पात्रों के शहर और शहरों के पात्र / जयप्रकाश चौकसे

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पात्रों के शहर और शहरों के पात्र
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2013


फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' के एक सप्ताह बाद 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' और उसके एक सप्ताह पश्चात 'मद्रास कैफे' प्रदर्शित होने जा रही है, गोयाकि फिल्मों के नाम महानगरों पर रखे जा रहे हैं। 'बीए पास' में दिल्ली के पहाडग़ंज क्षेत्र को एक पात्र की तरह प्रस्तुत किया गया है, जैसे सुजॉय घोष की 'कहानी' में कोलकाता को पात्र की तरह प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही 'तनु वेड्स मनु', 'इशकजादे' इत्यादि फिल्मों में मध्यम श्रेणी के शहरों की पृष्ठभूमि है।

ईद के बाद अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर और अन्य कलाकार सुधीर मिश्रा की 'मेहरुन्निसा' की शूटिंग लखनऊ में लंबे समय तक करेंगे। एक दौर ऐसा भी था, जब अधिकांश फिल्मों की शूटिंग स्विट्जरलैंड, लंदन, न्यूयॉर्क में होती थी, जिसका कारण यह था कि आप्रवासी भारतीय लोगों के डॉलर में खरीदे टिकटों से इतनी अधिक आय होती थी कि उनकी रुचि के अनुरूप डॉलर सिनेमा रचा जाता था। अब उस नशे से मुक्त भारतीय फिल्मकार भारत के शहरों में फिल्म बना रहे हैं। प्रकाश झा भोपाल में चार फिल्में शूट कर चुके हैं।

ऋषिकेश मुखर्जी अपनी फिल्म 'आनंद' बंबई को समर्पित कर चुके हैं। कथा लिखते समय स्थान परिभाषित नहीं करने वाले लेखक चरित्र-चित्रण भी सही नहीं कर सकते, क्योंकि पात्रों पर परिवेश का प्रभाव होता है। दीपिका पादुकोण ने 'चेन्नई एक्सप्रेस' में दक्षिण की कन्या के उच्चारण और लहजे को बखूबी निभाया है। 'शोले' के सूरमा भोपाली अपने लहजे से ही अपने शहर का परिचय देते थे।

फिल्म में प्रस्तुत भूगोल यथार्थ के भूगोल से भिन्न होता है। फिल्म के प्रारंभिक दौर में ही एक फिल्म में एक नाव को नियाग्रा जलप्रपात की ओर बढ़ते दिखाया है। दरअसल, नाव के दृश्य कहीं और फिल्माए गए हैं, परंतु संपादन की कला से नाव के खतरे की ओर जाने का प्रभाव पैदा किया गया है। आमिर खान अभिनीत 'तलाश' में मुंबई की एक पूरी सड़क की सारी शूटिंग पुडुचेरी में की गई थी। दरअसल, फिल्म तो यकीन दिलाने की कला है। 'राम तेरी गंगा मैली' में केवल गंगोत्री के दृश्य को उस स्थान पर शूट किया गया है तथा नदी तट के अन्य दृश्य कश्मीर में फिल्माए गए हैं। आजकल अनुराग कश्यप अपनी 'बॉम्बे वेलवेट' की शूटिंग श्रीलंका में कर रहे हैं, परंतु अगले दौर के लिए उन्हें श्रीलंका की सरकार चार माह बाद ही आज्ञा देगी। 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' की एक भी दिन शूटिंग वासेपुर में नहीं की गई। दीपा मेहता ने फिल्म 'त्रिवेणी', 'द अर्थ', 'फायर' और 'वाटर' की योजना बनाई थी, परंतु 'वाटर' की शूटिंग सरकारी अनुमति के बावजूद हुड़दंगियों ने बनारस में नहीं होने दी थी और शबाना आजमी ने इसी फिल्म के लिए अपना सिर घुटवाया था। बाद में इस फिल्म की शूटिंग भी श्रीलंका में की गई, तब शबाना वाली भूमिका अन्य कलाकार ने की थी। बनारस में विरोध के लिए एक व्यक्ति ने गंगा में कूदकर जान दी थी और इसी घटना के बाद शूटिंग रद्द कर दी गई, परंतु कुछ माह पश्चात वही डूबकर मरा व्यक्ति अन्य शहर में देखा गया और उसने बताया कि इस तरह के स्टंट करना उसका पेशा है।

अजब-गजब भारत में नए धंधों का आविष्कार भी किया जाता है, मसलन नदी में बाढ़ के साथ बहते वृक्षों को तैराक जान पर खेलकर किनारे लाते हैं। लकड़ी के दाम बहुत हैं और वृक्ष काटना कानूनन अपराध है, अत: कुछ वृक्ष बाढ़ के मौसम के समय काटकर बाढ़ के समय बहा दिए जाते हैं और तैराकों को उचित मुआवजा देकर लकड़ी व्यापारी ले लेता है।

केतन मेहता 'माउंटेन मैन' बनाने जा रहे हैं। स्वाभाविक है कि शूटिंग हिमालय में होगी, परंतु अधिक ऊंचाई के दृश्य किसी अन्य समान से दिखने वाले स्थान पर किए जाएंगे। शूजित सरकार की 'मद्रास कैफे' में लिट्टे के युद्ध की पृष्ठभूमि है और शूटिंग संभवत: जाफना में की गई है।

संजय लीला भंसाली की 'सावरिया' के सेट को देखकर बताना कठिन था कि यह किस देश और कालखंड की फिल्म है। साहित् में काल्पनिक प्रदेश को रुरीटेनिया कहा जाता है। कॉलरिज की कविता की प्रथम पंक्ति है 'इन जनाडु डिड कुबला खान...।' एक शोधार्थी ने हजारों वर्ष पूर्व का जनाडु खोज निकाला था।