पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा / सुरेश कुमार मिश्रा

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आप सभी ने क़यामत से क़यामत फ़िल्म का गीत-पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा...बेटा हमारा ऐसा काम करेगा तो अवश्य ही सुना होगा। जब-जब यह गीत सुनते हैं या सुनाई देता है तो हमारे भीतर पिता से जुड़ी सभी यादें तरोताजा हो आती हैं। माता जहाँ नौ माह अपनी संतान को कोख में रखकर जो पीड़ा सहन करती है, उससे वह निस्संदेह रूप में दुनिया में सर्वोपरि स्थान प्राप्त करने की पूर्ण अधिकारी है। उसकी बराबरी करना तो दूर उसके चरणों की धूल तक की बराबरी नहीं कर सकते। यही कारण है कि माँ का आकार संसार में इतना बड़ा है कि उसके प्रेम के साये में पिता का प्रेम छिप जाता है। वास्तव में पिता का प्रेम कभी छिपता नहीं है। वह तो पिता है जो स्वयं अपना प्रेम छिपाता रहता है। उसे माँ की तरह सीधे-सीधे प्रेम दिखाना नहीं आता है। वह बाहर से पर्वत और अंदर से करुणा का सागर होता है।

वास्तव में पिता संतान की सृष्टि का निर्माण और उसकी अभिव्यक्ति है। वह अपने बच्चे का सुपरमैन, बैटमन, हीमैन, स्पाइडरमैन और न जाने क्या-क्या है। उसकी उंगली पकड़कर बच्चा जीवन संघर्षों का सामना करता है। हाँ यह अलग बात है कि वह कभी कठोर तो कभी गुस्सैला लगता है। कठोरता और गुस्सैलापन तो उस पर फबने वाले सुंदर आभूषण हैं। वह इन्हीं आभूषणों को पहने अपने घर-परिवार का पालन-पोषण करता है। अनुशासन बनाए रखता है। वह संसार का एक मात्र ऐसा व्यक्ति है जो धौंस में भी प्रेम दिखा सकता है। उसके कड़े व्यवहार में भी प्रेम का अनंत करुणासागर भरा होता है। माँ धरती है तो वह आसमान है। वह हमारे सिर पर रखा ऐसा हाथ है जिसकी समानता भगवान भी नहीं कर सकता। वह घर में इंसान बनकर नहीं रोटी, कपड़ों और मकान की शक्ल में जीवन गुजारता है। वह भूख-प्यास मिटाने वाला, आवश्यकताएँ पूरी करने वाला, सपनों को सच करने वाला और हमारे चेहरे पर ख़ुशी बनकर रहने वाला भगवान का भेजा हुआ फरिश्ता है। वह अपने बच्चों को सपनों की दुनिया में उड़ने के लिए पंख बनता है। पूरा करने के लिए अपना जीवन दाव पर लगा देता है। उसका प्रेम कथनी में नहीं करनी में दिखता है। वह जब भी घर से बाहर जाता है तो बच्चों के लिए दुनिया जीतकर लाने का प्रयास करता है। जब वह घर लौटता है तो मानो ऐसा लगता है कोई फरिश्ता लौट रहा है।

पिता हमारे चेहरे पर खुशी, मन का आत्मविश्वास और दुनिया जीतने की ताकत बनकर हमारे साथ चलता है। उसके न होने पर सब कुछ फीका-फीका सा, खोया-खोया सा, उदासी के मातम-सा लगता है। वह नहीं तो कुछ नहीं है। सर्दी में ठंड, गर्मी में गर्म और बरसात में जल की बूँद का मीठा-मीठा अहसास है। वह हमारी इच्छाएँ पूरी करता है। वह विज्ञान की भाषा में खून, माँस और हड्डियों का ढांचा है, लेकिन बच्चों की भाषा में भगवान है। बचपन में वह हमारे हाथ में खिलौना बनकर, बडे होने पर कॉलेज की फीस बनकर और जाते-जाते संपत्ति का रूप बनकर हमारे साथ रहते है।

पिता के लिए बेटा-बेटी दोनों बराबर होते हैं। फिर भी हर‌ घर में बेटियाँ पिता कि लाड़ली होती हैं। वैसे भी अक्सर यह कहा‌ जाता है कि बेटे अपनी माँ के करीब होते हैं तो बेटी अपने पिता के। एक पिता ही अपने बेटी के सपनों के पंख फैलाने के लिए आसमान देता है, इसी खुले आसमान में बेटियाँ बेहिचक उड़ान भरती हैं। पिता का साथ जीवन के हर पहलू पर असर डालता है। यह जीवन का हर हिस्सा संवारता है। पिता से जो सुरक्षा का वादा मिलता है, वह कभी किसी और रिश्ते से नहीं मिल सकता। उसके लिए उसकी नन्हीं गुड़िया बिना गहनों, ताम-झाम के भी दुनिया कि हूर लगती है। इसीलिए कवि उरतृप्त ने पिता-बेटी के रिश्तों के बारे में सच ही कहा है-तुम दुलारी हो उनकी / जिनकी बांहों में खेली हो / क्या सजाएँगे चाँद-सितारे तुम्हे / तुम वैसी ही खूबसूरत हो।

वे बच्चे बड़े क़िस्मत वाले होते हैं जिनके सर पर पिता का हाथ होता है उनकी सारी जिदें पूरी हो जाती है। पिता का क्या महत्त्व है, वह उससे पूछिए जो इस प्रेम की कमी में बद्नसीब होकर पल-पल अपने में घुटता रहता है। पिता बूढ़ा हो जाए तो अपने संस्कार रूपी वट वृक्ष की जड़ों से हमें नैतिकता के नित नए पाठ पढ़ाता रहता है। उसके जाने से न केवल उसका शरीर जाता है, बल्कि उसका साहस, प्रेम और विश्वास भी चला जाता है। वह धूप में छांव, बरसात में छत, भूख में भोजन, प्यास में पानी, बेचैनी में सुकून की नींद और बद्किस्मती में क़िस्मत का वह सुखद अहसास है जिसे दुनिया कि कोई भी ताकत नहीं खरीद सकती। पिता है तो सब संभव है। हमारे जीवन रूपी सिक्के के माता-पिता चित और पट हैं। उनका आदर कीजिए। उन्हें दुख मत पहुँचाइए। भघवान हर जगह नहीं हो सकते। इसीलिए वे भगवान बनकर हमें जीवन प्रदान करते हैं, सेवा का अवसर देते हैं और हमें सारी बुराइयों से बचाते हैं।