पारिवारिकता की शाम पलायन का जाम / जयप्रकाश चौकसे

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पारिवारिकता की शाम पलायन का जाम
प्रकाशन तिथि : 24 जून 2014


इस जून की रात स्टार टेलीविजन ने 'स्टार परिवार' नामक एक उत्सव मनाया जिसमें आमिर खान मुख्य अतिथि थे और उनके कार्यक्रम 'सत्यमेव जयते' की तीसरी किश्त की जानकारी देने के साथ विगत दो किश्तों में उठाए सामाजिक मुद्दों को हल करने की दिशा में क्या प्रयास समाज और सरकार ने किए हैं, आमिर खान ने बताया कि बलात्कार की शिकार महिला से पुलिस की पूछताछ के तरीके सब प्रांतों में अलग रहे हैं और प्राय: तहकीकात के इन तरीकों के कारण पीडि़ता को वही हादसा शब्दों की सतह पर दोबारा झेलना पड़ता रहा है। बलात्कारी ने पहले कहां स्पर्श किया और पीडि़ता को कैसा लगा जैसी वाहियात बातें इनमें शामिल रही हैं और सारी प्रक्रिया सत्य को जानने के बदले बचाव पक्ष के लिए वे पतली गलियां खोजना जिसके जरिए वे गुनहगार को बचा सकें। बकौल आमिर खान केंद्रीय सरकार ने एक समान और सुसंस्कृत प्रक्रिया को अपनाने की हिदायत प्रांतीय सरकारों को पहले ही दे दी है। अन्य अनेक मुद्दों पर अवाम की प्रतिक्रिया से सरकार को अवगत कराया जा रहा है।

इन तमाम गंभीर बातों से एंकर को लगा होगा कि टेलीविजन पर प्रसारण के लिए की जा रही शूटिंग में अधिक टीआरपी के लिए कुछ मनोरंजन की हल्की सतही बातों भी की जाने चाहिए तो एंकर ने आमिर खान से गुजारिश की कि वे स्टार पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम की उन तीन महिला कलाकारों से मिलें जो उनकी जबरदस्त प्रशंसिकाएं हैं और फिर उन तीनों ने घोर प्रशंसक का स्वरूप लेकर आमिर खान से 'आती क्या खंडाला' गीत पर ठुमके भी लगा लिए। टेलीविजन में यही दृष्टिकोण है कि असल मुद्दों को शीघ्र ही हाशिये में धकेल कर नाच गाने पर आ जाए। यह दृष्टिकोण टेलीविजन तक सीमित नहीं है, पूरे देश में ही मूल मुद्दों को हाशिये में डालने का काम हो रहा है। मसलन स्मृति ईरानी के शिक्षित होने और शिक्षा मंत्री पदग्रहण के मुद्दे में इस बात में कोई दम नहीं है कि कोई व्यक्ति पारम्परिक रूप से डिग्रीधारी नहीं हो तो वह शिक्षा मंत्रालय नहीं चला सकता। भारतीय समाज को तथाकथित अनपढ़ या कम पढ़े-लिखों ने उतनी हानि नहीं पहुंचाई है जितनी डिग्रीधारकों ने। ऐसे तमाम अन्याय और भ्रष्टाचार में शिक्षित अफसर शामिल रहे हैं। स्मृति ईरानी प्रकरण में असल मुद्दा तो यह था कि क्या उन्होंने चुनाव फार्म भरते हुए सही जानकारी दी है या नहीं। इस असल मुद्दे को गायब कर दिया गया है। बहरहाल आमिर खान ने अपने कार्यक्रम 'सत्यमेव जयते' की संजीदगी को कायम रखा। कार्यक्रम का नाम और उद्देश्य स्टार परिवार से जुड़े कलाकारों और तकनीशियनों का संयम करते हुए उनकी 'पारिवारिकता' को फोकस में रखा जाए परंतु यथार्थ में यह हुआ कि दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने केवल अपने सीरियल के सराहे जाने पर तालियां पीटीं और अन्य की बारी आने पर खामोशी कायम रखी। यही सबूत था सीरियल संसार और भारतीय समाज में पारिवारिकता की मिथ को कायम रखने का जबकि हकीकत यह है कि अधिकांश घरों में आपसी मोहब्बत के रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं तथा आयात की गई जीवन शैली हम सबको कम संवेदनशील और कमतर सहिष्णु बना रही है। हमारी सदियों में अर्जित पारिवारिकता की भावना अब धीरे-धीरे महज रस्म अदायगी होती जा रही है।

बहरहाल कार्यक्रम में स्केटिंग जूते पहनकर नन्हें पहियों पर नृत्य का जो कार्यक्रम प्रस्तुत हुआ वह अत्यंत रोचक था। कार्यक्रम को मूटानी ब्रदर्स की कंपनी ने ठेके पर रचा था और उनके व्यवसायिक परफेक्शन की तारीफ करना होगी। यह सच है कि टेलीविजन की पहुंच और प्रभाव व्यापक है परंतु क्या इस सशक्त माध्यम ने मनोरंजन के साथ सामाजिक प्रतिबद्धता को कायम रखा है जो काम सिनेमा हमेशा करता रहा है और फूहड़ता के साथ सार्थक फिल्में बनती रही हैं। टेलीविजन सदियों पुराने अंधविश्वास और कुरीतियों को सशक्त करता जा रहा है। इस पर तुर्रा यह है कि हर कार्यक्रम का सतही तौर पर निभाया उद्देश्य कुरीतियों से मुक्ति रखा गया है परंतु उस प्रक्रिया में उसे मजबूत बनाते रहे हैं। दर्शक भी कमाल के है कि बाल विवाह के खिलाफ 'बालिका वधू' के पहले सफल दौर में बाल वय में विवाह की संख्या बढ़ गई। दूसरी बात यह कि पढ़े-लिखे लोग भी यह कहकर टेलीविजन देखते है कि वे महज वक्त काट रहे हैं परंतु इस रवैये से टीआरपी बढ़ती है और यह ताकतें मजबूत हो जाती हैं।

अब क्या करें जीवन की जद्दोजहद में फंसे थके हारे लोग अपनी दिन भर की ऊब को बिछाते हैं, उसे ओढ़ते हैं और उनींदे होते हुए रिमोट कंट्रोल हाथ में लिए सो जाते हैं। उन्हें अहसास भी नहीं कि वह छोटा सा मासूम सा रिमोट कंट्रोल अबउनके अवचेतन को भी कंट्रोल कर रहा है।