पाप / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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छोटे बच्चो के साथ लंबी यात्रा कितनी कष्टदायक होती है इसका ज्ञान हमे नैनीताल दौरे पर हो गया था। अपने दूध मूँहे बेटे की वजह से अनुपम प्रकृति का पूरा आनंद हम खुलकर नहीं ले पा रहे थे। सबसे बड़ी समस्या दूध की थी, जो उसका एक मात्र आहार था। होटेल में पता नहीं कैसा दूध दे यह सोचकर मैं एक चाय के दुकान पर बैठ गई. वह पचास रुपय में एक पाव दूध देने के लिए राज़ी हुआ। मैने भी शर्त रखी की दूध को वह मेरे सामने खूब उबाल कर देगा। तब तक मैने अपने लिए चाय मंगाई जो पाँच रुपये की थी। तभी दो अमेरिकन मेरे पास बैठकर चाय पीने लगे। जब वे कीमत चुका रहे थे तो मैं यह देख कर हैरान रह गई की उनसे उस दुकानदार ने एक चाय के एक सौ रुपये लिए. उनके जाते ही मैने पूछा-"भैया यह क्या है?" वह हसकर बोला-"बहन जी, यही तो कमाने का सीज़न है। इससे हमलोग साल भर खाते है। यह उल्लू के पठठे ठगाने के लिए ही तो यहाँ आते हैं।" मैं गुस्से में बोली-"तुम्हे पता भी है अगर इन्हे सच्चाई का पता चलेगा तो भारतीयों के बारे में इनकी क्या राय बनेंगी। हमारे देश की गौरव गाथा जो यह केमरे में क़ैद करके ले जाते है उसमें 'मेरा भारत महान' कैसे बनेगा।" उसने प्रश्नवाचक नज़रों से मेरी ओर देखा-"कहाँ से उंगली दबी सनकी औरत ज्ञान बघारने आ गई. औरत जात, ज़रा-सी छूट दी नहीं की सिर पर सवार।" फिर भावनाओं को दबाकर मधुर स्वर में बोला-"बहन जी आपतो गुस्सा हो गई. लीजिए एक कप चाय और पीजिए. बाबू का दूध भी हो गया। आप जब तक यहाँ है बाबू के दूध की व्यवस्था मैं कर दूँगा। दूसरों के लिए भला कोई अपनो से लड़ता है।" मैं उसकी ढीठता और नीचता पर विस्मित थी। विफर कर बोली-" किस धर्म ग्रंथ में लिखा है कि अपनों को पाप करते बस देखो, रोको नहीं!। चुप रहने की सज़ा तो धर्मात्मा भीष्म को भी वाण सैय्या पर सोकर भोगनी पड़ी थी। कहा भी गया है-

" जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन।

जैसा पीयो पानी, वैसी होगी वाणी। "

मैं उठ खड़ी हुई-"मुझे और मेरे बेटे को बक्शो। तुम्हारा कारोबार तुम्हे मुबारक हो, जय हिंद।" वह पीछे से बड़बड़ाया-"पागल औरत!" यह शब्द वैसे तो मैं और बार भी सुन चुकी हूँ पर आज यह मुझे बुरा नहीं लगा क्योकि मैं क्या हूँ इसकी व्याख्या कोई दूसरा नहीं कर सकता।