता नायक है। इसके साथ ही ऋषि कपूर अपनी दूसरी पारी में कमाल की चरित्र भूमिकाएं निबाह रहे हैं। इस वर्ष पिता-पुत्र की जोड़ी ने बॉक्स ऑफिस पर अलग-अलग फिल्मों में धमाल किया है। ऋषि कपूर ने इस वर्ष दो सफल फिल्मों में काम किया - 'हाउसफुल २' और 'अग्निपथ' तथा रणबीर की 'बर्फी' सुपरहिट हुई है। अत: पिता-पुत्र की इस वर्ष की जमा-जोड़ आय लगभग साढ़े तीन सौ करोड़ रही है। आम जनता को इन आंकड़ों से कोई संबंध नहीं है, परंतु उनके अवचेतन में परिवार की महिमा दर्ज है।

अत: नीतू कपूर और रिद्धिमा के स्वाभाविक सौंदर्य में उनके उच्च कुल की गरिमा जुड़ जाती है। इसी तरह शर्मिला टैगोर और उनकी पुत्री सोहा के नाम के साथ मंसूर अली खान पटौदी और अब सैफ तथा करीना की संयुक्त अपील जुड़ जाती है। अर्थात सोहा को मां के साथ सफल भाई-भाभी के नाम का भी फायदा मिलता है।

विज्ञापन फिल्में बनाने वाले लोग बाजार की नब्ज के साथ विशिष्ट लोगों के पारिवारिक इतिहास को जोड़कर अपना आकलन करते हैं। आम जनता के अवचेतन में कौन-सा तार कहां जुड़ा है और इसका लाभ कैसे उठाना है, वे जानते हैं। वे जानते हैं कि किस प्रोडक्ट के लिए किस सितारे की सेवाएं लेनी चाहिए। सनी देओल स्वयं एक्शन फिल्मों के नायक रहे हैं और उनके पिता ने भी एक्शन फिल्में की हैं तो 'मर्दाना भाव' जगाकर क्या बेचा जा सकता है, वे जानते हैं। आजकल सलमान खान अपनी फिल्मों में एक्शन के साथ हास्य को जोड़ रहे हैं, अत: एक स्लीपर के विज्ञापन में बर्फ से ढंके पर्वत पर फिसलती हुई लड़की उनकी बाथरूम स्लीपर का रबर पकड़कर बच जाती है तो सलमान अपने अंदाज में कहते हैं कि यह जरा ज्यादा हो गया, गोयाकि उनका यह फिकरा उस रचना की तर्कहीनता के लिए है। माता-पुत्री जोडिय़ों के इस्तेमाल के पहले पति-पत्नी की जोडिय़ों का विज्ञापन के लिए इस्तेमाल किया गया। अजय देवगन व काजोल के साथ एक शृंखला की जा चुकी है और शाहरुख खान भी अपनी पत्नी गौरी के साथ विज्ञापन कर चुके हैं।

आज ब्रांड बन गए व्यक्तियों को ही 'ब्रांड' के प्रचार के लिए लिया जाता है। जिस तरह विज्ञापन फिल्मों में आम आदमी के अवचेतन को प्रभावित किया जाता है, उसी तरह प्रचार-तंत्र द्वारा चुनाव में लहर बनाई जाती है और चतुर फिल्मकार भी पटकथा गढ़ते समय सितारे की लोकप्रिय छवि के अनुरूप दृश्य गढ़ते हैं। दर्शक भी अपने प्रिय सितारे से कुछ अदाओं और हरकतों की अपेक्षा करते हैं। इसी कारण सितारे अपनी अदाओं को दोहराते हुए उसमें कैद हो जाते हैं। चरित्र कलाकारों की रोजी-रोटी का आधार ही लोकप्रिय छवियां हैं। मरहूम इफ्तिखार ने लगभग चार सौ फिल्ों में इंस्पेक्टर की भूमिका अभिनीत की। फिल्मकारों का पक्ष यह है कि पात्र को स्थापित करने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता। दर्शक को मालूम है कि अगर इफ्तिखार साहब पैंट-शर्ट भी पहने हैं तो सादा लिबास में पुलिसवाले ही होंगे।

यह विचारणीय है कि आम आदमी के लिए उसके ऊपर कितने प्रयोग कितने क्षेत्रों में हो रहे हैं। वह किस तरह से किन दिशाओं में हांका जा रहा है। परिवार में भी व्यक्ति की छवि बन जाती है और अन्य सदस्य उससे कुछ खास अपेक्षा ही रखते हैं, जिसके पूरा नहीं किए जाने पर रिश्ते में खटास पैदा हो जाती है। परिवारों में दरार के लिए भी कुछ हद तक लोकप्रिय छवियों का हाथ है। मनुष्य की पसंद-नापसंद की भी 'इंजीनियरिंग' की जा रही है।